जीने की राह – सुषमा यादव

,,, मैं अपनी बेटी के पास इस समय दिल्ली में हूं ,,, मैं खाना बनाना अपने हाथ से ही पसंद करती हूं,,पर इस समय मैं कोई काम नहीं कर सकती,, इसलिए खाना बनाने वाली को रखा गया है,,, मैंने देखा कि,, वो अक्सर ही काले, सफ़ेद,सूट पहन कर आती है ,उसका नाम बेबी है और उम्र लगभग पचास साल,, पर लगती नहीं है,,, दिल्ली में  महिलाएं ना तो बिंदी लगाती हैं,ना  सिंदूर और ना  ही चूड़ियां पहनती हैं,,, इसलिए समझ में नहीं आया,, एक दिन मैंने उसे अपने पास कुर्सी पर बैठा कर  परिवार के बारे में पूछा,,,तीन बेटे हैं,,अभी एक की भी शादी नहीं हुई,,,, अच्छा,,

और तुम्हारे पति,,, दीदी, वो तो बहुत पहले ही खतम हो गये थे,,

,, ओह,, तो मैंने अब राज जाना,,काले कपड़ों का,,, मैंने कहा,,, तुम इस रंग के कपड़े क्यों पहनती हो, तुम्हारी बेटी तुम्हे मना नहीं करती,,, नहीं दीदी,, मेरी बेटी नहीं है,ना,,,, अच्छा, ठीक है,,,बेटे तो वैसे भी ध्यान नहीं देते,, उनको इतना समझ में नहीं आता है,,,

,, कोई बात नहीं,पर बेबी, क्या तुम्हे नहीं लगता है कि तुम भी अच्छे कपड़े पहनो,, ढंग से रहो,,

, लाल,पीले ना सही,,पर हल्के कलर,,हरा, गुलाबी,नीला,,बैगनी

वगैरह तो पहन सकती हो ना,,

पर दीदी,मेरे परिवार वाले, और लोग क्या कहेंगे,,, लोगों के कहने पर तो मत ही जावो,, लोग तो अब भी कुछ ना कुछ कहते ही होंगे,, है ना, हां दीदी, वो तो है,,



,, अच्छा बताओ,, तुम  कहती हो,कि तुम अच्छे घर से हो,, राजपूत हो तो तुम्हें घर घर जाकर ये काम करते देखकर तुम्हारे परिवार वाले तुम्हें कुछ नहीं बोलते,, तुम्हारी मदद नहीं करते,,,, नहीं, दीदी, इनके जाने के बाद सबने दूरी बना ली,, मैंने ये सब काम करके अपने बच्चों को पढ़ाया,, और अब वो तीनों छोटे मोटे  काम भी करने लगे हैं,,

,,,तब फिर क्या सोचना,, तुम्हें भी हक़ है, अच्छे से रहने का,खाने पीने का,, बढ़िया कपड़े पहनने का,,, बेबी,, मैं तुमको बताऊं,,, इनके जाने के बाद मैं भी ऐसे ही हो गई थी,, हमेशा सजी,धजी रहने वाली मम्मी को देख कर मेरी दोनों बेटियों और मेरी सहेलियों का कलेजा मुंह को आता था,, वो सब दुखी रहतीं थीं,,, एक दिन मेरी छोटी बेटी ने अपने पास मुझे बिठाया और कहा,,, मम्मी,, यदि आप पापा के सामने इस तरह रहती,, बिना बिंदी, बिना चूड़ियां के और ये रंग हीन कपड़े,,तो,,,,,

,, मैं बोली,, तो क्या, जानती नहीं हो,, कितना गुस्सा करते थे,, उन्हें मेरा कितना ख्याल रहता था,, तो बस मम्मी मैं यही आपको समझा रहीं हूं,,, पापा कहीं नहीं गये, वो आपके साथ हमेशा रहेंगे,, उनकी आत्मा ऊपर से सब देख रही है,, अगर आप अच्छे से रहेंगी,, तो पापा आपको देखकर बहुत खुश होंगे,,आप दिनभर रोती रहेंगी, तो पापा और हम सब भी दुःखी होंगे,, और सूटकेश से साड़ियां निकाल कर मेरे सामने रख कर मेरे माथे पर छोटी सी बिंदी लगा दिया,,,, बिंदी लगा के और एक बढ़िया साड़ी पहना कर पापा के फोटो के सामने खड़ा कर दिया,, पापा,, देखिए, मम्मी, कितनी अच्छी लग रही हैं,ना,, और मैंने जब इनकी तरफ देखा, तो लगा,, ये मुस्करा रहें हैं,, और जैसे मेरे अंदर एक ऊर्जा का संचार हो रहा है,,रूदन करती आत्मा को जैसे परम शांति मिल गई हो,,,



और सारी जिम्मेदारियां निभाने की ताक़त आ गई हो,,, और मैंने अपनी बेटियों और दोनों बुजुर्गों को संभाला,,बेबी सच मानो,, हमारे जो अज़ीज़ होते हैं ना, वो हमारे साथ हमेशा रहते हैं,, तुम भी अच्छे से रहोगी तो उनकी आत्मा भी खुश रहेगी,,

,,,, मैंने दूसरे दिन देखा, तो आश्चर्य चकित रह गई,,बेबी ने भी शाय़द अपना बक्शा खोला,, खूबसूरत गुलाबी रंग का सूट पहने, हाथों में दो कंगन डाले खिलखिला रही थी,, दीदी सच में, मुझे भी अंदर से बहुत ही अच्छा लग रहा है,, हमेशा मेरे चेहरे पर मायूसी छाई रहती थी,, आप ने मुझे बदल दिया,,अब मैंने भी अपने काले सफेद कपड़े बाहर कर दिये,,

,, एक दिन वो दो तीन सूट, लेकर मुझे दिखाने आई,, मैरून,हरा और नीला,, ठीक है ना दीदी,, मैंने कहा,, हां, बहुत बढ़िया,,, खुशी उसके रोम रोम से टपक रही थी,,

,,,,, कभी कभी हम किसी चीज को समझ नहीं पाते,,आपके घर में भी आपका कोई ऐसा है,जो

कुछ ज्यादा उम्र होने पर या अन्य किसी कारणवश अपनी जिंदगी से निराश है,जीने की ललक नहीं है तो उनको भी समझाइये,,उनको भी संवारिये,,उनकी हताशा भरी जिंदगी से उन्हें बाहर निकालिए,,उनको भी बेहतर जिंदगी जीने का और खुश रहने का हक़ है,,,बदल डालिए उनकी

दिनचर्या,,।    उनको भी जीने की राह दिखाईये। ,, फिर देखिए, उनके जीवन का सुखद परिवर्तन,,,

,,, आप भी खुश वो भी खुश,,,

क्यों कि ये जिंदगी ना मिलेगी दोबारा,,,

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ प्र,

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