जन्मदिन – पूनम वर्मा

“बस दो घण्टे में आ जाऊंगा मम्मी ! प्लीज जाने दीजिए न ।” आशीष अपनी जिद पर अड़ा था ।

“बड़े हो गए पर समझदारी नहीं आई । घर में सारे लोग भरे पड़े हैं और तुम्हें कॉलेज जाना है ।” मैं भी मानने को तैयार न थी । तभी मेरे पतिदेव ने मुझे इशारे से बुलाया और कहा , “जाने भी दीजिए ! बच्चा ही तो है, दोस्तों के पास जा रहा होगा । दो घण्टे की तो बात है ।” उनके कहने पर मैंने उसे जाने की इजाजत दे दी ।

असल में आज मेरे बेटे का जन्मदिन था । आज अठारह साल का हो गया मेरा बेटा ! दादा-दादी, नाना-नानी सहित सभी रिश्तेदार उपस्थित थे । दोनों परिवार के बच्चों में सबसे बड़ा जो था । जन्मदिन की खूब गहमागहमी थी । सुबह सत्यनारायण भगवान की पूजा हुई । दिन में खाना-पीना चल रहा था । शाम को केक काटने का प्रोग्राम था ।

खाने के बाद सभी इकट्ठे बैठकर बातचीत करने लगे । बैठक में मर्दों की टोली तो एक कमरे में औरतों की टोली दूसरे में बच्चों की । पूरे घर में हँसी-ठहाके गूँज रहे थे । तभी आशीष हाथ में एक गिफ्ट का छोटा-सा डिब्बा लिए अंदर आया । सभी बच्चे पूछने लगे, “भैया ! क्या गिफ्ट मिला दिखाओ न !” उसने वह डिब्बा अपने छोटे भाई-बहनों के हवाले कर दिया । श्रुति ने लपक कर पकड़ा और झट से डिब्बा खोला । “अरे वाह ! यह तो कॉफी मग है ! कितना सुंदर है और इसमें कुछ लिखा भी है !”


“क्या लिखा है ? मुझे दिखाओ !” प्रथम छीनकर पढ़ने लगा -” आई एम प्राउड ब्लड डोनर !”

“ऐसा क्यों लिखा है भैया ?”अंशु ने उत्सुक होकर पूछा ।

तभी सिम्मी की नज़र आशीष की हाथ में लगी पट्टी पर गई । वह कुछ समझ गई और कहा, “अब बता ही दो भैया !”

“हाँ भई ! मैं रक्तदान करने गया था ।”

सुनते ही सभी बड़े चौंक गए । आशीष के पापा ने सुनते ही कहा, “बच्चे कहीं रक्तदान करते हैं ?’

“पापा ! अब मैं अठारह साल का हो गया हूँ, अब कर सकता हूँ । यह संयोग था कि आज ही मेरे कॉलेज में रक्तदान शिविर लगाया गया था । मैंने पहले इसलिए नहीं बताया कि मम्मी और आप सभी मेरे लिए परेशान हो जाते ।” कहकर आशीष सभी बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेने लगा । सभी लोग उसकी तारीफ कर गर्व का अनुभव कर रहे थे ।

-पूनम वर्मा

राँची, झारखण्ड ।

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