कायापलट – डॉ संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

निहारिका कितनी खुश थी जब उसके पिता ने उसे राजवीर की फोटो दिखाई थी,एक फौजी से शादी करने का सपना बचपन से उसकी आंखों में पलता था और राजवीर जैसा बांका नौजवान,सजीला व्यक्तित्व और हिम्मती आर्मी ऑफिसर उसे दूसरा न मिलता,ये बात उसे उसकी फोटो देखकर समझ आ गई थी।

एक बिजनेसमैन परिवार की बेटी निहारिका जब एक फौजी की पत्नी बनकर अहलावत परिवार में गई तो चौंक गई,वो लोग बहुत अनुशासन प्रिय और स्ट्रिक्ट थे।उसके सास ,ससुर,ब्याहता नन्द नंदोई और एक विदेश में रहता देवर।हालांकि देवर से अभी वो नहीं मिल पाई थी,वो शादी में नहीं आए थे पर राजवीर की बहन बिन्नी और उसके पति देवेश्वर की घर में बहुत चलती थी।उसके सास ससुर बस उन्ही दोनो की बार सुनते।

राजवीर ने हंसते हुए उसे प्यार से समझा दिया था पहले ही दिन,देखो! मैं तो अक्सर बाहर रहता हूं घर से ड्यूटी के चक्कर में लेकिन जीजाजी और जीजी यहां हैं तुम सबका ध्यान रखने को,उनकी किसी बात का बुरा मत मानना, जरा ज्यादा बोल देते हैं कभी कभी।

अब मैं आ गई हूं ना,वो भी मुस्कराई थी,मां पिताजी का ख्याल रखने,उन्हें ज्यादा परेशान नहीं करेंगे अब।

राजवीर निश्चिंत हो गया था,ये हुई न मिसेज राजवीर वाली बात और अंदाज।अब मै निश्चिंतता  से ड्यूटी ज्वाइन करूंगा।

उस बार राजवीर ऐसा गया कि लौटा ही नहीं,दुख की बात ये हुई कि वो युद्ध के दौरान  शत्रु पक्ष द्वारा बन्दी बना लिया गया।

शुरू शुरू में सरकार ने बहुत बड़े  दावे किए कि वो युद्ध बंदियों को घर वापिस लाने में एड़ी चोटी एक कर रहे हैं पर उसका कोई   परिणाम नहीं निकला और लोग उस बात को भूलकर दूसरी बातों में लग गए।

पर एहलावत परिवार उस बात को कैसे भूल सकता था,विशेषकर निहारिका की जिंदगी बेहाल हो गई।वो  भगवान राम की अनन्य भक्त थी और हर छोटी बड़ी बात,उनसे ही कहती…”देखो!राम जी,मेरी जिंदगी की डोर आपके हवाले है,जैसे आप रास्ता दिखाते जाओगे मैं चलती रहूंगी।”

उसकी ससुराल में सबका व्यवहार उसके प्रति कठोर होता जा रहा था,उसे हंसने,बोलने की इजाजत नहीं थी, सजने संवरने पर प्रश्नचिह्न उठाए जाते,जहां उसकी ननद हर बात पर इठलाती,उसके नखरे उठाए जाते,निहारिका को एक गैर जरूरी सदस्य के रूप में नकारा जाता।

निहारिका का धैर्य जबाव देने लगा था,वो बेचैन हो जाती ,उसका दिल करता कि इन बंधनों को तोड़कर कहीं भाग जाए पढ़ी लिखी लड़की थी,कहीं भी नौकरी कर अपना जीवन स्वाभिमान से बिता सकती थी पर राजवीर की आने की उम्मीद,उसका प्यार ,उसकी पैरों में बेड़ियां बन लिपट जाता और वो वहीं रुक कर सबका कटु व्यवहार सहती रहती।

उस दिन रामनवमी का त्यौहार था,घर में धूमधाम थी,उसकी ननद,नंदोई आए थे और वो सुबह से खाने पीने की तैयारियों में जुटी हुई थी।कई बार उसे लगता कि वो कहां इन निर्दय लोगों के बीच उनकी नौकरानी सी बन कर रह रही है,सुबह से रसोई में घुस गई और दोपहर हो आई,पसीने से नहा चुकी थी और किसी ने उसे खाने के लिए भी नहीं बुलाया था।

सबके हंसने बोलने की आवाज़ आ रही थीं कि डोरबेल बजी।

निहारिका!उसकी सास की आवाज़ आई,दरवाजा खोलो।

आई…कहते हुए वो पसीना पोंछती उस तरफ बढ़ी,बेबसी में उसके आंसू छलक उठे,मेरे अलावा कोई और नहीं खोल सकता था क्या?

दरवाजा खोलते ही वो भोंचक्की रह गई,सामने मुस्कराता हुआ उसका राज खड़ा था,कुछ दुबला हो गया था,थोड़ा सांवला भी पर वही चिर परिचित मुस्कराहट, हां उसकी आंखों में आश्चर्य जरूर था…”ये क्या हाल बना रखा है नीहू तुमने?”उसके मुंह से बरबस फूटा।

निहारिका उससे लिपट गई और पागलों की तरह उसे प्यार करने लगी,मुझे छोड़ कर कभी मत जाना…कहते हुए उसकी हिचकियां बंध गई।

तब तक,राजवीर उसे अंदर ले कर आ गया था जहां सब छप्पन तरह के खाने खा रहे थे,उसे देखकर आश्चर्य से खुशी जाहिर करते बोले…अरे!आज का दिन कितना शुभ है!हमारा बेटा घर आ गया।

जब उसकी बहन ने कहा,आज सुबह से मेरी बाईं आंख फड़क रही थी और देखो!मेरा भैया आ गया।

दीदी!मेरा भैया कहती हो और उसकी पत्नी की ये देखभाल की तुमने उसके पीछे?क्या हाल बना दिया आप सबने उसका मिलकर?

लेकिन अब मै आ गया हूं।

उसकी मां कुछ कहते हुए हकलाती हुई अपनी सफाई में कुछ कहना चाहती थी पर राजवीर ने रोक दिया उसे।

बस मां!देख लिया मैंने आप सब का प्यार!

आओ निहारिका! कमरे में चलो,हाथ मुंह धोकर  अच्छे कपड़े पहन कर तैयार हो जाओ,अब हम यहां नहीं रहेंगे,तुम, तुम्हारे नए घर में रहोगी।

लेकिन कहां? वो चौंकते हुए बोली,हमारा घर तो यही है,अब आप आ गए हैं,मुझे इन सबसे कोई शिकायत नहीं,मेरे भगवान राम की इतनी कृपा काफी है मुझपर।

नहीं…वो दृढ़ता से बोला,अब वक्त आ गया है जब इन बेरंग रिश्तों में रंग भरा जाए,अगर इन्हें तुम्हारे प्यार और परवाह की कद्र नहीं तो तुम्हें भी नहीं होनी चाहिए।

लेकिन…गलती सुधारी भी जा सकती हैं।वो अभी भी हिचकिचा रही थी।

मेरे सामने तुम्हें कुछ कहना गलती हो सकती थी लेकिन मेरे पीछे तुमसे ये व्यवहार इनका गुनाह बन गया है मेरी नजर में,इन्होंने मेरा विश्वास तोड़ा है।

तुम शायद नहीं जानती,मेरा छोटा भाई भी विदेश जाकर इसी कारण बस गया था, मै उससे नाराज रहता था कि वो पेरेंट्स की इज्जत नहीं करता लेकिन वो मुझसे ज्यादा समझदार था शायद।बदरंग रिश्तों को ढोए जाना भी कोई अच्छी बात नहीं होती,उन्हें अपनी कोशिश सुधारना चाहिए लेकिन न संभले तो अपने बेरंग रिश्तों को रंग देने का अधिकार तो सबको होता है न।

उसके मां बाप और बहन मुंह नीचे झुकाए लज्जित से वहीं खड़े थे,वो जान गए थे अपनी गलती जो गुनाह बन गई थी।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

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