प्रशांत एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था । मधु से उसकी शादी तय हो गई थी ।वह भी टी सी एस में काम करती थी । घर की बड़ी लड़की थी । उसकी एक बहन और एक भाई था । कुछ ही दिनों में दोनों का विवाह हो गया । प्रशांत का हाथ पकडकर मधु ने अपने नए घर में कदम रखा । पूरा घर रिश्तेदारों से भरा था । रीति रिवाजों के बाद मधु को आराम करने के लिए छोड़ दिया गया । सबके जाने के बाद मधु सोचने लगी …कैसे पल में अपना घर पराया हो जाता है और पति का घर अपना । सोचने लगी अब यह घर और घर के लोग मेरे अपने हैं सिर्फ़ रिश्तों में बदलाव आया है । माँ सास बन गईं।पापा ससुर ।भाई देवर ।बहन ननंद । सुबह हुई मधु अपने नए रिश्तों में ढल गई ।अपनी नौकरी और घर के काम काजों में
व्यस्त हो गई थी । उसके जीवन में एक नए रिश्ते ने जन्म लिया था माँ का … महीने और साल गुजर गए । प्रशांत और मधु कब उम्र की उस दहलीज़ पर पहुँच गए कि पता ही नहीं चला कि बेटा विवाह के योग्य हो गया था ।
इन बीते सालों में सास ससुर का स्वर्गवास हो गया । ननंद का ब्याह भी हो गया । वह अपने घर में खुश हैं । अब घर की सारी ज़िम्मेदारियों को निबटाने के बाद जब मधु ने अपनी तरफ़ ध्यान दिया तो उसे अपने बच्चों की ज़िम्मेदारियाँ दिखाई दीं । बेटी श्रुति का विवाह सुधीर के साथ धूमधाम से संपन्न किया आज वह दुबई में रहती है अब बेटे का विवाह भी कर मधु और पंकज अपनी ज़िंदगी जीना चाहते थे । इसलिए उन्होंने पंकज को भी विवाह के लिए राजी कर लिया । एकदिन पंकज मधु के पास बैठकर कहने लगा माँ आपसे कुछ कहना है ..क्या है बेटा— माँ मैं आप लोगों के साथ ही रहना चाहता हूँ ..मुझे बाहर नहीं जाना है ।ठीक है बेटा -अभी किसी ने आपसे कुछ कहा क्या कि बाहर जाओ । अरे!!नहीं माँ मेरी शादी हो रही है न और मैं नहीं चाहता कि घर में कोई अशांति फैले। मैं अपना अलग से घर नहीं बनाऊँगा । माँ आप लोगों के बिना मेरा जीवन सूना है । इसलिए आप बहू के आने के बाद क्या करेंगी ? कैसे सँभालेंगी ? मुझे नहीं पता पर घर में शांति चाहिए कहकर चला गया ।
पंकज का विवाह सोनी से हो गया । मधु रसोई में काम कर रही थी तभी उसे लगा उसके पीछे परछाई सी है ।पलट कर देखा बहू थी ।हिरणी के समान चौकड़ी मारती हुई मेरे आगे पीछे घूम रही थी ।मुझे लगा मेरे साम्राज्य में कोई क़ब्ज़ा करने आ गया है !!!!उसने कहा माँ मैं सब काम कर देती हूँ आप रहने दीजिए…. दिल धक से रह गया मुझे मेरे राज्य से बाहर जाना पड़ेगा ..फिर बेटे की बातें याद आई ।मैं चुपचाप बाहर आकर अपने दूसरे काम करने लगी । खाने की मेज़ पर सबके साथ मेरी बहू ने मेरे लिए भी थाली परोसी और प्यार से खिलाने लगी … मेरा सीना तन गया और मैं सोचने लगी कि अब तक मैं इस घर की रानी थी ….. अब महारानी हूँ!!!!!
लेखिका : कामेश्वरी कर्री