कौन किसका सहारा बनेगा….. – रश्मि प्रकाश 

सुमन ताई की खबर जिसने भी सुनी सब उनसे मिलने पहुँच रहे थे… सबको एक ही चिंता खाई जा रही थी अब उन्हें कौन सहारा देगा…. अब तक तो वो सबको सहारा दे रही थी…..

सब उनके बारे में बातें बना कर कह रहे थे…,“उम्र पैंसठ, घुटनों में आर्थराइटिस, कहाँ तक वह भाग-दौड़ कर सकती थी, एक ना एक दिनबिस्तर पकड़ना ही था। पता नहीं सुमन ताई को ये बात क्यों समझ नहीं आ रही थी कि अब बच्चों के पीछे भागने की उनकी ना उम्र है नावैसी सेहत फिर भी किसी तरह हर दिन अपने दस और पाँच साल के पोते पोती को लेकर पार्क में आ ही जाती थी। बेटा बहू भी पता नहींक्यों नहीं समझते अब उनकी माँ को ज्यादा देखभाल की जरूरत है।‘‘ पड़ोसन कला ताई जो मोहल्ले भर के लोगों के साथ सुमन ताई कोदेखने आई तो दबी ज़बान से सबसे कह रही थी।

सुमन ताई बिस्तर पर पड़ी थी….पास में उनका बेटा बहू और दोनों पोते पोती उनको टकटकी लगाए देख रहे थे।

‘‘ अरे कुछ नहीं हुआ है मुझे….देखना जल्दी ही ठीक हो जाउंगी….अब क्या कहूं बेटा चल तो संभल संभल  कर ही रही थी मुआ पत्थरदिखाई नहीं दिया बस वो मुझसे टकरा गया….नहीं तो मजाल जो मुझसे टकराने की जुर्रत करें।”दर्द को नजरंदाज करते …तकलीफ़बर्दाश्त करते खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश में सुमन ताई बोली

‘‘ बस करो अम्मा हम सब जानते आपको कितनी तकलीफ़ हो रही होगी…..डॉक्टर ने आपको दस दिन बिस्तर से उतरने  से मना किया हैतो बस अब आप आराम करो और दवा खाओ।‘‘ बहु नीति भरे गले से बोली

बाहर खड़े लोग उनके प्यार को देख आश्चर्य कर रहे थे। 

‘‘ सुमन ताई अपना ध्यान रखना….हम सब अब चलते हैं।अब तुम्हारी सेवा कौन करेगा….बच्चों को कौन देखेगा जब बेटा बहू ऑफिसचले जाएंगे !”कला ताई ने कहा



‘‘ हम दोनों अम्मा का खूब ख्याल रखेंगे कला ताई ….आप बेफिक्र रहें।‘‘ नीति ने कहा

सुमन ताई अपनी बहू की बात सुन कला ताई से बोली,‘‘ कला तुम चिन्ता ना करो जल्दी ही अपने पैरों पर चल कर मिलनेआऊँगी…..बेटा बहू मेरी सेवा ही इतनी करेंगे।‘‘

नीति सुमन ताई को आराम करने बोल कमरे से चली गई।

सुमन ताई कमरे में लेटकर अपना अतीत याद करने लगी।वो जब ब्याह कर आई थी उनकी सास हर वक्त उनपर हुक्म चलाती रहती थी, दो घड़ी आराम करने को नहीं मिल पाता था। पति अपने काम में उलझे रहते थे।घर की चाकरी करते करते जब माँ बनने का अवसरआया तो भी सुकुन ना मिला।

बेटा रतन जब आया तो काम और बढ़ गया था।रतन के पन्द्रहवे साल के बाद उनके पति ह्रदय गति रूक जाने से अकेले छोड़ चल बसे।अब सास के साथ साथ रतन का ध्यान रखना उपर से खेती बाड़ी का हिसाब किताब सुमन ताई के जिम्मे आ गया था।

जिन्दगी बस गुजर रही थी कि अचानक उनकी सास बहुत बीमार हो गई। अब तो सुमन ताई ही उनके सुबह से लेकर रात तक सारे कामकरती …थकने पर कभी शिकायत ना करती। 

‘‘ बहुरिया बहुत दिल दुखाया तेरा, उसके बाद भी तू मेरी इतनी सेवा कर रही है जरूर मेरे पिछले जन्म के पुण्य रूप में तू मिली है….नहींतो कौन अपनी माँ जैसी सेवा करता।”एक दिन सास ने कहा जब वो उनके मल मूत्र  की सफाई कर रही थी।

इसी बीच बेटे की शादी की बात चल पड़ी बहू के रूप में उन्हें नीति मिल गई थी…..जो रत्न के ऑफिस में ही काम  करती थी।

नीति जब से बहु बनकर इस घर आई सुमन ताई को तन मन  से सास की सेवा करते देखती और दादी सास सुमन ताई को आशिषबरसाती रहती….अब नीति भी सुमन ताई की मदद करने लगी थी।

साल भर बाद सुमन ताई की सास चल बसी।

नीति हमेशा सुमन जी के काम करने और व्यवहार को आत्मसात करने लगी थी।



वक्त के साथ नीति की गोद में दो बच्चे आ गए। वो अपने काम पर आराम से जा सके इसलिए सुमन ताई बच्चों की देखभाल बहुत दिलसे करती। नीति भी सास के पास बच्चों को छोड़कर आराम से जाया करती थीं। उनके आर्थराइटिस के लिए डॉक्टर के परामर्श केअनुसार उनका ध्यान रखती थी। चलने फिरने में तकलीफ़ होने लगी थी फिर भी किसी तरह पार्क तक जाकर अपने साथ साथ बच्चों कोभी खुश करती थी।

 सास बहू से ज्यादा नीति और सुमन ताई माँ बेटी बन चुके थे। रत्न से ज्यादा स्नेह वो नीति से करती थी।

‘‘ माँ ये सूप पी लीजिए।‘‘ कहकर नीति उन्हें सहारा देकर उठाने लगी तो देखती है सुमन ताई की आँखे भींगी हुई 

‘‘ क्या हुआ माँ,कला ताई की बात सुन कर दुखी हैं? नीति घबरा कर पूछी

‘‘ अरे नहीं बहू आज बिस्तर पर खुद को देखकर मेरी सास याद आ गई। उनकी सेवा तो मैंने कर दी पर मेरी…?”कहकर सुमन ताई चुपहो गई

‘‘ आपकी सेवा मैं करूंगी माँ! आपने मुझे जितना दिया वो क्या कम है …..आपने मेरा बहुत साथ दिया अब मेरी बारी है….आपके जितनीअच्छी तो नहीं कर पाऊंगी पर कोशिश पूरी करूंगी….आपसे ही तो सीखा है सब…अब बस कुछ दिन की बात है कमर में ज्यादा चोट नालगती तो बिस्तर पर ना पड़ना पड़ता।‘‘ कहकर नीति सास को सहारा देकर सूप पीने में मदद करने लगी।

 सुमन ताई अब निश्चित थी नीति के हाथों में खुद को सौंप कर… क्योंकि उसके सहारे के लिए बहू जो पास में थी … शायद उनकी सासका आशीर्वाद ही था जो नीति जैसी बहू मिली ।

 

रिश्तों को संजोकर रखना हो तो खुद के व्यवहार को संयत रखना पड़ता है। सास बहू के रिश्ते में कड़वाहट अपने आप नहीं आती कुछहमारे अपने हितैषियों की वजह से भी आ जाते है।कला ताई नीति और सुमन के रिश्ते से अनभिज्ञ थी इसलिए वो चिन्ता कहे और बहू कीअनकही बुराई कर गई।

अपने रिश्तों को समझें और अच्छा करें …अच्छा पाए।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# सहारा

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