झाँसी की रानी – सरला मेहता

लक्ष्मी बाई पार्क के पास बसी झुग्गियों में ही मनु रहती है। वह मंदिर में प्रार्थना करती है, ” हे देवी माँ ! आज मैं बालिग हो गई हूँ। मुझे रिक्शा ड्राइवर का लाइसेंस मिल गया है। बीमार पापा का रिक्शा चलाकर भाई को फौज में भेजूँगी। शक्ति दो माँ। “

बस चल पड़ी मनु की गाड़ी। शुरू में नई सिखोड़ी रिक्शाचालक से लोग कतराते हैं। धीरे धीरे मनु की ईमानदारी व बहादुरी के किस्से आम हो गए। बुजुर्गों को हाथ पकड़कर घर तक छोड़ना, लुच्चों लफंगों से युवतियों की इज्जत बचाना के किस्सों ने उसे मशहूर कर दिया। महिला सवारियाँ तो उसे झाँसी की रानी ही कहने लगी हैं। मार्शल आर्ट के दांवपेंच जो सीख रखे हैं। रोज़ रिक्शा बढ़ाने के पहले वह पार्क में बनी रानी लक्ष्मी की मूर्ति से आशीर्वाद लेना नहीं भूलती है।

मनु की तरक्की देख अन्य पुरुष रिक्शा चालक उसे बदनाम करने का जुगाड़ ढूंढते रहते हैं। आख़िर मनु के कारण उनका धंधा जो ठंडा हो रहा है। मनु को कलेक्टर द्वारा दो बालिकाओं को गुंडों से बचाने के लिए पुरस्कृत किया जाता है। सारे रिक्शेवालों के मुँह पर ढक्कन लग जाते हैं।

आज मनु के पैर ज़मीन पर नहीं टिक रहे हैं। उसका भय्यू सेकंड लेफ्टिनेंट जो बन गया है। रहने के लिए छोटा सा घर भी बना लिया है।

” दीदी ! अब आप रिक्शा  नहीं चलाएंगी। “

” नहीं भय्यू ! मुझे अभी और भी काम करने हैं। दस नए रिक्शा आ गए हैं। कुछ गरीब लड़कियों को रिक्शा चलाना सिखा रही हूँ। उन्हें अब आसानी से किराए पर रिक्शा मिल जाएगा। “

” हाँ दीदी ! वैसे भी आप मेरी बात कहाँ मानने वाली हो। “

स्वस्थ हो रहे पापा कहते हैं, ” अरे मेरे फ़ौजी बेटे ! ये मनु है न तेरी दीदी, झाँसी की रानी है। “

सरला मेहता

इंदौर म प्र

स्वरचित

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