खानदान ( भाग 3 ) – डॉ संजु झा  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : कमला का तो बेटे के लिए रो-रोकर बुरा हाल था।उसे ऐसा महसूस हो रहा था ,मानो किसी ने उसका कलेजा काटकर निकाल लिया हो।दस साल के बेटे को भी वह छोटे मासूम की तरह सीने से चिपकाए नजरों के सामने रखती थी।उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि पलक झपकते ही उसके बेटे को कौन उठाकर ले गया?बिना माँ के वह मासूम कैसे जिऐगा?

उसकी सास और पति को तो ऐसा महसूस हो रहा था ,मानो उन्हें किसी बला से मुक्ति मिल गई हो।परन्तु माँ का हृदय बेबसी में भीतर-भीतर तड़प रहा था।उसकी आँखों से नींद गायब हो चुकी थी।बेटे के वियोग में हृदय का सूनापन रात के अंधेरे

 में और तड़प उठता। अशोक से जुड़ी हर बातें  उसके कलेजे को छलनी कर जातीं।आखिर रोते-रोते कमला की आँखें थक चुकीं थीं।वक्त बहुत बड़ा मलहम होता है,बड़े-से-बड़ा जख्म भर देता है।धीरे-धीरे कमला की आँखों के आँसू सूखने लगे थे।अब वह दोनों बेटों की परवरिश में लगी रहती,परन्तु अशोक की यादें दिल के कोने में बसी हुईं थीं।

बहुत दिनों से किन्नरों की टोली मौके की तलाश में थी।उस दिन बरसात का फायदा उठाकर  अशोक को लेकर चम्पत हो गई। अशोक को लेकर  किन्नर दूसरे शहर चले गए। उसके ठिकाने पर बहुत-से लड़के रहते थे।मासूम अशोक समझ नहीं पा रहा था कि उसे यहाँ क्यों लाया गया है?वह माँ की याद में दिन-रात रोता रहता था।उसकी रुलाई से तंग आकर एक दिन वहाँ के सरदार ने उसे कसकर झापड़ रसीद कर दिया तथा उससे बड़े लड़के को कहा -” इसे अच्छी तरह समझा दो कि अब यही उसकी दुनियाँ है।रोने-धोने से कुछ नहीं होगा।इसे कल से अपने साथ सिग्नल पर ले जाकर भीख माँगना सिखाओ।”

समय की गति भी अजीब है।यह पलभर भी किसी के लिए नहीं रुकती है।अपनी धुन में निरंतर आगे बढ़ती जाती है।समय के साथ कमला दम्पत्ति बूढ़े हो चले थे।उनके दोनों बेटे शादी-शुदा होकर अपने-अपने परिवार के साथ माता-पिता से अलग रह रहे थे।जिन बेटों को पिता ने खानदान का चिराग समझा था,वही माता-पिता को अब बोझ समझ रहे थे।दोनों बेटों को माता-पिता का खर्च भारी लग रहा था।कमला दम्पत्ति अपनी सारी जमा-पूँजी पहले ही दोनों बेटों के नाम कर चुके थे।अब उनके लिए खाने के भी लाले पड़ रहे थे।आर्थिक कठिनाईयों के साथ-साथ शारीरिक दुर्बलता भी बढ़ती जा रही थी।पति-पत्नी की जिन्दगी की शाम बड़ी कठिनाई से बीत रही थी।

शाम का समय था।सूरज ने अपने डैने समेटने शुरु कर दिए थे।धीरे-धीरे अंधकार ने पैर पसार दिए थे।कमला के घर के सामने के पेड़ पर पक्षी अपने घोंसला में लौटकर कोहराम मचाए हुए थे।कमला उन पक्षियों को अपने घोंसले में लौटा हुआ देखकर रोज मन-ही-मन सोचती -“काश!इन पक्षियों की तरह मेरा अशोक भी एक दिन घर वापस लौट आता!”

उसकी बूढ़ी आँखों में अब भी एक आस की किरण प्रज्वलित थी।माँ के दिल के तार तो बच्चे से जुड़े ही रहते हैं।एक दिन शाम के धुँधलके में कमला के दरवाजे पर किसी की आकृति नजर आती है।कमला रोशनी जलाते हुए पूछती है ” दरवाजे पर कौन है?”

उसी समय उसके कानों में एक चिर-परिचित आवाज मिश्री घोलते

 हुए  बोल उठती है-” माँ!मैं अशोक हूँ।”

यह लफ्ज सुनते ही हर्षातिरेक से कमला के मुँह से कोई शब्द नहीं निकलते हैं। वह सहारे के लिए  दीवाल पकड़कर स्तब्ध-सी खड़ी हो जाती है।उसकी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगते हैं।उसकी जिह्वा तालु से चिपककर रह गई। अशोक ने माँ कहकर उसे अपनी बाँहों में समेट लिया।उसके पिता उसे  निर्निमेष एकटक देखे जा रहे थे।उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि जिस बेटे को वे खानदान का कलंक  समझ रहे थे,वही बेटा आज उनकी जिन्दगी की सान्ध्य-वेला में जीवन सम्बल के रुप में आकर खड़ा हो गया है!

अशोक  ने माँ की गोद में अपना सिर रख दिया।ऐसी शांति ,ऐसा अनिर्वचनीय आनंद माँ की गोद के सिवा और कहाँ?उसके गाल पर पानी की गर्म बूँदें गिर पड़ी।शायद ये माँ की खुशी के आँसू थे!कमला अपने बेटे से पूछती है -” बेटा!तू मुझे बिलखता छोड़कर कहाँ चला गया था?” 

अशोक ने माँ को अपनी दर्दनाक कहानी सुनाते हुए बताया।

उस दिन स्कूल से मैं दोनों भाईयों के पीछे-पीछे आ रहा था।अचानक  से वे लोग मुझे पीछे से उठाकर  भाग गए। उसी दिन  उनलोगों ने मुझे बेहोश कर दिया और दूसरे शहर के ठिकाने पर ले गए। वहाँ पहले से बहुत लड़के थे।शुरु के दिनों में मुझे तुम्हारी बहुत याद आती थी।मैं हमेशा रोया करता था,जिसके कारण  रोज मेरी पिटाई होती थी।मैं सोचता था कि किसी तरह भागकर तुम्हारे पास पहुँच जाऊँ,परन्तु वहाँ से भागना आसान नहीं था।हरपल मुझपर कोई-न-कोई नजर रखे रहता था।मेरी रुलाई से तंग आकर  एक दिन उस गिरोह के सरदार ने  मेरी बहुत पिटाई की और मुझसे बड़े एक लड़के से कहा -” इसे अच्छी तरह से ताली बजाना और नाचना सिखाओ।इसे समझा दो कि इस तरह के लोगों की ऐसी ही दुनियाँ होती है।इसे कल से अपने साथ रखो और हमेशा इस पर नजर बनाए रखो।”

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डॉ संजु झा

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