लड़के वाले सीजन -3 (भाग – 14) : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जैसा कि आप सबने अभी तक पढ़ा कि उमेश और शुभ्रा के घर में  दिवाली का त्योहार अच्छी तरह से सम्पन्न हो चुका हैँ… खुशियों का माहोल हैँ… तभी कुछ सोच विचार कर घर के बुजूर्ग दादा जी अपनी दोनों बहुओं से ससुराल का सोने का जेवर जो उनके पास हैँ लाने को कहते हैँ… शुभ्रा की माँ बबिता जी तो पूरा सामान ले आती हैँ… पर उनकी जेठानी कई सामान कम लाती हैँ…

दादा नारायण जी सुमित्रा जी से घर की पुश्तैनी सीता रामी और उसके साथ के झुमके लाने को कहते हैँ…… जिस पर सुमित्राजी  एक टुक जवाब देती हैँ… मैं नहीं दूँगी बाऊ जी… ये मेरा हैँ… मेरे ब्याह में ज्यादा दहेज मिला था…… नियम य़हीं होता हैँ कि जिसके ब्याह में ज्यादा मिलता हैँ उसे ही सोने का सामान भी ज्यादा मिलता हैँ… वो फैसला कराने के लिए अपने पिता जी , अपने एसआई  चाचा , दबंग तीनों भाईयों को बुला लेती हैँ… अगले दो घंटे में सब हाजिर हो ज़ाते हैँ…

अब आगे….

राम राम सा…. और कैसे हैँ समधी सा ? सुमित्रा जी के पिता जी और युनिफोर्म पहने  चाचा जी बोलते हैँ….

सुमित्रा जी चाचा को युनिफोर्म में देखकर फूली नहीं समा रही हैँ कि अब तो फैसला उन्ही के पक्ष में होगा….

राम राम सबन(सब)कूँ  ….. हम सब ठीक हैँ सा …. आप सब सुनाओ ?? घर में सब जन ठीक हैँ??

सभी भाई सभी बड़ो के पैर छू प्रणाम करते हैँ…

हां जी  बढ़िया हैँ नारायण जी…. कहिये कैसे याद किया हमें ??

पहले पानी, चाय, पत्ता लेओ,, पधारो सा …. तब बात करत हैँ…

ठीक सा… पर चाय पानी पीकर आयें हैँ…लाली के घर का ना पियेंगे …. सुमित्रा जी के  बीच के भाई ज़िन्होने अभी पानी का ग्लास उठाया ही था… अपने पिताजी की बात सुन पानी पिये बिना ही ग्लास रख देते हैँ….

ज़माने लद गए बहू के बापू… अब कौन मान रहो हैँ जे .. जे सब तो तब चलतो जब आस पास के गाम में छोरिन को ब्याह करते… सबेरे गए… संझा कूँ आ गए… अब तो सब दूर कर रहे हैँ ब्याह तो वा दिना तो लौट ना सके हैँ…. तो छोरी के घर को तो  खानो पड़े हैँ…

हमायी लाली तो लोकल में हैँ… माफ करना नारायण जी… पर हम पानी भी नहीं पियेंगे….

जैसी तुम्हारी मर्जी सा…. तो तुम्हारों ज्यादा बखत ना लेंगे… तुमायी लाली ने बुलायों हैँ तुम्हे ….

हां बोल लाली ऐसी का बात है गयी…. सुमित्रा जी के धोती कुर्ता पहने  पिता मनोहर जी बोले….

पिता जी… चाचा जी…मेरे साथ अन्याय हैँ रहो हैँ य़ा घर में ….??

कैसो  अन्याय ??

मेई सीता रामी और वाके संग के कान के देने को बोल रहे हैँ बाऊ जी….

तो दै दे….

कैसे दै दूँ ?? . मेरे आगे का छोरियां ना हैँ…. सब कछु बबिता की छोरी के ब्याह में दे देंगे तो मैं कहां लैके जाऊंगी अपनी लाली कूँ … बतइयों चाचा… मैं ना दूँगी…. अब तुम्ही फैसला करों…. हां नहीं तो… सुमित्रा जी ने एँठते हुए बोला….

एक बात जे हैँ कि बहू के बापू….. अभी घर में बटवारों भयो ना हैँ….

जाके घर में ब्याह आयो सबको पहनने को बारी बारी से दियो गयो…. पर जाको मतबल जे थोड़े ना हैँ कि सुमित्रा के पास हैँ य़ा बखत तो याको हैँ गयो…. दादा नारायण जी धीरे से बोले….

सही बात कहीं सा तुमने…. तो हमें बुलाने की क्या ज़रूरत….. घर परिवार की बात है … आपस में सुलझा लो…. जा लै आ लाली तू सीता रामी और कान के … समय ज्यादा ना बचों हैँ ब्याह को… तेरे बाऊ जी को जो करनो हैँ कर लेने दे….

नाये पिता जी …. मैं ना दूँगी … तुम्हे का पतो ना हैँ… हमाये यहां को क्या नियम हैँ…

क्या नियम जीजी  ??….सुमित्रा जी के बड़े भाई ने पूछा. …

जे ई दादा की जाके ब्याह में ज्यादा दहेज मिले हैँ उसे ही ज्यादा चीज मिले हैँ… मुन्नी बुआ के यहां भी तो यहीं भयो… सब कछु उन्ही को मिलो…. उनकी जेठानी को बस पायल और कान के मिले…. जेठानी के में कछु ना आयो इसिलिये ….

तुझे ये तो पता हैँ लाली की मुन्नी बुआ को सारा जेवर मिला पर ये ना जाने हैँ कि मुन्नी बुआ की लाली की शादी में उनके ससुर ने एक रूपये की मदद ना करी , ना ही उनकी देवरानी ने कुछ दिया ब्याह में…. काऊँ ने किसी काम काज में हाथ भी ना हिलाया…. अकेले पड़ गए थे ब्याह के बखत…. बहुत रोये तेरे बुआ फूफा…. जमीन में भी ऊँन्हे कम हिस्सा बांट मिला… समझी लाली… ऐसो चाहे हैँ तो रख ले सीता रामी…. सुमित्रा जी के बापू साफ साफ बोल गए….

इधर शुभ्रा के फ़ोन पर उमेश लगातार फ़ोन कर रहा हैँ पर घर में ताई  के फैलाये रायते की वजह से वो फ़ोन रिसीव नहीं कर रही…. तभी उमेश का मेसेज आता हैँ.. आज के बाद मुझे फ़ोन मत करना… बाय….

शुभ्रा चुपचाप बैठक से खिसक ज़ाती हैँ… छत पर आती हैँ… .

वो ऊमेश को फ़ोन लगाती हैँ… चौथी बार में उमेश फ़ोन उठाता हैँ….

हेलो…. आपको बस नाराज होना आता है ना … दूसरों की सिचुएशन नहीं समझते कभी…शुभ्रा थोड़ा गुस्से में बोलती हैँ…

तो तुम दूसरी हो… ठीक हैँ फिर अपनी सिचुएशन को हैँडिल करो…. मेरी तो कोई ईम्पोर्टेंस ही नहीं हैँ तुम्हारी लाइफ में… हैँ ना शुभ्रा?? उमेश का पारा आज भारी है ….

जी मैने ऐसा कब कहां …. अगर ईम्पोर्टेंस नहीं होती तो क्या आपके मेसेज के बाद कॉल करती…. बताईये…??

हां तो एहसान कर दिया फ़ोन करके तुमने … गो एंड डू योर

इंपोर्टैन्ट  वर्क विच इज मोर इंपोर्टैन्ट देन मी….

यू कांट अंडरस्टैन्ड …. आई एम लिविंग इन जोईंट फैमिली…. देयर आर मोर डिस्प्यूट्स विच हैप्पेंन्स इन माय फैमिली…. सोरी फॉर नॉट रिसीविंग योर कॉल…. शुभ्रा बोलती हैँ…

उमेश शुभ्रा के मुंह से फर्राटेदार अंग्रेजी सुन दंग रह जाता हैँ.. ..

तो शुभ्रा इतनी अच्छी इंग्लिश भी बोल लेती हैँ… मुझे नहीं पता था… इंप्रेस्ड …. चलो…. हमारे बच्चों को तो पढ़ा लेगी मेरी शुभ्रा….

हो गया आपका गुस्सा शांत….

हां तुम्हारी इंग्लिश सुनकर सारा गुस्सा छूमंतर हो गया…. अच्छा… क्या हुआ तुम्हारी फैमिली में कोई बात हो गयी क्या .?? वैसे तो पूरी फैमिली ही तुम्हारी कार्टून हैँ….. बुआ बन्नो आ गयी हैँ क्या ड्रामा करने…. उन्होने हमारी शादी तोड़ ही दी होती….

मुझे नहीं करनी आपसे बात … आपको मेरी फैमिली कार्टून लगती हैँ??

अरे नहीं… वो तो बस ऐसे ही…. तुम्हारा मूड ठीक करने के लिए बोल दिया…. बताओगी भी कि क्या हुआ??

जी वो कुछ बात हुई हैँ… ताई के मायके के लोग आयें हैँ…. दादा जी और उनके बीच कुछ ज़रूरी बातचीत चल रही हैँ… सब लोग वहीं बैठक में ही हैँ… मैं यहां आ गयी हूँ तो सब क्या सोचेंगे??

ये तुम मेसेज से बता देती तो मैं क्यूँ गुस्सा होता… अच्छा जाओ… सबके बीच शामिल हो…. अपना ख्याल रखना शुभ्रा…. उमेश बोला…

जी… आप भी … ठंड आ गयी हैँ… गर्म कपड़े पहनिये…. .

इतनी फिक्र अपने उमेश की….. यहीं अदा तो मुझे तुम्हारा दिवाना बनाती हैँ…

ठीक हैँ जी… फिर बात करती हूँ… नहीं तो आपका रोमैंस फिर शुरू हो जायेगा…. बाय….

बाय शुभ्रा….

इधर अपने पिता जी की बात पर सुमित्रा जी कहती हैँ…. जे का बोल रहे पिता जी तुम ….. अपयी छोरी के ही खिलाफ बोले जा रहे…. चाचा तुम तो सब समझे हैँ… तुम तो कछु कहो … अपने एसआई  चाचा की तरफ देख  सुमित्रा जी बोलती हैँ…

नारायण जी… लाली वैसे ठीक कह रही कि …..

का ठीक कह रही चाचा जी….. तीनों भाई भी जोश में उठ खड़े हुए हैँ ये सोचकर कि बहन के साथ कुछ अन्याय हुआ तो गोलियां चलने में देरी ना लगेगी…..

आगे की कहानी कल… तब तक के लिए बांके बिहारी लाल की जय…. अंजनी के लाला की जय….

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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