जीवन एक संघर्ष – रश्मि प्रकाश

“ माँ सोच रही हूँ प्रिया को बुला लूँ ।” राशि ने अपनी माँ से कहा जो बहुत समय बाद मायके आई थी 

लगभग पाँच साल पहले वो ये शहर छोड़ कर कहीं और चली गई थी ।

“ तुम अभी तक उसको भूली नहीं हो पाँच साल हो गया यहाँ से गए आज भी याद है तुम्हें ।” सुमिता जी हँसते हुए बोली 

“ हाँ माँ वो भी भूलने वाली लड़की है….. जिसके संघर्ष की कहानी सुन मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे और शायद सहानुभूति ने उससे एक रिश्ता सा बना दिया ।

प्रिया एक ऐसी लड़की जिससे राशि की मुलाक़ात गलती से हो गई थी…. वो पेशे से ब्यूटीशियन थी और जो पार्लर का काम छोड़ कर घर-घर जाकर महिलाओं के लिए काम कर देती थी…. जिस अपार्टमेंट में राशि रहती थी उसी में से किसी एक के घर प्रिया का आना-जाना होता था… एक दिन प्रिया ने गलती से राशि के घर का कॉल बेल बजा दिया…. तब भी जाते जाते प्रिया सॉरी के साथ नोट चस्पागई दीदी कभी ज़रूरत हो तो मेरा नम्बर गरिमा दी से ले लीजिएगा मैं अक्सर वहाँ आती हूँ ।

खैर प्रिया की बात आई गई हो गई …. साल होने को आया इसी बीच भाई की शादी ठीक हो गई…. राशि को तब प्रिया की याद आई…. मायका भी उसी शहर में और राशि भी तब प्रिया ने बहुत काम सँभाल लिया था…. 

अब कभी-कभी यूँ भी उधर से गुजरते हुए मिलने चली आती और अक्सर कहती आप मुझे बड़ी दीदी जैसी लगती हो।

कभी प्रिया ने घर परिवार की कोई बात नहीं की एक दिन राशि ने ही पूछ लिया….परिवार में कौन कौन है…. 

मेरा पति और एक बेटा और बेटी ।उसने फट से मोबाइल निकाल परिवार की तस्वीर दिखा दी

” प्रिया ये तेरा पति है?” राशि ने आश्चर्य से पूछा 

“ हाँ दीदी उम्र में मुझसे पन्द्रह साल बड़ा है।” प्रिया काम करते हुए बोली 

“ तेरे माँ बाप ने सोच समझ कर ब्याह किया ना?” राशि आश्चर्य से पूछी 

“ दीदी मेरी ज़िन्दगी का किताब पलटूँगी ना तो आप सुन नहीं सकोगे ।” प्रिया के चेहरे पर दुख के बादल और आवाज़ में भारीपन बता रहे थे कि राशि ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया 

राशि को भी जानने की उत्सुकता हो गई…,“ बता ना प्रिया क्या हुआ था तेरे साथ?” 




“ दीदी कभी किसी सगी माँ को देखा है अपनी एक औलाद से नफरत करते.. मैंने वो दंश झेला है…. माँ की शादी के बाद बच्चे नहीं हो रहे थे गाँव में लोगों के तानों से आहत हो वो पागल सी होने लगी थी ऐसे में सात साल बाद मैं हुई और मेरे पीछे दो बहन एक भाई …. बचपन तो याद नहीं पर जब से होश सँभाला यही देखती माँ को हम सबसे कोई मतलब नहीं…. मुझे बेवजह मारती गालियाँ देती …..मैं सब बर्दाश्त करती क्योंकि वो मेरी माँ थी किसी को समझ नहीं आता था वो सगी माँ होकर ऐसा क्यों करती पता तो तब चला जब वो मरने वाली थी और मुझे ही बोली,“ मैं कभी अच्छी माँ नहीं बन पाई क्योंकि माँ बनने के लिए इतने ताने सुने की बच्चों से नफ़रत हो गई थी जिनकी वजह से मुझे लात घूँसे भी खाने पड़े तब पहली बार माँ का दर्द समझ आया और हम सब के लिए नफरत भी…. ।

माँ जीते जी मेरा ब्याह एक ऐसे लड़के से करवा दी जो कुछ करता तक नहीं था…. ठेठ गाँव में बारह साल की उम्र में ब्याह कर भेज दी…..सास तो थी नहीं… और ससुर वो एक नंबर का कमीना इंसान… बेटा कुछ बोलता नहीं था बस रात को कमरे में आता सोता चला जाता….उस घर में मैं दिन-भर कोल्हू के बैल की तरह काम करती रहती थी क्योंकि जेठानी ताना देती पति कामचोर है तू भी काम नहीं करेगी तो खाना कहाँ से मिलेगा…. मुफ़्त का कुछ नहीं मिलता…..मुझे कुछ चाहिए भी हो तो जेठानी को कहती तो वो कहती ससुर को बोल मुझे नहीं….और ससुर के पास जाने की कभी हिम्मत नहीं होती थी…..क्योंकि वो मेरे पास आकर गंदी हरकत करता….एक दिन वो ज़बरदस्ती कर रहा था ग़ुस्से में उसे धक्का दे दी …. मेरे मायके खबर भिजवा दिया अपनी पागल बेटी को ले जाओ…. ।

पिता आकर ले गए…. कुछ समय बाद पता चला मैं माँ बनने वाली हूँ….. ससुराल वालों ने बदचलन करार कर मुझे अपनाने से इंकार कर दिया….. मायके में मैं माँ के तानों से घायल होने से अच्छा सोची ये कोर्स सीख कर काम करने लगूँ फिर मैं वैसी हालत में ही सीखने लगी फिर काम भी करने लगी…. मुझे याद है दीदी जिस दिन मुझे दर्द उठा माँ किसी दाई को ही घर बुलाकर लाई …बच्चा हुआ भी पर रोया नहीं…..मुझे लगता माँ ने मरवा दिया होगा पैदा होते क्योंकि उसको मेरा रहना भारी लगता था फिर बच्चे के साथ…. समय गुजरने लगा तो फिर पापा मेरी शादी की बाद करने लगे… बीस बरस की हो गई थी….. और  मेरी ज़िन्दगी में जगन पति बन कर आ गए…. पर ये शक्की बहुत…. मेरा काम पर जाना पसंद नहीं करते थे… और खुद भी जो कमाते खुद पर ही उड़ा 




देते जुआ शराब की लत थी मुझे ऐसा लगा एक नरक से निकल कर दूसरे नरक में आ गई हूँ ।काम भी बंद हो गया था मेरा…. इसी बीच बच्चे की आहट हुई दिल किया जाकर गिरवा दूँ…. पर पहला बच्चा आँखों के सामने नाच गया और मैं माँ बनना स्वीकार कर ली पर अब डॉक्टर की फ़ीस और मेरी दवाई वो सब के पैसे भी जगन नहीं देता था…. ससुराल वाले एक मदद ना करते…. ग़ुस्सा होकर मैं बोली शहर जा रही हूँ काम भी करूँगी और बच्चा भी पैदा कर लूँगी…. पता नहीं तब कैसे पति को थोड़ी दया आ गई और वो भी साथ शहर आ गया ।

मैं उस बढ़ते शरीर के साथ काम करती रही।

दीदी हमारे काम की कोई इज़्ज़त नहीं करते…. बहुत सारी मैडम है पैसे वाली वो जब घर पर बुलाती मैं जाती थी पर जब उनके पति नहीं होते एक बार एक ऐसे ही क्लाइंट के घर गई हुई थी उनके पति उस दिन घर पर ही थे वो बार-बार उस कमरे में आ रहे थे जहाँ मैं उनकी सर्विस कर रही थी वो बहुत गंदी नज़रों से देख रहे थे…. उस दिन के बाद मैं उनके घर बहाना बना कर जाने से मना करने लगी…. क्या कहे दीदी काम ही ऐसा है अब पता नहीं किसी अच्छे सैलून पर काम मिला तो कर लूँगी। अभी तो बस अपने बेटे पर सारा ध्यान लगा रहता है। पति के साथ रहने का मन नहीं करता दीदी वो बहुत अजीब व्यवहार करता है पर जब से बेटी हुई है उसको पापा से ज़्यादा लगाव है…. दीदी एक पत्नी की चाहत पति का प्यार होता है पर मेरा पति बस शरीर चाहता है….मन तो करता है मार दूँ उसको कभी पर बच्चों का मुँह देख शांत हो जाती….

सच कहूँ दीदी बस बच्चों की ख़ातिर सब कुछ बर्दाश्त कर रही हूँ….. बच्चों को पिता का नाम मिला हुआ…. समाज में लोगों की नज़रों में थोड़ी इज़्ज़त…..।

उस दिन प्रिया की कहानी सुन मन विचलित हो गया था फिर मेरा तबादला हो गया और प्रिया के अब के हालत से अब तक वाक़िफ़ नहीं थी।

राशि ने खोज कर प्रिया का नम्बर मिलाया और उसे कल घर आने को कहा।

दूसरे दिन प्रिया जब आई पहले जैसा उसमें कुछ नहीं दिखा…. पाँच सालों ने उसे बहुत बदल दिया था…. देखती ही राशि के गले लग बोली…. कितने दिन बाद याद किया कहते कहते भावुक हो गई….




“ चल रोना बंद कर ये बता अब तेरी ज़िन्दगी कैसी चल रही अभी भी पति के साथ बच्चों के लिए संघर्ष जारी है?” राशि ने पूछा 

“ अरे नहीं दीदी अब तो मैंने नामी सेलून ज्वाइन कर लिया है…. संजोग देखो आज मेरा ऑफ था तो मिलने आ गई….. दोनों बच्चों कोअच्छे स्कूल में डाल दिया है…. पति से वास्ता ना के बराबर है पर बच्चों के लिए अब वो भी सोचने लगा है….. नशे की आदत छूटती तो नहीं पर बेटी के मोह में वो भी कम कर दिया है…. दीदी अतीत ने इतने दुख दिखाए है मुझे की अब किसी संघर्ष से डर नहीं लगता….. बस एक ही बात मन मस्तिष्क में दोनों बच्चों को इतना काबिल बनाना की वो मेरे अतीत के दर्द से कोसों दूर रहे….जगन के साथ कामभर बात करती हूँ…. बच्चे बड़े हो रहे तो झगड़ा कर उनपर गलत असर नहीं पड़ने देना चाहती हूँ….. बस दुआ करों मैं अपने संघर्ष से हारना मानूँ और अपने बच्चों को उज्ज्वल भविष्य दे सकूँ ।” प्रिया ने कहा

तब तक सुमिता जी चाय नाश्ता ला कर रख दी जिन्हें प्रिया भी माँ ही कहती थी क्योंकि सुमिता जी उससे प्यार से पेश आती थी जो उसने अपनी माँ में कभी देखा ही नहीं था ।

दोस्तों ये कहानी किसी की सच्चाई है जिसे थोड़े शब्दों में पिरोने की मेरी कोशिश रही क्योंकि प्रिया के संघर्ष की तो ये झलकियाँ ही है उसने और ना जाने क्या क्या सहा तब जाकर वो उस मुक़ाम पर पहुँच पाई जहाँ से वो ये सोचने लगी की अब बच्चों के लिए कोई समझौता नहीं करना…. ज़िन्दगी एक बार मिलती हैं संघर्ष से गुजरे या सुख से ये सब क़िस्मत पर निर्गत करता है पर जो वो कर सकती है वो है मन लगाकर काम करना और बच्चों के लिए खुद को झोंक देना।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

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