विजयपथ – आरती झा आद्या

चारु तुम..अपनी बेटी की जिद्द पर उसकी दोस्त की  कत्थक क्लास में एडमिशन कराने आई माधवी अपनी सहेली चारु को उस एक कमरे के घर में देख आश्चर्य चकित रह गई थी।

माधवी तुम…मुझे देखते ही बच्चियों को कत्थक के लिए ताल देती चारु आगे बढ़ गले लग गई।

चारु तू यहां कैसे… कब से है यहां..तेरी तो शादी मुंबई में अच्छे भले घर में हुई थी और सास ससुर तुझसे प्यार भी तो करते थे…माधवी ने पूछा।

हां रे.. हुई थी। पर अब मैं छः साल से यहां बंगलोर में हूं.. चारु माधवी को बैठने का इशारा करती हुई कहती है।

पर हुआ क्या..माधवी के चेहरे पर आश्चर्य के भाव प्रत्यक्ष दिख रहे थे।

लंबी कहानी है। कल आ सकेगी क्या..रविवार है तो स्कूल और मेरी क्लासेज दोनों बंद रहेगी.. चारु भी मानो अपना मन रिक्त कर लेना चाहती थी। 

हां ज़रूर ही आऊंगी..मेरी बेटी तारा कत्थक सीखना चाहती थी। आज तो उसके लिए ही आई थी। तारा की दोस्त नव्या भी तेरी क्लासेज लेती है ना…नव्या और तारा को बातें करते देख माधवी कहती है।

चल कल मिलते हैं फिर..परसों से तारा भी आ जाया करेगी…माधवी चारु से कहती हुई चली गई।

अब बता चारु क्या हो गया ऐसा कि तू यहां अकेले और ये बच्चा..कान में इयरफोन लगाए एक बच्चे को देख माधवी जिज्ञासु हो उठी।

बैठ चाय बना कर फिर सब बताती हूं…

मां मुंह मीठा करो। दादी बनने वाली हो तुम…रोहित ने मिठाई का डब्बा अपनी मां निर्मला की ओर बढ़ाते हुए कहा और मैं शरमा कर अपने कमरे की ओर बढ़ गई।

दो साल से इस दिन का इंतजार कर रही थी। सुनते हो जी जल्दी बाहर आओ.. जब देखो मुएं अखबार में घुसे रहते हो। अपने घर द्वार की भी खबर रख लिया करो… मां जो व्यग्रता से हम दोनों के डॉक्टर के यहां से आने का इंतजार कर रही थी, पापाजी को आवाज देती हुई कहती है।

अरे क्या हुआ। आसमान फट गया क्या…देखो कान में इयरफोन लगाए था, इसके अंदर भी तुम्हारी आवाज आ ही गई… पापा जी मां को चिढ़ाते हुए कहते हैं।

तुम दादा बनने वाले हो…मां पापा जी की बात पर बिना ध्यान दिए अति प्रसन्न होकर कहती है।

क्या सच…खुशी में खड़े हो रोहित को गले लगा सिर पर हाथ फेरते हुए पापा जी ने कहा था।

बहू आज से तुम बस आराम करोगी। नीला से कहूंगी घर के कामों के अलावा सुबह शाम का खाना भी देख ले… मेरे कमरे में आती हुई मां ने कहा था।




नहीं नहीं मां…जैसा चल रहा है, चलने दीजिए। जब मुझे जरूरत लगेगी बता दूंगी… मैंने मां से कहा।

तू नहीं जानती अगर हम औरतें अपने प्रति सतर्क न हो, घर के कामों में थोड़ी देर के लिए हो सही आंख न मूंदें तो एक पल आराम न मिले… मां को शायद अपना अतीत याद आ गया था क्यूंकि मेरी दादी सास बहुत कठोर थी और अपनी इकलौती बहू का एक मिनट सुस्ताना भी बर्दाश्त नहीं कर पाती थी और अपनी सासू मां की बात सुनकर मैं सोच भी नहीं सकती थी कि एक दिन वो इस कदर बदल जाएंगी।

क्या हुआ.. तुम दोनों के मुंह क्यूं लटके हुए हैं…आज तो तुम दोनों को सुबह से शाम हो गई..रोहित और मुझे देखते ही नीला को निर्देश देती मां रुक कर हमारे उतरे चेहरे देख कर पूछने लगी।

जा नीला सबके लिए नींबू वाली शरबत बना ला..गर्मी भी बेहिसाब ही है… नीला से कह मां रोहित की ओर बढ़ी जो वही रखी कुर्सी पर धम्म से बैठ गया और मैं चुपचाप अपने कमरे में चली गई थी।

कुछ बोलेगा रोहित..डॉक्टर ने कुछ कहा है क्या…मेरा दिल बैठा जा रहा है रोहित.. मां ने रोहित से फिर पूछा था।

मां डॉक्टर कह रही थी कि बच्चा पूर्णतः स्वस्थ नहीं है। लेकिन छः महीने गुजर जाने के कारण अबॉर्शन करवाने से मना कर रही है, इससे चारु के जान पर भी खतरा हो सकता है…रोहित आंख बंद कर थकी थकी आवाज में कहता है।

किसी और डॉक्टर से बात कर देख। ऐसा बच्चा लेकर करना ही क्या है.. मां की ये बात सुन मैं अपने कमरे में बैठी बैठी सिहर गई थी।

दो तीन डॉक्टर से मिल कर ही आ रहे हैं मां.. इसी में देर लगी…रोहित उसी तरह मरी आवाज में कहता है।

बेटा कभी कभी रिपोर्ट्स भी गलत हो जाते हैं। इतनी चिंता मत करो.. पापा जी अपने कमरे से बाहर आते हुए कहते हैं।

तुम चारु को संभालो। वो तो मां है, सोचो उस पर क्या गुजर रही होगी.. पापा जी एक कुर्सी ले मां बेटे की बातों में शामिल होते हुए कहते हैं।

अरे मैंने उससे कहा ही था कि आराम करे, पर नहीं…कितने सपने संजोए थे, पोता होगा तो ये करूंगी वो करूंगी…सब पर पानी फिर गया.. मां को पहली बार मैंने इस तरह बड़बड़ाते सुना था।

रोहित जी जिसका डर था वही हुआ, बच्चा की आंखों में रौशनी नहीं है …डॉक्टर आपरेशन थियेटर से निकलती हुई कहती है।

बच्चे के दो तीन साल होने तक दिमाग से भी थोड़ा कमजोर होने का पता चलने लगा।

समय के साथ सबने सलाह देना शुरू कर दिया कि विवान को किसी आश्रय गृह में रख दूसरे बच्चे के बारे में सोचूँ और मां तो जिद्द ठाने बैठी थी कि विवान को यहां से भेज आगे की प्लानिंग हो। 

मां ठीक ही तो कह रही हैं चारु..विवान को संभालना आसान है क्या…रोहित भी माता पिता के समर्थन में उतर आए थे।




आप लोग एक बात अच्छी तरह सुन लीजिए। मेरा विवान कहीं नहीं जाएगा। मैं उसकी मां हूं कोई बाहर वाली नहीं, जो उसकी देखभाल न कर सकूं और मैं दूसरा बच्चा भी नहीं कर रही…मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ था, मेरा पेट जाया है विवान। मैं कैसे उसे दूसरों के भरोसे छोड़ देती। गोद में लेना तो छोड़ो कोई उसे पुचकारता भी नहीं था।

तो ठीक है चारु तुम्हारे लिए अब इस घर में जगह नहीं है..रोहित की झटके से कही गई बात पर मैं अवाक रह गई।

तुम, तुम्हारा विवान और तुम्हारा कत्थक क्लास कहीं और शिफ्ट करो.. हमें तुम्हारी जरूरत नहीं है…रोहित बोल उठ कर चला गया।

ठीक ही कह रहा है रोहित। जब तू हमारा वंश आगे नहीं बढ़ा सकती तो यहां रहने का कोई मतलब नहीं है.. आस भरी नजरों से मैंने मां की तरफ देखा तो उन्हें प्रत्युत्तर में ऐसा जवाब दे मेरी आशा का दमन करते एक मिनट नहीं लगा और पापाजी नजरें चुराते हुए उठ कर बाहर चले गए।

फिर तू बंगलोर कैसे आई…माधवी चारु का हाथ अपने हाथ में लेती हुई विवान की ओर देखती पूछती है।

मैं वहां से पुणे चली आई थी मम्मी पापा के पास लेकिन अब तो हमारे संघर्ष के दिन शुरू हो गए थे तो सब बेगाने ही हो गए थे।

जैसे ही मम्मी पापा ने सुना कि मेरा दाना पानी उस घर से उठ गया है तो उनका भी विवान को आश्रय गृह भेजने का राग शुरू हो गया और भैया भाभी को तो विवान फूटी आंख नहीं सुहाता था। रेंट देने के शर्त पर एक कमरे में कत्थक क्लासेज शुरू करने की इज़ाजत दी गई।

अंकल आंटी ने तुमसे रेंट देने के लिए कहा..माधवी ने आश्चर्य से पूछा।

नहीं उन्होंने नहीं कहा, उनकी बहू ने कहा कि इससे मेरे और विवान का खाने पीने रहने का खर्चा पूरा हो सकेगा। ऊपर से विवान के साथ उनका बुरा बर्ताव मुझे अंदर तक बिंध जाता था। एक दिन विवान बिस्तर से उतरने की कोशिश कर रहा था तो भैया ने उसे धक्का दे जान बूझकर गिरा दिया। ये मैंने खुद अपनी आंखों से देखा था। मन मसोस कर रह गई और कोई रास्ता भी नहीं था। उस दिन मुझे लगा था कि विवान पढ़ाई ही तो नहीं कर सकता है, बाकी चीजें तो समझ ही जाता है और उस दिन से मैंने उसे प्रशिक्षित करना शुरू किया। जिससे वो अपने बेसिक काम मेरी अनुपस्थिति में कर सके। लेकिन शायद मेरी और परीक्षा बाकी थी अभी। भाभी को एक रेंटर मिल, जो उस कमरे का जायज किराया दे सके और मुझे घर खाली करने का अल्टीमेटम मिल गया। मुझ पर तरस खाने की बात पर भाभी ने घर के सारे काम संभालने के निर्देश दिए और उसके बदले खाना कपड़ा रहने की गारंटी। उस बेइज्जती को सह कर भी मैं वहां रहने लगी। मेरी इच्छा थी कि किसी स्कूल में ही म्यूजिक की क्लासेज लूं। लेकिन भाभी ना तो मुझे निकलने देती थी और ना ही मुझ तक अखबार पहुंचने देती थी। उन्हें डर था कि मैं कोई नौकरी ना करने लगूं। तीन साल वहां भी किसी तरह गुजरे, एक दिन संयोगवश भैया भाभी कहीं गए थे और पोछा लगाते हुए मेरे हाथ एक अखबार लगा, जिसमें बंगलोर के एक स्कूल में कत्थक सीखाने के लिए शिक्षिका चाहिए थी। पहले के बचाए पैसों को ले मैं विवान के साथ जल्दी जल्दी बंगलोर का टिकट कराने स्टेशन निकल पड़ी। लग रहा था सदियों बाद बाहर की दुनिया देख रही थी। आत्म विश्वास भी डगमगा रहा था, लेकिन विवान के बढ़ते कदम देख ही हिम्मत कर गई थी और बिना कुछ सोचे यहां आ गई थी। मेरा विश्वास इतना गिर चुका था कि इंटरव्यू में मैं कुछ बोल ही नहीं सकी। मेरा रिजेक्शन तो होना ही था, लेकिन भला हो प्रिंसिपल मैडम का जिन्होंने विवान को देख मेरी परिस्थिति की गंभीरता को समझ मुझे दो महीने के लिए नियुक्ति की थी। उसी दौरान  मैंने महसूस किया कि विवान भी कत्थक के बोल पकड़ता बोलता है। फिर मैंने स्कूल के साथ साथ विवान को घर पर कत्थक की ट्रेनिंग देने शुरू किया। 




कैसे मैनेज कर रही थी तू ये…विवान को पैरों के ताल समझाना…माधवी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

हां माधवी मुश्किल तो बहुत रहा..ताल के साथ उसके हाथ पैर उस मुद्रा में कर बताना होता था। भगवान का शुक्र था कि विवान बोल और सुन सकता है तो सिर्फ महसूस कराना था। कल राज्य स्तर पर कत्थक प्रतियोगिता है, जिसमें विवान भी प्रतिभागी है और उसके साथ साथ मेरे संघर्ष का परिणाम भी आना है। तू आएगी माधवी…बोलते बोलते चारु ने पूछा।

जरूर आऊंगी चारु..ये भी कोई बोलने की बात है..माधवी की आंखों में चारु के लिए ढ़ेर सारा सम्मान उतर आया था।

राज्य स्तरीय कत्थक प्रतियोगिता के दूसरे स्थान पर हैं मास्टर विवान और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच माधवी के कंधे पर सिर रख चारु जार जार रोने लगी। आज उसे ऐसा लगा मानो उसके विवान ने उसे जीवन के संघर्ष में विजयपथ का द्वार खोल दिया।

#संघर्ष 

आरती झा आद्या

दिल्ली

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