“काजल की कोठरी” – अर्चना त्यागी : Moral Stories in Hindi

सुमन अपनी शादी को लेकर काफी उत्साहित थी। बड़ी मुश्किल से उसके पिता एक बड़े घर में उसका रिश्ता तय कर पाए थे। अकेला लड़का था। पारिवारिक व्यवसाय में लगा हुआ था। लड़के के पिता तो थे किन्तु माताजी का देहांत हो चुका था। चाचा, चाची और उनके तीन बच्चे थे। पिता और चाचा मिलकर व्यवसाय संभालते थे।

लड़का भी उनका हाथ बंटाता था। व्यवसाय अच्छा चल रहा था। घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। लड़के का स्वभाव थोड़ा अड़ियल था। मां के अचानक चले जाने के बाद से वह किसी और से उतना लगाव नहीं रखता था। वो लोग एक समझदार लड़की चाहते थे, बहू के रूप में। जो लड़के को समझ सके और परिवार के साथ मिल जुलकर रहे। सुमन पांच बहनों में तीसरे नंबर पर थी अपने घर में। बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी। दो बहनें और थी जिनकी शादी उसके पिता को करनी थी। 

सुमन की चिंता उसके पिता को सबसे ज्यादा थी। पांचों बहनों में वह सबसे होनहार थी। पढ़ाई भी सबसे अधिक की थी उसने। शक्ल सूरत में भी वह अपनी बहनों से अव्वल थी। संपन्न परिवार में उसका रिश्ता होने से पिता बहुत खुश थे। 

शादी से पहले लड़के वालों ने कोई भी रस्म करने से मना कर दिया था। लड़के की चाचीजी और उसकी चचेरी बहन जब सुमन को देखने आई थी तभी अंगूठी पहनाकर रिश्ता पक्का करके चली गई थी। शादी भी वो लोग सादे समारोह में ही करना चाहते थे। सुमन इस बात से और भी खुश थी कि उसके पिता का अतिरिक्त खर्च नहीं होगा। जो भी खर्च होगा, शादी समारोह में ही होगा।

सुमन के पिता ने खूब धूमधाम से उसकी शादी की। लड़के वालों ने भी उनके इंतजाम की काफी तारीफ की और अभिषेक के साथ सुमन ससुराल चली गई। विदाई के समय मां ने समझाया, बेटा तुम्हारा पति अब तुम्हारा साथी है। उसका घर तुम्हारा घर है। कभी कोई ऐसा काम मत करना जिससे तुम्हारे पति को या उस घर के नाम को धब्बा लगे। तुम्हारा हर कदम उस घर की भलाई के लिए उठना चाहिए। 

विजयपथ – आरती झा आद्या

ससुराल में एक महीना तो बहुत आराम से गुजरा। सब कुछ अच्छा लगा। सभी लोग बड़े अपनेपन से उसके साथ रहते थे। चाचाजी की दोनों बेटियां दिन भर उसके आस पास ही रहती। बड़ी बेटी तो खाना भी साथ ही खाती। कहीं जाती तो साथ होती। जब तक अभिषेक दुकान से नहीं आता, उसके पास बैठी रहती। कई बार उसके पास ही सो जाती फिर अभिषेक को बाहर सोना पड़ता। सुमन अपने मन में सोचती कि इतना प्यार और ऐसी ससुराल मिले ऐसा सपना भी नहीं आया था कभी शादी से पहले। वह रोज़ पूजा करते हुए भगवान को धन्यवाद देती।

लेकिन दूसरे महीने में ही एक एक करके सभी परतें उसके सामने खुलने लगी। वह जानकर हैरान होती। मसलन उसकी सास किसी दुर्घटना की शिकार नहीं हुई थी, उन्होंने आत्महत्या की थी। उसकी ननद उनके साथ नहीं बल्कि कई साल बाद, मरी नहीं थी, उसको मरवाया गया था। अभिषेक सबसे अलग घर में एक कमरे में रहते थे।

कारोबार में भी वो साथ नहीं थे। बस एक दुकान उनको दे रखी थी चलाने के लिए। घर में चाचीजी की चलती थी और कारोबार में चाचाजी जो चाहते वही होता था। अभिषेक के पिता भी चाचाजी के साथ ही रहते थे। लगता नहीं था कि वो बड़े हैं। चाचाजी जैसे कहते वो वैसा ही करते थे। ये सब बातें जानकर सुमन कुछ दिन तो सकते में थी।

उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था। समझ नहीं पा रही थी कि कैसे अपनी भावनाओं को नियंत्रित रखे। अपने घर में किसी से बात करने का मतलब था उनको भी मानसिक तनाव देना। जो वह नहीं चाहती थी। घर वापिस जाकर भी अपने पिता की समस्या वह नहीं बढ़ाना चाहती थी।

इसलिए अपने जीवन की समस्याओं से उसने खुद ही निपटने का निश्चय किया। अपनी सास और ननद के विषय में वह सब कुछ जानना चाहती थी। परन्तु कैसे ? इसी प्रश्न का उत्तर उसे नहीं मिल रहा था। अभिषेक उसे बता सकता था लेकिन अभिषेक घर पर जितने समय रहता चुप ही रहता। कुछ पूछने पर ही जवाब देता।

उससे उम्मीद करना बेकार ही था। फिर उससे पूछकर सुमन उसके घाव हरे नहीं करना चाहती थी। समय बीतने के साथ अभिषेक उसे खुद ही बता देगा। अगर अपना समझने लगेगा तो। सुमन उसका दिल जीतने की पूरी कोशिश करना चाहती थी। उसके बीते जीवन के बारे में जानकर वह वो सब कुछ बदलना चाहती थी जिसने अभिषेक का स्वाभाव बदल दिया था।

वो कारण खत्म करना चाहती थी जो उसे खुश रहने से रोकता था। परन्तु इसके लिए परिवार के किसी सदस्य का उसके साथ होना ज़रूरी था। उसे समझना जरूरी था। उसी इंसान को सुमन ढूंढ रही थी। और यह आसान तो बिल्कुल ही नहीं था।

फुलवा – अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा “

उसने तय किया कि पहले अभिषेक के स्वभाव को समझने की कोशिश करेगी। फिर सास और ननद की मौत की गुत्थी को सुलझा कर दोषियों को सजा दिलाने का भरपूर प्रयत्न करेगी। इस काम में अभिषेक का सहयोग मिलना जरूरी है। उनसे ज्यादा उनके परिवार के बारे में कोई नहीं जानता। अभिषेक का स्वभाव एकदम अप्रत्याशित था।

कभी बहुत प्यार भरा। कभी बिना बात नाराज़गी भरा। सुमन उसकी मानसिक स्थिति को समझने का प्रयत्न का रही थी। जिस इंसान के पिता ही उससे अलग रहते हों। जिसने बचपन में मां को खोया हो। किशोर अवस्था में बहन को खो दिया हो। उसका स्वभाव सामान्य हो भी कैसे सकता था। घर के किसी भी सदस्य से वह बात नहीं करता था। सुमन भी जितना पूछती उतना ही उत्तर देता। कभी मन नहीं हो तो अनसुना करके निकल जाता।

चाचीजी पूरे घर को संभालती थी। उनकी बड़ी बेटी नीतू ,अभिषेक की हमउम्र होने के साथ साथ सुमन की भी हमउम्र थी। शादी के बाद एक महीने तक वही सुमन के साथ रहती थी। इसलिए उसके साथ सुमन दोस्ती का रिश्ता महसूस करती थी। लेकिन अब नीतू बुलाने से भी पास नहीं आती थी। कोई बहाना करके टाल देती। सुमन जानती थी कि अभिषेक के बारे में नीतू भी सब कुछ जानती है। अभिषेक की ही तरह वह भी बचपन में उन घटनाओं की मूक साक्षी रही है। अभिषेक को पूरे घर में अगर किसी से लगाव था तो वह नीतू ही थी। 

जब खाली होती, नीतू चाचीजी के पास चली जाती। काम में हाथ बंटाने की भी कोशिश करती। परन्तु चाचीजी उसके सामने खुद को ज्यादा ही व्यस्त कर लेती। उनकी कोशिश रहती कि सुमन जल्दी वहां से चली जाए। चाचीजी के अलावा एक और सदस्य था घर में, जिससे सुमन का परिचय शादी के बाद ही हुआ था। अभिषेक की दादी। वो हमेशा अपने कमरे में ही रहती थी। जितना सुमन समझ पाई थी। घर में सबसे ज्यादा नफ़रत अभिषेक उनसे ही करता था।

सुमन की कोशिशें जारी थी। और उसे अवसर भी मिल गया। चाचीजी के पिताजी का देहांत हो गया। उन्हें अपने घर जाना पड़ा। अब नीतू से उसकी रोज़ ही बात हो जाती। सुमन काम में भी उसकी सहायता कर देती। बातों बातों में इतना तो उसने जान लिया कि अभिषेक की माताजी ने आत्महत्या की थी। लेकिन कारण पता नहीं चल पाया।

अभिषेक की बहन के बारे में भी इतना पता चल गया कि उसकी मौत भी कोई दुर्घटना नहीं थी। मां की मौत के बाद वह बिगड़ गई थी। किसी की नहीं सुनती थी। परन्तु वह मर कैसे गई, नीतू ने नहीं बताया। या तो वह बताने के परिणाम से डरती थी। या फिर उसे याद नहीं था। वह भी अभिषेक की तरह बच्ची ही थी। अभिषेक पांच वर्ष छोटा था अपनी बहन से। अब घर में एक ही इंसान था जिसे सब पता था। वो थी दादी।

जीवन एक संघर्ष – रश्मि प्रकाश

जबसे ससुराल आई थी, रोज़ दादी से मिलने एक बार तो चली जाती थी सुमन। अपनी सास और ननद के बारे में भी उसने एक दो बार बात छेड़ी। दादी या तो चुप रहीं या बस अफसोस जताया। बताया कुछ भी नहीं। 

दिन गुजरते जा रहे थे लेकिन सब कुछ वैसा ही था। कुछ भी नहीं बदला था। हां एक बात से सुमन खुश थी कि अभिषेक अब ज्यादा समय घर में रहने लगा था। बातचीत तो अब भी सीमित ही करता था। लेकिन उसको देखकर सुमन महसूस करती की उसे अब घर में अपनापन लगने लगा है। बीती बातों को भूल जाना ही बेहतर है।

यह ख्याल भी उसके दिमाग में घर बनाने लगा था। लेकिन उसका मन मानने को तैयार नहीं था। वह बस इतना ही चाहती थी कि उसकी सास और ननद के बारे में कोई तो बात करे। वो दोनों असमय ही मौत के आगोश में समा गए हैं। कम से कम साल में एक दिन उनकी आत्मिक शांति के लिए पूजा अर्चना की जाए। उनकी मौत के रहस्य से पर्दा उठे और कातिलों के चेहरे नज़र आएं।

चाचीजी वापिस आ चुकी थी। फिर से सुमन का नीतू से बात करना बंद हो गया था। दादी के कमरे में भी वह एकाध बार ही जाती थी। तभी अचानक चाचाजी का छोटा बेटा बीमार हो गया। डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने हस्पताल में भर्ती कर लिया। सारे परीक्षण होने पर पता लगा कि उसके फेफड़ों में संक्रमण हो गया था।

तीन महीने उसे हस्पताल में ही रहना पड़ेगा जिससे घर पर किसी भी सदस्य को संक्रमण न हो। चाचीजी बेटे से अलग हो ही नहीं होती थी। हस्पताल में भी उसके साथ वही गई। अब घर की सारी जिम्मेदारी फिर से नीतू के ऊपर आ गई।

परन्तु नीतू की भी अंतिम वर्ष की परीक्षाएं सिर पर थी। सुमन मन ही मन चाहती थी कि इस मुश्किल समय में चाचाजी के परिवार की मदद करे। हो सकता है कि अभिषेक और उसके साथ चलने वाला यह शीतयुद्ध इसी बहाने खत्म हो जाए। परन्तु चाचीजी ने ऐसा नहीं होने दिया। 

उनकी भाभी बच्चों के पास रहने के लिए आ गई, कुछ दिनों के लिए। सुमन को बुरा लगा लेकिन चुप रही। पहले वो कोशिश करती थी कि घर के सदस्यों से उसकी बात होती रहे लेकिन अब उसने अपना नियम बदल दिया। ना बच्चों से मिलने जाती ना उनकी मामी से। एक दिन दोपहर के समय उसके कमरे का दरवाजा किसी ने खटखटाया। उसने दरवाजा खोला तो सामने नीतू की मामी खड़ी थी।

सुमन ने उनका अभिवादन किया और कमरे में अंदर बुला लिया। मामी बैठ गई। थोड़ी बहुत औपचारिक बातों के बाद उन्होंने बताया कि किसी कारणवश उसकी शादी में नहीं आ पाई थी इसीलिए उसे देखना चाहती थी।

उससे मिलना चाहती थी। सुनकर सुमन को बहुत राहत मिली। शादी के बाद से अब तक मामी पहली इंसान थी जो उससे मिलना चाहती थी। मामी भी सुमन से मिलकर बहुत खुश हुई। जाते जाते सुमन को मिलते रहने के लिए कहकर गई।

चंदा का संघर्ष – पुष्पा पाण्डेय 

चाचीजी बेटे के पास हस्पताल में ही थी। लगभग एक महीने और उन्हें वहां रुकना था। मामी से अब सुमन की रोज़ ही बात हो जाती। उसकी सास और ननद से उन्हें भी सहानुभूति थी। वो जितना जानती थी उन्होंने सुमन को बताया उनके बारे में। उसकी सास देखने में सुंदर नहीं थी। जो गोरे रंग को सुंदरता का मापदंड मानते हैं उन्हें उसकी शक्ल से चिढ़ थी। गरीब परिवार से थी।

दहेज से भी उन्हें खुश नहीं कर सकती थी। उपर से पहली संतान भी लड़की हो गई। अभिषेक के पिता को भी उनसे बात नहीं करने देती थी उनकी मां। देवरानी के आने से कष्ट और बढ़ गए। देवरानी गोरी चिट्ठी, खूब खाते पीते घर से थी। चतुर भी थी। थोड़े दिनों में ही सबको अपने वश में कर लिया ससुराल में। अभिषेक की मां को एक कमरा देकर अलग कर दिया।

लड़की के जन्म के पांच वर्ष बाद अभिषेक पैदा हुआ। बच्चे को भी उससे दूर ही रखती थी सास। लड़के के जन्म के तीन महीने बाद उसने उस घर से ही नहीं, दुनिया से भी विदा ले ली। अभिषेक की बहन बहुत छोटी थी तब। पूरे दिन भाई को संभालती। घर के काम में भी चाची की सहायता करती। पढ़ाई में आगे चल नहीं पाई। न दादी को रहम आता न चाची ने इंसानियत दिखाई।

पंद्रह साल की हुई तो दुकान पर काम करने वाले एक नौकर की तरफ आकर्षित हो गई। बहकावे में आकर उसके साथ भाग गई। अब तो कोहराम मच गया घर में। पिता ने अपना सिर पीट लिया। उसके प्रति जो थोड़ी बहुत सहानुभूति थी वो भी उसके साथ चली गई। पुलिस की मदद से जल्दी ही दोनों को पकड़ लिया। लड़के के घरवालों के गिड़गिड़ाने पर उसे शहर छोड़कर जाने की शर्त पर छोड़ दिया।

अभिषेक की बहन को बहला फुसलाकर चाची ने अपने बड़े भाई के घर भेज दिया। जो दूर कहीं गुजरात में रहते थे। पता लगा कि वह पेट से थी।  वो फिर कभी घर वापस नहीं आई। कहां गई किसी को नहीं पता। यह बात बताते हुए मामी भी डर रही थी। सुमन समझ गई, उसकी ननद को उसकी सास के पास भेज दिया होगा।

यह सब पता चलने के बाद सुमन खूब रोई। कई दिन तक मन परेशान होता रहा। इच्छा होती, चाची से जाकर पूछे कि उस बच्ची की जगह अगर तुम्हारी बेटी होती तो क्या उसे भी मौत के घाट उतार देती। अपनी जगह बनाने के लिए उसकी मां को रास्ते से हटाया। अपनी बेटी के लिए उस नादान बच्ची को दुनिया से विदा कर दिया। दो लोगों की हत्या करके कैसे लोग साधु बन जाते हैं।

मां तुम एक कमल की तरह हो – सुषमा यादव

उसे अभिषेक के ऊपर बहुत तरस आया। आज उसे अभिषेक का उन लोगों के प्रति व्यवहार एकदम सही नज़र आया। एक और शंका मन में घर कर गई थी। अभिषेक और सुमन के लिए चाची की क्या योजना है? उनके लिए कब और कोनसी दुर्घटना का इंतजार किया जा रहा है ? अब सुमन को डर भी लगने लगा था। कई दिनों बाद उसने हिम्मत करके अभिषेक से बात करने की ठानी।

चाची अपने बेटे के साथ हस्पताल से वापस घर आ गई थी। मामी भी अपने घर चली गई थी। अभिषेक की दुकान जिस बाजार में थी वो मंगलवार को बंद रहता था। इसलिए अभिषेक भर पर ही था। खाना खाने के बाद टी वी देख रहा था। सुमन भी पास में ही सोफे पर बैठ गई। विज्ञापन आने पर उसने आवाज कम कर दी। अभिषेक से बोली ” आपसे कुछ पूछना चाहती हूं।”

अभिषेक ने चौंककर उसकी और देखा। फिर नजरें झुकाकर बोला ” पूछना चाहती हो या बताना चाहती हो?” सुमन को अजीब तो लगा लेकिन उसने उत्तर दिया ” दोनों ही।” अभिषेक ने वापस प्रश्न किया ” मां और मिट्ठू दीदी के बारे में ही पूछना चाहती हो या कुछ और ?” अब सुमन की स्थिति उस छात्र के जैसी थी जिसे उसके शिक्षक ने नकल करते हुए पकड़ लिया हो। फिर भी उसने हिम्मत जुटाई।

” जी बस इतना ही जानना चाहती हूं कि किस दुर्घटना में मां और मिट्ठू दीदी बच नहीं पाए थे ? कैसे हुई थी दुर्घटना ? अभिषेक ने प्रश्नवाचक निगाहों से उसकी और देखा।

जैसे कह रहा हो सब कुछ जानते हुए भी क्यों अनजान बन रही हो ? कुछ सोचकर फिर बोले ” यहां वहां से क्या पता लगा? पहले ही मुझसे पूछ लेती। मैं सच ही बताता।” सुमन की नजरें झुक गई। ” आपका दिल नहीं दुखाना चाहती थी। इसीलिए नहीं पूछा।” इतना ही बोल पाई। ” अपराधियों को पहचानती हो?” फिर से अभिषेक ने प्रश्न ही पूछा।

“नही जानती हूं। पर जानना चाहती हूं।” सुमन ने धीरे से कहा। “तुम तो रोज़ मिलती हो उनसे।” इस बार अभिषेक के स्वर में उलाहना था। “उन्हें सजा दिलवाना चाहती हो ?” फिर से अभिषेक ने प्रश्न पूछा। सुमन चुप थी। अभिषेक ने थोड़ी देर उसके जवाब का इंतज़ार किया। फिर खुद ही जवाब दिया।

“इस देश में अपराधियों को सजा दिलाना यदि इतना ही आसान होता तो अपराध दिन प्रतिदिन बढ़ने के बजाय कम होता। लोगों को कानून अपने हाथ में लेने की आदत नहीं होती। भयंकर अपराध करके लोग सिर ऊंचा करके नहीं चलते।” सुमन इस बार चुप नहीं रह पाई।” लेकिन जो बिना गलती के चले गए हैं उनको इंसाफ तो मिलना चाहिए।

आपको नहीं लगता ?” फैसला तुम करो सुमन। दादी की बाकी की उम्र जेल में। चाचा का घर बर्बाद। यदि जुर्म साबित हुआ तो। नहीं तो हम दोनों उनके निशाने पर आ जाएंगे। क्या चाहती हो ?

एक थी विद्या – किरन विश्वकर्मा

अभिषेक आज रोज वाला अभिषेक नहीं था। उसके दिमाग में जो भी था, सब बाहर आ गया था। बस यही तो चाहती थी सुमन। एक इंसान जो इतने साल घुलता रहा। उसके की गांठें आज खुल गई थी। वह बिना कुछ बोले वहां से उठकर चली गई। पूजाघर में जाकर हाथ जोड़े और ईश्वर को धनयवाद दिया।

आज सुमन की शादी को पूरा एक साल हो गया था। अपने अच्छे स्वभाव से उसने अभिषेक का दिल जीत लिया था। वह सोकर उठी तो तकिए के पास एक चाबी रखी थी। अभिषेक वहीं खड़े थे। ” यह हमारे फ्लैट की चाबी है सुमन। जो मैंने खरीदा है। आज गृहप्रवेश है। मैं, तुम और पापा अब से वहीं पर रहेंगे। मैं नहीं चाहता मां और मिट्ठू दीदी के जैसा हादसा तुम्हारे साथ भी हो।

” सुमन अभिषेक के क़दमों की और झुक गई।  आज वह कुछ कहना नहीं चाहती थी। लेकिन उसने ठान लिया था कि अपराधियों को भी सज़ा का डर दिखाकर रहेगी। योजना बन चुकी थी बस उसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करना था। 

अगले दिन एक ऑडियो संदेश सबके मोबाइल फोन पर आ गया जिसमें दादी और चाची बातें कर रही थी। दो दिन बाद ही दादी को दिल का दौरा पड़ा और चाची के साथ बाज़ार में एक दुर्घटना हो गई। पैरों में कई जगह से हड्डी टूटी थी। डॉक्टर ने कम से कम छह महीने का समय बताया था ठीक होने का। रही सही कसर पुलिस ने आकर पूरी की। मिट्ठू को जिस लड़के के कारण मौत के घाट उतारा था उसने पुलिस को सब सच बता दिया था। अभिषेक आज पहली बार कुछ बोला ,” अब तो पड जायेगी तेरे कलेजे में ठंडक ,अब चाचा के बच्चों को पालना।” 

सुमन को बुरा नहीं लगा। वह खुश थी कि उसका पति जो नहीं कर पाया था वह उसने कर दिखाया था।

प्रत्यक्ष में उसने बस इतना ही कहा।

“बिलकुल करूंगी उनकी परवरिश। अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटूंगी। परंतु अच्छा इंसान बनने की परवरिश दूंगी।”

दुकान पर काम करने वाले सब नौकरों के बयान वही थे जो उनके साथी ने बताया था। चाची का सज़ा काटना तय हो गया था।

अर्चना त्यागी 

मौलिक, स्वरचित एवम् अप्रकाशित।

“# अब तो पड जायेगी ना तुम्हारे कलेजे में ठंडक।

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