ख्व़ाब – कमलेश राणा

शेखर गुनगुना रहा था,,देखा एक ख्व़ाब तो ये सिलसिले हुए,दूर तक निगाह में हैं गुल खिले हुए,,,

 

वाह!!क्या बात है शेखर,,बड़े खुश नजर आ रहे हो आज तो,,,

 

हम तो हमेशा ही खुश रहते हैं,,

 

शेखर और सलोनी में अच्छी दोस्ती थी,,दोनों हाईस्कूल में पढ़ रहे थे,,

 

हाँ शेखर ,,,अभी जो गाना तुम गा रहे थे ,,,बड़ा अच्छा गाना है ये,,,तुमने कोई ख्व़ाब देखा है क्या,,,

 

किस ख्वाब के बारे में जानना चाहती हो तुम,,,जो रात में आते हैं वो,,,या वो जो जीवन में कुछ बनने के लिए बुने जाते हैं,,वो इंसान को सोने ही नहीं देते,,

 

हर पल नजर लक्ष्य पाने पर होती है,,,अर्जुन की तरह,,,

 

तो तुमने भविष्य में क्या बनने का ख्वाब देखा है,,,

 

वही जो हमारे पूरे गाँव का ख्वाब है,,

 

आज से नहीं पुरखों के समय से यह परम्परा चली आ रही है कि हर परिवार में से कम से कम एक व्यक्ति आर्मी में होता है,,कई परिवारों के तो सारे लोग ही देश की सेवा में समर्पित हैं,,,अब तो लड़कियां भी आर्मी join कर रही हैं,,,

 

सलोनी बड़े ध्यान से उसकी बातें सुन रही थी,,अच्छा ऐसा कौन सा गाँव है,,मैने तो कभी सुना ही नहीं,,,


 

मेरा गाँव है सैदपुर,,यह बुलंदशहर जिले में है,,,30,000की आबादी वाले गाँव से 4000 से अधिक लोग आर्मी में हैं,,,2000से अधिक आर्मी से रिटायर हैं,,, 171लोग देश के लिए शहीद हो चुके हैं,,फिर भी जज़्बा कम नहीं हुआ,,,

 

प्रथम विश्वयुद्ध में हमारे गाँव के 155 सैनिक जर्मनी गये थे लड़ने,,जिसमें से 55 शहीद हो गये, ,, 1962,1965,1971और कारगिल युद्ध में भी हमारे गाँव के लोगों ने पराक्रम दिखाया है,,,इस माटी ने मेजर जनरल,ब्रिगेडियर  जैसे ऑफिसर भी दिये हैं,,

 

बचपन से ही वीरता की कहानियाँ सुन-सुन कर ही  बड़े हुए हैं हम,,गाँव में ही रिटायर्ड सैनिक और ऑफिसर ट्रेनिंग देते हैं,,बचपन से ही पालन- पोषण उसी तरह से होता है कि अपने आप ही देशसेवा का सपना पलने लगता है,,,गाँव में जगह-जगह शहीदों की मूर्तियाँ लगी हुई हैं जो इस संकल्प को दृढ़ करती हैं,,,

 

सलोनी उसके ओज से ओतप्रोत चेहरे को देखे जा रही थी, ,,

 

शेखर मैं भी तुम्हारे इस ख्वाब के पूरा होने का इंतज़ार करूंगी,,तुम जैसे देशभक्त की पत्नी बन कर मैं अपने जीवन को धन्य समझूँगी,,,

 

पर मेरा सपना तो कैप्टन सुखबीर सिरोही जैसा परमवीर चक्र पाने का है,,तुम मेरे साथ विवाह का ख्वाब देखना छोड़ ही दो,,

 

क्यूँ फिर तो मेरा सम्मान और भी ज्यादा बढ़ जाएगा न,,परमवीर चक्र विजेता की पत्नी जो कहलाउंगी ,,,

 


सलोनी के गाल को प्यार से थपथपाते हुए शेखर बोला,,,जानती हो,,,यह सम्मान उन्हें मरणोपरांत मिला था,,तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी स्वयं उनका अस्थिकलश ले कर गाँव आई थीं,,

 

शेखर मैं अपना फैसला नहीं बदलूंगी,,,एक शहीद की विधवा होना भी बड़े गौरव की बात है,,,

 

हम भी इस परम्परा का निर्वाह करेंगे और अपने बच्चों को भी देशसेवा के लिए समर्पित करेंगे,,

 

 ऐ,,सलोनी,,कहाँ खो गई,,घर चलें अब,,

 

जी-जान से जुट जायें अपने ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए

 

कमलेश राणा

ग्वालियर

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