मेरे घर आना ज़िंदगी – डा. पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज करवाचौथ है,साथ ही साथ गरिमा और अंशुल की शादी की दसवीं सालगिरह है। अंशुल से मिलने के बाद ही उसने जाना था कि कुछ रिश्तें खून के रिश्तों से भी बढ़कर होते हैं। वो चांद के निकलने का इंतज़ार कर रही थी। आज पहली बार था जो अंशुल करवाचौथ और शादी की सालगिरह पर उसके साथ नहीं था पर उसने गरिमा से चांद से पहले वापिस आने का वादा किया था।

अभी पूजा करने के बाद चांद के निकलने में थोड़ा समय था इसलिए गरिमा अपनी और अंशुल की शादी की एल्बम देखने बैठ गई। उन तस्वीरों को देखते देखते कब वो अपनी यादों की गलियों में पहुंच गई उसको पता ही नहीं चला। 

वो चार बहनों में सबसे बड़ी थी। बेटे की चाहत में माता पिता ने लड़कियों की लाइन लगा दी थी। बेटियों में सबसे बड़ी होने के नाते उसके हिस्से में बस जिम्मेदारियां ही आई थी। पढ़ाई लिखाई के साथ साथ घर के काम में भी वो निपुण थी।इसी कार्य कुशलता को देखते हुए सगी बुआ ने अपने चचेरे देवर के बेटे विजय का रिश्ता बहुत एहसान जताते हुए गरिमा के साथ तय करवा दिया था।

बुआ के मुंह से यही बात निकलती की इतना बड़ा घर ढूंढकर दिया है कि गरिमा राज करेगी। उसके माता पिता भी बुआ और फूफा जी के एहसान तले दबे हुए नज़र आते। ये अलग बात थी कि विजय के घर से उसको छोड़कर हर कोई गरिमा को आकर देख गया था। विजय का ना आना उसके माता-पिता को थोड़ा खटका था पर आज के समय में भी इतना संस्कारवान और शर्मिला लड़का कहकर बात दबा ली गई थी।

एक बार कहीं से उड़ती-उड़ती खबर लड़के के सारे समय नशे में धुत पड़े रहने की मिली थी जिस पर गरिमा ने भी अपनी आपत्ति दिखाई थी पर यहां भी बुआ ने उसके माता-पिता को ये कहकर कि विजय के घर में रहने वाले नौकर तक का रुतबा उनसे बड़ा है ऐसे में लड़का ने कभी कभार दोस्तों के बीच पी भी ली तो कौनसा गुनाह हो गया,वैसे भी ये तो अमीरों के शौक होते हैं चुप करा दिया था। 

वैसे भी चार लड़की के माता-पिता होने के कारण वे उसके लिए आए विजय का रिश्ता किसी भी तरह हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे। इस तरह गरिमा शादी करके विजय के घर आ गई। वो अमीर लोगों के बीच तो थी पर वहां उसकी हैसियत नौकरानी से कम ना थी और तो और विजय के लिए जैसे वो सिर्फ अपनी हवस मिटाने का माध्यम थी। वैसे भी विजय के पीने की लत ने उसकी ज़िंदगी की नरक बना रखी थी।

वो सारा समय शराब के नशे में धुत रहता अगर गरिमा कभी उसको रोकने की कोशिश भी करती तो वो उस पर हाथ भी उठा देता। शराब की लत के साथ-साथ उसके शक्कीपन ने गरिमा का जीना मुश्किल कर रखा था। कई बार गरिमा ने अपने माता-पिता से भी कहा पर उन्होंने कभी उसकी बहनों के भविष्य की दुहाई देकर तो कभी घर गृहस्थी में ये सब चलता रहता है कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया। गरिमा की ज़िंदगी अजीब दोराहे पर आकर खड़ी हो गई थी।

वो तो अपनी किस्मत से भी समझौता कर लेती पर एक दिन अंशुल जो कि उसके पड़ोस वाले घर में ही रहता था वो अभी उस कालोनी में नया था। वो समाचारपत्र और दूधवाले का नंबर लेने आया था और उसके घंटी बजाने पर गरिमा ही बाहर आई थी। वो गरिमा से ही इनके बारे में पूछने लगा। गरिमा ने जैसे ही उसे फोन नंबर दिए इतने में ही विजय वहां आ गया और उन दोनों को बात करते देख गरिमा को भद्दी-भद्दी गालियां देने लगा।

गरिमा ने कुछ बोलना चाहा तो उस पर हाथ उठा दिया।वहां तमाशा देख रहे अन्य परिवार के लोगों ने भी गरिमा को बचाने की कोशिश नहीं की,अंशुल ये देखकर दंग रह गया। अंशुल ने भी विजय को समझाना चाहा पर विजय उसको भी उलट पुलट बोलने लगा। गरिमा ने दर्द भरी आंखों से इशारे इशारे में उसको वहां से जाने को बोला। ये सब अंशुल के लिए बिल्कुल नया था पर कुछ ऐसा था कि वो गरिमा की आंखों में छिपे उस दर्द को नहीं भूल पा रहा था।

उसके मन में गरिमा के लिए कुछ ना कर पाने का मलाल था। कई बार घर की छत से ही उसकी गरिमा से दूर से इशारों में हाल चाल पूछ ली जाती थी।

कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। एक दिन फिर से अंशुल को गरिमा के घर से बहुत शोर सुनाई दिया नीचे जाकर देखा तो बहुत सारे लोग वहां खड़े थे और पुलिस की गाड़ी भी आ गई थी। विजय का खून से लथपथ शरीर एक तरफ पड़ा था। विजय की मां और बहन उसकी मौत का ज़िम्मेदार गरिमा को बता रहे थे। जो कि बिल्कुल शांत खड़ी थी। अंशुल एक जाना माना वकील था,पुलिस इंस्पेक्टर तो उसको देखते हो पहचान गया था।

उसने ही अंशुल को बताया कि घर वालों का कहना है कि गरिमा ने विजय को दीवार की तरफ धक्का दिया जिससे टकराकर उसकी जान चली गई। अब चूंकि गरिमा भी अपनी सफाई में कुछ नहीं कह रही थी और सारे सबूत भी उसके ही खिलाफ थे तो उसको बंदी तो बनाना ही पड़ेगा। अंशुल से गरिमा की ये हालत देखी नहीं जा रही थी। उस समय तो गरिमा को उसने पुलिस के साथ जाने दिया।

घर आकर उसने बहुत ठंडे दिमाग से सोचा और गरिमा से मिलने जेल पहुंचा पहले तो गरिमा चुप्पी साधे रही क्योंकि उसको कहीं ना कहीं ये लग रहा था कि वैसे भी इस दुनिया में उसका कौन है। ससुराल में तो उपेक्षा ही मिली और मायका में भी माता पिता ने कब से उससे अपना पल्ला झाड़ दिया। पर अंशुल के स्नेहपूर्वक व्यवहार ने उसको मुंह खोलने पर मजबूर कर दिया।

गरिमा ने जो बताया उसके अनुसार उस दिन भी विजय शराब के नशे में चूर था। नशे में ही पहले तो खाना देर से लाने पर उसको गंदी-गंदी गालियां देने लगा फिर खाने के एक टुकड़ा खाते ही खाने के स्वाद को लेकर थाली उसके ऊपर फेंककर मार दी। उसके हाथ पर अभी भी जलने के फफोले पड़े थे। विजय यहीं नहीं रुका था उसने उसके जले हुए हाथ को मोड़ना चाहा ऐसे में गरिमा का धक्का विजय को लग गया। वो तो वैसे ही लड़खड़ा रहा था धक्का लगने पर उसका सिर सामने की दीवार से टकराकर फट गया और बहुत सारा खून बह गया। बहुत सारा खून बहने से उसकी तुरंत मृत्यु हो गई जिसका जिम्मेदार ससुराल वाले गरिमा को बता रहे हैं। 

असल में ससुराल वाले गरिमा को बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं और विजय के जाने के बाद उन्हें अपनी संपत्ति भी हाथ से जाने का डर है इसलिए वो गरिमा को अपनी ज़िंदगी से बाहर करना चाहते हैं। अंशुल को सारी बात समझ आ गई। अंशुल ने सफल दलीलों को प्रस्तुत करके गरिमा को निर्दोष साबित कर दिया। गरिमा जेल से तो बाहर आ गई थी पर अब अपने आगे की जीवन के लिए विचारमग्न थी।

ऐसे में अंशुल ने उसको कॉलेज में आगे की पढ़ाई का एडमिशन फॉर्म दिया और लड़कियों के हॉस्टल में उसके रहने और खाने के इंतज़ाम करवा दिया। गरिमा अंशुल के इतने सारे एहसान नहीं लेना चाहती थी। वो तो सबसे दूर जाना चाहती थी। उसकी ये सब परेशानियां अंशुल भांप रहा था। वैसे भी कहते ही हैं कि वकील और डॉक्टर से कुछ भी छिपा नहीं रहता। अंशुल ने उसको कहा कि तुम अपना सारा खर्चा खुद उठाओगी। मैंने अपने जानने वालों के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए तुम्हारा नाम दिया है।

यहां ट्यूशन का घंटे के हिसाब से पैसा मिलता है। चार पांच ट्यूशन से ही तुम्हारा खर्चा आराम से निकल जायेगा।अंशुल का गरिमा की ज़िंदगी में आना एक सपने जैसा था। जहां कोई भी खून के रिश्ता अपना ना हुआ,वहां एक अजनबी ने उसका दर्द बांटने की पूरी कोशिश की थी। छुट्टी वाले दिन अंशुल अक्सर गरिमा के साथ होता। उसको अतीत से निकालने की पूरी कोशिश करता। ऐसे ही एक दिन अंशुल ने गरिमा को जीवन साथी बनाने की बात कही।

गरिमा इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी। उसने अंशुल से स्पष्ट कहा कि वो एक बेमेल शादी का दर्द पहले ही झेल चुकी हूं। आपके मेरे ऊपर पहले ही बहुत एहसान हैं मैं नहीं चाहती कि कल को आपको मेरे से शादी करके कोई पछतावा हो क्योंकि हमदर्दी में लिए गए फैसले अक्सर दुख दे जाते हैं। गरिमा का ये सब कहना अंशुल का दिल दुखा गया। उसने कहा कि आज से मैं तुमसे नहीं मिलूंगा। मैं दिल से तुम्हें बहुत चाहता हूं इसमें हमदर्दी जैसा कुछ नहीं है पर जब तुम्हारे दिल में मेरे लिए भावनाएं ही नहीं हैं तो मैं तुम्हें मजबूर नहीं करूंगा ये कहकर वो चला गया।

गरिमा भी अंशुल को चाहने लगी थी पर वो अपनेआप को उसके काबिल नहीं समझती थी। वो वैसे भी अब किसी रिश्ते में पड़ने से बचने लगी थी। उधर अंशुल बहुत बुझा-बुझा सा उदास रहने लगा था। आजकल अंशुल की माताजी सुमित्रा जी भी उसके पास आई हुई थी। वो अपनी मां सुमित्राजी के बहुत करीब था। उसकी हालत देखकर सुमित्राजी ने जब उससे बात की तब उसने उनको सब कुछ बताया।

अंशुल की मां बहुत ही विन्रम और सहृदय स्त्री थी। वो स्त्री होने के नाते गरिमा की भावनाओं को भी समझ रही थी। बातों बातों में उन्होंने अंशुल से गरिमा का पता लिया। वो छुट्टी वाले दिन अंशुल को बिना बताए गरिमा के हॉस्टल पहुंची और उससे मिली।उसको मिलते ही उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि मेरे बेटे की ज़िंदगी बनकर मेरे घर आ जाओ।अंशुल का तुमसे मिलना और इस तरह से एक दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़ना कोई हमदर्दी नहीं बल्कि ईश्वर का इशारा है कि तुम एक दूजे के लिए बने हो।

गरिमा भी सुमित्रा जी की स्नेहमयी बातों को सुनकर अपने पर नियंत्रण नहीं रख सकी। उसकी आंखों में उनका प्यार देखकर आंसू आ गए। उसने अंशुल के साथ रिश्ते के लिए हामी भर दी। जब गरिमा सुमित्रा जी के साथ उनके घर पहुंची तब अंशुल को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ। अंशुल की आंखों की चमक देखकर सुमित्रा जी ने हंसते हुए उससे कहा कि ले संभाल अपनी ज़िंदगी।

अंशुल अपनी मां के गले लग गया और गरिमा को मुस्कराते हुए बोला कि मेरे घर आना ज़िंदगी। वो अभी ये सब सोच ही रही थी कि उसकी आठ साल के बेटी पीहू भागी भागी आई और बोली आप यहां हैं और पापा बाहर कबसे आपका इंतजार कर रहे हैं। ये सब सुनकर गरिमा अपनी यादों से बाहर आई और अपनी जीवन रेखा से मिलने चल दी। अंशुल और उसकी माता जी ने गरिमा को किसी खून के रिश्ते से ज्यादा मान-सम्मान दिया।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। जैसे रात के बाद दिन आता है वैसे ही कई बार ज़िंदगी भी सुखद और अप्रत्याशित मोड़ लेती है।

नोट: कहानी पूरी तरह काल्पनिक है ज़िंदगी में दूसरी शुरुआत करने का हर किसी को अधिकार है बस उसी सकारात्मक पक्ष को ध्यान में रखकर लिखी गई है।

#खून के रिश्ता

डा. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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