कुम्भ का डर……. – विनोद सिन्हा “सुदामा”

सुबह सुबह पत्नीश्री की चूड़ियों की खनखनाहट से मेरी नींद खुली……

आँख खोल देखा तो पत्नीश्री सज-धजकर मुस्कुराते हुए चाय की प्याली हाँथों म़े लिए खड़ी है..पहले पहल तो लगा कि मैं कोई स्वप्न देख रहा हूँ….

क्योंकि आदतन पत्नीश्री इतनी सुबह सुबह इस तरह तैयार नहीं दिखती…

मैंने दो तीन बार जोर से आँखें मली…..चश्मा चढ़ाया…दुबारा देखा..लेकिन फिर वही दृश्य देख मैंने आश्चर्य भाव से उसके हाँथों से चाय की प्याली ली..और पहली घूँट के साथ बड़े प्रेम से पूछा..

क्या बात है..भाग्यवान आज सुबह सुबह…..

यह मेनका का रूप धारण किए बैठी हो…क्या इरादा है….कहाँ आग लगाने जाना है..

मेरा यह पूछना मानों….पत्नीश्री को नागावार गुज़रा….

एकदम से बिदकती हुई बोली…

तुम न बड़े लपूझन्ना टाईप के आदमी होते जा रहे हो..

अब मेरा सजना-धजना भी गुनाह हो गया हो जैसे….

पत्नीश्री के मुख से आज यह अजीबोग़रीब नामंकन सुन मैं लगभग हड़बड़ा सा गया …

मैंने कौतुहल वश पूछा..

ये लपूझन्ना क्या होता है….

होता है कुछ…

लेकिन पहले यह बताओ..

मुझे यूँ सजाधजा देख ऐंटीफ्लोजेस्टिक सा व्यवहार क्यूँ कर रहे

अब यह ऐंटीफ्लोजेस्टिक क्या होता है…

मुझे नहीं पता….लेकिन यह भी होता है कुछ….सुना है मैने..

कहाँ सुना….कहाँ पढा…

लपूझन्ना…..ऐंटीफ्लोजेस्टिक….???




ऐंटीफ्लोजेस्टिक….तो याद नहीं…लेकिन हाँ..लपूझन्ना टीवी पर सुना…

तुम भी कमाल करती हो…

खुद पता नहीं और मुझे उपाधियाँ दिए जा रहीं…..

और ये लपूझन्ना….??

कहाँ कहाँ से खोज लाती हो ऐसे शब्द…

क्या हुआ …सब ठीक ठाक तो है न..

क्यूँ कितनी अच्छी भली तो हूँ मैं…

नहीं.. इतनी सुबह..सुबह….सज्््धज्््

आखिर तुम्हें मेरे सुबह सजने-धजने से क्या दिक्कत आ गई..

सुबह सुबह यूँ मुर्झाया चेहरा लिए चाय देनी ठीक है क्या..

नहीं …..

पर चाय पिलाने के लिए इतना सजना धजना क्या

लेकिन वो राजेश…. तो हर वक्त सजी धजी ही रहती है…

पत्नीश्री ने मासूम सा जवाब दिया…

राजेश….सजी धजी रहती है…..??

नाम सुन…मैं मानों बौखला सा गया..

कौन तुम्हारा भाई….राजेश….?

नहीं… नहीं…वो नहीं…

तो फिर कौन राजेश…?

राजेश…नाम तो लड़के का है फिर…

सजी धजी कैसे.रहहहहहती है…

लड़की ही है….नाम ही उसका राजेश है…

वो टीवी पर हास्य धरावाहिक आती है न…




#हप्पू सिंह की उलटन पलटन…

उसमें हप्पू सिंह की पत्नी का नाम है राजेश…

धत्त तेरे की…

मैं तो कुछ और ही समझ रहा था…

क्या समझ रहे थे….कह दो..

तुम्हें तो उल्टा सोचने की आदत सी हो गई है….

ऐसा कुछ नहीं.. लेकिन हाँ..

तुम न ये टीवी सीरियल देखना बंद कर दो…

नाहक तुम्हारी आदते खराब होती जा रहीं..

और गर देखना ही है तो…

तुम न सास बहू की सीरियल ही देखा करो…

मन ठंडा रहता है तुम्हारा…

हाँ….मैं झगड़ालू जो ठहरी..

जैसे कि मैं मेरी सास से झगड़ती रहती हूँ हरदम…

मैंने ऐसा तो नहीं कहा….

कह भी दो क्या जाता है…दो तानें….

इसी लाने तो व्याह कर लाए मुझे…

सास तो है नही साथ…जो दो बातें कह दिल का ग़म हल्का करूँ…

बेचारी मुझ जैसी बहू का मुँह देखे बिना ही…भगवान को प्यारी हो गई…

मैंने कहा….हाँ ये बात भी सही है…

बहुत गलत हुआ…..माँ के साथ..

तुम्हें देखना चाहिए था माँ को…

तब जानती शायद..

मैंने धीरे से कहा….

लेकिन पत्नीश्री ने सुन लिया था लगता…

क्या कहा…..

क्््ः् कुछछछछ नहीं…

पर मुझे क्यूँ लगा कि कुछ कहा तुमने..

कान बज रहें तुम्हारे…

अच्छा…. और कुछ नहीं बज रहें…मेरे..???

म्ममममु…..हहहह




कह भी दो…..

ननननहीं… तो

मत कहो……कहकर भी कुछ नहीं होना..

मैं तो ऐसे ही सजधज रहूँगी अब…मुझे अच्छा लगता है..

मैंने कहा…

रहो..इसमें हर्ज भी नहीं…मैंने हथियार डालते हुए कहा..

जानता था जब आपकी पत्नी खुश रहती है आपका जीवन खुश रहता है,पत्नी खुश रहती है तब आप एक सुखी जीवन का आनंद ले सकते हैं..वैसे भी आज भागदौड़ वाले जीवन में पति पत्नी के रिश्ते उतने अच्छे और प्रगाढ़ नहीं दिखते.

इसलिए सदा कोशिश रहती है कि पत्नीश्री को नाराज न करूँ.. बड़े बड़े ज्ञानियों ने कहा भी है कि आपका जीवन जिसके साथ जुड़ जाये आप उसे अपने जीवन में पूर्ण रूप से प्राथमिकता दें,क्योंकि वह भी पति के बेहतर जीवन के लिए ईश्वर से हमेशा प्रार्थना करती है…

इसलिए सोचा क्यूँ नाहक पत्नीश्री का मूड खराब करूँ..

पत्नीश्री भी मेरे साथ ही चाय का कप लिए बैठी थी..

मैंने उसकी हाँथों की बनी अदरक वाली चाय का आनंद लेते हुए.

मजाक ही मजाक में कहा..

तुम्हारा यह सजना धजना तो ठीक है तुम्हें सजधज रहना है रहो..

लेकिन …बेकार में कहीं नौ नौ थईयाँ…हो गए तो…संभालते नहीं सँभलेंगे..तुमसे..

पत्नीश्री ने आँखें तर्रेरी…

गुस्सा क्यूँ होती हो…मजाक कर रहा…

लेकिन पत्नीश्री तो लगता आज कुछ अलग ही मूड में थी…

चाय का कप किनारे रखते हुए गुस्से से बोली..

तुम न…इसी लाने….शुरू से पसंद नहीं मुझे…

मेरी फूटी किस्मत जो तुम मेरे पल्ले पड़ गए…

मैंने मन ही मन कहा…हाँ नहीं तो अमिताभ बच्चन मिल जाता…तुम्हें

कुछ कहा तुमने..

हाँहहहहँ..नहीं तो….. कुछ नहीं..

मुझे लगा…कुछ कहा तुमने….

और ये नौ नौ थईया …वाली बात तुम्हें कैसे पता…

तुम तो ….??

मैंने चोर नज़रो से पत्नीश्री को देखा…

तभी तो….तुम मुझपर ध्यान नहीं देते…

एक शर्मा जी हैं…..पत्नी को लेकर

प्रयागराज जा रहें….

क्यूँ भला….

वो अगला कुम्भ मेला प्रयागराज में लग रहा..उसी में शाही स्नान हेतु जा रहें…दोनों

तुम तो बस…न कहीं घुमाना न फिराना बस घर म़े ही सड़ाए जा रहे मुझे…

ओहहहह अब समझा…

लेकिन तुम ही तो कहती हो…तुम्हें घूमने फिरने का शौक नहीं….

फिर ये अचानक… क्या हुआ ज़ो…

हाँ..हाँ…मैं तो जैसे बूढी हो गई भला..सारी खुशियों की तिलांजलि अभी ही दे देनी है मुझे..

कहीं सैर को नहीं जाना…यहीं पड़े रहना है…

अब कैसे समझाऊँ तुम्हें..

कुम्भ मेले में तो बहुत भीड़ होती है…बड़ा संभलकर जाना होता है वहाँ.. ना जाने कितनी पत्नियाँ गुमशुदा हो जाती ह़ै…न जाने कितनों के बच्चे खो जाते हैं.

देखा नहीं पिछली बार भी शर्मा जी की पत्नी कुम्भ मेले में गुमी थी तो शर्मा जी कितने खुशनसीब समझ रहे थे खुद क़ो….ये अलग बात थी कि फिर वापस मिल गई…




कहीं इस बार……भी…?

मैंने शंका जाहिर की…

तुम न….बस यूँ ही कहो…

तुम तो चाहोगे ही कि मैं खो जाऊँ…पीछा जो छुड़ाना चाहते मुझसे….

बला जो टल जाएगी सर से….

मैंने बड़े भोलेपन से कहा…

तुम कोई बला थोड़े ही हो मेरे लिए…

तुम तो….जिंदददद….गी

मेरे कुछ कहने से पहले ही…पत्नीश्री तपाक से बोली

रहने दो रहने दो…सब समझती हूँ…

तुम पतियों की आदत ही ऐसी होती है…

जाने क्या क्या समझते और कहते हो अपनी पत्नी को

एक हम पत्नियाँ हैं..जो पतियों के लिए अपनी जान खपाए रहती हैं….रोज कोई न कोई व्रत कोई न कोई पूजा..

कभी भगवान शंकर को मनाओ कभी श्रीहरि विष्णु को..

कभी सूरज को तो कभी चंद्रमा को…

हालत बेहाल रहती हरदम…तीज त्योहार  जाने क्या क्या करना पड़ता हमें…दिन दिन सहना पड़ता हमें..करवाचौथ के दिन तो..नजरें रह रहकर आसमान पर ही उठी रहती हैं..गर्दन तक अकड़ जाती है…पेट मानों जंग का मैदान हो जाता है..आसमान में कब बादलों का साया हटे और चांद अपने सौम्य रूप में दर्शन दे..

और….तुम पतियों का क्या…मौज रहती है सिर्फ़…

खाओ पियो और घुलट जाओ…

कहाँ की बात कहाँ ले आई तुम…

अब मैं तो कहता नहीं कि तुम व्रत रखो…

और अगर ऐसा होता तो दुनिया में सभी पति जिंदा रहते..

किसी की मृत्यु नहीं होती..

ये व्रत….पूजा सब श्रद्धा और आस्था की बात है….

मैंने श्रीमती जी को समझाना चाहा…

लेकिन पत्नीश्री ने झुंझलाते हुए कहा…

जो भी हो..

लेकिन कान खोलकर सुन लो..कहीं जाने वाली नहीं मैं…

जब तक जिंदा हूँ तुम्हारे सीने..पर…मेरा मतलब तुम्हारे सीने में धड़कन बन रहूँगी..

आई बात समझ में…

हाँ आ गई…

तुम समझाओ और समझ न आए हो ही नहीं सकता..

तुमसे हो तो धड़कन बची है मेरी..वरना कबकी टे बोल जाता मैं

मैंने सहमे भाव से कहा..

हालांकि पत्नीश्री के कहे..सीने पर …(सीने पर मूंग दलती रहूँगी) का आशय समझ कर भी उस बात पे आगे कुछ नहीं कहा मैने..मेरे लिए बेहतर भी यही था..

दूसरी इससे पहले कि बात उपवास और पूजा पाठ से आगे बढ़े…

ऐसे समय में बड़े से बड़े ज्ञानी भी जो कहते और करते हैं..मैंने भी वही किया…

बस …सीधे हथियार डाल देना ही उचित समझा…और कहा..

अच्छा ठीक है..गुस्सा मत हो…तुम्हारे सुंदर चेहरे पर गुस्सा अच्छा नहीं लगता…

अगर कुम्भ मेला जाना ही चाहती हो तो मैं भी टिकट करवा लेता हूँ…

लेकिन हाँ भीड़ का खयाल रखना…..शर्मा जी की पत्नी की तरह खो मत जाना…वहाँ

मेरी बातें सुन पत्नीश्री ने अजीब सा चेहरा बनाया…

मैं नज़र छुपाए…साफ देख रहा था कि

उस समय पत्नीश्री के चेहरे पर कई भाव एक साथ आ और जा रहें थे…

फिर जाने क्यूँ और किस डर से पत्नीश्री ने कुंभ मेले म़े जाने से मना कर दिया…

नहीं…..नहीं रहने दो…नहीं जाना मुझे..कुम्भ बूम्भ…

नहीं नहाना शाही स्नान… मैं यहीं गंगा स्नान कर लूँगी…

तुम्हारे साथ ही रहना मुझे..

फिर उदास हो बोली….

बड़े बदनसीब होते ह़ै वो लोग जिनकी पत्नियाँ कुंभ मेले म़े खो जाती ह़ै…

अब मैं उसे क्या कहता पत्नियों का मेले में खोना पतियों के लिए खुशनसीबी है बदनसीबी..

और कहता भी तो किस मन से कहता…

ठीक ही तो कह रही थी वो..




कहने को तो मैंने कह दिया कि पत्नियों के द्वारा पतियों के लिए किया गया व्रत व पूजा महज श्रद्धा एवं आस्था की बात है…..लेकिन सच तो यही है कि…अपने पतियों की लंबी उम्र एवं उनके मंगलकारणों हेतु ईश्वर के प्रति उनकी यह श्रद्धा और आस्था ही है जो उनकी प्रेम को एक नया आयाम प्रदान करती है…

मैं तो मानता हूँ पत्नी व पत्नी के प्रेम बिना तो यह जीवन सूना रेगिस्तान जैसा है…पति पत्नी का रिश्ता बड़ा ही अनोखा और ख़ूबसूरत होता है और यह खूबसूरती तब ही बनी रहती है जब पति पत्नी बीच उनके अंदर एक दूसरे के प्रति प्रेम बना रहे…..

खैर…मैंने पत्नीश्री का मूड शांत होता देख ..इच्छा जाहिर की… एक कप और चाय मिल जाती तो…..

कहते समय मैंने अपनी आँखों में दुनिया भर का प्रेम भरना नहीं भूला….क्योंकि आँखें वह स्थान है जहाँ प्यार का जन्म होता है और फिर भरण – पोषण के लिए दिल में चला जाता है….

पत्नीश्री…ने भी शांत भाव से मेरी तरफ देखा…और दोनों झूठे कप उठा…रसोई की ओर बड़े प्रेम से चाय बनाने चली गई…

और थोड़ी ही देर बाद…चाय देते हुए बोली…

तुम्हारे इसी सुलभ व्यवहार से मैं तुम्हारे साथ हूँ.. वरना कब की छोड़ जाती…तुम्हें…

मैंने मन ही मन कहा…

जहेनसीब मेरा…

चाय की चुस्की के साथ…

पत्नीश्री को देख मुस्कुरा दिया……

पत्निश्री भी मुझे देख मुस्कुरा रही थी….

वो क्यूँ मुस्कुरा रही थी ये तो वही जाने लेकिन मैं मेरी मुस्कुराहटों का कारण अच्छी तरह से जानता था.

मैंने बिस्तर पर बैठे बैठे ही जोर की अंगड़ाई ली..मानों मैंने कोई बड़ी जंग जीत ली हो…

विनोद सिन्हा “सुदामा”

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