मायके का पहला सिंधारा – कुमुद मोहन

बहूजी! कोई कमी ना होनी चाहिए,बेटी का पहला सिंधारा जा रहा है,हम जानती हैं तुम हर चीज में हाथ खींच कर चलती हो,भगवान के वास्ते आज अपनी कंजूसी ना दिखाना” दादी की कड़कती आवाज सुन नीरा का मुँह उतर गया!

दो महीने पहले ही नीरा और अशोक की बेटी सुमा का ब्याह सुधीर से हुआ था!

सुमा के भाई समर का ब्याह छः महीने पहले पीहू से हुआ था!पीहू से समर ने लव मैरिज की थी!हांलांकि पीहू सीधी सादी,बहुत सुंदर,सुशील लड़की थी पर उसकी बिना दान दहेज की शादी अम्मा जी की आँख की किरकिरी बनी हुई थी!

ब्याह के बाद सुमा और पीहू दोनों की पहली तीज थी!दादी पुराने जमाने की ठसकेदार जमींदार परिवार से आई थीं!

सोचती लड़की के ससुराल वालों को सामान और रूपया पैसा देकर अपने अंगूठे के तले दाब कर रखो!

ब्याह में भी उन्होंने खूब खर्च करवाया ताकि किसी को मुंह खोलने का मौका ना मिले!

दादी चश्मे को नाक पर सरका नीरा को सुमा के ससुराल भेजने वाले तीज के सिंधारे की एक एक चीज गिनवा रही थी!

फलों का टोकरा – फल वाले बलराम को कह दीजो एक एक फल छंटा हुआ हो,ताजा हो पैसों की फिकर ना करे चीज नंबर एक की दे!

ग्यारह डिब्बे मिठाई-जिसमें बादाम,काजू और पिस्ते की मिठाईयों के अलावा देशी घी की सबसे बढ़िया मिठाईयां हों!अशोक को कह दीजो हलवाई कुंजी लाल को ताकीद कर दे मिठाई ताजी हो!

पांच डिब्बे मलाई घेवर !

नीरा ने कहना चाहा इतनी गर्मी है अम्मा मलाई खराब हो सकती है पर अम्मा के आगे किसी की चली है क्या?बोली”अरे!घेवर तो तीज की शान होवे है मुँह मे रखते ही घुल जाए ऐसा हो, हमारी बिट्टो के ससुराल सूखा घेवर थोड़े ही जाएगा?

तुम्हारे मैके की तरह ना कि होली-दीवाली हलवाई की दुकान से रखे हुए डिब्बे उठाकर भेज दें,मिठाई ना खाने की ना किसी को देने की हुंह!अम्मा जी नीरा को ताना देना कभी नहीं चूकतीं!

सुमा की गोटे पट्टी की हरी बंधेज-लहरिया की साड़ी और पोलकी का हरा लहंगा!

साड़ी पहन के मेहंदी लगवा लेगी और लहंगा पहन कर झूला झूलेगी!

अब जेवर-  “मीने के मोर वाला सतलड़ा जो मैंने पहले से बनवा रखा था !कुछ ध्यान भी है रघुनाथ जौहरी के यहां से वापस आया या वहीं पड़ा है? साथ मे जड़ाऊ कंगन भी सब मंगवा लो”

कुंदन की पाजेब और मांग टीका और सोने के मीनाकारी वाले बिछुऐ! उनके यहां चांदी के बिछुऐ होते होंगे हम तो भई सोने के ही भेजेंगे!”

कहते हुए अम्मा की गर्दन गर्व से तन गई!

नीरा तुम्हें तो किसी बात का होश नहीं रहता,बेटी का ब्याह कर दिया ,बहू ले आई पर सबकुछ मुझे ही बताना समझाना पड़े है!

मेंहदी घोलने को चांदी का कटोरा चम्मच भूल गई ना?अब फुलकिया सा कटोरा मत मंगवा लीजो जो दबाने से ही पिचक जाए,रघुनाथ को कहना हमारी हैसियत के हिसाब से भेजे!”

नीरा “जी अम्मा “कहकर हां में हां मिलाऐ जाती!

“रेशम की रस्सी आ गई या उसे भी मैं लेने जाऊं?

झूले की पटरी पर चांदी का पत्तर चढ़वाकर मीना कराने को दिया था ना मंगाया हो तो मंगवा लो”

सिंगार पेटी में बिंदी,चूड़ी,महावर सब रख दिया ना!”अम्मा बिना रूके बड़बड़ाती रही।

“ये तो हो गया सुमा का!

अब उसकी सास की दो साड़ियां अच्छी भारी हों नहीं तो कहने में देर ना लगाऐंगी कि अपनी छोरी को बढ़िया दिया हमें सस्ते में टरका दिया”

ससुर के कपड़े,सुधीर का जोड़ा,ननद देवर के कपड़े और दो जोड़े नौकर-चाकरों के।

इन कपडों के साथ शगुन के लिफाफे भी रख दीजो!जरा ढंग का शगुन रखियो,कहीं नाक ना कटवा दीजो”

बीच बीच में अम्मा नीरा को सुनाती भी जाती “तुम्हारे  घर से तो कभी ढंग का सिंधारा आया ना ,तो तुम्हें तो पता ही ना होगा कैसे भेजा जावे?

रही बात पीहू के मैके की तो वहाँ से तो उम्मीद करना ही बेकार है!उन्होंने तो शादी निपटा दी वही क्या कम है?

हमारी तो भई मन की मन में ही रह गई कि हमैं भी कोई ढंग का कायदे से सिंधारा भेजता” कहकर अम्मा ने एक गहरी सांस ली!

अम्मा जी की सिंधारे की तैयारियाँ देखकर पीहू की जान सूखी जा रही थी !पीहू के पिता ब्लड प्रेशर और डायबीटीज और मां गठिया और अस्थमा की मरीज थी!

पीहू का छोटा भाई इसी साल इंजीनियरिंग करने मनिपाल गया था!

पीहू की शादी उन्होंने पहले से बचाकर रखे पैसों से  किसी तरह निपटा दी थी!

पीहू जानती थी कि उसके मां-बाप की अब इतनी हैसियत नहीं कि वे भारी सिंधारा भेज सकें पर अम्मा जी का डर उसे खाऐ जा रहा था!जाने क्या क्या ना सुनाऐंगी अम्मा जी?

वह हर वक्त बुझी बुझी रहती!

तीज से चार दिन पहले पीहू के पिता की चिट्ठी आई जिसमें उन्होंने सिंधारा न भेज पाने की अपनी विवशता बताई कि वे दोनों बीमार हैं और भाई भी अभी नहीं आ सकता!पीहू कहे तो वे कुछ पैसे शगुन के नाम पर भेज देंगे!

मौके से पोस्टमैन चिट्ठी नीरा के हाथ दे गया ,नीरा ने भगवान से क्षमा मांग कर चिट्ठी खोल कर पढ़ ली!

पीहू के पिता की मजबूरी और उनके हृदय के उद्गार पढ़कर नीरा की आंखों में आँसू आ गए!

उसने चिट्ठी अपने पास रख कर शाम को अशोक को दिखाई!चिट्ठी उन्होंने पीहू को नहीं दी यह सोचकर कि उसका दिल दुखेगा!

अशोक जानते थे सिंधारे को लेकर अम्मा नीरा और उसके घरवालों को हमेशा से सुनाती आ रही हैं ! अशोक अम्मा जी की ज़्यादती बर्दाश्त कर चुप रहते पर अंदर अंदर हमेशा घुटते ! पर अब वह नहीं चाहते थे जो कुछ नीरा ने सहा वही सबकुछ पीहू के साथ भी दोहराया जाए!

अबतक वे चुप रहे पर अब और नहीं उन्होंनेमन ही मन कुछ निर्णय लिया?

अशोक ने नीरा को चुप रहने को कहा कि वह सबकुछ संभाल लेंगे!

तीज के पहले दिन शाम को ऑफिस से लौटकर अशोक ने नौकरों से गाड़ी से सामान निकालने को कहा!

फलों के टोकरे,मिठाईयों के डिब्बे,कई सारे गिफ्ट पैक!

उतरते देख अम्मा जी हक्की बक्की सी बोली”क्या है ये सब,कहाँ से आया?”

अशोक ने अम्मा को हाथ पकड़कर बैठाया और कहा”अम्मा! पीहू के पापा ने अपने दोस्त रविन्द्र जी के साथ पीहू का सिंधारा भिजवाया है,वे जल्दी में थे इसलिए मेरे ऑफिस में देकर चले गए”।

सिंधारा देख अम्मा जी  खुशी के मारे फूली नहीं समाई!वाह भई !पीहू के पापा ने हमारा मान रखकर हमारा तो दिल ही खुश कर दिया फिर सी बी आइ नजर डाल कर बोली”ये सारा सामान तो यहीं का खरीदा दीखे है,साड़ियां,मिठाई सबकुछ?

“हां अम्मा रविन्द्र जी कह रहे थे कि पीहू के पापा ने पैसे भिजवा कर यहीं से सामान खरीद कर भिजवाने को कह दिया था, हमें क्या ?अब कहीं से भी खरीदा हो,अच्छा है आपके मनपसंद के मिठाई फल आ गए ,इन्हें आप खा भी सकती हैं और बांट भी!

अम्मा जी बहुतखुश हो गईं!

“नीरा!मेंहदी वाली को बुलाओ और ब्यूटीशियन को भी कह दीजो हमारी बहू की पहली तीज है इसे अच्छे से तैयार करे,हां जल्दी से आंगन में झूला डलवा के फूलों से सजवा  दे!और समर को कह दीजो इधर-उधर ना निकल जाए हमारी बहू को झूला झुलाना है उसे!

बाहर अम्मा तीज की तैयारियां करा रही थी उधर कमरे में पीहू के पापा फोन पर उसे बता रहे थे कि वे कितने मजबूर और शर्मिदा हैं कि बेटी का पहला सिंधारा भी नहीं भेज पाऐ!

जब पीहू ने कहा” रविन्द्र अंकल के हाथ आपने इतना सामान भिजवाया ,कहाँ से किया पैसों का इंतजाम !अम्मा जी जो कहती मैं सुन लेती,अब आप अपनी और मां की बीमारी में दवाई और खाने में कटौती करेंगे “और वह सुबक सुबक कर रो पड़ी!

पीहू के पापा ने बताया कि रविन्द्र तो अमरीका में हैं , उनसे तो काफ़ी टाइम से बात ही नहीं हुई।

पीहू सोच ही रही थी तभी नीरा और अशोक कमरे में आऐ और पीहू को गले लगाकर बोले”बेटा! रोना बंद कर के तीज की तैयारी करो! सिंधारा उन पापा ने भेजा या ये पापा लाऐ मत सोचो!फिर पीहू को पूरी बात बताई और चोरी से उसकी चिट्ठी पढ़ने के लिए क्षमा मांगी!

उसके आँसू पोंछते हुए कहा “वादा करो कि आज से हमारी बेटी की आँखों में कभी आँसू नहीं आऐंगे!”

पीहू का मन खुशी से भर गया यह सोचकर कि उसे कितने अच्छे सास-ससुर मिले !वहअशोक और नीरा के पैर छूने को झुकी तो दोनों ने प्यार से उसके सर पर हाथ धर कर हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद दिया!

दोस्तों

कई बार बड़े-बूढ़े की रीति-रिवाजों को लेकर इतने स्वार्थी हो जाते हैं कि उन्हें दूसरे की विवशता और परेशानी नज़र नहीं आती!वे लकीर का फकीर बना रहना चाहते हैं! वे नहीं सोचते कि किसी के सामान या रूपया पैसा देने से घर नहीं भरता!पीहू हर तरह से एक अच्छी बहू थी ऐसे में उसके लिए नीरा और अशोक ने जो कदम उठाया वो तारीफ़ के काबिल था!काश सबकी सोच ऐसी हो जाए !

आपको मेरी कहानी पसंद आए तो प्लीज लाइक-कमेंट अवश्य दें!

आपकी

कुमुद मोहन 

गोमती नगर! लखनऊ 

 

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