वहशी दरिंदा कहूँ या पति परमेश्वर – डॉ उर्मिला शर्मा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : “मां! मिहिर को कुछ बहाना करके मना कर दो न कि अभी आपलोग हमें नहीं भेज सकते। मुझे नहीं जाना है अभी।”

“क्यों बेटा! बोल न क्यों नहीं जाना। पिछले बार भी तुम ससुराल से आयी थी तो ऐसे ही बोल रही थी। जबकि आजकल की लड़कियां ऐसा कहां बोलती हैं। वो तो आने-जाने का स्वयं ही तय कर लेती हैं। क्या बात है मेरी लाडली….।”- मां ने उसकी ठोड़ी छूते हुए पूछा।

“कुछ नहीं माँ!…बस आपके साथ रहना चाहती हूं।”- उतरा हुआ चेहरा लिये सपना  बोली।

“बिटिया आती-जाती रहना। एकबार हमलोग पहले ही दिन बढ़ा चुके हैं। फिर नाराज हो जाएंगे तुम्हारे ससुराल वाले।”

       अंततः सपना  को जाना ही पड़ा। और उसकी रातें वैसी ही दर्द में गुजरने लगीं। उसकी यातना तो विवाह के साथ ही शुरू हो गया था। जिस मधुर कल्पना के साथ वह दाम्पत्य में प्रवेश की थी वह रात होते ही ध्वस्त हो गईं। जब मिहिर कमरे में आया। न बातचीत न रस्म अदायगी। सीधे बोला-“ये क्या नाटक लगा रखा है।…अबतक लहंगे में बैठी हुई है। चल शुरू हो जा।”- उसका चुन्नी खींचते हुए कहा। और फिर एक हिंसक जानवर की तरह उसपर हमला किया। सपना  अवाक कांपते हुए मिहिर को समझाने की कोशिश करती रही। जब पीड़ा से वह कराह उठी तो मिहिर ने उसका मुंह बंद कर दिया। 

और अपनी मनमानी करता रहा। अगली सुबह दस बजे तक वह कमरे से बाहर न निकली। तब मिहिर की छोटी बहन उसे बुलाने आयी तो उसने उसे मां को भेजने को कहाँ। सास के आने पर उसने अपनी स्थिति बताई। सारी स्थिति देख वो भी चिंतित हो उठीं और उसे लेकर डॉ के पास गई। डॉ ने एक्जामिन करके उसकी अवस्था उनदोनों को समझाई। उसे स्टिचेज लगानी पड़ी। सपना  को इंटरनल इंज्यूरी हुई थी।

       घर आकर सास ने बेटे को समझाया। कुछ दिन ठीक रहा। पर मिहिर का रवैया वैसे ही रहा। रात होते ही सपना  को डर लगने लगता था। अनेक तरह से वह उसे सताता था। ऐसा लगता मिहिर को उसे सताने में आनन्द आता हो। मारे संकोच के वह किसी को कुछ न बता पाती थी। बस यही सोचती रहती की रात ही न हो या कब वह मायके चली जाए। दिन कटता रहा। 



शायद उसका यातना अभी और बढ़ने वाला था। मिहिर का प्रोमोशन के साथ दूसरे शहर में ट्रांसफर हो गया। उसके प्रोमोशन से सभी खुश थे किंतु सपना  को जो डर सता रहा था उसका अंदाजा किसी को न था। वह मन ही मन ईश्वर से अपने बचाव का गुहार करती रही। वह सासुमां को कहती रही कि उसे अभी मिहिर के साथ नहीं जाना है। पर बकरे की अम्मा कबतक खैर मनाए।

  एक महीने के भीतर मिहिर उसे अपने पास लेकर चला गया। यहां तो मिहिर और खतरनाक हो चुका था। अब वह न केवल रात को बल्कि जब चाहता उसके साथ अजीबोगरीब तरीक़े से जबरदस्ती करता। उसकी यौन- विकृति और बढ़ती जा रही थी। उसे वह पति नहीं, एक बलात्कारी लगता। 

एक हमलावर की तरह कभी भी वह हमला करता। विरोध करने पर और हिंसक हो उठता। कुछ महीनों बाद उसे अपनी प्रेगनेंसी के पता चला। उसे थोड़ी राहत मिली कि शायद मिहिर अब संयमित रहे। यह खबर जानते ही उसने सपना  से एबॉर्शन के लिए दबाव डाला। 

सपना  के बहुत आरजू- मिन्नत के बाद वह इस बच्चे को रहने देने के लिये माना। इस बच्चे के आने से उसे अपनी जिंदगी बदलने की उम्मीद थी। लेकिन मिहिर कहाँ मानने वाला था। जब चाहता उसे गुलाम की बेड पर रस्सी से बांधकर भोगता।

 एक रोज उसकी तबीयत खराब थी। उसके मना करने पर वह हिंसक हो उठा। इतनी जोर से उसका हाथ मरोड़ते हुए पटका की एक तेज चीख उसके मुंह से निकला और वह बेहोश हो गयी। होश आने पर खुद हॉस्पिटल में पाया।

 कलाई पर प्लास्टर लगा हुआ था। कमर में दर्द महसूस कर रही थी। उसे कुछ अंदेशा हुआ। नर्स से पूछने पर पता चला कि उसका मिसकैरेज हो गया था। वह खूब रोई। घर आने पर वही सिलसिला जारी रहा। मिहिर की ज्यादती से वह पीड़ा में तड़पती रहती। तन और से वह रोज मरती रही। और उस दिन मिहिर ने ने बहुत पाशविकता की उसके साथ। 

अगले दिन मां को फोन कर सब बता दिया। अब उसकी सहन शक्ति जवाब दे चुकी थी। सपना  के माता-पिता आकर उसे ले गए। बेटी की दशा देख वो रो पड़े। 

कितनी यातना सहते रही उनकी बिटिया वर्षों से। डॉ से दिखाया तो पता चला कि उसके साथ अप्राकृतिक व अमानवीय ढंग से सम्बंध बनाने के वजह से अंदरूनी चोटें आई हैं। उसे कई रोज हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा। सपना  ने मिहिर के पास कभी न जाने का निर्णय ले लिया। अब उस यातना शिविर में कभी न जाएगी वह। इस बार उसके फैसले में उसके माता-पिता भी साथ थे।

  — डॉ उर्मिला शर्मा।

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