कैसे इश्क कर लूं? – प्रेम बजाज

मधु (अचल से )- “तुम लड़कियों से इतना दूर क्यों भागते हो•••••? किसी की तरफ़ नज़र उठाकर देखो तो सही कितने खूबसूरत नज़ारे हैं आस-पास। मैं तो कहती हूं अचल तुम भी कर ही डालो इश्क़। 

 

अचल तल्ख लहजे में (मधु से)– “कर गुज़रने के लिए बहुत सी चीजें हैं दुनिया में, इश्क़ करना ज़रूरी तो नहीं”  !!  

 

मधु से भले ही अचल कुछ भी कह दे पर अपने दिल में उठती चिंगारी को वो  कैसे बुझाये और कैसे भुला दे उन लम्हों को जो उसने किसी खास के साथ महसूस किया लेकिन सामाजिक बंधन के कारण अपने दिल पर पत्थर रखकर अलग होना पड़ा ।

 

अचल को  फिर याद आया वो गुजरा ज़माना, जिसे वो लाख कोशिश करें भूलने की मगर नहीं भूल सकता। कैसे भूले वो अंजलि को, अंजलि तो जान थी उसकी।

नहीं!  थी नहीं है।

 

अभी भी अंजली उसकी सांसों में बसी है, उसकी रग-रग में लहू बन कर दौड़ रही है, भले ही ज़माने के लिए वो अलग हो गए मगर दिल से वो‌ कभी जुदा नहीं होंगे।

कैसे भूल सकता है उस दिन को………

 

अतुल और अंजलि ने एक साथ स्कूल पास किया और एक ही कालिज  में एडमिशन लिया। दोनों एक ही कालोनी में रहते थे, अतुल के घर से लगभग 15-20 घर छोड़ कर अंजलि का घर था। दोनों के पिता एक  ही फैक्ट्री में नौकरी करते थे। उसे याद है जब अचानक फैक्ट्री में किसी मशीन का पेंच निकला और भारी- भरकम मशीन धड़ाम  से जमीन पर गिरी, बदकिस्मती से अतुल के पापा वहीं खड़े थे और मशीन के नीचे बुरी तरह कुचले जाने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई।

 

अचानक इस खबर से मां सदमे में चली गई, बहन छोटी अतुल अभी 10वीं कक्षा में, कोई रिश्ते -नाते वाले नहीं, कौन सहारा बनता। 



लेकिन अंजलि के पापा ने बहुत मदद की, घर से खाना बनवा कर लाते, अंजलि की मम्मी और अंजलि का भाई सभी ने बहुत सहारा दिया अतुल के परिवार को, बिल्कुल अपनों की तरह। धीरे-धीरे सब नार्मल हो गया, अंजलि के परिवार का अतुल के परिवार से रिश्ता और गहरा होता जा रहा था, दोनों परिवार दुःख -सुख में एक-दूसरे का सहारा थे।

 

याद है वो पल अभी भी अतुल को जब अंजलि के बड़े भाई की शादी थी, तब इधर अंजलि का भाई फेरे ले रहा था, और उधर किसी कोने में दो जवां धड़कते दिल चांद को यज्ञ वेदी समझ हाथ में हाथ पकड़े फेरे लेते हुए वचन ले रहे थे, एक बंधन में बंधने को, एक नई ज़िंदगी का आगाज़ करने के सपने बुन रहे थे।

 इतने में अंजलि के पापा अंजलि को ढूंढते हुए आए और देख कर आग- बबूला हो गए।

 

उस समय तो ज़हर का घूंट पीकर अंजलि को हाथ पकड़कर ले गए, अंजलि, अतुल कहते रहे गए,” हमने कुछ ग़लत नहीं किया, हम प्यार करते हैं एक-दूजे से”

बस अंजलि के पापा ने एक ही बात कही,” इस समय कुछ नहीं बोलना, कल‌ घर‌ पर बात करेंगे” 

पूरी रात दहशत में बीती, ना जाने कल की सुबह क्या रंग लाएगी।

अतुल ने मां को सब सच बता दिया कि वो अंजलि के बिना जी नहीं पाएगा।

 

अगले दिन‌ सुबह‌ ही अतुल की मां अतुल को लेकर अंजलि के घर गई, अंजलि के पापा को यह समझाने‌ कि बच्चों ने कोई ग़लत काम नहीं किया, प्रेम किया है इन्होंने, पवित्र प्रेम।

 

लेकिन अंजलि के पापा ने एक ना सुनी, दहाड़ उठे,” प्रेम, हूऊऊऊ     क्या सोच कर मेरी बेटी को बहकाया था, हम क्षत्रिय और तुम शेड्यूल कास्ट।

 हमारी बराबरी में बैठने की औकात‌ नहीं है तुम्हारी।

अंजलि ने भी बहुत हाथ-पैर जोड़े, मिन्नतें की,” पापा हमने प्यार किया है, कोई गुनाह नहीं किया” 


अंजलि का भाई खींच कर उसे अंदर ले जाता है ये कहते हुए,” पापा कल‌ ही इसे बुआ के घर‌ भेज दो, थर्ड इयर प्राइवेट करवा लेंगे”

और अतुल की तरफ मुड़ कर,” अगर अंजलि का ख्याल भी तेरे मन में आया तो तेरे साथ मैं इसका भी खून कर दूंगा, हम क्षत्रिय इज्ज़त के लिए जान देते भी हैं और जान लेते भी हैं”

 

अतुल की आंखों के सामने घूम रहा है वो मंज़र, जब जाते-जाते अंजलि ने कहा था,” अतुल हम इस जहां में नहीं मिले तो क्या,  उस जहां में हम ज़रूर मिलेंगे, ईश्वर सच्चे प्यार को जुदा नहीं करेंगे। मैं तुम्हारा उस जहां में इंतजार करूंगी”

 

और अगले दिन पता चलिए कि रात में अंजलि ने अपने शरीर की चार-पांच नसें काट ली, जब तक सुबह देखा तब तक शरीर से एक-एक कतरा खून का निकल चुका था, आखिरी एक-दो स्वास बचे थे, लेकिन डाक्टर के आने तक वो भी जा चुके थे।

बस डाक्टर ने आते ही,” आई एम सॉरी” कहा और चल दिया।

 

खबर सुनकर टूट गया था अतुल, जीने की तमन्ना नहीं रही अब।

 

मगर… जीना तो है… जीना है उस बुढ़ी मां के लिए जिसका सुहाग ना रहा,  जीना है उस छोटी बहन के लिए जिसको उसका बाप बन कर पाला।

अगर वो मर गया तो उसके साथ दो और लोग भी मरेंगे। उनकी मौत का ज़िम्मेदार वो होगा।

इसलिए उसे दिल पर पत्थर रख कर जीना है। मगर वो इश्क नहीं कर सकता। कैसे करें इश्क किसी से, उसने तो अंजलि से इश्क किया है, सच्चा इश्क, अंजलि से बंधन में बंध चुका था वो। 

 

अंजलि उसकी राह देख रही है। ढूंढता है अंजलि को सितारों में।

 

वो रोज़ रात को बातें करता है अंजलि से,” अंजलि मैं आऊंगा, सामाजिक बंधन हैं अभी, उन बंधनों का क़र्ज़ अदा करके तुम्हारे पास आऊंगा, अपना हर वादा निभाउंगा”

इस तरह अतुल और अंजलि रोज़ बातें किया करते हैं, मगर ये बात कोई नहीं जानता, कोई नहीं समझता।

#बंधन 

प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

 

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