अड़चनें – सीमा बत्रा

सरिता ने जैसे ही  अपना फ्लैट खोला तो  अंधेरा पसरा हुआ था । रोज तो मंदिर वाले कमरे की लाइट जलती छोडकर जाती है।  पर लगता है, आज जल्दी जल्दी में वो भी बंद कर दी थी । यही सोचते हुए सरिता ने अपने मोबाइल की टार्च जलाकर कमरे के कमरे के स्विच बोर्ड की तरफ बढी़ ट्यूबलाइट का बटन दबाते ही कुछ मिनट पहले जहां अंधेरा पसरा था, उसकी जगह उजाले ने ली थी।

अपना बैग सोफे पर फेंककर सरिता बाथरूम में चली गई । उसे पुराने गाने और गजल सुनना पसंद है। सो बाथरूम  में घुसने से पहले अपने फोन पर गाने लगाना नहीं भूली । इस टाइम घड़ी 10 बजा रही थी।  आज कुछ पकाने का मन नहीं था इसलिए सिर्फ दूध ब्रेड खाने का मन बना लिया ।

अभी खाती  हूँ सोच ही रही थी कि उसके मोबाइल की घंटी बजी वो समझ गई कि घर से आया होगा ।कोई और तो इस समय फोन करता नहीं। फोन देखा तो घर का ही नंबर था। फोन लैंडलाइन से था तो समझ गई कि माँ का ही होगा । सो फोन उठाते ही बोली,” हाँ माँ बोलो “! माँ ने हाल चाल पूछा तो सरिता ने भी परिवार के सब लोगों का हालचाल और तबियत पूछी । सब कुछ ठीक है, सुनकर सरिता को तसल्ली हुई । पर साथ ही सोच रही थी कि फिर माँ ने इस समय फोन क्यों किया । सरिता कुछ पूछती इससे पहले ही माँ ने बताया कि” छोटे भाई के कॉलेज की फीस भरनी है। वो जमा कराना भूल गई शायद ।कल आखरी दिन है, करवा देना “। सरिता का मन फोन पर बात करने के बाद उदास हो गया, क्योंकि माँ बिना काम कभी उसको फोन नहीं करती हैं।

आज फिर वो अपने उन कडवी यादों में चली गई ।जिनको वो भूलना चाह रही है। वह इंदौर में अपने मम्मी -पापा दो भाई और एक बहन के साथ रहती थी। पापा की बैंक की नौकरी थी और मां एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी । बहुत पैसा तो नहीं था पर सब खुश थे। वो भाई -बहन में सबसे बड़ी थी तो शुरू से ही उसको एडजस्ट करने को कहा गया। उसने भी तो जल्दी ही सीख लिया था । जैसे -जैसे वो बडी़  होती जा रही थी । माँ ने रसोई का भार उसके कंधों पर डाल दिया । उसको आज भी याद है  B.sc में फर्स्ट आने के बाद भी किसी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया था, पापा को छोड़ कर। उसी साल भाई ने भी तो दसवीं पास की थी, सेकेंड डिविजन में पर माँ बहुत खुश थी ।


सरिता M.sc करना चाहती थी। पर माँ का कहना था कि अभी उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वह चार बच्चों की पढ़ाई का बोझ उठा सकें। वो उस दिन बहुत रोई रही थी। पापा बस इतना ही साथ दे पाए थे कि” कोशिश करता हूँ, ” पर माँ के आगे पापा की नहीं चली । उसने भी सोच लिया था कि कुछ भी हो आगे पढ़ना ही है । इसलिए अपनी एक सहेली के साथ कॉलेज जाकर प्रिंसिपल से बात की तो उन्होंने कहा कि,” तुम फर्स्ट आई हो, स्कॉलरशिप की हकदार हो, तुम फार्म भर दो”। उसने घर आकर खुशखबरी माँ पापा को दी तो पापा ने कहा कि,” अच्छा हुआ पर माँ ने ये कह कर चिंता में डाल दिया कि, “महंगी किताबें कहां से आएंगी और खर्चे भी होंगे तेरे आने जाने में”? उस दिन उसने काफी हिम्मत से कहा था,” आप चिंता मत करो मुझे एक पैसा घर से नहीं चाहिए, मैं ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्च निकाल लूँगी और ऐसा ही कर भी दिखाया” । पहले M.sc और उसके बाद M.phil किया और साथ में पढ़ाना नहीं छोड़ा । फिर वो समय भी आ गया जब वो अपना खर्च तो निकाल ही रही थी ,साथ घर पर भी मदद कर रही थी।अब माँ उससे खुश थी । भाइयों को खूब पढ़ाने की इच्छा थी माँ -पापा की ,पर गगन नहीं पढ़ पाया। उससे छोटी सरला वो तो पढ़ने में बहुत अच्छी थी। सबसे छोटा रोहन माँ का लाडला वो भी तेज था।

M.phil करते करते ही उसके लिए रिश्ते आने लगे ।पर बात नहीं बनती थी कोई न कोई अड़चन आ ही जाती थी। पापा बड़ी कोशिश कर रहे थे, उसका घर बसाने की । पर शायद उसके भाग्य में अभी नहीं था। इसलिए उसने आगे बढ़ने की सोच P.H.D  में एडमिशन ले लिया था । गगन जब कॉलेज पास नहीं कर पाया तो मम्मी पापा ने उसको दुकान खोलकर दे दी पर उसकी संगत ही खराब थी। वो सिर्फ इधर उधर ही घूमता रहता था।  खैर उसकी P.h.d पूरी हो गई और दिल्ली के एक कॉलेज में नौकरी भी मिल गई।इस बीच कई रिश्ते आये पर कोई ना कोई दिक्कत की वजह से बात नहीं बन पाई। जिसकी वजह से पापा काफी दुखी रहने लगे थे।

दिल्ली में इस फ्लैट में  उसे पांच साल हो गए हैं ।छुट्टियों में सब लोग कहीं न कहीं घूमने जाते हैं । पर वो कहीं नही , क्योंकि अगर वो कहीं जाने की बात घर पर कहती है, तो कोई न कोई खर्चा पहले से उसे तैयार मिलता और उसे अपना जाना कैंसल करना पड़ता। अब पापा जब रिटायर हो गए हैं तो वह गगन के साथ उसके कपड़ों की दुकान पर बैठते हैं। एक दिन गगन ने मंदिर में जाकर शादी कर ली थी । उसे काफी दिन बाद पता चला था, जब परिवार ने  पड़ोसियों को दावत पर बुलाया था । उसे  छुट्टी लेकर आने को कहा पर वो नहीं गई थी। सरला भी एक सरकारी स्कूल में पढाने लगी है।अब उसकी शादी करनी है फिर छोटे की पढ़ाई इन सब कामों में कोई अड़चन न आए  ये उसे  देखना है। माँ तो शायद भूल ही गई है कि सरिता भी उनकी बेटी है, जिसके अपने सपने होंगे।

क्यों नहीं उसकी शादी में आने वाली अडचनों को दूर करने की कोशिश की कभी माँ पापा ने ? सोचते हुए आँखें फिर नम हो गयी । जैसे-तैसे यादों को अपने से अलग करके बैड में आ गई और सोने की कोशिश करने लगी । उसकी काफी देर बाद आंख लगी।  सुबह उठने पर उसको सिर दर्द होने लगा। कॉलेज जाने का टाइम हो रहा था पर मन नहीं आज पढ़ाने का आराम करूँ यह सोच उसने कॉलेज में फोन करके छुट्टी का बता दिया । कामवाली काम करके जाने लगी तो बोली,” दीदी आप ठीक हो न, खाना बना दूँ आपके लिए “?  उसको मना किया और कहा कि,” ठीक हूँ ,आज बाहर खाने का मन है”। उसके जाने के बाद घर बैठने का मन नहीं कर रहा था तो बाहर चल दी।

आज उसको बेवजह घूमना आज अच्छा लग रहा था । अपने लिए खरीददारी करने के लिए मॉल के सिल्क स्टोर से अपने लिए एक साडी लेकर पेमेंट देकर अभी बाहर ही निकली थी । किसी ने “सरिता जी”, कहकर आवाज दी तो वो चौंक गई। आवाज पीछे से आई थी उसने पलट कर देखा तो एक आदमी उसकी तरफ ही आ रहा था ।वह हैरान थी कि उसको ये आदमी कैसे जानता है? क्योंकि उसको तो यहाँ सिर्फ कॉलेज के स्टूडेंट्स पहचानते हैं या फिर साथ पढ़ाने वाले। कुलीग तो नहीं हैं ये और स्टूडेंट हो नहीं सकते क्योंकि 35-40 साल के लगभग लग रहा था। सरिता यही सब सोच रही थी कि वह आदमी तब तक पास आ चुका था।

सरिता की नजरों में अपने लिए सवाल को शायद उसने भांप लिया था। इसलिए बोले कि,” आप मुझे नहीं पहचानती  होंगी। मेरा नाम  तरुण है। 8-9 साल पहले मेरे पिता जी ने आपके लिए मेरा रिश्ता भिजवाया था। पर आपकी तरफ से ना कर दी गई थी आपको मेरी फोटो पसंद नहीं आई”। सरिता ने जैसे याद करते हुए कहा कि पर आपने तो कोई फोटो ही नहीं भेजा था बल्कि मना आप लोगों ने ही किया था यह कह कर कि  मेरी कुंडली में ही कोई दोष अड़चन बना हुआ है रिश्ता होने में”। तरुण ने बोला,” यह झूठ है, मुझे लगता है कि कोई गलत फहमी है क्या बैठकर कुछ देर बात कर सकते हैं”।

सरिता को भी अपनी उलझनें सुलझानी थी। उसने हामी भर दी। मॉल में बने स्टारबग्स में दोनो बैठ गए। फिर बातचीत का सिलसिला ऐसा चला कि कब दो घंटे बीत गए पता ही नहीं चला।  तरुण ने बताया कि “उनको वो बहुत पसंद आई थी और आगे की बात करने के लिए अपना फोटो भेजा था पंडित जी के साथ । पर 2 दिन के बाद वापिस आ गया ना के साथ । मैं काफी दिन सोचता रहा कि क्या कमी है मुझमें कि आपने मना कर दिया और मुझ में हीन भावना आ गई थी।  इसलिए मैंने आज तक शादी ही नहीं की। आज आपको देखा तो सोचा कि आपसे ही पूछ लेता हूं कि आपको मुझमें क्या कमी लगी थी “? 

“आपसे बात करके मुझे लग रहा है कि आप तो सब बातों से अनजान हो । फिर तो आपको यह भी नहीं पता होगा कि पंडित जी ने हमको बताया कि  आप घमंडी और तुनकमिजाज है और अपने लिए आए सब रिश्तों में ऐसे ही कमियां निकालती है। पर आपसे मिलकर ऐसा नहीं लगा” ।

सरिता बस सब सुन रही थी और उसके सामने माँ का चेहरा आ गया। जो हर बार उसको कहती थी लड़के वालों को उसकी कुंडली में दोष नजर आता है ,उसकी कुंडली ही शादी में अड़चन बनी हुई है । तरूण ने घर छोड़ने को पूछा तो सरिता मना नहीं कर पाई । बिल्डिंग के सामने कार रोकते हुए तरुण ने बिना किसी भूमिका के सरिता से पूछ लिया,” क्या तुम मुझसे शादी करोगी”?


सरिता ने दो दिन का समय मांगा। आज सरिता ने घर फोन लगाया और उधर से माँ की आवाज सुनते ही उसने कहा, “माँ ,पापा से बात कराओ”। माँ बोली, “पापा सो रहे हैं”। सरिता ने कहा,”उठते ही बात कराना”। माँ को शायद उम्मीद नहीं थी कि सयानी बेटी ऐसे कभी उनसे बात करेगी। इसीलिए शायद आज माँ को उसकी ठंडी आवाज़ से हैरानी हुई थी। उनके शब्द उनका साथ नहीं दे पाए । सरिता ने भी फोन रख दिया ,बिना कोई और बात किये ।

शाम से रात हो गई और घर से फोन नहीं आया ।उसका शक और मजबूत होता जा रहा था । फोन नहीं आया तो वह सुबह घर जाने का निशचय करके सो गई । सुबह कॉलेज में दो दिन की और छुट्टी के लिए बात करके एयरपोर्ट पहुंच गई। इंदौर की फ्लाइट दो घंटे के बाद की थी। बस कुछ घंटों में वो घर पहुंच गई ।  5 साल के बाद घर आई थी सब हैरान थे उसको अचानक देख कर।

रोहन दीदी को देखते ही खुश हो गया। गगन की पत्नी रेखा ने सरिता के पैर छुए तो सरिता सकुचा गई। सरिता ने उसको गले लगा लिया। “पापा कहाँ है”? पूछने पर रोहन ने जवाब दिया कि वो अपने कमरे में हैं। सरिता ने माँ की आँखों में देखते हुए कहा, ” चलो माँ पापा के पास चलते हैं, मुझे कुछ बात करनी है” ।मां ने अपनी नजरें चुराते हुए कहा,” तुम चलो, मैं आती हूँ”। सरिता को अटपटा तो लगा पर वो बिना कुछ कहे पापा के पास चली गई। सरिता को सामने देखकर उसके पापा की आँखों में चमक आ गई।

पापा ने सरिता को आगे बढ़ कर गले से लगा लिया और बच्चों की तरह रोने लगे। सरिता उनको रोते हुए देख नहीं पाई। उसने जैसे- तैसे उनको चुप कराया ।तब तक माँ और गगन भी  आ गए। शायद माँ ने उसको फोन करके बुला लिया था ।

सरिता ने कमरे की खामोशी को तोडते हुए पापा को तरुण के बारे में सब बताया और जो उसने कहा वो भी पूरी बात सुनने के बाद वह उठे और अपनी अलमारी  से एक कागज निकाल लाएं और सरिता के हाथ में देते हुए बोले कि “ये है तेरी शादी की अड़चन “। उसने खोलकर देखा तो उसकी जन्मपत्री थी जिसमें उसके जन्म की तारीख तो थी पर गलत थी । सरिता को कुछ -कुछ समझ आ रहा था और उसने मां और गगन की तरफ देखा तो उसका शक यकीन में बदल गया ।

पापा के आंसू अभी तक नहीं रुके थे ,वो बस बार बार यही बोल रहे थे कि ,”मुझे माफ कर देना बेटी, मैं तुझे वो नहीं दे पाया जिसकी तुम हकदार हो, तुम्हारी माँ और उसके लाडले बेटे को लगता था कि तुम्हारी शादी हो गई तो घर कैसे चलेगा ? इसलिए कहीं ये लोग गलत जन्म पत्री देते रहे तो कहीं तुम्हारे बारे में अनाप शनाप बोल कर बात आगे नहीं बढ़ने दी। 6 महीने पहले मुझे इनके कारनामें पता चले ,मैं कुछ न कर पाने के लिए शर्मिंदा हूं “। बस अब और कोई अड़चन मेरी बेटी की खुशियों के बीच में नहीं आएगी।

मम्मी और गगन को शायद ही वो कभी माफ कर पाएगी।  पर वो आज खुश है ,कि उसका भी एक अपना घर होगा । अगले दिन सरिता वापिस चली गई उसने तरुण को एयरपोर्ट पर लेने आने को कहा ।एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही तरुण सामने दिख गए हाथों में गुलाब लिए । कार में बैठते ही सरिता ने तरुण को शादी के लिए हाँ कह दिया ।

सीमा बत्रा

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