मायके का विकल्प – डा. पारुल अग्रवाल

#मायका- 

नीरू और उसके बच्चों की गर्मी की छुट्टियां शुरू होने वाली थी, उसकी सारी दोस्तों और बच्चों के भी दोस्तों ने नानी के घर जाने के लिए टिकट करा लिए थे। पर नीरू के लिए ये समय हर साल बहुत कसक वाला होता था । बच्चें भी उससे पूछते कि सब लोग अपने नाना-नानी के घर जाते हैं हम क्यों नहीं, किसी तरह बच्चों को तो वो समझा देती थी पर अपने मन में जो भावना का ज्वार उठता था उसे नहीं रोक पाती थी। ऐसा नहीं था कि उसके मायके में कोई कमी थी या उसके माता पिता ने उसके प्रति जिम्मेदारी में कोई कसर रखी थी, घर पर भाई भाभी भतीजे-भतीजी सब थे। पूरी तरह संपन्न परिवार था। पर पता नहीं क्यों नीरू कभी शादी के बाद मायके रहने नहीं गई थी, ना तो माता पिता और भाई भाभी ने भी कभी उसे रहने के लिए बुलाया था। उसका मायका और ससुराल एक ही शहर में था, जबकि उसके पति और वो बच्चों के साथ नौकरी की वजह से दूसरे शहर में रहते थे। जब भी वो ससुराल आती तब एक दो घंटे ही मायके में बिताकर चली जाती।उसे लगता की शायद मम्मी पापा शायद इस बार तो उसे आने को कहेंगे पर ऐसा कभी नहीं हुआ।   


उसने बहुत बार सोचा कि ऐसा उसके साथ क्यों हो रहा है आखिर में उसने अपनेआप को यह सोचकर समझाया कि शायद उसका ससुराल और मायका एक ही जगह है इसलिए उसके माता पिता को लगता होगा कि वो ज्यादा से ज्यादा समय अपने ससुराल वालों के साथ बिताए। पर ये बातें वो सिर्फ अपना दिल रखने के लिए सोच रही थी, कहीं न कहीं उसे ये भी लग रहा था कि भाभी भी तो अपने मायके जाती है, यहां तक जब वो लोग छोटे थे तो वो भी मम्मी के साथ नानी के यहां जाते थे पर वो लोग क्यों उसको एहसास को नहीं समझ पा रहे है। क्यों शादी के बाद उसका मायका उससे इस तरह छिन गया। शायद कहीं ना कहीं रिश्तों पर भी स्वार्थ की परत जमने लगी है। उसके पति कहीं ना कहीं साथ रहते रहते नीरू के मन की हालत समझने लगे थे उन्होंने एक दिन उसको बैठाकर बहुत प्यार से समझाया और कहा कि अब आगे से जब भी गर्मी की छुट्टी होंगी तो हम किसी के घर नहीं जायेंगे,हम नई-नई जगह घूमेंगे और परिवार के साथ अच्छा समय व्यतीत करेंगे। इससे हमारा जो भारत भ्रमण करने का सपना भी पूरा होगा,मन भी प्रफुल्लित होगा।

इसके बाद जो छुट्टियां बचेंगी उसमें मेरे को तो ऑफिस जाना होगा पर तुम घर पर रहकर अपने लिए खाना बनाने वाली से लेकर सब कामों के लिए लोग रखो,अपना आराम से सोकर उठो। जैसे शादी से पहले अपने मायके रहती थी, वैसे रहो। इस तरह तुम मायके के एहसास को कुछ हद तक यहां भी जी सकती हो,इन सब बातों से नीरू के दिल की उलझन थोड़ी तो खत्म हुई। उसे कहीं ना कहीं ये भी लगा कि कम से कम उसके पति ने तो अपनी तरफ से उसका अनकहा दुख बाटने की कोशिश की और उसे मायके का एक विकल्प भी दिया।।

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