डॉगी की व्यथा –  बालेश्वर गुप्ता

  कहीं पढ़ा भी था और समझा भी था कि शांति और सम्मान के साथ यदि जीवन यात्रा पूर्ण करनी है तो बुढ़ापे में सहनशील होना और चुप रहने की आदत डाल लेना ही कुंजी है।रमेश ने इन गुर को अपना लिया था।मुन्ना को उसने समझा दिया था बेटा देख हमने तो अपनी जीवन की पारी खेल ली अब तुम्हारे सामने खुला पिच है, जैसा अच्छा लगे खेलो,अब तुम्हारी बारी है और हाँ मुन्ना बस आखिरी एक सलाह है, बेटा जीवन मर्यादित होना चाहिये।

     उसके बाद रमेश ने कभी भी मुन्ना के किसी निर्णय या उसकी जीवन शैली में हस्तक्षेप नही किया।रमेश महसूस कर रहा था कि मानो उसके सर से कोई बोझ उतर गया है।अब उसे कुछ भी सोचने की आवश्यकता  ही नही रह गयी थी।मुन्ना परिवार में जो निर्णय लेता उसको रमेश कभी काटता ही नही था।सब कुछ ठीक चल रहा था।वैसे भी मुन्ना रमेश का पूरा ध्यान रखता,उसके रहन सहन का ,उसकी हारी बीमारी का,उसकी इच्छाओं का।और बुढ़ापे में क्या चाहिये?

       इधर मुन्ना में एक परिवर्तन रमेश को यदा कदा विचलित कर रहा था।मुन्ना रमेश का पूर्व की भाँति ध्यान तो रख रहा था पर बोलचाल में उसके एक खीजपन सा ,झुंझलाहट सी होती।रमेश यदि कोई बात पूछता तो मुन्ना उसका उत्तर तो देता पर झुंझलाहट में।इससे रमेश सहमने लगा ,उसे लगता शायद वो ही अधिक बोलने लगा है या अधिक प्रश्न करने लगा है।ऐसा सोच रमेश  ने अपने को और अपने मे समेट लिया।कभी कभी रमेश के मन में आता कि कहीं मुन्ना उसे बोझ तो नही समझने लगा,पर ऐसा भी कुछ दिखायी नही पड़ रहा था,उसकी हर जरूरत को एक इशारे पर मुन्ना पूरा करता।अजीब सी कशमकश में रमेश अपने को पा रहा था।मुन्ना की बोलचाल की शैली से उसके आत्मसम्मान को चोट लगती और उसके सेवा भाव से वो अभिभूत भी हो जाता।इसी पशोपेश में रमेश कभी कभी सोच सोच कर मानसिक रूप से उद्गिन हो जाता।




        रमेश ऐसे ही अपने अतीत में पहुंच गया।मुन्ना उसे घोड़ा बनाता और वो बनता, ऑफिस जाने को देर भी हुई होती तो भी वो मुन्ना के लिये घोड़ा भी बनता और उसे बहलाकर ही आफिस जाता।पर मुन्ना पर रमेश कभी नही झुंझलाता।फिर मुन्ना अपने पापा के साथ ऐसा क्यों कर रहा है,जबकि वो उसे न बोझ मान रहा है और न ही उसकी आवश्यकताओं को नजरअंदाज कर रहा।फिर इस मर्यादाहीन व्यवहार का कारण क्या है?

       अचानक रमेश को याद आया कि उन्होंने मुन्ना के लिए ही एक डॉगी को पाला था,जर्मन शेफर्ड नस्ल के इस डॉगी को पूरे परिवार का खूब प्यार मिला,मुन्ना तो बिना उस डॉगी के एक मिनट भी नही रह पाता।सब उसका खूब ध्यान रखते,खूब खिलाते पिलाते,घुमाते।डॉगी भी घर मे खूब घुल मिल गया।डॉगी ने रमेश के घर मे अपना पूरा जीवन जिया।रमेश की समझ मे आ गया कि डॉगी उसके घर मे जीवन पर्यन्त इसी कारण निभ पाया कि वो बोलना नही जानता था,भौकना उसने छोड़ दिया था।दूसरे वो जानवर था,अपनी व्यथा कह नही सकता था।

      पता नहीं रमेश अपनी मानसिक समस्या छोड़ डॉगी के बारे में क्यों सोचने लगे?

           बालेश्वर गुप्ता

                 पुणे(महाराष्ट्र)

  मौलिक और अप्रकाशित

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