ख्वाहिश – सीमा बत्रा

“तुम मुझे खिलाओ, मुझसे गिर जाता है न ,फिर ड्रेस गंदी हो जाएगी तो मम्मा गुस्सा होगी”। 23-24 साल की लड़की के मुँह से ये बात सुन ट्रेन में आस पास बैठे लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। उन लोगों में मैं भी एक था।

ट्रेन के सैंकड क्लास ए.सी. कोच में बच्चे नहीं थे तो सब अपने आप में ही बिजी थे, ऐसा कुछ देर पहले था, अब तो सब उसको ही देख

रहे थे, जो अपने साथ बैठे लड़के के साथ बातें करते हुए उसके हाथ से खाना खा रही थी।आस पास बैठे हम सब की तरफ देख कर कभी हँसती तो कभी मुँह बनाती।

मैं उस लड़के को देख रहा था जो बहुत प्यार से उसको सुन रहा था और खाना खिला रहा था। ” साइड वाली बैठी महिला से रहा नहीं गया वो बोली लगता है नयी नयी शादी हुई है”? लड़के का पूरा ध्यान उसको खिलाने पर था, महिला जवाब के इंतजार में थी, पर लड़का सिर्फ मुस्करा दिया।

मैं सब कुछ चुपचाप देख रहा था कि खाना खिला कर उसके हाथ साफ करवा कर उसको

कुछ खिलाने की कोशिश कर रहा था, वो बच्चे की तरह मचल रही थी। वो जितना मचलती लड़का उसको उतने ही प्यार से मना रहा था।

अब तक आगे-पीछे बैठे लोग ताका झाँकी करने लगे थे। मैं लड़के के संयम का कायल होता जा रहा था। सब की नजरो और बातों की बिना परवाह किए वो उसको खिला कर ही माना। मेरा ध्यान दोनों की तरफ से हट ही नहीं रहा था ।


कुछ देर खिड़की के परदे हटा कर बाहर देखने की कोशिश करती रही ,इन सब के दौरान उसने पल भर को भी लड़के का हाथ नहीं छोड़ा। ये देख कर मुझे अपना समय याद आ गया ,जब सविता ने शादी के बाद सड़क पार करने के लिए हाथ पकड़ना चाहा तो कैसे डाँट दिया था। क्या करता ? मैंने तो पापा को भी बाजार में या किसी समारोह में माँ से हमेशा आगे चलता देखा था।

“मुझे अब सोना है”, कि आवाज़ मुझे वापिस ट्रेन में खींच लाई। लड़का उसके लिए चादर बिछा रहा था । तकिया लगाते हुए बोला,”चलो अब सो जाओ”। तुम्हारे साथ सोना है नहीं तो मैं गिर जाँऊगी। उसकी यह बात सुन कर कोई हँसा तो कोई लड़की की बेबाकी पर हैरान था। मैं लड़के के चेहरे के भाव पढने की कोशिश कर रहा था, पर यह क्या ? लड़के

के चेहरे पर लेशमात्र संकोच या शरम न हो कर सिर्फ प्यार था।

वो उसका सिर अपनी गोद में रख सुला रहा था, साथ ही मैं यहीं हूँ , तुम्हे गिरने नहीं दूँगा।

तुम सो जाओ,  यकीन दिला रहा था। गहरी नींद में भी हाथ पकडे थी तो लडके ने भी कोशिश नहीं की छुड़वाने की।

साथ बैठी महिला से रहा नही गया, बोली अभी अभी शादी हुई है ? नहीं, 3 साल हो

गए हैं। लड़के ने मुस्करा कर जवाब दिया।

बोलते हुए भी लड़के का ध्यान अपनी बीवी पर था। लव मैरिज होगी ? जी मैडम। मुझे भी यही लगा था, आप दोनो को देख कर, महिला ने कहा तो वो फिर मुस्करा दिया।

मैं अपने सफर में किसी से बातचीत नहीं करता पर आज मैंने अपना बनाया ये उसूल


तोड़ दिया , लड़के को अपना परिचय देकर।

उसका नाम विजय है और उसकी पत्नी का नाम शैफाली है। वो एक सरकारी पोस्ट पर है और उसकी बीवी हाउस वाईफ है। मैं कुछ और की तलाश में था, लेखक जो ठहरा।

आप अपनी वाईफ से बहुत प्यार करते हैं , महिला ने कहा तो मैं विजय के चेहरे को देख

रहा था, चेहरे पर आई एक दर्द की लहर को उसने अपनी मुस्कान से पल में छिपा लिया।

” हाँ जी मैम बहुत करता हूँ, पर ये मुझे मुझसे ज्यादा करती है”।

विजय का जवाब सुन वो भी मुस्करा दी । “बचकाना नहीं लगता आपको उनका ऐसा बर्ताव वो भी यूं सबके सामने ? मानना पडे़गा आप खुद को काफी संयत रखते हैं”। बहुत देर से जो बोलना चाह रही थी, वह बोल ही दिया।

विजय अभी भी अपनी पत्नी का सिर सहला रहा था। वो बिल्कुल शांत हो गया । अब तो मैं भी मैडम की तरह उत्सुक था। सिर्फ फर्क इतना था कि मैं जाहिर नहीं कर रहा था।

“शैफाली एक इंटेलीज़ैन्ट और मैच्योर लडकी है”, मैम। विजय लगातार बच्चों जैसे बेपरवाह सोई अपनी पत्नी को एकटक देखते हुए कहा। “आज जिससे आप मिले वो तो 8-10 साल की छोटी लड़की है”। ये सुन हमने उसकी और देखा तो हमारा सवालिया चेहरा पढ़ लिया था।

दरअसल शैफाली एक बीमारी से लड़ रही है।

जिसकी वजह से वो अपने बचपन में चली जाती है। मुझे भी भूल जाती है, ऐसे में वो मुझे

कुछ भी बना देती है । आज मैं उसका दोस्त हूँ।दवा खिला कर सुला देता हूँ, फिर नार्मल हो जाती है और सब भूल जाती है।

“माफ करना भाई साहब मेरी कोई बात बुरी लगी हो। बिना सच जाने मैंने वो सब कहा आपको”। महिला की आँखो में आँसू थे।

“ऐसी कोई बात नहीं मैम”। मुझे बिल्कुल बुरा नही लगा। अब मुझसे रहा नही गया, “विजय आप कैसे संभालते हैं अपनी नौकरी और इन्हें”? मैंने पूछा तो वो हँस दिया। सर मेरा पहला और आखरी प्यार है ये, मैं सुकून से हूँ  कयोंकि वो मुझे कुछ भी समझती है, पर हर रोल में मेरा साथ ही पसंद करती है और मेरा हाथ नहीं छोड़ती । मेरी ख्वाहिश है, कि वो हर हालात में मुझे अपने साथ पाए”।

रात बातों में ही कट गई। सुबह आँख थोडी़ देर


लगी ही थी कि चहल पहल शुरू हो गई। विजय और उसकी पत्नी अपना सामान पैक कर रहे थे। मैंने महिला सहयात्री को देखा तो वो भी दोनों को देख कर मुस्करा दी। विजय ने मेरी ओर देख कर सिर झुका कर नमस्ते की और शैफाली से परिचय करवाया। उसे देख कर कोई नहीं कह सकता कि वो बीमार है।

हम लोगो ने एक दूसरे का मोबाइल नं सेकर विदा ली। शैफाली ठीक होगी या कितना समय लगेगा तो पता नहीं परंतु मैं निशब्द हूँ।

आज के समय में निस्वार्थ प्रेम का मतलब सिखा गया मुझे आज का लड़का।

स्वरचित (सीमा बी.)

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