ख़िलाफ़ – संध्या सिन्हा : Moral stories in hindi

माँ सब पैकिंग कर ली ना! कल रात की फ़्लाइट है।”

“हाँ बेटा तुम्हारी सारी पैकिंग कर दी मैंने।”

“पर अपनी?????”

“मैं नहीं जा रही तुम्हारे साथ।”

“इतने बड़े घर में पापा के बिना कैसे रहेंगी माँ आप???”

“पहले की बात और थी माँ।पापा थे आपके साथ और अभी उनके रिटायरमेंट में भी दो साल थे। पर अब ऐसा कुछ नहीं हैं माँ। मैं आपको अकेले नहीं छोड़ सकता माँ और आप कभी अकेले रही नहीं है।और वो भी इस उम्र में, नहीं माँ आप मेरे साथ चलो।”

मैं शुरू से ही बच्चों के साथ रहने के  कई करणों से ख़िलाफ़ थी, पहला यह कि… बड़े-बड़े शहरों में किराए के घर छोटे होते हैं , दोनों ही नौकरी करते हैं .. दोनों के पास अपने लिए ही समय कम होता है तो वो हमे क्या समय दे पाएँगे? उनकी दिनचर्या हमारी दिनचर्या से भिन्न हैं..सच्ची बात तो यह थी कि हम पैरेंट्स अपना आशियाना छोड़ कर कहीं जाना नहीं चाहते.. सोचते है कि ये हमारी कर्मभूमि ही हमारी आख़िरी मंज़िल हो … और यही पर हम अपने प्राण त्यागे। बच्चों के बड़े होते ही उनका परिवार बसते ही हम अपनेआप को ख़ुशी-ख़ुशी बूढ़ा मान कर अपने अनंत सफ़र की ओर बढ़ने लगते हैं.. या कहे हम अपनी ज़िम्मेदारियों को पूर्णबिराम दे देते हैं। हम भूल जाते है कि.. हमें हर उमर में उनकी आवश्यकता है और सच तो यह भी है कि  उन्हें भी  हमारी जरुरत है ।हम माता पिता अपने बच्चों को बचपन में जितना सपोर्ट और प्रेम करते हैं उसी अनुपात में वो बुढ़ापे में लौटाते हैं । 

सो… ना चाहते हुवे भी आना पड़ा बेटे के साथ।

बेटे की ज़िद के आगे हार मान कर घर का एक भाग बंद

और दो भाग किराए पर देकर भारी  मन  से चली आई इस माया की नगरी मुंबई में…

आकर देखा….बड़े शहर में फ़्लैट नुमा घर किसी कबूतर खाने  से कम नहीं…  ऊँची-ऊँची बिल्डिंग और लिफ़्ट में बंद होने पर …किसी जेल  की तरह।

 ना जाने कौन सी जगह और  ना जाने कैसा जमाना आ गया हैं…

इससे तो मैं… अपने  उस छोटे शहर के बड़े में घर में भली। जहाँ  घर के बाहर बड़ा सा लोहे का  गेट… सीढ़ियों और छत पर हर तरह के छोटे-बड़े पेड़-पौधे…दिनभर में सौ बार गेट खोलने और बंद करने जाओ तो… एक अच्छी ख़ासी “चहल-क़दमी” हो जाती थी … और यहाँ… इस कबूतर खाने नुमे घर में  गेट खोलने का मतलब… एक कमरे से दूसरे कमरे में जाना…

कुछ दिन तो  मन नहीं लगा। बेटा -बहू सुबह आठ बजे चले जाते ऑफ़िस और फिर रात आठ-नौ बजे ही वापस लौटते।

दिन भर इसी कबूतर खाने में बंद पड़े हुए ऊबने लगी। कहाँ वहाँ  अपना एक  बड़ा सा घर… सुंदर सा आशियाना…अपनी महिला किटी, महिला क्लब आदि…

कहते है ना -“ जहाँ चाह वहाँ राह”

नौरात्रे चल रहे थे…सोसाइटी के मंदिर में रोज़  देवीगीत, भजन आदि होते। मैं भी एक दिन मंदिर गई बहुत अच्छा लगा। वहाँ जाने से कई लोग से परिचय हुआ और बाते भी।

कुछ दिन तो अच्छे से बीते। फिर वही सन्नाटा।

कुछ दिन ऐसे ही बीते।

एक दिन मिसेज़ शर्मा मिली। हाय-हेलो के बाद  हमसे पूछी -“ क्या रही है आजकल?”

“ आजकल???? मतलब???” घर में  दसन काम है, बेटा-बहू नौकरी करते तो..,उनके ऑफ़िस जाने के बाद घर मैं ही देखती। मेड है लेकिन रात में खाने में क्या बनेगा और घर की ठीक से सफ़ाई कर रही या नहीं। मैं ही देखती हूँ। उम्र हो गई है अब बच्चे इंजोय करे। थक जाते है बेचारे नौकरी करते-करते।”

“वह सब तो ठीक है, पर क्या आप खुश है??? “

“ मतलब?????”

“ मतलब यह मिसेज़ सिन्हा जी कि क्या अपनी इस दिनचर्या से खुश है ???”ना दोस्त , ना साथी और ना ही कोई मनोरंजन के साधन????”

“कैसी बात करती है  मिसेज़ शर्मा जी आप????  साठ-बासठ की उम्र में कोई मनोरंजन???”

“ क्यों नहीं। उम्र तो बस एक नम्बर मात्र है मिसेज़  सिन्हा। हमलोग बहुत भाग्यवान है कि हमें यह जीवन मिला है और हमारा ख़याल रखने वाली संतान। हम जिए और उन्हें भी चैन से जीने दे।उनकी राह और ख़ुशियों में बाधा ना बने। और किसी ने कहा है-“ जीने का है शौक़ अगर तो….

उम्र को मोहताज मत बनाइए।

खुद भी जीने का अन्दाज़ बदलिए

और दूसरों को भी बताइए!”

देखिए मिसेज़ सीं..हा

“ संध्या नाम है मेरा” और… सही कह रही है आप मिसेज़ श…र्मा..।

“ तारा… तारा नाम है मेरा। और हर उम्र का एक अपना ही मज़ा है।

चलिए कल से  आप भी सोसाइटी के क्लब को ज्वाइन करिए  और … हमारी  टीम “ सीनियर सिटीज़िन गैंग”  में शामिल हो जाइए। इसमें हम सब क़रीब २०० महिलायें और क़रीब उतने ही पुरूष है जो रिटायर होकर अपने पोता-पोती  समान छोटे-छोटे बच्चों को “ क्रैश “( जहां वो बच्चे आते है.. जिनके पैरेंट्स जॉब करते के लिए दिनभर अपने बच्चों को छोड़ कर जाते हैं।)खिलाकर अपने देश की सभ्यता और संस्कृति को समझा रहे। साल में दो बार पिकनिक मनाने शहर से बाहर यानि वृंदावन, मथुरा, काशी, द्वारिका या अन्य तीर्थ स्थानो की सैर करते और मस्ती करते।”

तारा के कहने पर हमने “ सीनियर सिटीजन गैंग” में  शामिल हो गयी और अब हमे यह “माया नगरी मुंबई” रास आने लगी। 

आज …”Respected Sandhya Ji

          Senior Citizen Gang (50+)

         11Days/10Nights Tours

       Italy,Switzerland, France,Rome,Paris Bisa processing call…..”का मेसेज फ़ोन पर  बेटे को दिखाया तो…

बेटा  चिढ़ाता हैं  और कहता है कि..    इस “सीनियर सिटीजान गैंग” ने तहलका मचा दिया हैं…. हर न्यूज़ चैनल पर इसके नाम और काम की चर्चा हैं… और हाँ… एक बात और…. अब  किसी को यह घर कबूतरखाना नहीं लगता?”

और मैं….

चुपचाप मुस्कुरा देती हूँ और कहती… हाँ! शायद यें हमारा  ही जमाना हैं…जहाँ हम फिर से फ़ुर्सत के पल जी रहे और नन्हे-मुन्नों  संग अपना और अपने बच्चों का बचपन जी रहे..और तो और अपने देश की नींव भी मज़बूत कर रहे छोटे बच्चों को अपने देश के सभ्यता-संस्कृति  सीखाते हुवे उन्हें एक अच्छा देश भक्त और देश प्रेमी बना रहे ताकि… “विदेश-पलायन” रोक सके।

1 thought on “ख़िलाफ़ – संध्या सिन्हा : Moral stories in hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!