मर्यादा की वेदी पर कुर्बान’ – प्रियंका सक्सेना

सुधा की खबर आते ही घर में मातम छा गया…अम्मा छाती पीट पीट कर विलाप करते हुए सुधा की ससुराल वालों को कोसने लगीं, “कीड़े पड़े उन लोभियों को। मार डाला मेरी बिटिया को। हाय मेरी सुधा, मेरी बिटिया! 

गार्गी से जब सहन नहीं हुआ तो वह आँगन में आकर बोली, “अम्मा दीदी को उन लोगों ने नहीं आपने मारा है। “

आँगन में मौजूद सभी मोहल्ले वालों के साथ-साथ अम्मा भी उसे देखने लगे।

अम्मा रोना भूल चीखकर बोली, “क्या बोल रही है, गार्गी?”

मोहल्ले वालों की ओर मुड़ कर अम्मा बोली,” लगता है, बड़ी बहन की मौत का सदमा लग गया छोरी को। पगला गयी है।”

” नहीं अम्मा! न मुझे कोई सदमा लगा है न मैं पगला गयीं हूँ लेकिन आज मैं बोलकर रहूंगी ,अगर आज नहीं बोली तो कल को मेरा भी यही हश्र होगा जो दीदी का हुआ। ” गार्गी बड़ी मुश्किल से रोना रोककर बोली

“अरे गार्गी! ऐसा क्या बुरा कर दिया हमने सुधा के साथ जो अपनी बेटी होकर तू हमें सुनाये जा रही है। “

” तो सुनो अम्मा, सबसे बुरा तुमने दीदी के साथ तब किया था जब उन्नीस साल में उसकी पढ़ाई छूटा कर शादी कर दी। वो बेचारी कितना रोई कि कम से कम ग्रेजुएशन तो करने दो पर तुमने एक ना सुनी। कह दिया कि लड़का खानदानी है , घर- परिवार बढ़िया है। ऐसा बोलकर लड़केवालों की हर माँग शादी के वक्त पूरी कर दी आपने और पिताजी ने। “

“बिटिया ये तो हर कोई माँ- बाप अपनी बेटियों की अच्छे घर में शादी करता है, बुरा क्या किया तुम्हारी अम्मा – पिताजी ने ?” मन्नो बुआ बोली

वहां मौजूद सभी औरतों और आदमियों ने हां में सिर हिलाया।

” बताती हूँ बुआ। शादी के बाद कुछ समय तक लड़केवालों की जायज नाजायज सभी मांगे पूरी की , उनका लालच बढ़ता गया। फिर दीदी के साथ मारपीट करने लगे, हर दो महीने में नई फरमाइश के साथ भेजते। तब तुमने ही अम्मा, दीदी की मार के निशानों को अनदेखा कर उससे कहना शुरू कर दिया कि सहन करना सीखो। परिवार की मर्यादा के नाम पर, इज्ज़त के नाम पर दीदी को चुप रहने को बोला। अम्मा, तुम दीदी को बोलती थी कि  हम कहाँ तक करेंगे, कब तक करेंगे ? आदि आदि। अब वो ही तुम्हारा घर है , मारे या पीटे वहीँ तुम्हें रहना है। थोड़ी बहुत मुश्किल लगी रहती हैं। ऐसा बोलकर अपनी जाई बेटी से अम्मा तुमने मुँह मोड़ लिया।




याद है ना अम्मा, दीदी जब आखिरी बार यहां आई थी, कैसे कह रही थी कि अब वो सहन नहीं कर पा रही है। तब भी तुम निर्मोही बनकर उससे बोली कि जैसे दामाद जी रखे रहो। जिस घर तुम्हारी डोली गयी है वहीँ से अर्थी उठनी चाहिए” कहते कहते गार्गी की आवाज़ रुंध गयी

थोड़ा रुककर वह बोली ,” लो उठ गयी अर्थी , मान ली तुम्हारी बेटी ने तुम्हारी बात! उस दिन के बाद दीदी ने कभी तुमसे अपना दुखड़ा नहीं रोया। अब सम्भाल कर रखो अपने घर की मर्यादा, बेटी कुर्बान हो गई तुम्हारी अम्मा! मर्यादा की वेदी पर कुर्बान हो गई दीदी!” इसके आगे गार्गी बोल नहीं पायी, शब्द सिसकियों से करुण क्रंदन में बदल गए।

वहां खड़ी अम्मा धड़ाम से धरती पर बैठ गयीं। पिताजी और भाई जो सुधा के घर जाने के लिए निकल रहे थे , शर्म से गड़ गये क्योंकि सुधा को ये बातें उन सभी ने भी सुनाई थीं।

आज सुबह-सुबह सुधा की ससुराल से फ़ोन आया कि सुधा ने रात में पंखे से लटककर अपनी इहलीला समाप्त कर ली।

भाई-बाप गए सुधा की ससुराल, मुकदमा किया। डेढ़ साल बाद उसके ससुरालवालों को दहेज़ हत्या के लिए सात साल का कारावास सुनाया गया।

पर क्या गार्गी की दीदी इससे लौट आयी? क्या शादी होने बाद ससुरालजनों के रहमोकरम के ऊपर लड़की को छोड़कर उसकी तरफ से आँखें मूंद लेना चाहिए।

मर्यादा घर की चली जाती है जब ब्याही बेटी मायके आ जाती है, इज्ज़त की दुहाई‌‌ देकर  बेटी को वापस उसी नरक की आग में जलाने में कहकर छोड़ दिया जाता है कि अब वही तेरा घर है…. विडम्बना है हमारे समाज की कि जो बेटी शादी से पहले घर की जान होती है शादी के बाद उसी घर में उसके ज्यादा दिन रुकने पर ही सवाल उठाए जाते हैं…

 

बेटी परेशान होने पर अपने ही मायके में जगह नहीं पाती है , क्यों? आखिर क्यों?

उसकी अर्थी ससुराल से ही उठनी चाहिए, ये ज्ञान देने की बजाय माता-पिता को बेटी को इस हौसले के साथ विदा करना चाहिए कि बिटिया शादी की है, बेचा नहीं है तुम्हे। जब भी ज़रूरत पड़े, आ जाना। घर तुम्हारा भी है! परन्तु अफ़सोस ऐसा बेटियों से विदाई के समय कोई नहीं कहता! बेटे के समान बिटिया को भी पैरों पर खड़ा करो, दहेज देने की जगह उसकी पढ़ाई पर पैसे लगाओ।

मानसिकता बदलो , नहीं ऐसे ही बेटियां दहेज़ लोभियों के हाथों कभी मरती रहेंगी तो कभी वो ख़ुदकुशी कर लेंगी….और लड़की के माता-पिता मान- मर्यादा के नाम पर बेटियों की बलि यूं ही चढ़ते देखते रहेंगे।

क्या आप ऐसी विदाई परिवार की मान-मर्यादा के नाम पर अपनी बेटियों के लिए चाहते हैं? आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा…




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धन्यवाद।

-प्रियंका सक्सेना

(मौलिक व‌ स्वरचित‌)

#मर्यादा

1 thought on “मर्यादा की वेदी पर कुर्बान’ – प्रियंका सक्सेना”

  1. दहेज लोभियों को कभी भी अपनी बेटी नहीं देनी चाहिए, याद रखना चाहिए कि लोभियों का पेट कभी नहीं भरता। ग़लती से भी हो जाये तो बच्ची तो अपनी है उसे अपने पास रखने में क्या दिक्कत है, मायके वाले रक्षा नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा। खानदान की मर्यादा बड़ी है तो क्या इन्सान की ज़िदगी का कोई अर्थ नहीं है ।🌹🙏🏼🌹❤

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