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माना काम का विशेष महत्व है जीवन में पर ये तब और बढ़ जाता है जब मन का हो।
वैसे तो संतुष्टि शब्द है ही नहीं जीवन में क्योंकि अनंत इच्छाओं के मकड़जाल में फंसा है आदमी।अब इन्हें ही ले लो पचास पूरा करते करते जाने कितनी नौकरियां बदले,जाने क्या है कि कहीं जम कर कर नही पाते चार पांच महीने करते हैं फिर या तो खुद छोड़ देते हैं या काम से संतुष्ट न होने पर बॉस ही निकाल देता है।फिर कुछ महीने घर बैठने के बाद कहीं कुछ मिलता है। इस तरह
रेखा ने देखा कि पहले तो वो छूटने पर उदास होती और मिलने पर खुश हो जाती। इन सबके बीच उसने एक निर्णय लिया कि घर को चलाने के लिए क्यों न खुद ही कुछ करे।
इससे घर भी आराम से चलेगा और झिकझिक भी हर पल घर में नहीं रहेगा ।
बस यही उसके लिए रामबाण साबित हुआ।
वो पढ़ी लिखी तो थी ही इसलिए घर से कदम अपने बाहर निकाले और एक स्कूल में अध्यापिका हो गई।
और धीरे धीरे घर को संभाल लिया ।
घर ही नहीं बल्कि सब कुछ संभाला।
जिससे घर में शांति पूर्ण माहौल रहने लगा।
अब माहौल तो शांति पूर्ण हो गया पर उसने देखा पति कुछ परेशान रहते।
पर वो कुछ कर भी नहीं सकती
अब वो परेशान इसलिए रहते कि जो भी उनके मन की थी वो मिल नहीं रही थी और जहां कर रहे थे वो उनके बस का नहीं था।
जिससे बहुत झुंझलाए रहते , पर कोई दूसरा चारा जो नहीं था इसलिए कर रहे थे।
मजबूरी थी माना उसने सब कुछ संभाल लिया पर फिर भी बड़े बड़े बच्चे है जो खर्च भी बहुत है इसलिए
कुछ तो सहारा हो ही जाता है।
ये सोचकर वो भी चुप लगा जाती।
पर आफिस का ज्यादा दबाव होने की वजह से उसने खुद छोड़ने की बात की कि जब तक महीना पूरा नहीं होता कीजिए और कहीं देखते रहिए, मिल जाए तो छोड़ दीजिए।
ईश्वर की मर्जी ऐसी की उनके मन माफिक नौकरी मिल गई।
और मिल गई तो उनके चेहरे की चमक देखते बन रही थी।
सच राम के चेहरे की चमक बता रही कि कहीं न कहीं वो संतुष्ट हैं
सही बात है काम तो महत्वपूर्ण है ही जीवन में ये नहीं तो पैसा नहीं और पैसा नहीं तो जिंदगी बेकार ।
पर इसके साथ साथ मन का भी विशेष महत्व होता है।
क्योंकि यदि मन का हो तो कोई ग़लती भी नहीं होती और लुफ्त भी बहुत आता है।
उसे देखे लग रहा की इंसान के जीवन में काम और मन दोनों का बराबर महत्व होता है।
स्वरचित
कंचन आरज़ू