माँ की चिंता – नेहा : Short Moral stories in hindi

Short Moral stories in hindi  : आप मां का ख्याल रखना घर में तो कोई नही है इनका ध्यान रखने के लिए मैं और प्रिया जो ऑफिस चले जाते हैं

कभी कभी मिलने आते रहेंगे राघव ने वृद्ध आश्रम की महिला कर्मचारी से कहा………
उसका नाम था सुधा…….. राघव से सुधा ने कहा आप टेंशन मत लो मां जी यह अच्छे से रहेगी ……
राघव बोलता है अच्छा मां मैं चलता हूं आता रहूंगा
मां ने दूसरी तरफ़ मुंह किया हुआ था राघव ने कहा मां एक बार तो इधर देख लो मां ने उसकी तरफ देखा राघव को कहा बेटा अपना ध्यान रखना……
ठिक हैं मां मै चलता हूं…….
राघव वह से चला जाता है मां हर रोज़ राघव की चिन्ता करती रहती और सुधा से कहती मेरे बेटे को मेरे हाथ की अदरक वाली चाय बहुत पसंद है उसे कोन बना कर देता होगा…….
और उसे छोले भटूरे की सब्जी भी पसन्द है बिना खाएं पिए बीमार पड़ जाता है वो
पता नहीं अभी तक उस ने खान खाया होगा की नहीं
मां हर रोज़ ऐसे ही राघव की चिन्ता करती
लेकिन आज 5 साल हो चूके है पर राघव एक बार भी मां से मिलने नहीं आया मां हर पल अपने बेटे को याद करती है यह कोई काल्पनिक कहानी नही है यह सच्ची घटना पर आधारित हैं आज भी मां अपने बेटा का इंतज़ार कर रही हैं
एक मां ही हो सकती है जो मरते दम तक अपनी संतान की चिन्ता करती हैं और जिस औलाद को पाल पोष कर काबिल बनाया उनके अंतिम पड़ाव पर उनको वृद्ध आश्रम में पहुंचा दिया दिक्कार हैं ऐसे औलाद पर
स्वरचित
लेखिका नेहा
 

कहानी : राणों

रेगिस्तान की तपती धूप में नंगे पैर दौड़ती हुई रम्या आई .मां मां मैंने कुछ लोगो को बात करते हुऐ सुना हैं बापू आ रहा है

राणो चूल्हे पर रोटी बना रही थीं अचानक सुन कर वो सोच में पड़ गई और उसका हाथ जल गया पीछे से लखन बोला है रानो रम्या सच कह रही है.

ये सुनते ही राणो बोलने लगी अब किस लिए आ रहा हा है नासपीटा जब उसके साथ की जरूरत थी तो दूसरी औरत को ले कर भाग गया था

40 बरस पहले ही तो दुल्हन बन कर आई थी राणो

गौरा रंग ,भूरी आंखे , काले घुंघराले लम्बे बाल चटक रंग का सिंदूरी सिन्दूर लगती थीं

राणो रेगिस्तान की रेत में चमकता चंद्रमा लगती थीं, राणो जब उसका पति मोहन दूसरी औरत को भाग कर ले कर गया था तब तीन टाबरो और राणो के बारे में एक बार भी नही सोचा

तीनों टाबरो के पालन–पोषण करते करते राणो की सुन्दत्त भी ऐसे उड़ा गई जैसे रेगिस्थान की धूल में कोई सुखा पत्ता राणो के पास कोई नही था तब मुंह बोला भाई लखन ने उसकी मदद की और उसे ज़िंदगी के संघर्ष से लड़ना सिखाया.

आज 40 बरस बाद फिर से एक बार उसकी ज़िंदगी में तूफ़ान आ गया था ये खबर सुन कर की मोहन आ रहा

लखन राणो से बोलता हैं मोहन सा को उसके कर्मो की सजा मिल गई है किसी लायलाज बीमार हो गईं हैं

बिलकुल कमजोर हो गया हैं माफ़ कर दे अब राणो उसे तभी रम्या की आवाज़ आई मां, बापू सा, आ गए

राणो के हाथ पैर फूलने लगे तब लखन बोला मिल ले राणो उससे उसके पास बस कुछ वक्त और बचा हैं

मोहन की खांसने की बार बार आवाज़ आ रही थी

राणो ने अपने अपने हाथ धोएं और अपने पल्लू से हाथ पुछ कर बाहर गई

राणो ,ने कहा अब क्यों आए हो , चले जाओ यह से ,ये सब बोलते वक्त राणो को अच्छा तो नहीं लग रहा था पर क्या करती

मोहन बोला, राणो ऐसा ना बोल माफ़ कर दो मुझे मैने जिस औरत के लिएं तुम्हे छोड़ा था वो किसी दुसरे मर्द के साथ भाग गई थीं .मैंने कई बार सोचा कि वापस तुम्हरे पास आ जाऊं पर हिम्मत ना हो सकी

तुम्हे इतना बड़ा जो दर्द दिया था पर भगवान ने मुझे उसकी सजा दे दी हैं राणो,ऐसे बोलते बोलते मोहन के मुंह से खून आने लगा नीचे गिर राणो ने जोर से चिल्लाए अरे बचाओ मेरे मोहन को क्या हो गया.

लखन और आस, पास के लोग आऐ सब के मुंह पर संतोष की एक मुस्कुराहट थी मोहन और राणो दोनो एक दुसरे के हाथो मे हाथ डाले हुए जिस तपती रेगिस्तान की धूल को हमेशा हमेशा अलविदा कह चुके थे

नेहा

सच्चा प्रेम किसी को अलविदा नहीं कहता 

80 साल के बुजुर्ग की यह प्रेम कहानी जिसको पढ़ कर आपके कानों में जगजीत सिंह की आवाज़ में गज़ल की कुछ लाइन गूंजने लगेगी …
” ना उम्र की सीमा हो , ना जन्मों का हो बंधन
जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन ”
यह कहानी है 80 साल के बुजुर्ग की प्रेम कहानी जिसको 50 साल बाद मिलता है प्रेम पत्र और मुलाकात का भरोसा भी
50 साल पहले वो इस गांव में आई थी
उसका नाम मालती था अपने परिवार के साथ यह गांव में घूमने आई थीं
गोपाल को मालती से पहली नज़र में ही प्यार हो गया था … पूरे बदन में सिहरन सी उठ गई थी गोपाल और मालती दोनो ने 10 दिन तक हर पल साथ रहे पहाड़ों की वादियों में घूमे हाथो में हाथ डाल कर दोनो को आखों ही आखों में अनन्त प्रेम हो गया था
मालती के वापस लखनऊ जानें से पहले गोपाल ने मालती को अपनें प्रेम का इजहार किया मालती ने भी गोपाल के प्यार को अपनाया …
मालती के वापस लखनऊ जानें का समय आ गया था मालती ने जानें से पहले गोपाल से वादा किया की मैं वापस लौट कर आऊंगी मालती गोपाल को बाय बोल कर लखनऊ चली जाती हैं…
उसके जानें के बाद बस इंतजार रह जाता है
गोपाल का प्यार उससे दूर था औरभरोसा सीने में दिल बनकर धड़क रहा था….
.. बस उसे इंतजार हर पल रहता ,उसे विश्वास था कि मालती ज़रूर आयेगी
कुछ दिन बाद गोपाल की भी शादी उसके घरवाले ने कर दी वह घरवालो की बात को मना नही कर सकता था
गोपाल अपनी पारिवारिक जीवन के व्यस्त हो गया उसे एक साल बाद 1 लड़की हुई और 4 साल में 1 लड़की और 2 लड़के हुए उनको पढ़ाया लिखाया
लडकी को शादी कर दी वह अपने ससुराल चली गई दोनो लडको को भी शादी हो चुकी थीं पोता पोती भी हो चूके थे
अब गोपाल 75 के हो चूके है और उनकी पत्नि की 3 साल पहले ही मृत्यु हो चुकी थीं लेकिन गोपाल के दिन में हर पल मालती की याद जिंदा रही
हमेशा सोचते रहते की मालती कैसी होगी
क्या उसे मेरी याद आती होगी या भूल गई
क्या वो मुझसे मिलने आयेगी उसके मन में कई सवाल थे एक दिन एक गोपाल को एक चिट्ठी आई वो चिट्ठी मालती की थी उसमे ढेर सारा प्यार जो साथ गुजारे वक्त की यादें ताज़ा हो गई थी चिट्ठी पढ़ कर और उसमे वापस आने का वादा भी था गोपाल जी चिट्ठी पढ़ कर भावुक हो गए थे ये पढ़ कर की मालती आ रही है गोपाल ने कहा हम दोनो एक दुसरे को नहीं खोज सके लेकिन प्यार ने हमे खोज लिया
स्व रचित
लेखिका नेहा

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