अन्तर्मन की गांठ – पुष्पा जोशी 

सूर्यास्त का समय था। सूर्य की लालिमा क्षितिज पर छाई हुई थी। फूलों की सुगंध से वातावरण सुगंधित हो रहा था। पक्षी कोलाहल करते हुए आसमान में उड़ रहे थे। रंग-बिरंगे मेघ अठखेलियां कर रहे थे। मनमोहक वातावरण था,मगर अवनी के मन में बेचैनी थी।

जब अंतर्मन उलझा हो, तो बाह्य सारे उपकरण बेमानी लगते हैं। उसकी नजर क्षितिज पर जाकर ठहर गई जहाँ जमीन और आसमान के मिलने का भ्रम होता है। वह सोच रही थी, कि वह भी तो भ्रमजाल में ही उलझी थी। क्यों नहीं समझ पाई वो, कि जमीन और आसमान कभी नहीं मिलते, उसने अपने सिर को झटका दिया, वह इस समय अतीत की स्मृतियों में उलझना नहीं चाहती थी। वह अपने स्थान से उठकर टहलने लगी। क्यारियों में रंग बिरंगे फूल खिले थे, वह उन फूलों को उसी तरह प्यार करना चाहती थी, जिस तरह पहले करती थी। अनायास उसकी दृष्टि आसमान की ओर उठी, सोचा शायद कोई तारा दिख जाए, मगर इस समय तारे…….। सूर्य अस्त हो चुका था उसकी आभा आकाश पर फैली हुई थी।

जब इंसान अकेला होता है, मौन नहीं रह सकता‌ कभी

उसे यादों का समुद्र घेर लेता है, तो कभी मन कल्पना के पंख लगा उड़ने लगता है। वह उड़ना चाह रही थी, मगर……। यादें अंतर्मन में अंदर तक पैठी होती है।ये जिद्दी होती, हम इनसे जितना दूर भागते हैं, ये उतना ही करीब आती है और जकड़ लेती है अंतर्मन को। मन डूबता जाता है, उस की अनंत गहराइयों में।जब अवनी अपने प्रयास में निष्फल हो गई, तो उसने छोड़ दिया अपने मन को यादों केे भंवर में गोते खाने के लिए।

उसे याद आया जब वह बी.ए. तृतीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी। हँसता खिल-खिलाता जीवन था। साधारण सा परिवार,  माँ -पापा, भैया सबके साथ कितनी खुश थी वह। हर बात को यथार्थ धरातल पर सोचती थी, ना ऊँचे ख्वाब थे,न ऊँची ख्वाहिशें। हर माहौल में खुश रहने वाली वाली सांवली, तीखे नैन नक्श वाली अवनी, हर पल चहकती रहती। उसे बागवानी का शौक था। अपने घर के आस-पास उसने सुंदर-सुंदर फूलों की क्यारियाँ लगा रखी थी। कुछ क्यारियों में सब्जियां लगाई थी, वह उनकी सेवा सुश्रुआ करती। उन्हें फलता-फूलता देख कर उसका चेहरा प्रसन्नता से चमकने लगता। वह इन फूलों में ही खुश थी आसमान के चांद तारों की ओर उसका ध्यान कभी गया ही नहीं।


एक दिन वह ऐसे ही बगीचे के फूलों को निहार रही थी, सामने की बिल्डिंग से किसी की आवाज सुन कर चौंकी, ‘क्या, अपना सारा प्यार इस धरती पर लुटा दोगी?’ उसने नजर घुमा कर देखा, कोई नजर नहीं आया वो फिर उन फूलों में खो गई। उसे फिर आवाज आई, ‘माना की धरती बहुत खूबसूरत है, मगर, यह आसमाँ भी कुछ कम नहीं है,

कभी सितारों को भी अपनी खुशी में शामिल करलो।’ अवनी ने नजर ऊपर उठाई तो देखा, सामने की ऊँची इमारत की गैलरी में, एक ऊँचा पूरा नौजवान, गौरवर्ण, घुंघराले बाल वाला जिसके चेहरे पर अजीब आकर्षण था, उसी से बात करने की कोशिश कर रहा था।

अवनी ने कुछ नहीं कहा, अपने आप को समेटा और घर के अंदर चली गई। उसके मन में प्रश्न कुलबुला रहा था, कि वह कौन है?

दूसरे दिन अपनी आदत के अनुसार उन फूलों को देख कर प्रसन्न हो रही थी।अवनी को देखकर उसने अपना हाथ हिलाया उसके चेहरे पर मुस्कान थी। अवनी ने भी अपने दोनों हाथ जोड़े और घर के अंदर आ गई।

अगले दिन उसके  पापा अखबार पढ़ते समय, उसकी माँ को बता रहे थे – ‘सामने सोमनाथ बाबू का बेटा अंबर लंदन से आ गया है, किसी प्रोजेक्ट पर यहाँ कार्य कर रहा है।

शायद यहाँ कोई कंपनी डालना चाह रहा है। बडा़ ही प्यारा लड़का है, कल मुझे भी ऑफिस तक छोड़ा, अपने बारे में बता रहा था। विदेश रहने पर भी वह अपनी संस्कृति को नहीं भूला है।’ पापा की बात सुनकर, अवनी के मन में उथल-पुथल मच गई थी, वह अम्बर के बारे में सब कुछ जानना चाहती थी।

अवनी की नजरें जो हर पल नीचे देखती थी, अब ऊपर भी देखने लगी थी। वह बगीचे में जाती, सामने इमारत में अंबर को न देख बैचेन हो जाती।उसे क्या हो रहा था, वह समझ नहीं पा रही थी। रात को छत पर जाकर  तारों को देखना और तारों के बहाने, एक झलक उसे देख लेने की ललक मन में रहती।

अंबर कई बार घर पर आता, पापा से ढेर सारी बातें करता। अवनी अन्दर कमरे से उनकी बातें ध्यान से सुनती। अम्बर मुक्त विचारों का था, वह अवनी से भी हँस बोलकर बातें करता, मजाक करता। अम्बर के प्रति अवनी के मन में जो आकर्षण का भाव था, उसका स्थान प्रेम ने ले लिया था। वह अम्बर को चाहने लगी थी, यह बात उसके अन्तर्मन के सिवा किसी को मालुम नहीं थी। वह सोच रही थी, कि अम्बर भी उसे चाहता है।

अवनी के विवाह की बात चल रही थी, लड़के वाले देखने के लिए आने वाले थे।उसने अपने मन की बात अम्बर से कहना चाहा,उसे लग रहा था कि अम्बर को भी उसके विवाह की बात सुनकर दु:ख होगा। उसने मन को मजबूत किया और अम्बर से अपने मन की बात कहने के लिए जाने लगी। तभी उसे मम्मी- पापा की बात सुनाई दी। पापा कह रहे थे- ‘अम्बर कितना नेक इंसान है, उसने अपनी अवनी के लिए, कितना बढ़िया रिश्ता बताया है। ईश्वर करें यह रिश्ता जुड़ जाए।

अवनी ने सुना तो स्तब्ध रह गई। उसने सोचा भी  नहीं था, कि अम्बर उसे प्यार नहीं करता है। उसे अंबर की हर बात से यही आभास हो रहा था, कि वह भी अवनी को चाहता है। उसने अपने आप को सहेजा, और अंतर्मन की बात अंतस में दब गई। उसनेअपने मन को, बहुत मुश्किल से समझाया। उसकी कोशिश यही रहती,कि सब यही समझे कि वह बहुत खुश हैं।

अवनी और विशाल की शादी हो गई। अम्बर लन्दन चला गया। विशाल एक समृद्ध, सुसंस्कृत परिवार का था।

नाम के अनुरूप उसकी सोच भी, विशाल और परिष्कृत थी। वह एक कॉलेज में प्रोफेसर था। अवनी का पूरी तरह ध्यान रखता था।अवनी को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी।

अवनी विचारों में खोई थी,उसे पता ही नहीं चला कि कब विशाल उसके पीछे आकर खड़ा हो गया। विशाल की आवाज से उसने चौंक कर पीछे देखा।

वह बोला – ‘क्या बात है अवनी ! कहाँ खोई हो? अपने साथ हमें भी वहाँ की सैर करा दो।’

अवनी ने कहॉ-‘बस ऐसे ही…….

बताओ क्या बात है? मैं अक्सर देखता हूँ, तुम कहीं डूब सी जाती हो। डूबती क्यों हो? उड़ो ना ! यह उम्र उड़ने की है। कोई परेशानी हो तो मुझसे कहो।


‘मैं उड़ना चाहती हूँ, मेरे परों में कुछ गांठें पड़ गई है, जो बार-बार मुझे नीचे धकेल देती है।वे गांठे तुम्हें बताना चाहती हूँ, मगर डरती हूँ…….।

कौनसी गांठें, मुझे बताओ, मैं हूँ ना। मुझे बताओगी नहीं तो मैं कैसे जानूंगा।

अवनी ने अपना चेहरा ऊपर किया, उसकी आँखो में आँसू छलक आए थे। विशाल ने उन्हें अपनी हथेलियों में सहेज लिया। विशाल की आँखों में कुछ ऐसा था, कि अवनी ने अपना अन्तर्मन, उसके आगे खोल कर रख दिया।

‘बस इतनी सी बात! अच्छा यह बताओ क्या तुम अभी भी अम्बर को पाना चाहती हो?’

‘नहीं! वह मेरा भ्रम था। धरती आकाश कभी नहीं मिलते।’

तो फिर मुझे तो अवसर मिलना चाहिए, कहते हुए उसने अवनी को अपने विशाल बाहुपाश में बांध लिया, और कहॉ -‘क्या अभी भी कोई गांठें शेष हैं?’

‘नहीं मेरे अन्तर्मन की सारी गांठें खुल गई है,और मुझे उड़ने के लिए अम्बर नहीं, एकदम विशाल हृदयाकाश मिल गया है।’

अवनी के होटों पर मुस्कान खिल उठी थी,और उसका अन्तर्मन कल्पना की उड़ान भरने लगा था।

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

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