खानदान ( भाग 4 ) – डॉ संजु झा  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : धीरे-धीरे मुझे भी समझ में आने लगा कि मैं घर नहीं बल्कि इसी माहौल के लिए  पैदा हुआ हूँ।इसी कारण ईश्वर ने मुझे अपूर्ण बनाया है।फिर मैं सोचता कि घर पर तुम्हारे सिवा मेरा है ही कौन।मुझे तो घर में और कोई  पसन्द नहीं करता है।सभी की तिरस्कृत नजरें और अपमानित व्यवहार याद आकर मेरे कलेजे को छलनी कर जाते।फिर मैंने  उसी घुटन भरे माहौल में खुद को झोंक दिया,परन्तु सिग्नल पर ताली बजाकर भीख माँगना,घर-घर जाकर जश्नों में भौंडे नृत्य करना मुझे अच्छा नहीं लगता था।पर यही मेरी नियति बन गई थी।

कुछ दिनों बाद वे लोग हमें लेकर दूसरे शहर चले गए। वे लोग साल-दो-साल में ठिकाने बदलते रहते थे।भीख माँगते-माँगते लगभग चार साल  बीत चुके थे।एक दिन मेरी तबीयत काफी खराब थी।मैं सुबह-सुबह नहीं उठ पाया था,तो सरदार ने बुरी तरह मेरी पिटाई कर दी और उसी हालत में मुझे सिग्नल पर भीख माँगने भेज दिया।

बेटे की दर्दनाक कहानी सुनकर कमला अपनी आँखों में आए आँसू को रोक न सकी और बेटे को पकड़कर जोर-जोर से रोने लगी।अशोक ने सांत्वना देते हुए कहा -” माँ!अब मत रोओ।तुम्हारे और हमारे दुख के दिन बीत चुके हैं!आगे की पूरी कहानी सुन लो।”

अशोक के पिता उसके साथ किए दुर्व्यवहार के लिए  शर्मसार थे।बस खामोशी से छोटे बेटे के जीवन की व्यथा सुन रहे थे।

अशोक ने अपनी  आगे की दास्तां बताते हुए  कहा  उस दिन जब तबीयत खराब  होने के बावजूद सिग्नल पर माँगने के लिए एक गाड़ी में हाथ बढ़ाया,तो उस गाड़ी में एक अधेड़ महिला बैठी थी।उसमें मुझे तुम्हारा चेहरा नजर आया।मैं माँगना भूलकर एकटक उसका चेहरा देखने लगा।उस महिला ने भी मुझे ममतामयी नजरों से देखा और एक पाँच सौ का नोट मेरी हथेली में रख दिया।पाँच सौ का नोट देखकर  मेरे चेहरे पर खुशी की लकीरें खींच गईं।उस महिला ने भी सजल नेत्रों से मुझे देखा और उसकी गाड़ी आगे बढ़ गई। संयोग से दूसरे दिन भी सिग्नल पर वही महिला मुझे मिली।पैसे देने के बदले डाँटते हुए  उसने कहा -” इतने बड़े होकर  भीख माँगते हुए तुझे शर्म नहीं आती है।कोई काम क्यों नहीं करते?”

मैंने कहा -“ऐसे काम करते हुए मुझे भी बहुत शर्म आती है।पर क्या करुँ?मुझे और काम कौन देगा?”

उस महिला को मुझपर दया आ गई। उसने मुझे कहा -” मैं तुझे काम दूँगी,परन्तु तुझे मेरे साथ मेरे घर नेपाल चलना होगा।मैं वादा करती हूँ कि तुम्हारी जिन्दगी बदल दूँगी।”

मैं भी उस गंदे माहौल से तंग आ चुका था।उस माहौल से निकलना चाह रहा था।अब वे लोग मुझपर भरोसा करने लगे थे। मैं इसी भरोसे का फायदा उठाकर चुपचाप उस महिला के साथ नेपाल चला गया।उस महिला का वहाँ बहुत बड़ा घर था।उसका कारोबार भी बहुत फैला हुआ था। उसके दोनों बेटे  इंग्लैंड  में रहते थे।कुछ दिनों पहले ही उसके पति का देहांत हो गया था।उसे एक सहायक की जरूरत थी।आरंभिक दिनों में तो उस महिला ने मुझसे छोटे-मोटे ही काम करवाएं,परन्तु मेरी कर्मठता के कारण उसने मुझे व्यापार सम्बन्धित कोर्स करवाएँ।धीरे-धीरे मैं उनका व्यापार सँभालने लगा और उनका विश्वासपात्र बन गया।वह महिला मुझसे पुत्रवत व्यवहार करने लगी।मैं भी उन्हें माँ मानने लगा।वो हमेशा मुझसे परिवार के बारे में पूछतीं।वे बहुत अच्छी हैं।मुझे हमेशा तुमसे मिल आने को कहती थी,परन्तु मैं उन्हें अकेले छोड़कर आना नहीं चाहता था।

अभी कुछ दिनों पहले उनके दोनों बेटे विदेश से आएँ।वे लोग भी मेरे काम से काफी खुश हैं।माँ ने दोनों बेटों की सलाह से कुछ सम्पत्ति मेरे नाम कर दी है।मैं उनलोगों से पन्द्रह दिनों की छुट्टी लेकर आया हूँ।उनसे आपलोगों को साथ रखने की इजाजत भी लेकर आया हूँ। अपनी दर्दभरी कहानी सुनाते-सुनाते अशोक की आँखें भींग उठीं।उसके माता-पिता के आँसू भी पलकों की हद से बाहर आने लगें,मानो किसी ने दबे हुए दर्द के बाँध को तोड़ दिया हो।

उसके पिता ने उठकर उसे गले लगाते हुए कहा -“मुझे माफ कर दो बेटा।मैं तो तुझे खानदान का कलंक  समझ रहा था,परन्तु तुम तो खानदान  के चिराग  निकले।जीवन की सान्ध्य वेला में आकर तुमने हमारे रेगिस्तान से जीवन में फूल खिला दिए!”

पिता ने पश्चातापस्वरुप अपने आँसुओं से बेटे को भिंगो डाला।

कुछ दिनों बाद  अशोक अपने बूढ़े माता-पिता को अपने साथ ले गया। अब उसके माता-पिता को अपने इस खानदान के चिराग पर नाज है।

समाप्त।

डॉ संजु झा

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