माँ दुख सहने की भी एक सीमा होती है…. – रश्मि प्रकाश : Moral stories in hindi

“सबकी लाइफ़ में कोई ना कोई दुख तो होता ही है पर इतना दुख…..माँ तुम क्यों अपनी ज़िन्दगी को दुखों का भंडार बनाती जा रही हो….जितना सुनोगी सहोगी… सब बस तुम्हें ही सुनाएँगे और तुम अकेले यूँ ही बैठ कर रोती रहोगी ।” राशि अपनी माँ को समझाते हुए बोल रही थी.

“ सब समझती हूँ बेटा… पर मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती….बहू कृतिका की आदतों से रितेश भी परेशान है पर जब भी बात आएगी कृतिका ऐसे मुँह बना लेती की रितेश फिर मुझे ही सुना देता है…. मैं बस सब का सुनने वाली बन कर रह गई हूँ…. एक तेरे से कह कर दिल हल्क़ा कर लेती हूँ पर तू कभी ये सब बातें भाई से ना कहना … नहीं तो पता ही है यहाँ का कलह तेरे जीवन में भी हावी हो जाएगा….अच्छा सुन ये बता घर पर सब कैसे हैं,..?” सुमिता जी बात का रूख मोड़ने का प्रयास करने लगी …. दिल हल्का करने को बेटी से कह तो दिया पर डर भी लग रहा था माँ ती खातिर कहीं राशि रितेश से कभी कुछ कह ना दे

बातचीत ख़त्म कर फोन रख सुमिता जी अपने पति विभोर बाबू को याद करने लगीं…. जिनके साथ रह कर वो हर दुख तकलीफ़ को दूर कर लिया करती थीं पर जब से उनकी साथ छूटा वो बिलकुल अकेली पड़ गई थीं. बच्चे तब पढ़ाई ही कर रहे थे…. जैसे तैसे जुगाड़ कर बच्चों को काबिल बनाया. कुछ रिश्तेदारों ने मदद कर दिया था. अब दोनों बच्चे अपनी गृहस्थी में रच बस गए थे…. अब तक सुमिता जी अपने शहर में ही रह रही थीं क्योंकि और रिश्तेदार वहीं आसपास रहते थे तो उनका मन लग जाता था …

पर इस बार रितेश सुमिता जी को संग ले आया था कृतिका माँ बनने वाली थी…. घर में किसी बड़े का होना ज़रूरी था… फिर सुमिता जी को काम ही क्या था अपने घर में अकेले ही तो रहती थीं…. पर अपनी मर्ज़ी से… यहाँ आकर एक तो ना मर्ज़ी चल रही थी ना जैसा खाना वो पसंद करती थीं वो मिल रहा था……. कभी कभी मन बहुत ज़्यादा उदास हो जाता तो बेटी को फ़ोन कर मन हल्का कर लेतीं …….

एक पक्की सहेली थी उस शहर में जिन से बात कर मन हल्का करती थी पर अब सोचती एक ही बेटा बहू है जरा कभी इधर उधर कह दी और इन्हें पता चल गया तो पता नहीं कैसा व्यवहार करें…. ये सब सोच बेटी से बात कर मन हल्का कर लेती थी …..कभी कभी पति से शिकायत भी करती अकेले छोड़ गए मुझे…. तुम साथ रहते तो बच्चों की बातें तो ना सुननी पड़ती…… एक पति का साथ हो तो सब मुश्किल आसान हो जाता है पर जब उम्र हो जाए तो अकेले जीवन में अपने हिसाब से कहाँ कुछ किया जाता है …… कल रात भी ऐसा ही कुछ घटा और सुमिता जी को बेटे ने चार बातें सुना दी….

कृतिका को डॉक्टर के पास जाना था…. रितेश कृतिका को बोल गया था मैं जल्दी आ जाऊँगा फिर तुम्हें चेकअप के लिए ले चलूँगा पर किसी कारण वश रितेश नहीं आ पाया तो सुमिता जी को फोन करके कहा कृतिका को लेकर डॉक्टर के पास चली जाए…. सुमिता जी जब कृतिका से चलने बोली तब उसने कह दिया वो अकेली चली जाएगी…. पास में ही तो जाना है…. सुमिता जी ने एक दो बार कहा भी मैं चली चलती हूँ पर कृतिका उन्हें साथ ले जाने को तैयार नहीं हो रही थी…. थक कर सुमिता जी कृतिका को अकेले चले जाने दी….कृतिका को गए बहुत देर हो चुका था इस बीच रितेश भी घर आ गया….सुमिता जी को घर पर देख कृतिका के बारे में पूछने लगा डॉक्टर ने क्या कहा ये सब…. तब सुमिता जी ने कहा कृतिका तो अकेले चली गई…. मैं बहुत बार बोली पर वो साथ ले जाने को मना कर रही थी मैं क्या करती…।

इतने में कृतिका घर आ गई…. रितेश ने उसे देखते पूछा ,“माँ के साथ क्यों नहीं गई अकेले जाने की क्या ज़रूरत थी?”

“ अरे मम्मी जी ने कहा मेरे कमर में थोड़ा दर्द हो रहा वो नहीं जा पाएगी…।” कृतिका ने झट से कह दिया

” क्या माँ एक बात बोला उसमें भी आपको अपना दर्द दिखने लगा…. ठीक है अब से मैं आपको कुछ भी नहीं कहूँगा…. कृतिका अकेले गई कुछ हो जाता तो…।” रितेश तैश में बोला

तभी दरवाज़े की घंटी बजी….. सामने कृतिका की दोस्त खड़ी थी…,“ याक कृतिका तेरा मोबाइल कार में ही रह गया और ये तेरा पेस्ट्री भी।”

दोस्त की बात सुन रितेश कृतिका को देखने लगा….दोस्त सामान देकर निकल गई…

” तुम डॉक्टर के पास अकेले गई थी ना….?” रितेश ने पूछा

“ नहीं इस दोस्त के साथ गई थी डॉक्टर ने कहा सब ठीक है फिर हम थोड़ा मॉल चले गए थे…..पेस्ट्री देख मन कर गया तो ले आई…..।” कृतिका ने कहा

“ तुम माँ को साथ इसलिए नहीं ले गई क्योंकि तुम्हें दोस्त के साथ जाना था…. और कह रही हो माँ मना कर दी….. कमाल औरत हो तुम….. माँ के साथ नहीं जाना था तो कह देती दोस्त को लेकर जी रही हूँ …..उपर से मॉल भी घूमने चली गई…..।” रितेश को ग़ुस्सा आ गया था

“ सब कुछ ठीक है ना बहू…. डॉक्टर ने कुछ एहतियात बरतने को बोला है तो बता दो ध्यान रखना होगा….और तुम क्यों ग़ुस्सा कर रहे हो…..अब जो होना था हो गया….।” सुमिता जी माहौल शांत करने के ध्येय से बोली

पर अंदर ही अंदर आहत हो गई थी…… बहू की बात सच मान बेटे ने भी सुना दिया था….. सोच रही थी गलती किसकी है क्या बहू को उनका यहाँ रहना पसंद नहीं तो लाए ही क्यों……यही सब सोचते हुए वो राशि से सब कह रही थी क्या करूँ….. और राशि ने कहा चुपचाप सब सुनने की गलती मत करो नहीं तो हमेशा तुम ही गलत ठहराती जाओगी…..

“मम्मी जी कब से आपका फोन बज रहा है आप उठा क्यों नहीं रही?”अचानक से कृतिका की आवाज़ सुन यादों से बाहर निकल आई

देखा तो उनकी दोस्त का चार मिस्ड कॉल था… कॉल बैक किया

” कैसी है री सुमिता…. बेटे बहू के पास जा हमें भूल ही गई…. तुम्हें एक बात बताने को फ़ोन किया है….. वो हमारी पड़ोसी थी ना रमा जी….इतने साल बच्चों से कुछ ना बोलती थी सब सुनती आ रही थी एक दिन पहले उनके सब्र का बांध टूट गया…. वो बहू की गलती पर जब बेटा उन्हें सुना रहा था तो वो चुप ना रह सकी….अब तो बेटा बहू सोच समझ कर रमा से बात करते…. कितना कहा था उसे सुनती रहोगी तो लोग बिना गलती अपना ग़ुस्सा निकालने को भी सुना कर चले जाएँगे…. इसलिए बेबजह सुन कर दुखी होने से क्या फ़ायदा…।” दोस्त ने कहा

सुमिता जी सोचने लगी लगता है अब मुझे भी धीरे-धीरे बोलना पड़ेगा नहीं तो मैं दुखों के पहाड़ में घिर कर अकेले रह जाऊँगी ।

दोस्तों आज भी कुछ औरतें / पुरूष साथी के ना रहने पर मन में बहुत से दुख दबा कर रहते है…. बच्चे अपनी दुनिया में व्यस्त हो जाते है…. पति पत्नी के कलह का असर माता-पिता पर होता है जो बिना बात के भागी बन जाते है…. मुझे लगता है ऐसी परिस्थिति में बोलना ज़रूरी है नहीं तो सब आपको हल्के में लेंगे और सुनाकर चल देंगे ।

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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