मध्यमवर्गीय परिवार-निषिद्ध प्रेम – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

उम्र में बहुत छोटा था वह,पर ज़िंदगी का तजुर्बा बहुत ज्यादा।लेखनी में जादू,आवाज में गंभीरता और स्वभाव से बहुत गंभीर।शिखा से उसकी मुलाकात एक इंटरव्यू के दौरान हुई थी।हर विषय में असाधारण पकड़ थी उसकी।शिखा अपने बुलावे का इंतज़ार कर रही थी।एक -एक करके सभी उम्मीदवार शिक्षक निर्णायक कक्ष में जा रहे थे,और कुछ मिनटों में वापस आकर चुपचाप चले जा रहे थे।शिखा ने कनखियों से देखा,वह और एक बहुत कम उम्र का एक लड़का ही बचे थे।

शिखा एक कोरे कागज में लिख रही थी आदतन,तभी उसका नाम पुकारा गया।हड़बड़ी में फाइल संभालकर वह अंदर चली गई।पढ़ाने का अनुभव होने की वज़ह से इंटरव्यू अच्छा हुआ उसका।आखिरी नंबर उस लड़के का ही था।शिखा को बताया गया कि फोन आएगा सिलेक्शन होने पर।नहीं आया तो समझ लीजिएगा कि ,नहीं हुआ।

शिखा ने जाते हुए फिर एक बार उसे देखा,तो वह मुस्कुरा दिया।उस हंसी में कई रहस्य थे।शिखा ऑटो से घर आ गई।रोज़ फोन का इंतजार कर रही थी शिखा।आज फोन आया तो लपककर उठाया उसने।सामने से गंभीर आवाज आई”हैलो!आप शिखा जी हैं ना?”

“जी,हां!हो गया मेरा सिलेक्शन?”शिखा

ने छूटते ही पूछा

“नहीं जी,नहीं हुआ।मेरा भी नहीं हुआ।सब तय था पहले से ही।पांच लोगों को नियुक्ति पत्र भेजा जा चुका है।हम और आप रिजेक्ट हो गएं।”शिखा के लिए यह आवाज अपरिचित थी।वह असहज होकर बोली”सॉरी,मैंने आपको पहचाना नहीं।क्या हम मिल चुके हैं पहले?”

उसने क्षमा मांगते हुए कहा”ओह! सॉरी।मैं सिद्धार्थ हूं।आपके साथ इंटरव्यू देने आया था मैं।आखिरी कैंडिडेट।”

“ओह!आपको मेरा नंबर कहां से मिला?”शिखा गुस्से से लाल होकर बोली तो उसने फिर क्षमा मांगते हुए कहा”असल में उस दिन हड़बड़ी में आपकी फाइल से एक पन्ना गिर गया था।उसमें आपकी लिखी एक कविता थी,पीछे एड्रेस और नंबर था।कल ही मुझे पता चला कि स्कूल वालों ने ऊंची पहुंच रखने वाले लोगों को ले लिया है।सोचा ,आप भी मेरी तरह इंतज़ार कर रही होंगी।सो फोन कर दिया।आप बुरा मत मानिएगा।आप बहुत अच्छा लिखती हैं।कभी समाज की कड़वी सच्चाई को भी लिखिए।”

शिखा से आज तक किसी ने ऐसे बात नहीं की थी।उसकी बातों में गहराई, सच्चाई और एक अजीब सा आकर्षण था।अपनी कविता की तारीफ सुनना किसे अच्छा नहीं लगता।शिखा ने भी उसका धन्यवाद किया।दोनों की सोच में जमीन -आसमान का फर्क था,पर कुछ तो समान था उनके बीच।

उसने बताया कि वह भी लिखता है। फेसबुक में जब उसकी पोस्ट देखी ,तो शिखा का दंभ अपने आप टूट गया।इतनी शुद्ध हिंदी,साफ उर्दू और कम शब्दों में सार बताती हुई उसकी कविताओं ने कायल बना दिया था उसका।

परिचय बढ़ा तो बातचीत भी बढ़ी।हमेशा खुद को मध्यमवर्गीय परिवार का कहना शिखा को अच्छा नहीं लगता था।कितनी बार टोका था उसे कि हम सभी मध्यमवर्गीय परिवार से ही हैं।वह हंसकर कहता मैं उन सबसे ज्यादा मध्यमवर्गीय हूं।उसके परिवार में दो बड़े भाई-भाभी,भतीजे-भतीजियां और एक छोटी बहन प्रीति है।बचपन से पढ़ाई में अव्वल रहने वाले सिद्धार्थ को पता था कि घर की जिम्मेदारी में उसका भी हिस्सा है।कम उम्र में ही अपनी जवाबदारियों के प्रति सजग रहने वाले लड़के कम ही मिलते हैं आजकल।यह तो पूरा समर्पित था,अपने परिवार के लिए।घर के लिए कुछ करने का जज्बा इतना कि अपनी पढ़ाई का खर्च भी खुद ट्यूशन करके उठाया था उसने।बहन की शादी के बाद फिर से पढ़ाई करेगा,ऐसा बताया उसने। इंग्लिश मीडियम में पढ़ा होने की वज़ह से फर्राटे दार अंग्रेज़ी भी बोलता था।

शिखा से उसका कोई रिश्ता तो नहीं था,पर वह शिखा का बहुत सम्मान करता था।शिखा को अब पता चल रहा था कि नौकरी किसी के लिए शौक,किसी के लिए जिम्मेदारी और किसी के लिए मजबूरी होती है।आजकल के लड़कों के लिए जो सोच वह रखती थी , सिद्धार्थ ने झूठा साबित कर दिया। एटीट्यूड भी कम नहीं था उसका। अपने दम पर सफलता हासिल करना चाहता था। पापा-मम्मी का सहारा बनना चाहता था।

पैसों की अहमियत के साथ-साथ परिवार की अहमियत भी मानता था वह।छोटी से छोटी बात शेयर करता था वह शिखा से।उसका ज्ञान तो यू पी एस सी क्रैक करने लायक था।एक दिन शिखा ने जब पूछा “तुम पढ़ाई क्यों नहीं करते?आसानी से निकल जाएगा तुम्हारा।”आशा के विपरीत इतराकर कहा उसने”हम्म।मुझे पता है।अभी समय नहीं आया।प्रीति की शादी हो जाए,फिर नौकरी छोड़कर तैयारी करूंगा।”

कोविड में प्राइवेट स्कूल की नौकरी छोड़कर अपने घर चला गया।प्रीति की शादी से पहले ही अपने घर के पास के एक स्कूल में नौकरी मिल गई।स्कूल से आकर फिर ट्यूशन देर रात तक।प्रीति की शादी का अधिकतर खर्च उठाया उसने।खुशी उसकी बातों से छलकती थी।शिखा को अफसोस होता कि एक डिजर्विंग इंसान को मेहनत का फल नहीं मिल पा रहा।प्रीति की शादी के बाद भी जब उसने नौकरी नहीं छोड़ी,तो शिखा ने पूछा”तुम्हारी पढ़ाई का क्या हुआ?सारी ज़िंदगी ऐसे ही गुजर जाएगी। जिम्मेदारियां कभी कम नहीं होंगीं।एक बार मन बना कर तैयारी करो। सिलेक्शन हो गया तो पूरे परिवार का भला होगा।”

उसने फिर से हंसकर एक ही जवाब दिया”हम मध्यमवर्गीय परिवार के लोग इतनी आसानी से कहां छोड़ पायें हैं नौकरी।भैया की दुकान ठीक से चल नहीं रही।पापा का भी शरीर अब मेहनत लायक नहीं रहा।मुझसे कुछ तो सहारा मिलता है परिवार को।अगले साल छोड़ दूंगा,और तैयारी करूंगा।मैं निकाल तो लूंगा।”

उसकी बातों में कभी भी किस्मत को कोसना नहीं पाया शिखा ने।इतना आत्मविश्वास मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले सभी लड़कों में कहां होता है।नौकरशाही को सिरे से नाकारने वाली समाजवादी विचारधारा ऐसे ही मध्यमवर्गीय परिवार के लड़कों के हृदय में बीज बनकर रहती है।ये वैलेंटाइन वीक पर अपनी प्रेयसी को रोज़, चॉकलेट और टैडी देकर प्रामिस नहीं करते।ये मंहगे होटलों में अपने प्रेम का प्रदर्शन नहीं करते।

ऐसे लड़के देर रात को ट्यूशन से लौटते हुए,घर के लिए किराने का सामान, भतीजे -भतीजियो के लिए टॉफी और बिस्कुट लेकर आतें हैं।ये जोमैटो से खाने का आर्डर ना करके महीने के पहले इतवार को ढाबे में बिरियानी,चाउमिन,या एगरोल खाकर संतुष्ट हो जातें हैं।ये यौवन के बसंत आने पर प्रेम में पागल नहीं हो जाते,क्योंकि घर वालों की मर्जी के विपरीत जाकर शादी करने की हिम्मत नहीं होती इनमें।ये यथार्थ के धरातल में रहकर प्रेम को खाते-पीते,ओढ़ते और बिछाते हैं।ये यू पी एस सी जरूर निकालते हैं।

शुभ्रा बैनर्जी

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