कर्मों का लेखा – जोखा – रश्मि सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

राधिका-अभिनंदन आप पीछे क्यों बैठे हो, आगे आकर बैठो। सार्थक तुम पीछे जाओ।

सार्थक-पर मैम आज तो मेरा टर्न है आगे बैठने का।

राधिका-अभिनंदन को देखने में थोड़ा दिक़्क़त होती है इसलिए इसे आगे बैठाया जाता है।

सार्थक अपना बैग लेकर पीछे चला गया। 

राजीव-सार्थक तुम अभी नये हो स्कूल में। अभिनंदन को हमेशा आगे ही बैठाया जाता है। उसे हर जगह आगे कर दिया जाता है।

सार्थक-तो तुम लोग कुछ कहते नहीं।

राजीव-उसकी क़िस्मत बहुत अच्छी है। बहुत बड़े घर का है वो, उसके पापा और प्रिंसिपल सर दोस्त है। 

कुछ देर बाद सब लंच में बाहर जाकर लंच करते है।

अभिनंदन-सार्थक दिखा तो तू लंच में क्या लाया है। मैं सैंडविच लाया हूँ, खाएगा क्या।

सार्थक-नहीं मेरी मम्मी ने मुझे पराठा सब्ज़ी दिया है वो बहुत अच्छा ख़ाना बनाती है। तुम्हें चाहिए तो बताओ।

अभिनंदन-ये पराठा, रोटी तुम लोगों को मुबारक। मैं तो कैंटीन से कोल्ड ड्रिंक लेकर साथ में सैंडविच खाऊँगा।

अभिनंदन जाते जाते सार्थक का टिफ़िन गिरा देता है और हँसता हुआ कैंटीन की तरफ़ चला जाता है। 

सार्थक अपनी मुट्ठी बांध कर संयम रखता है और पराठा उठाकर टिफ़िन में रखकर क्लास की तरफ़ चला जाता है। एक बार वो अभिनंदन की शिकायत करने की सोचता है पर सुबह के बर्ताव को याद कर मन बदल लेता है।

अभिनंदन रोज़ स्कूल लेट आता पर उसके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं की जाती, क्योंकि स्कूल प्रशासन ने भी आँख बंद कर ली हैं।

अभिनंदन की ख़ुराफ़ात दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। उसके कारण कितने बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया, कई टीचरों ने शिकायत की या उसे डाँटा तो उनका स्थानांतरण करा दिया गया। एक आठवीं के बच्चे के आतंक ने सबको भयभीत कर रखा था। चूँकि अभिनंदन आठवीं में ज़रूर था पर वो अपनी क्लास के बच्चों से बड़ा था। उसका ये व्यवहार उसका बनाया हुआ नहीं था ये उसके पिता जी और उनकी राजनीतिक पहुँच का दुष्प्रभाव था।

पर कहते है ना “अति हर चीज़ की बुरी होती है।” 

दीवाली का वक़्त था अगले दिन से स्कूल में चार दिन की छुट्टियाँ होने वाली थी। अभिनंदन बैग भरकर पटाके लाया था। उसने बाथरूम से बाहर तक पटाकों की झड़ी लगायी, और बाथरूम का दरवाज़ा बाहर से बंद कर ताला लगा दिया और माचिस से पटाके जला दिए, अंदर एक फर्स्ट क्लास का बच्चा प्रखर बाथरूम में था।

पटाके की आवाज़ सुन बच्चा घबरा गया उसने ज़ोर ज़ोर से रोना चिल्लाना शुरू कर दिया पर अभिनंदन अपने दोस्तों के साथ बाथरूम के बाहर खिड़की से वीडियो बनाता रहा और ज़ोर ज़ोर से हँसता रहा। लगभग 20 मिनट तक यही चलता रहा, जब प्रिंसिपल को पता चला तो तुरंत सब भागते हुए बाथरूम की तरफ़ गए और ताला तुड़वाकर बच्चे को बाहर किया गया, बच्चे को तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया, परंतु दम घुटने और घबराहट की वजह से बच्चे की मौत पहले ही हो चुकी थी। 

अभिनंदन के चेहरे पर पहली बार डर के भाव थे, वो स्कूल छोड़कर घर भाग गया, इधर मीडिया और पुलिस ने पूरे स्कूल को घेर लिया, बच्चे के घरवाले अभिनंदन को ढूँढ रहे थे जिसकी वजह से उनका बच्चा इस दुनिया में नहीं था। अभिनंदन के दोस्तों ने पुलिस के डर से सब कुछ बता दिया और वीडियो भी दिखा दी। अब अभिनंदन को कोई नहीं बचा सकता था।

प्रखर के माता पिता अभिनंदन के घर गये और उसको देखते ही प्रखर की माँ ने उसके मुँह पर लगातार थप्पड़ की बोछार कर दी, लेडी कांस्टेबल ने उन्हें पकड़ कर दूर किया और पुलिस ने अभिनंदन को पुलिस हिरासत में लिया। अभिनंदन के पिता जी फ़ोन पर फ़ोन किए जा रहे है पर आज उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। आज उनकी चमकती क़िस्मत ने उनके बेटे के कर्मों के आगे घुटने टेक दिए। अभिनंदन जो कभी किसी को सेठता नहीं था आज सबसे हाथ जोड़कर माफ़ी माँग रहा था। स्कूल प्रशासन भी सकते में था कि अगर हमने पहले ही अभिनंदन के ख़िलाफ़ सख़्त रवैया अपनाया होता तो आज ये हालात ना होते, पर अब पछतावे होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। 

नाबालिग होने के कारण अभिनंदन को बाल सुधार गृह में रखा गया है। जहां वो क्लास में सबसे आगे बैठता था आज वो कमरे के एक कोने को अपना घर बनाए हुए है, जहाँ वो स्कूल में दूसरों के लंच को गिरा देता था, कैंटीन में जायकेदार व्यंजन खाता था आज वो क़तार में लगकर दाल रोटी खाता है और अपने बर्तन ख़ुद साफ़ करता है। जहाँ वो पहले सबका मज़ाक़ उड़ाता था आज बालगृह में किसी के मज़ाक़ बनाने पर रोने लगता है। जहाँ पहले उसके आगे पीछे लोग घूमते थे, आज वो ख़ुद की परछाई से डरता है। अब उसे भी समझ आ गया है कि क़िस्मत को कर्मों को तराज़ू से नापा जाता है। कर्म ही हमारी क़िस्मत बनाते या बिगाड़ते है।

आदरणीय पाठकों,

हमेशा लोगों से कहते सुना है कि मेरी क़िस्मत बड़ी ख़राब है मैं इतने अच्छे से सब करता हूँ पर क़िस्मत के आगे हार जाता हूँ। ये कहना क़तई ग़लत है अच्छी या बुरी क़िस्मत आपके कर्मों पर निर्भर करती है। हमारे कर्म ही किस्मत की दशा और दिशा तय करते हैं। अंत में कुछ पंक्तियाँ- 

वो बुलंदी है क्या, 

जो मैं छू ना सकूँ 

मेरी किस्मत में क्या नहीं 

जो मैं कर्मों से पा ना सकूँ | 

खुला आसमां है इस जहाँ में 

अपनी महनत पे विश्वास रखता हूँ, 

मैं किस्मत के भरोसे नहीं चलता 

अपने कर्मो से किस्मत लिखता हूँ | 

आशा करती हूँ कि सभी पाठकों को मेरी रचना द्वारा दिया गया संदेश समझ आया होगा, तो रचना को लाइक, शेयर और कमेंट कर अपना समर्थन दें। 

धन्यवाद। 

स्वरचित एवं अप्रकाशित।

रश्मि सिंह

नवाबों की नगरी (लखनऊ)

    #किस्मत          

 

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