कैसा ये रिश्ता? – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : राधा काकी मेरे पिता जी की रिश्ते की भाभी लगती थी ।हम लोग उन्हे काकी ही कहते थे।बहुत अच्छी, नेक और शालीन स्त्री थी वह ।मै शायद नौ साल की थी तभी उनका ब्याह राघव काका से हो गया था ।दुबली पतली, गोरी चिट्टी सी काकी बहुत प्यारी लगी थी तब।मैं तो हमेशा किसी बहाने से उनके पास ही जमी रहती ।”

काकी, चोटी बाँध दो” काकी मेरे कपड़े सिल दो,काकी आज तुम्हारे हाथ की सब्जी ही मुझे खाने हैं ” सब गुण थे उनमें ।लेकिन अम्मा डांटती ” कभी आराम भी तो करनें दे काकी को” लेकिन काकी कभी उबती नहीं थी।हम बच्चों के सारे फरमाइश खुशी खुशी पूरा कर देती ।बच्चों से लगाव भी बहुत था उनको।लेकिन ईश्वर कहाँ आंख मूंद कर बैठ गए थे कि शादी के पाँच साल बीत गए लेकिन उनकी गोद सूनी ही रही।

बहुत दौड़ धूप हुआ, बहुत इलाज हुआ ।पर नतीजा शुन्य था।घर में सास के ताने उलाहना शुरू हो गये।” कहाँ से यह निपूती मेरे घर में आ गयी,अब कैसे मेरे बेटे का वंश चलेगा, हाय हाय अब मेरा उद्धार कैसे होगा?” लेकिन राघव काका उन्हे बहुत मानते थे।कहा-” राधा, तुम अम्मा की बात का बुरा मत मानना, हम कहीँ से एक बच्चा गोद ले लेंगे ।चिंता मत करो “। लेकिन काकी तैयार नहीं थी इस बात के लिए ।

” नहीं जी,हम बाहर से गोद नहीं लेंगे, अपना खून तो अपना ही होता है ईश्वर हमारे गोद जरूर भरेंगे ।बात आई-गई हो गई थी ।सास का कोसना चालू रहता लेकिन काकी खुश थी राघव जो थे उनका खयाल रखने वाले ।पति सही हो तो पत्नी को किसी बात की चिंता नहीं होती ।आखिर छठे साल ईश्वर ने सुन ली ।उनकी गोद हरि हो गई ।गोल मटोल प्यारा सा बेटा पाकर काका काकी निहाल हो गये थे ।

फिर एक एक कर काकी चार बेटों की माँ भी बन गई थी ।सास अब बलैयां लेती।राघव काका हमारे घर आते तो माँ से नोकझोंक चलता ” जानती हो भाभी,चार चार बेटों का बाप बन गया हूँ, दस,दस रूपये भी देंगे तो चालीस रुपए हो जायेंगे ।मुझे कोई चिंता नहीं है अब चारों कमायेगें, और मै बैठ कर खाऊंगा ।” माँ उनकी बात सुनकर मुस्कुरा देती ।

काकी के बेटे खूब लड़ते ” अम्मां मेरी, अम्मां मेरी—” समय बीत रहा था ।वे सब अपनी पढ़ाई पूरी करके नौकरी में लग गये ।समय के साथ उनकी ही पसंद से सबकी शादी भी हो गई ।मेरी भी शादी हो गई तो मै भी अपनी घर गृहस्थी में मगन हो गई ।सभी खुश थे।माँ सबका हालचाल देती रहती ।फिर एक दिन माँ ने बताया कि राघव काका नहीं रहे ।

हमारा उनसे बहुत अपनापन था तो बहुत दुःख भी हुआ ।न जाने काकी कैसी होगी? बेटे तो सभी अच्छे हैं, अपनी माँ का खयाल तो रखते होंगे? मन में हजारों सवाल उठता फिर माँ से समाधान खोजती ।माँ ने ही एक दिन बताया कि उनके घर का बंटवारा हो गया है ।जो बेटे कभी अम्मा मेरी, अम्मा मेरी कहते नहीं थकते थे वे अब अम्मा तेरी, अम्मा तेरी कहने लगे हैं ।उनको अब कोई अपने साथ रखना ही नहीं चाहते ।उनकी पत्नी को सास से असुविधा महसूस होती है ।फिर चारों भाई ने आपस में सलाह किया कि तीन तीन महीने के हिसाब से वे उनके साथ रहेगी ।

मै सोचती, देखते देखते यह क्या हो गया? राघव काका को बहुत घमंड था अपने बेटों पर ।पर अब,कोई पूछने वाला नहीं ।इधर मै भी अपने घर गृहस्थी में बहुत बिजी हो गई ।बच्चों की शिक्षा और शादी के लिए ।बहुत दिनों से काकी के बारे में कोई समाचार नहीं मिला था ।मन में उनको लेकर एक बेचैनी थी।उनको देखने का,उनसे मिलने का बहुत मन करता था, लेकिन संजोग नहीं बैठ रहा था ।उनका प्यार, अपनापन बहुत याद आता।उनके बड़े बेटे के बेटी की शादी तय हो गयी थी ।

मै भी सोच रही थी कि काश मुझे भी निमंत्रण देते तो कम से कम काकी से मिलने का मौका हो जाता ।उनको एक बार देख पाती।घर में उदास, अनमनी सी बैठी थी कि डाकिया शादी का कार्ड दे गया ।मै शादी को लेकर जरा भी उत्सुक नहीं थी बल्कि मुझे खुशी इस बात की थी ” काकी से मिलने का मौका हो गया ” बेटे ने तुरंत टिकट का इन्तजाम कर दिया ।

अगले ही दिन का मेरा रिजर्वेशन था।शादी के लिए कुछ लेन देन का रख लिया ।और काकी के लिए अलग से एक साड़ी भी रखा ।कितनी खुश होगी वह ,मुझे देख कर ।पहुँची तो मंडप सजा हुआ था ।आज ही बारात आने वाली है ।सभी लोग दौड़ धूप में लगे हुए थे ।मेरी नजरें काकी को ढूंढ रही थी।भीड़ के बीच एक कोने में वह दिख गई ।दुबली सी,कृशकाय, मैले वस्त्रों में वह बैठी थी।शादी का घर था कम से कम एक अच्छी साड़ी तो दे ही सकते थे सब ? पर नहीं ।वे अब अनचाहे बोझ बन गई थी सभी के लिए ।

मैंने पुकारा-” काकी,देखो मै आई हूँ आप से मिलने ” वे अब सुन भी नहीं पा रही थी और न देख पा रही थी ।उनके आखं, कान ने अपना काम बन्द कर दिया था ।बहुत बूढ़ी हो गई थी वह ।शरीर से लाचार भी ।उनके हाथ को पकड़ कर सहलाया तो तुरंत पहचान गई ” मन्नू बेटा “? कब आई? बच्चे और मेहमान कैसे हैं? प्रश्नों की झड़ी लगा दी ।मेहमान अब नहीं हैं काकी।वे गले लगा कर फूट फूट कर रो रही थी ।” यह सब क्या हो गया रे”? सब लोग बारात के अगवानी के लिए दौड़ धूप कर रहे थे ।और इधर मै और काकी एक हो रही थी ।

बहुत कष्ट हुआ उन्हे देख कर ।क्या कर सकती थी ।रात में बारात आ गई।शादी भी हो गई ।लेकिन मै और काकी एक कोने में ।वे मुझे छोड़ ही नहीं रही थी।इसी तरह रात बीत गयी ।सुबह विदाई हो गई तो मेरा भी निकलने का समय हो रहा था ।” चलती हूँ काकी” उनहोंने जो कसकर पकड़ लिया तो छोड़ ही नहीं रही थी ।” अब नहीं देख पाओगी बेटा, जाने का समय हो रहा है मेरा” ऐसा मत कहिए काकी,अभी आपको रहना है ।उनको जार जार रोता छोड़ कर मै वापस लौट गई ।

एक सप्ताह के बाद ही माँ ने बताया कि वे नहीं रही ।बहुत खराब हालत हो गई थी उनकी ।बिस्तर पर ही, गंदगी में पड़ी रही, खाना पीना छोड़ दिया था ।कोई देखने वाला नहीं था ।एक दिन सोयी तो उठी ही नहीं ।”” चलो अच्छा हुआ, सबके उपर भारी होने लगी तो चली गई ” शिवानी जी की कहानी ” पूतों वाली ” याद आ गई ।काकी का जीवन कुछ वैसा ही तो था।उस कहानी में जीवन भर पति के प्यार को तरसती रही थी ।इस कहानी में पति का साथ, और प्यार भरपूर मिला था काकी को।ऐसी थी मेरी प्यारी राधा काकी ।चार चार बेटों वाली को क्या मिला? क्या वह अपने बच्चों के आदर,सम्मान का हकदार नहीं थी ? यह मै आप ,पाठकों पर ही छोड़ती हूँ ।

स्वरचित, मौलिक, अप्रसारित ।उमा वर्मा ।राँची, सिंह मोड, हटिया ।झारखंड ।

#खून के रिश्ता 

1 thought on “कैसा ये रिश्ता? – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi”

  1. पाप करना गलत है
    पर पाप का शिकार होना तो कोई गलती नहीं

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