किसी को ज़लील करने का हमें हक नही – संगीता अग्रवाल  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : ” चलो काम तो किसी तरह खत्म हुआ अब थोड़ा आराम कर लेती हूँ !” रीना ने घर के काम खत्म कर ये सोचा ही था कि दरवाजे की घंटी बजी । 

” नमस्ते दीदी !” रीना के दरवाजा खोलने पर सामने खड़ी लड़की बोली । 

” नमस्ते  आप कौन ?” रीना ने पूछा ।

” वो दीदी मैं बाई हूँ शीला। आपको बाई की जरूरत है ये मुझे नीचे गार्ड से पता लगा !” वो लड़की बोली ।

” अच्छा तुम अंदर तो आओ पहले फिर बात करते है !” रीना प्यार से बोली।

” जी !” ये बोल शीला चप्पल बाहर उतार अंदर आ गई। 

” तुम बैठो मैं पहले कुछ ठंडा लाती हूँ मैं बहुत गर्मी हो रही है ।  फिर बात करते है हम  !” रीना बोली। 

“जी ” ये बोल शीला जमीन पर बैठने लगी। 

” अरे यहाँ नही सोफे पर बैठो !” रीना एकदम से बोली। 

” पर दीदी मै वहाँ कैसे ?” शीला झिझकते हुए बोली। 

” क्यो सोफे मे कांटे लगे है क्या देखो जैसे मैं बैठी हूँ ऐसे बैठो इसमे कांटे नही है !” रीना सोफे पर बैठ मुस्कुराती हुई बोली जवाब मे शीला खिलखिला दी । कितनी मासूम सी हंसी थी उसकी रीना ने पहली बार उसे गौर से देखा करीब बीस साल की लड़की थी वो । रंग गोरा था साफ कपड़े पहने थे उसने भले वो काफी पुराने थे। शीला को सोफे पर बैठाकर वो रसोई मे आ गई।

” हाँ तो अब बताओ पहले कहाँ काम किया है तुमने ?” रीना थोड़ी देर बाद दो गिलास मे ठंडा लेकर आई और बोली।

” जी बराबर की सोसाइटी मे गुप्ता जी थे उनके यहाँ किया था !” शीला शालीनता से बोली। 

” लो ठंडा लो और फिर बताओ वहाँ से क्यो छोड़ा काम ?” रीना उसे गिलास पकड़ाती हुई बोली। 

” दीदी ये गिलास ..नौकरो वाला गिलास कहाँ है आप मुझे बता दीजिये मैं ले आती हूँ !” शीला नज़रे झुका कर बोली। 

” नौकरो वाला गिलास क्यो ? हमारे घर मे तो यही गिलास है और सब इसी मे पीते है हां मेहमानों के गिलास जरूर है कहो तो लाऊँ ?” रीना फिर मुस्कुरा कर बोली। 

” पर दीदी मैं इस गिलास मे कैसे पी सकती हूँ नौकरो के लिए तो अलग गिलास रखा जाता है ना मालिक और नौकर एक गिलास मे कैसे पी सकते है !” शीला बोली। 

” ये क्या नौकर मालिक लगा रखा है और इस गिलास मे तुम क्यो नही पी सकती लो पियो चुपचाप !” रीना उसे जबरदस्ती गिलास पकड़ाती हुई बोली । गिलास पकड़ते हुए शीला की आँख भर आई। 

” दीदी आप पूछ रहे थे ना वहाँ से काम क्यो छोड़ा उसकी वजह यही थी कि मैने गलती से मालिकों के गिलास मे पानी पी लिया था !” शीला नम आँखों से बोली। 

” मतलब !” 

” दीदी वो जो गुप्ता जी है ना उनके मैने बस दो महीने ही काम किया है मैं वहाँ बस बर्तन, सफाई करने जाती थी और दो घंटे में अपना काम करके आ जाती थी वहाँ इन दो महीनों मे ना मैने कुछ खाया पिया ना उन्होंने दिया । फिर अभी पिछले हफ्ते मेरी तबियत खराब थी पर दीदी ने बोला घर मे मेहमान आ रहे है तो तू आजा मैं दवाई ले चली गई । वहाँ मेरा दवाई का समय हुआ तो मैने पानी ले दवाई खा ली पर …!” ये बोल शीला चुप हो गई । 

” पर क्या ?” रीना ने जिज्ञासा से पूछा । 

” पर दीदी ने जब मुझे गिलास मे पानी पीते देखा तो मेहमानो के सामने ही मुझे उल्टा सीधा बोलने लगी । दो कोड़ी की नौकरानी तेरी हिम्मत कैसे हुई हमारे गिलास को झूठा करने की । सच दीदी मेहमानों के सामने ही उन्होंने मुझे बहुत ज़लील किया और फिर मुझसे ही बोल कर वो गिलास बाहर फेंकवा दिया । बस उस दिन इतना ज़लील होने के बाद मैने काम छोड़ दिया वहाँ का क्योकि हिम्मत ही नही थी वहाँ वापिस जाने की। वो मुझे आराम से बोल देती कि इस गिलास मे तुम्हे पानी नही पीना चाहिए था तो मैं समझ जाती पर मेहमानों के सामने ऐसे ज़लील किया मानो मेरी कोई इज्जत ही नही है !” ये बोल शीला रोने लगी। 

” ये तो बहुत गलत बात है जब हम किसी को अपने यहाँ सहायक रखते है तो उनको अपने परिवार का हिस्सा समझना चाहिए ना की ऐसे ज़लील करना चाहिए ।जब वो सहायक हमारे झूठे बर्तन धो सकते है तो उन बर्तनो मे पानी पीना कौन सा गुनाह हो गया !” रीना गुस्से मे बोली। 

” इसीलिए दीदी हमने कसम खाई अब जिस घर मे काम करेंगे उनसे पहले ही नौकरो के लिए कौन से बर्तन है ये पूछ लेंगे क्योकि नौकरी करना हमारी मजबूरी है ज़लील होना नही  !” शीला आँसू पोंछते हुए बोली। 

” देखो शीला जो हुआ वो गलत था पर मेरे घर मे तुम बेफिक्र रहो तुम्हे कोई ज़लील नही करेगा तुम मेरी नौकर नही सहायिका बनकर काम करोगी अगर तुम्हे मंजूर हो तो ? और हाँ अपनी तनख्वाह भी बता देना पर मुझे पूरे 10 से 5 तक के लिए सहायिका चाहिए  !” रीना प्यार से बोली। 

” जी बिल्कुल करेंगे ना दीदी जहाँ हम जैसे लोगो को इतना सम्मान मिले वहाँ हम क्यो नही काम करना चाहेंगे और रही तनख्वाह की बात वो आप जो देंगी हम ले लेंगे क्योकि इज्जत पैसो से ज्यादा बड़ी है !” शीला बोली। 

” तो ठीक है मैं तुम्हे बारह हजार दूंगी तुम्हे बस बर्तन , सफाई करनी है खाना मैं खुद बनाउंगी तुम बस मेरी मदद करना और जब मैं नौकरी पर चली जाउंगी तो पीछे से मेरी सास का ध्यान रखना उन्हे दो रोटी बना कर खिलाना खुद भी खाना बोलो मंजूर है ।” रीना बोली । 

” बिल्कुल मंजूर है दीदी !” शीला खुश होते हुए बोली। 

” पर हां मेरी एक शर्त है !” रीना एकदम से गंभीर होते हुए बोली। 

” वो क्या दीदी ?” सवालिया निगाहों से शीला ने पूछा । 

” मेरे घर मे कोई अलग बर्तन नही तो तुम्हे इन्ही मे खाना पीना होगा !” रीना मुस्कुराते हुए बोली तो शीला भी मुस्कुरा दी।

दोस्तों जब हम किसी को अपने घर काम पर रखते है तो वो भी हमारे घर का सदस्य हो जाता है फिर उसके साथ भेदभाव करके उसे ज़लील करना कहाँ तक सही है ? मेरे घर मे मेरी सहायिका के साथ घर के सदस्य जैसा व्यवहार होता है क्योकि मैं खुद इंसान हूँ और उसे भी इंसान समझती हूँ । 

यहाँ मेरे कुछ पाठक मित्र सहायिकाओं की गलती बताएंगे उनके नखरे गिनायेंगे उनसे मैं बस इतना कहूँगी कुछ मे कमियां हो सकती है वो अपनी जगह है पर हमें किसी को भी ज़लील करने का हक नही है । 

धन्यवाद 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )

  

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