दादी के परांठे – नीरजा कृष्णा

आज राजकुमार उर्फ़ राजू को फाइवस्टार होटल में डिनर का न्योता मिला है। उसे तो अपने भाग्य पर भरोसा ही नहीं हो पा रहा था। उसका उतावलापन देख कर घर में सब हँस रहे थे। मम्मी उसकी सबसे अच्छी शर्ट पर प्रैस करते हुए बोली,

“इन बड़े होटलों के बस चोचले ही होते हैं। किसी भी चीज़ में  बढ़िया स्वाद ही कहाँ  होता है और बस लुभाने के लिए सजा कर पेश कर देते हैं। सब रईसों के चोचले हैं।”

सबलोग उनकी हाँ में हाँ मिला रहे थे…राजू से सहन नहीं हुआ। वो चिढ़ कर बोल पड़ा,

“आपलोग मेरे भाग्य से जल रहे हो। इस होटल में जाने का सौभाग्य बिरलों को मिल पाता है। मेरा दोस्त इतना बड़ा आदमी है। उसकी वज़ह से मेरा सपना पूरा हो रहा है।”

तभी दादी जी ने चौके से आवाज़ मारी,

“अरे राजू, बढ़िया आलूप्याज़ के परांठे बन रहे हैं। आजा, एक खाले।”

वो बाहर निकलते हुए चिल्ला कर बोला,

“ओह नो दादी, आज मेरा मूड खराब मत करो। मैं ग्रैंड होटल में डिनर के लिए जा रहा हूँ ना।”

बीच में दादा जी टपक पड़े,”दादी के हाथ के आलू के परांठों के लिए लोग तरसते हैं। तू बार बार फाइवस्टार होटल का ताना मार रहा है। जा भई जा, आज उसका मज़ा ले ही ले।”

वो ऐंठता हुआ वहाँ पार्टी में पहुँचा। वहाँ की चमकदमक से भौचक्का था पर खाने में तो कोई स्वाद ही नहीं था। उसे अपनी मम्मी की बनाई आलू की सब्जी और दादी के परांठे याद आने लगे। वो बेस्वाद सब्जी और कच्ची पक्की नान देख कर खाने का मन ही नहीं हो रहा था। सबलोगों को भूखे भेड़िए की तरह खाने पर टूटे पड़े देख कर उसे वितृष्णा सी होने लगी। रात को घर लौट कर सीधे चौके में जाकर कटोरदान से आलू का परांठा खाकर तृप्त हो गया। खटके की आवाज़ सुनकर मम्मी ने झांका…उसे घर के परांठे पर हाथ साफ़ करते देख कर हँसने लगीं। राजू झेंप कर बोला,

“सच्ची मम्मी, वहाँ नाम बड़े और दर्शन छोटे ही थे।”

नीरजा कृष्णा

पटना

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