झुमका – संध्या त्रिपाठी  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : क्या बात है छोटी , जब से दिल्ली से आई है खोई खोई रहती है अपने आप हँसती है , मुस्कुराती है और बार-बार ये अपने कान के झुमके को क्यों छूकर शरमा जाती है , तू तो खेलने गई थी ना दिल्ली ? कौन सा खेल , खेल के आ रही है कहीं दिल के खेल में हार तो नहीं गई ना मेरी लाडो ? दादी ने मजाक भरे अंदाज में छोटी को छेड़ा ।

असल में दादी और पोती के बीच बहुत दोस्ताना संबंध था छोटी हमेशा अपनी दादी को बेस्ट फ्रेंड कहा करती थी और दादी भी छोटी से हंसी मजाक कर हम उम्र बनने की कोशिश में वातावरण को खुशनुमा बनाए रखने की भरपूर प्रयास में लगी रहती थी ।अरे दादी ऐसा कुछ भी नहीं है कहकर छोटी दादी के गले लग गई और प्यारी सी झप्पी ले ली । इस समय तो छोटी बात बनाकर दादी के नजरों से बच गई पर खुद ही दिन भर बीते हुए लम्हों के बारे में सोचती रही ।

दरअसल खेल खुद में आगे रहने वाली छोटी नेशनल खेलने के लिए दिल्ली रवाना हुई अपने मित्रों एवं कोच के साथ सुनहरे सपने लिए काफी खुश थी परिवार वाले भी बहुत खुश थे । टाटा , बाय-बाय का सिलसिला समाप्त होते ही छोटी अपने बोगी में आकर अपनी सीट पर बैठ गई और अगल-बगल गप्पे मारने लगी बीच-बीच में उसकी नजर सामने जाती , जहां एक खूबसूरत सा लड़का हाथ में न्यूज़ पेपर लिए पढ़ने की कोशिश कर रहा था , थोड़ी थोड़ी देर में पेपर नीचे कर एक नजर छोटी को देख लेता था छोटी ने भी ध्यान दिया जब भी तिरछी नजर से छोटी उसे देखने की कोशिश करती थी उस लड़के की नजर छोटी की तरफ ही होती थी और छोटी भी झेंप कर नजरें झुका लेती थी । रास्ते भर ये ही सिलसिला चलता रहा ना चाहते हुए भी छोटी उसे शर्मीले लड़के की तरफ आकर्षित हो रही थी ,उसका शर्माना छोटी से नजरे मिलते ही नजर झुका लेना उसे बहुत भा रहा था । दिन भर का सफर इन्हीं आंख मिचौली के बीच कट गया , शाम होते ही एक स्टेशन आने आया , ट्रेन की गति धीमी हुई अपना बैग पीठ पर टांगते हुए वो अनजान लड़का छोटी के बगल से पार होते हुए धीरे से बोलता हुआ –” आप इस झुमके में बहुत सुंदर लग रही है ” नीचे उतर गया । पूरे समय छोटी के कानों में उस लड़के की आवाज गूंजती रही और एक सुखद अनुभव होता रहा वो कभी अपने कानों में पहने झुमके को छुती और कभी खुद को और अधिक सुंदर समझती । सारा रास्ता इन्हीं कल्पनाओं में बीत गया ।

छोटी को दिल्ली से लौटे करीब एक हफ्ता हो गया इस बार छोटी के मस्तिष्क में खेल से ज्यादा उस लड़के का खुमार छाया था , अरे कुछ तो बोला होता , अपना एड्रेस ही बताया होता , बेवकूफ कहीं का !छोटी बड़बड़ा रही थी ।

कौन बेवकूफ़ लाडो , तू होगी बेवकूफ , मैं तो सयानी हूं सयानी ..दादी ने मजाक के अंदाज में कहा ।

समय बीतता गया .. महीने, साल गुजर गए । छोटी वो झुमका बहुत सहेज कर रखती , मानो बहुमूल्य खजाना हो और जब भी कोई विशेष समारोह में जाना होता छोटी झट वो झुमका पहनकर तैयार हो जाती है घर के सभी लोग बोलते भी कुछ और पहन ले छोटी , ये पुराना हो गया है । छोटी का वही रटा रटाया जवाब होता इस झुमके के पहनने से मेरी सुंदरता बढ़ जाती है ।

कभी-कभी छोटी की मम्मी बिटिया को चिढ़ाया भी करती थी इस गलतफहमी में कौन डाल दिया तुम्हें ? और छोटी को उस अनजान लड़के की याद आ जाती ।

पढ़ाई पूरी होते ही छोटी की शादी की बातें होने लगी । छोटी को कैसा लड़का चाहिए ये किसी को समझ में नहीं आ रहा था क्योंकि कितने लड़कों को छोटी ने कुछ ना कुछ कमी बता कर मन कर दिया था ।

घर में थोड़ा तनावपूर्ण स्थिति बनती जा रही थी एक दिन तो मम्मी ने छोटी से स्पष्ट रूप से पूछ लिया , कोई लड़का पसंद हो तो बताओ या शादी नहीं भी करनी है तो भी खुलकर बता दो ।

काफी सोच विचार कर छोटी अपनी बेस्ट फ्रेंड दादी के पास गई और बोली , दादी आज आप आप मुझे एक सलाह दीजिए दादी बनकर नहीं एक दोस्त बनकर । हां लाडो बोल तो तू क्या बात है ? और छोटी ने पूरा वाक्या दादी के समक्ष खोल कर रख दिया और मचलती हुई बच्चें की भांति बोली ,मुझे क्या करना चाहिए दादी प्लीज आप ही मेरा हेल्प करो । दादी पूरा वाक्या सुनने के बाद बोली..

देख लाडो , जब तू दिल्ली से वापस आई थी तभी मुझे तेरे चेहरे की चमक और तेरा खोए रहना, इस झुमके के प्रति तेरा प्यार देखकर मुझे ये तो समझ में आ गया था कि अब मेरी लाडो जवानी के दहलीज पर कदम रख रही है , फिर भी मैं निश्चित थी मैं अपनी लाडो की बेस्ट फ्रेंड जो हूं वो मुझे बताएगी ही । ये तो ठीक है दादी लेकिन अब बताओ ना कि मुझे क्या करना चाहिए ??

छोटी , “आज मैं तुझे लाडो नहीं छोटी बोल रही हूं ” क्योंकि जिंदगी में कुछ फैसले सिर्फ दिल से नहीं , दिल और दिमाग दोनों से लेने पड़ते हैं

” आज तेरे सामने तेरी दादी , तेरी बेस्ट फ्रेंड नहीं , जिंदगी के 65 साल का अनुभव बात कर रहा है “

छोटी , मेरी मान तो एक बहुत प्यारा सपना सिर्फ सपना सोच कर आगे बढ़ जा , जिंदगी में कई पड़ाव ऐसे आते हैं जिसे हम सब कुछ मान लेते हैं पर वो सिर्फ एक प्यारा सा एहसास होता है हकीकत नहीं । और जिंदगी बिना सच्चाई और हकीकत के नहीं चलती बेटा ।

छोटी , रंग मंच पर पर्दा गिर चुका है कहानी खत्म हो गई है , चल अब दूसरे शो की तैयारी कर , हकीकत वाले शो की । समझ गई मेरी बेस्ट फ्रेंड । आपके उम्र का तजुर्बा ने मेरे सारे उलझनो को मिटा दिया ।

मम्मी से बोल दीजिए , वो अपने ही शहर वाला लड़का मुझे पसंद है । ये बात हुई ना मेरी लाडो , चल अब जल्दी से एक प्यार भरी झप्पी दे दे ।

(स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिक कार्य सुरक्षित रचना)

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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