खुली आँखों के ख्वाब – ऋतु अग्रवाल

अक्सर नीता अपने सतरंगी ख्वाबों में डूब जाती और डूबती भी क्यों नहीं? आखिर वह पंद्रह बरस की युवा होती मध्यमवर्गीय लड़की थी। मध्यमवर्ग जहाँ, अच्छा भोजन, आम कपड़े, छोटा सा घर, संतुलित प्यार भरे रिश्ते नाते,कुछ अधूरी इच्छाएँ,परिवार और समाज का दबाव, बच्चों में कुछ बड़ा करने की ललक जगाता रहता है। तो ऐसे ही हमारी प्यारी नीता का सपना था, एक नामचीन, कामयाब और ईमानदार वकील बनने का।

        चार भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर थी नीता। पापा की छोटी सी दुकान थी और मम्मी गृहिणी।तो कुल मिलाकर घर ठीक-ठाक चल जाता था और चारों भाई बहन शहर के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते थे। बारहवीं तक तो पढ़ाई का खर्चा इतना नहीं था तो सब कुछ ठीक ही चल रहा था।

           पर बारहवीं के बाद जब नीता ने पापा से वकालत की पढ़ाई के लिए कहा तो पापा ने उसे समझाते हुए कहा,” बेटा! मैं तो चाहता हूँ कि तुम सबके सपने पूरे हो पर मेरी इतनी हैसियत नहीं कि मैं तुम्हारी पढ़ाई पर इतना खर्चा कर सकूँ। मुझे तुम्हारे तीनों भाई बहनों को भी पढ़ाना है और तुम सब की शादियाँ भी करनी है।बेटा, तुम अभी बीए कर लो। शायद आगे मेरी आमदनी बढ़ जाए तो मैं तुम्हारा एलएलबी में दाखिला करा दूँगा।” नीता ने सहमति में सिर झुका दिया।वैसे भी मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चों को जिद करना आता नहीं है और वह अपने परिवार की माली हालत से वाकिफ होते हैं।

     पर ना पापा की कमाई में ज्यादा इजाफा हुआ और ना ही नीता वकालत कर सकी और अपने अधूरे ख्वाब के साथ नीता ससुराल आ गई। ससुराल की जिम्मेदारियों के साथ-साथ उसके ख्वाब मद्धम होते चले गए।

       नीता में एक खासियत थी कि वह बिल्कुल भी खर्चीली नहीं थी इसलिए उसे जो भी रुपए पैसे उपहार स्वरूप मिलते। उनका एक बड़ा भाग वह जमा करती जाती थी।समय के साथ परिवार और बच्चों की जिम्मेदारियों के चलते हुए चालीस पार हो गई।


      एक दिन उसकी बेटी ने कहा,” मम्मी! आप इतनी इंटेलिजेंट हो। आपने कोई कैरियर क्यों नहीं बनाया?” बेटी की बात सुनकर नीता की आँखों में आँसू आ गए।  बेटी के बहुत पूछने पर नीता ने अपने वकील बनने के ख्वाब के बारे में बेटी को बताया तो उसकी बेटी ने कहा,” मम्मी! आप अभी भी वकालत कर सकती हो और अब तो मैं और भैया अपने सभी काम खुद कर लेते हैं तो आपको पढ़ने के लिए समय भी मिल जाएगा। 

      इस पर नीता के बेटे और पति ने भी सहमति जताई पर बात फिर वहीं फीस के रुपयों पर आकर अटक गई। नीता के पति भी दुकानदार ही थे और बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी के चलते उनके पास बहुत बड़ी धनराशि नहीं थी। 

     तब नीता ने कहा,” अगर सबकी सहमति हो तो मैं अपनी वकालत की पढ़ाई करना चाहूँगी और मैंने इतने सालों में थोड़ी थोड़ी बचत करके जो पैसा इकट्ठा किया है, उससे मेरी फीस का इंतजाम हो जाएगा।”

   यह सुनकर सब बड़े खुश हुए और नीता का सहयोग करने को तत्पर हो गए।नीता ने एलएलबी में एडमिशन लिया और प्रथम श्रेणी में वकालत पास की और आज वह पहली बार कोर्ट जा रही है। शहर के एक सीनियर वकील की असिस्टेंट के तौर पर ।        आज नीता के ख्वाबों को पंख मिल गए हैं।

  

बधाई हो नीता!

 

यह कहानी पूर्णतया मौलिक है।

स्वरचित 

ऋतु अग्रवाल

मेरठ

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!