किन्नर मां – गीता वाधवानी 

आज शीला किन्नर रात के समय जब वापस घर आ रही थी तो उसने तीन चार कुत्तों को किसी कपड़े पर झपटते हुए देखा और उसे कुछ आवाज भी सुनाई दी। 

       उसने भागकर कुत्तों को वहां से हटाया और देखा कि एक नवजात बालिका कपड़े में लिपटी हुई कूड़े में पड़ी है। कुत्ते उसे नोचने की कोशिश कर रहे थे। उसे देख शीला के मन में ममता जाग उठी। उसने उस बच्ची को उठाकर गले से लगा लिया और घर ले आई। 

       दो-तीन दिन तक वह उसकी सेवा में लगी रही। जब बच्ची पूरी तरह स्वस्थ हो गई तो शीला के बाकी किन्नर साथियों ने शीला से कहा-“अब बच्ची ठीक हो गई है इसे किसी अनाथ आश्रम में छोड़ आते हैं।” 

शीला-“पागल हो तुम लोग, कितनी छोटी है यह, मैं इसे खुद पालूंगी।” 

साथी-“शीला, तू पागल हो गई है, हम इसे कैसे पाल सकते हैं।” 

शीला-“तुम लोग चाहे जो मर्जी बोलो या फिर दुनिया कुछ बोले, मुझे कोई परवाह नहीं, मैं ही इसे पाल पोस कर बड़ा करूंगी। इसके माता-पिता ने भले ही इसे कूड़े में फेंक दिया हो लेकिन मैं इसे अनाथ आश्रम में नहीं छोड़ सकती।” 

     शीला के साथ ही उससे नाराज हो गए। धीरे-धीरे समय बीतने लगा। 

     शीला ने बच्ची का नाम ज्योति रखा। ज्योति अब 3 महीने की हो चुकी थी। उसका, सबको टुकुर-टुकुर देखना, उसका भोलापन, सब को देख कर मुस्कुराना और धीरे-धीरे सब को पहचानना, बाकी साथियों को भी बहुत भाने लगा था। वे सब भी उसके साथ खेलने लगे थे। 

       थोड़ी बड़ी होने पर ज्योति तुतला तुतला कर बोलने लगी और अपने छोटे-छोटे कदमों से पूरे घर में इधर-उधर भागने लगी थी। अब तो सारे किन्नर उस पर जान लुटाने लगे थे और पल भर भी अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देते थे। 

    शीला ने ज्योति को बहुत मुश्किलों के बाद अच्छे विद्यालय में प्रवेश दिलवा दिया था। ज्योति पढ़ने में बहुत तेज थी। धीरे-धीरे वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गई। 

      जब ज्योति कॉलेज में आई। तब शीला ने उसे सारी सच्चाई बता कर उससे कहा-“बेटी ज्योति, तुम अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो। तुम चाहो तो हम से अलग होकर रह सकती हो। हमारा तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। हम सब तुम्हारे तरक्की चाहते हैं लेकिन उसके लिए हम तुम्हें किसी भी तरह के बंधन में बांधना नहीं चाहते। तुम अब बड़ी हो गई हो। हमारे साथ रहने में तुम कोई झिझक या शर्म महसूस करती हो तो तुम अलग रहने के लिए पूरी तरह आजाद हो। हमारा प्यार हमेशा तुम्हारे लिए वैसा ही रहेगा और तुम्हारे लिए बेड़ियां नहीं बनेगा।” 

     ज्योति की आंखों में आंसू आ गए और उसने कहा-“नहीं मां, मुझे अलग नहीं रहना, मैं अपनी मां से अलग कैसे रह सकती हूं। मुझे आप पर शर्म नहीं बल्कि गर्व है।” 

      आज ज्योति ने एमबीए में सफलता पाई थी। शीला और उसके साथी खुशी से झूम रहे थे। थोड़े समय बाद ज्योति ने एक बहुत प्रसिद्ध कंपनी में अच्छी नौकरी भी हासिल कर ली थी और शीला को लग रहा था कि उसका जन्म सफल हो गया है। 

#बंधन

स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित 

गीता वाधवानी दिल्ली

 

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