खानदान ( भाग 2 ) – डॉ संजु झा  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : कमला चुपचाप पति और सास की कटू बातें सुनकर लेती,पर खुद से बच्चे को कभी भी अलग नहीं करती।वह मन -ही-मन सोचती -” मैंने इस बच्चे का नाम अशोक रखा है।इस कारण  यह बच्चा किसी को शोक नहीं दे सकता है।फिर  मैं अपने कोखजाए के लिए शोक क्यों मनाऊँ?”

समय के साथ अशोक स्कूल जाने लगा था।कमला रोज खुद उसे स्कूल  पहुँचाने और लाने जाती।उसके पति उसपर झुंझलाते हुए कहते -” कमला!ये क्या तमाशा बना रखा है?दोनों भाईयों के साथ स्कूल आएगा-जाएगा।तुम्हें स्कूल  जाने की कोई जरूरत नहीं है!”

कमला इस विषय पर पति से कोई बहस नहीं करती,परन्तु मन-ही-मन सोचती कि अगर पुरुष को भी भगवान ने माँ -सा हृदय दिया होता तो इस प्रकार संतान के प्रति उपेक्षित  भाव नहीं रखते।फिर उसके दिल में ख्याल आता कि उसकी सास तो एक औरत हैं,फिर वे क्यों दोनों बड़े पोते को खानदान का चिराग समझकर सारा प्यार  उनपर लुटा देतीं हैं?छोटे के लिए उनके दिल में कतरा भर भी प्यार नहीं बचता है!उसके लिए उनके स्नेह का संचित कोष रिक्त क्यों रह जाता है? क्या  मासूम  के साथ भेदभाव करते हुए  उनका दिल नहीं कचोटता है?कमला के दोनों बेटे दादी के पास सोते थे।अशोक कभी-कभी दादी के पास सोने की जिद्द कर बैठता,परन्तु उनकी उपेक्षित नजरों से सहमकर वापस आकर माँ की गोद में छुप जाता।उस मासूम को क्या पता कि भगवान ने उसके साथ क्या अन्याय किया है!

कमला अशोक को सीने से चिपकाए हुए  समझाते हुए कहती -” बेटा!स्कूल में किसी के साथ अकेले खेलने मत जाना तथा कोई तुझे पैंट खोलने बोले तो मत खोलना।”

मासूम अशोक इन बातों से अनजान  होते हुए पूछता -” क्यों माँ?”

इस क्यों का कमला के पास  आँखों में आँसू के सिवा कोई जबाव नहीं होता।अशोक जब कुछ बड़ा हो गया तो उसे सभी दोस्त  चिढ़ाते हुए कहते-” देखो!इतना बड़ा हो गया है,फिर  भी इसकी माँ इसके पीछे-पीछे लगी रहती है!”

इन सब बातों से चिढ़कर अशोक कहता -” माँ!मैं भाईयों के साथ स्कूल चला जाऊँगा।तुम मत साथ चला करो।”

कमला अपने अंतर्मन के डर को छिपाते हुए बेटे को प्यार से समझाकर कहती -” बेटा!तुम्हारे भाई तो बड़े हैं,वे तेजी से दौड़कर आगे निकल जाते हैं।मैं तुझे लाने के बहाने थोड़ा घूम भी लेती हूँ।”

कमला के मातृ-हृदय में हमेशा पुत्र-विछोह का संशय मँड़राते रहता।उसने सुन रखा था कि ऐसे बच्चे को किन्नर-गिरोह जबरदस्ती उठाकर ले जाते हैं।कमला को बार-बार रात में एक ही सपना आता कि कोई अशोक को उससे खींचकर दूर  ले जा रहा है।वह सपने में ही अशोक-अशोक चिल्लाने लगती।उसके पति उसे झिंझोडकर उठाते हुए कहते -“इस ठूंठ के लिए  बेवजह खुद परेशान होती हो और मुझे भी परेशान करती हो।देखो!तुम्हारा बेटा आराम से सो रहा है!”

कमला हड़बड़ाकर सोए हुए बेटे का मुखड़ा चूम लेती।अपने पसीने-पसीने शरीर को आँचल से पोंछते हुए कुछ देर तक अपलक अशोक  को निहारती।परन्तु अनहोनी को कौन टाल सकता है?उस दिन  सुबह से सूरज अंगारे बरसा रहा था।आसमान  में बादल का एक टुकड़ा भी नजर नहीं आ रहा था,परन्तु कमला के स्कूल निकलते ही साफ आसमान में अचानक से काली-काली घटाओं ने डेरा डालने शुरु कर दिए।तुरंत आसमान बादलों से भर गया।जोरों से बिजली कड़की मानो कोईआफत आनेवाली हो।

मौसम भी किसी अनहोनी का संकेत दे रहा था।कमला का दिल बुरी तरह धड़क रहा था।तड़ातड़ बारिश शुरु होने लगी।कुछ ही देर की बारिश में चारों तरफ पानी भर गया।बारिश थमने पर कमला तेजी से स्कूल की ओर भागती,परन्तु तब तक देर हो चुकी थी।जिस बात की उसे आशंका थी,वही हो गई। ऐसी बातें भला कहाँ छिपी रहतीं हैं!बालक अशोक  को किन्नर समूह उठाकर गायब हो चुका था।कमला दोनों बेटों  तथा आस-पास के लोगों से अशोक के बारे में पूछ रही थी।कोई सही जबाव न मिलने पर  दोनों बेटों के साथ रोते-रोते घर पहुँची।पति से गुहार  लगाते हुए कहा -“आप जल्दी से पता करो कि  मेरे बेटे को कौन उठाकर ले गया है?”

उसके पति ने निर्विकार भाव से कहा -” उस ठूँठ को कौन ले जा सकता है!जिस समाज का था,वही लोग ले गए होंगे।ज्यादा शोर मचाने की जरूरत नहीं है।यहाँ रहकर कौन-सा खानदान का नाम रोशन करनेवाला था!उसे भूलकर दोनों बेटों का ख्याल रखो।”

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डॉ संजु झा

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