माँ पता नहीं किस ज़माने में जी रही हो आप – के कामेश्वरी  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : दिनेश ऑफिस में था तभी छोटे भाई ने फ़ोन किया था कि भाई दादी अब इस दुनिया में नहीं रही है । दिनेश थोड़ा उदास हो गया था क्योंकि उसे दादी से बहुत प्यार था । वह उन्हें पसंद थीं क्योंकि पुराने ज़माने की होने के बाद भी उनके विचारों में आधुनिकता झलकती थी । बचपन में दादी का ध्यान उस पर होता था क्योंकि वह घर का बड़ा पोता था । जब दूसरे चाचा लोगों का तबादला हैदराबाद हो गया था तो वे उनके साथ वहाँ रहने लगी थी । 

उनके तीन बेटे और एक बेटी थीं फिर भी अधिकतर वे सबसे छोटे चाचा के घर में ही रहना पसंद करतीं थीं । दिनेश के पिता दादी के सबसे बड़े बेटे थे । दादी अपने बड़े बेटे के साथ ही रहना चाहती थी परंतु बड़ी बहू तेज तर्रार थी इसीलिए वे वहाँ रह कर तकलीफ़ों को न्यौता नहीं देना चाहती थी ।

उनकी दूसरी बहू के बच्चे नहीं थे । इसलिए वह अपने पति और मायके वालों के सिवाय किसी और को अपने घर में बर्दाश्त नहीं कर सकती थी । 

इसलिए दादी को छोटे बेटे के घर में ज़्यादा दिन रहना पड़ता था और उन्हें वहाँ अच्छा भी लगता था क्योंकि एक तो उनके तीन बच्चे थे और दूसरी बात यह थी कि छोटी बहू अन्नपूर्णा थी कभी गलत बात मुँह से नहीं निकालती थी । 

छोटे बेटे पर बोझ बढ़ रहा है उनके तीनों बच्चे पढ़ रहे हैं तो उन्होंने अपने तीनों बच्चों से कहा कि मैं तीनों के पास चार चार महीने रहूँगी । पहली बात सबके पास मुझे रहने का मौक़ा मिलेगा और दूसरी बात किसी एक पर बोझ भी नहीं होगा । 

इस तरह सब अपने चार महीने किसी तरह बिता कर एक दिन भी अधिक ना रखते हुए भेज देते थे । उनका बड़ा बेटा वैजाग में रहता था बड़ी बहू किसी तरह चार महीने बर्दाश्त करके उन्हें वापस भेज देती थी । बड़े के घर शांति की कमी थी इसलिए उन चार महीनों में भी दादी अपने भाइयों के घर चली जाती थी । 

दूसरी और तीसरी एक ही शहर में रहते थे । फिर भी दूसरी बहू चार महीने होने के एक दो दिन पहले ही उन्हें तीसरी के घर भेज देती थी । 

दिनेश को याद है जब तब तीसरे नंबर के चाचा दादी से कहते थे माँ यहीं रह जाना दूसरे भाइयों के घर क्यों जाती है परंतु वे कहती थी कि तेरे दोनों भाइयों के मुँह में ज़ुबान नहीं है बेटा उन्हें भी मुझे अपने साथ रखने की इच्छा होती है पर तेरी भाभियों के कारण वे कुछ नहीं कह सकते हैं ।

 कुछ समय बाद दूसरा बेटा रिटायर होकर बड़े भाई के शहर में ही आकर बस गया था । उनके साथ दादी भी यहीं रहने आई क्योंकि अब तो उनके दो बेटे और एक बेटी तथा दो भाई यहीं इसी शहर में रहते थे । 

यहाँ रहते हुए ही उनकी तबीयत ख़राब हो गई थी । वे ८७ साल की हो गई थी ज़्यादा घूम फिर नहीं सकती थी । उनके आठ महीने इसी शहर में बीतने लगे । बेटी की अकस्मात् मृत्यु के बाद उनकी तबियत और ख़राब हो  गई तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था । 

अब दोनों देवरानी और जेठानी में गरमागरम बहस होती थी कि अस्पताल में कौन इनकी देख भाल करेगा । 

एक हफ़्ते तक ट्रीटमेंट के  बाद डॉक्टर ने उनकी उम्र को मद्देनज़र रखते हुए उन्हें घर ले जाने के लिए कहा क्योंकि दवाइयों का उन पर असर नहीं हो रहा है तो अपनों के बीच रहेगी तो शांति से मर सकती हैं । 

उन्हें घर में रखने के लिए भी दोनों देवरानी जेठानी झगड़ा करने लगीं थीं।  दोनों के बीच घमासान तू तू मैं मैं हुई परंतु अंत में लोगों ने बीच बचाव करने के बाद कहा कि बड़ा बेटा होने के कारण दादी को उनके साथ ही ले जाया जाए तो अच्छा रहेगा । 

उनके घर में वे स्वर्ग सिधार जाएँगी तो पुण्य मिलेगा । लोगों के कहने पर मना ना कर सकने के कारण बड़ी बहू उन्हें बेमन से अपने घर ले आईं । यहाँ घर पर आने के बाद वे दस दिन तक ही जीवित थी अब उनका अंतिम समय आया ।

बड़ी बहू को किसी पंडित ने बताया था कि अभी के तीन चार दिन अच्छे नहीं हैं इसलिए उन्हें घर में मरने मत दीजिए वरना आपके पूरे घर को बंद करना पड़ेगा ।

बड़ी बहू ने निर्णय ले लिया था कि ठीक मरने के पहले उन्हें सीढ़ियों के नीचे बिस्तर लगाकर सुला दिया जाएगा ताकि घर को बंद करने की नौबत नहीं आएगी वरना अपने पूरे परिवार के साथ कहाँ जाऊँगी ।

बेटों के मुँह से एक भी शब्द नहीं निकला क्योंकि बड़ा बेटा तो कब की अपनी ज़ुबान पर ताला लगा चुका था । अपनी पत्नी के सामने उसकी ज़ुबान कभी भी नहीं खुलती है । 

दादी शायद इन लोगों को ज़्यादा दिन दुख नहीं देना चाहती थी इसलिए बाहर सीढ़ियोंके नीचे लिटाने के दूसरे दिन ही चल बसी थी । 

दिनेश जब दादी के अंतिम संस्कार में घर पहुँचा तब उसे लोगों के मुँह से अपनी माँ की करतूत का पता चला । उसे बहुत ग़ुस्सा आया । 

उसी समय माँ ने दिनेश को लोगों की शिकायत करते हुए कहा कि देख मेरे लिए सब लोग क्या कह रहे हैं मैंने तो कुछ गलत नहीं किया है । 

पंडित के कहे अनुसार ही मैंने किया है । 

दिनेश ने कहा कि पता नहीं माँ तुम किस ज़माने में जी रही हो । मेरे मुँह से तो शब्द भी नहीं निकल रहे हैं दादी के तीनों बेटों के खुद के घर हैं और तो और उनके पोते नाते नाती हम सबके पास हमारे खुद के घर हैं पर आपने तो उन्हें बाहर सीढ़ियों के नीचे सुला दिया है । किस ज़माने में हो तुम माँ अंधविश्वास में पड़कर तुमने जीते जी दादी का दिल दुखा दिया है । मैं क्या कहूँ तुम लोग कब बदलोगे माँ ? कहते हुए सर पकड़कर बैठ गया । 

दोस्तों हमें अंधविश्वास पर विश्वास नहीं करना चाहिए । हम अपने आप को कम्प्यूटर युग के मानते हैं और ऐसी बातों को मान्यता देते हैं । इस तरह की करतूतों से हम संस्कार के नाम पर अपने आने वाली पीढ़ी को क्या यही सिखा रहे हैं । सोचिए……

के कामेश्वरी

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