लो चली मैं – गीता वाधवानी : Moral stories in hindi

लो चली मैं अपने देवर की बारात——गाने पर आरती ने अपने देवर की शादी में इतना अच्छा डांस किया कि सब तारीफ करते थक नहीं रहे थे। 

   आरतीकी शादी आयुष से हुई थी। उनकी शादी को लगभग सात वर्ष हो चुके थे। घर में सासू मां कविता देवी, ससुर जी किशनलाल, एक देवर गौरव और दो बड़ी विवाहित ननदें थी। दोनों बहने आयुष से बड़ी थी। आयुष और आरती की एक 5 वर्षीय प्यारी सी बेटी जाह्नवी थी। 

और अब गौरव का विवाह साक्षी से हुआ है। आरती ने सुना शादी में  खाना खाते समय औरतें फुसफुसा कर बातें कर रही थी और मुंह को पल्लू से छुपा कर हंस रही थी।” देखो तो देवर की शादी में कितना खुशी खुशी नाच रही है। पता तो तब चलेगा जब देवरानी घर में आकर इसे उंगलियों पर नचाएगी। 

दूसरी औरत ने कहा-“हां सच कह रही हो है भी तो जॉब करने वाली।” 

तीसरी बोली-“देवरानीजेठानी में भला कभी बनी है आज तक, देख लेना एक दिन सारी खुशी काफूर हो जाएगी। अरे भई, नोट कमा कर लाएगी, तो रोब तो दिखाएगी ही।” 

लेकिन आरती को विश्वास था कि ऐसा कुछ नहीं होगा क्योंकि आरती, साक्षी से कई बार मिल चुकी थी। उसे तो साक्षी बहुत अच्छी ,समझदार और मिलनसार लगी। शादी की शॉपिंग के लिए वे कई बार एक साथ बाजार गई थी। 

आयुष की फुटवियर शॉप थी। काम ठीक-ठाक ही था। ससुर जी की पेंशन आती थी। सासू मां और आरती होम मेकर थी। गौरव की मल्टीनेशनल कंपनी में बहुत बढ़िया जॉब थी और साक्षी भी अच्छी कंपनी में बढ़िया वेतन ले रही थी।      शादी के बाद गौरव और साक्षी एक हफ्ते के लिए उदयपुर और माउंट आबू घूमने चले गए। वापस आने पर उनकी तीन दिन की छुट्टी बाकी थी,जो कि वे लोग आराम से अपने परिवार केसाथ बिताना चाहते थे। दो दिनों तक साक्षी ने आरती की हर काम में मददकी। आरती के मना करने पर भी वह मानी नहीं और तीसरे दिन संडे को सब मिलकर पिकनिक  मनाने इंडिया गेट चले गए। 

सुबह-सुबह उठकर देवरानी जेठानी ने मिलकर आलू की चटपटी सब्जी और पूरियां बना लीं थीं। आम का खट्टा मीठा अचार भी पैक कर लिया था। जान्हवी  तो सबसे ज्यादा खुश थी। इंडिया गेट पर चाचू और चाची के साथ खूब गेम खेलें और आइसक्रीम भी खाई। बोटिंग भी की। सबको बहुत अच्छा लगा। साक्षी सारे काम बहुत अच्छी तरीके से कर लेती थी और उसे अपनी जॉब करने का कोई घमंड नहीं था। 

शाम को सब वापस आए तो थके हुए थे। और अगले दिन निभानी थी सबकोअपनी-अपने ड्यूटी। दोनों बहुओं का प्यार देखकर सास ससुर भी बहुत खुश थे। साक्षी का ऑफिस घर से ज्यादा दूर नहीं था इसीलिए वह शाम को समय पर घर आ जाती थी। गौरव को घर आने में बहुत वक्त लगता था। आरती और साक्षी जब भी एक साथ बैठतीं तो बहनों की तरह खूब बातें करती। एक दिन साक्षी ने कहा-“भाभी, रक्षाबंधन आने वाला है, जाने के बारे में कुछ सोचा है आपने।” 

आरती-“तेरा तो शादी के बाद पहला रक्षाबंधन है, तू तो जरूर जाना। मैं फिर कभी चली जाऊंगी, क्योंकि घर पर कोई ना कोई हो, यंह भी जरूरी है। दोनों दीदी आएंगी राखी बांधने, उनके लिए तैयारी भी तो करनी है। मां जी से अब इतना कामकहां होता है।” 

साक्षी-“भाभी, वैसे आप हर साल जाती तो होंगी?” 

आरती-“छोड़ यह बातें, रात का खाना बनाने में देर हो रही है।” 

साक्षी-“नहीं भाभी, पहले बताओ।” 

आरती-“शादी के बाद, मुश्किल से एक दो बार जा सकी हूं। उसके बाद नहीं, कहते कहते उसकी आवाज भर्रा गई।” 

साक्षी-“क्या हुआ भाभी, कुछ बताओ प्लीज रोना मत।” 

आरती-“साक्षी एक बार मेरी भाभी बहुत बीमार हो गई थी, वह अस्पताल में एडमिट थी। मैं उनकी देखभाल करने के लिए जाना चाहती थी, लेकिन मां जी ने मना कर दिया। उधर मेरा भाई अकेले भाग दौड़ करते बहुत परेशान हो गया था। तब से मेरा भाई मुझसे नाराज है और वह इस बात से भी नाराज है कि मैं हमेशा राखी पोस्ट कर देता हूं और त्योहार पर उससे मिलती नहीं। कभी-कभी फोन करती हूं तो 5 मिनट बात कर लेता है, लेकिन यहां आता जाता नहीं और उसकी नाराजगी बढ़ती जा रही है। न जाने क्यों वह मेरी मजबूरी भी नहीं समझता, कैसे उसे मनाऊं, समझ नहीं आता। मां जी भी इतनी अच्छी है लेकिन उसे समय न जाने क्यों उन्होंने मुझे जाने से रोक लिया। उनका अच्छा स्वभाव तो तुम खुद ही देख रही हो। मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है।” 

साक्षी ने आरती का मूड ठीक करने के लिए बात बदली। 

साक्षी-“अच्छा भाभी यह तो बताओ किआपके भाई आपसे उम्र में कितने बड़े हैं। अपने भतीजा भतीजी और भाभी के बारे में कुछ बताओ।” 

आरती ने आंसू पोंछते हुए कहा-“मेरा भाई मुझसे लगभग 8 साल बड़ा है और तुम्हें पता है मेरी भाभी बहुत अच्छी है भतीजा भतीजी मुझे बहुत प्यार करते हैं। 7 साल की भतीजी है और भतीजा 9 साल का है। और फिर जो आरती ने मायके की बातें शुरू की, फिर वह कहां खत्म होने वाली थी। साक्षी भी चुपचाप मुस्कुरा कर सारी बातें सुनती रही और आखिर में बातों बातों में उसके मायके का एड्रेस ले लिया।” 

एक दिन साक्षी दोपहर में  ही घर आ गई। गर्मी से उसका सिर दर्द हो रहा था। आरती ने तुरंत उसके लिए ठंडी ठंडी शिकंजी बना कर दी। पीने के बाद साक्षी को बहुत चैन और आराम मिला। दोपहर में आराम करने के बाद जब वह शाम को उठकर आई, तब भी आरती काममें लगी हुई थी, वह सब्जी काट रही थी। साक्षी ने कहा-“भाभी, सारा दिन काम करते रहते हो, आराम भी कर लिया करो।” 

आरती-“पहले बता तबियत कैसी है, चाय पीनी है।” 

साक्षी-“आप बैठो, चाय मैं बनाकर लाती हूं।” 

साक्षी ने अपने लिए आरती और सासू मां के लिए चाय बनाई और साथ में फटाफट एक प्याज काट कर आठ दस पकौड़े भी तल लिए, आरती बहुत खुश हो गई, क्योंकि उसे खुद ही हमेशा चाय बनानी पड़ती थी। 

चाय पीकर सासू मां अपने कमरे में चली गई। तब साक्षी ने आरती से कहा-“भाभी इस बार तो आप राखी पर मायके जाने की तैयारी कर लो और यहां की चिंता मत करो। मैं सब संभाल लूंगी और शाम को मायके जाकर राखी भी बांध आऊंगी।” 

आरती-“साक्षी, मां जी से तो पूछना पड़ेगा।” 

साक्षी-“भाभी आप चिंता मत करो। मैं अपने आप बात कर लूंगी।” 

साक्षी ने बड़े प्यार से सासू मां से इजाजत ले ली। 

आरती ने अपने भाई को फोन करके बता दिया था कि मैं राखी पर आ रही हूं। भतीजा और भतीजी सुनकर खुश हो गए लेकिन भाई नाराज था इसीलिए उसने कहा-“याद आ गई हमारी।” 

आरती ने कहा-“भैया आप तो बड़े हो, आप भी तो मेरे देवर गौरव की शादी में नहीं पहुंचे, क्या छोटी बहन से बदल चुका रहेहैं।” 

भाई बोले -“चल अब ज्यादा बातें ना बना, जल्दी से आजा।” 

आरती को लग रहा था कि सब ठीक हो जाएगा। रक्षाबंधन से 2 दिन पहले मिठाई और ड्राई फ्रूट्स लेकर वह मायके पहुंच गई। उसे देखकर भाई ने इतना ही कहा-“इतना कुछ तो पहले ही भिजवा दिया था, अब और खर्चा क्यों किया, इसकी क्या जरूरत थी, छोटी बहन क्या बड़े भाई पर कर्ज चढ़ाएगी?” 

आरती-“मैं भाभी की बीमारी में नहीं आ पाई भैया, मैं पहले ही शर्मिंदा हूं। पर आप मेरी मजबूरी भी तो समझो, सासू मां ने मना कर दिया था, तो क्या उनसे जिद करती।” 

भैया और भाभी ने कहा-“अब तुम हमें शर्मिंदा न करो। हमें तुम्हारी देवरानी साक्षी ने बताया कि उसे समय तुम्हारे ससुर जी की तबीयत खराब थी, इसीलिए तुम आ न सकी, और इतने समय तक तुमने हमें यह बात बताई भी नहीं। और तुमने इतना खर्चा क्यों किया? ” आरती-“आप लोग बार-बार इतना खर्चा क्यों किया, इतना कुछ पहले ही भेजा है, ऐसा क्यों कह रहे हैं, क्या भेजा है मैंने?” 

भैया बोले-“अरे बच्चों देखो, तुम्हारी बुआ जी कितनी अनजान बन रही हैं, जरा लेकर तो आओ सामान।” 

बच्चे तुरंत उपहार ले आए। भाई के लिए कुर्ता पजामा, भाभी के लिए साड़ी, सुंदर सा बंदनवार और भतीजा और भतीजी के लिए कपड़े। यह सब देखकर आरती समझ गई कि यह सामान साक्षी ने ऑनलाइन भिजवाया है। कितनी अच्छी है साक्षी। और लड़कियों से बिल्कुल अलग। उसकी वजह से हम भाई-बहन का मनमुटाव  भी समाप्त हो गया और वह मेरी पैसों के मामले में मुश्किल भी मेरे बिना कहीं समझ गई। ऐसी देवरानी, नहीं नहीं देवरानी नहीं बल्कि बहन ् ईश्वर सबको दे ।” 

खुशी खुशी सबके साथ मायके में रहने के बाद आरती जब वापस आई, तब उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। उसने साक्षी को गले से लगा लिया और साक्षी उसे खुश देखकर बहुत खुश थी। 

स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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