गूंगी चीख – लतिका श्रीवास्तव

चित्रकथा

मां… ओ मां  .. रूक जा …वो फिर चीखी… हृदय विदारक तीव्र चीख  ने  ट्रेन की पटरियों की ओर बढ़ते शालू के कदमों को त्वरित रोक  दिया!  ….ये तो उसी के अंदर से आती हुई आवाज है , वो घबरा सी गई,”कौन है “उसने थोड़ा डर और घबराहट से पूछा….”तेरी अजन्मी बच्ची हूं मां अभी तो मेरा सृजन ही नहीं हुआ और तू मेरे विनाश के लिए संकल्पित है! क्यों मां….?”एक बहुत बारीक आवाज ने तल्खी से कहा

 

फूट फूट के रो पड़ी शालू ..” मेरी बेटी!!!!! तो मैं क्या करूं!ये दुनिया तेरे मेरे लायक नही है,यहां तू बिल्कुल मत आ….कैसे करूंगी तेरा लालन पालन ,मैं तो खुद एक गूंगी लड़की हूं…अपना ख्याल अपनी बात तो किसी से अभिव्यक्त नहीं कर पाती… तेरा और इस पाखंडी अन्यायी समाज का मुकाबला कैसे कर पाऊंगी …”

 

..”क्यों होने दिया मां तुमने ऐसा ,तुमने विरोध क्यों नहीं किया मां ..अपने माता पिता से क्यों नहीं बताया सब कुछ…..तुम चिल्लाई क्यों नहीं थी मां…”??

 

किससे कहती मैं ….कलप उठी शालू ” चीखी थी मैं उस दिन भी जब मैं पैदा हुई थी !जोर से रोकर ही अपने अस्तित्व का बोध कराया था मैने उस पिता से !जो लड़की हुई है सुनते ही मेरा गला दबाने आ गया था,मैं तो तब भी चिल्लाई थी , पर मेरी चीख दबा दी गई ,मेरी आवाज को ही मार कर हमेशा के लिए मेरे चीखने का हक छीन लिया, मुझे गूंगी बना दिया उसने…अभी भी उसकी अनवरत बेरहम पिटाई के शोर में मेरी चीख दबा दी जाती है…….”

 

तुमने अपनी मां से अपनी व्यथा क्यों नही बताई मां…..उसने आकुल होकर फिर पूछा!

 


अपनी मां से!! आह भर कर शालू ने कहा,” क्या मैं उस मां से अपनी व्यथा कह पाती जो ज़िंदगी भर  अपनी ख्वाहिशों की हत्या कर हर पल व्यथाओ की सूली चढ़ती रही,जो ज़िंदा भी है तो एक बेजान लाश की तरह…..!!”

 

“क्या तुझको समझने वाला और कोई भी नही था मेरी प्यारी मां….?करुणा विगलित स्वर ने फिर पूछा

 

  ..” था ना “…तड़प कर शालू ने कहा,…”जिसे मैं सम्मान से अंकल कहती थी,जो बचपन से मेरे आस पास साए की तरह रहता था,मेरी जिदें पूरी करता था,मुझे स्कूल भेजने  के लिए मेरे मां बाप से लड़ता था,  जिसके साथ माता पिता की पिटाई की भी परवाह ना करते हुए,अपनी आगे की पढ़ाई और अपने पैरो पर खड़े होने की उत्कट महत्वाकांक्षा लिए, पूरे विश्वास के साथ मैं बाइक पर रोज दूर स्थित स्कूल जाती थी ,जिसके प्रति मैं प्रतिदिन ईश्वर तुल्य कृतज्ञता ज्ञापित करती रहती थी, नासमझ थी बेटा मैं!! कुछ समझ नहीं पाती थी उसके इरादे भी और हरकतें भी ..उसी ने एक दिन मेरी आस्था के  साथ साथ मेरी इज्जत को भी बड़ी निर्ममता से तार तार कर दिया …. मैं तो गूंगी हूं ना !पर उस दिन भी मैं चिल्लाई थी !! जोर जोर से चिल्लाई थी !सुनाई पड़ रही तीव्र चीखों को जो लोग नज़र अंदाज़ कर देते हैं बेटा मेरी दबी चीखों को कौन सुनता!!!!

 

मां ..मेरी मां !तुम उस आदमी की नीयत क्यों नहीं समझ पाई,विरोध क्यों नही किया!!उसके स्वर का आक्रोश स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था…

 

बिलख उठी शालू ..”अरे बेटी मेरी मासूम बुद्धि  उन घृणित हरकतों को और उसकी मीठी टॉफी,उपहारों को अपने अंकल का  निश्छल निष्पाप स्नेह और दुलार  समझ अनुगृहित होती थी….!किसी ने कभी बताया ही नहीं…मेरी दुविधाएं अव्यक्त ही रहीं मेरी गूंगी जुबां की भांति !!जब तक मेरी अल्प बुद्धि उसके इन कुत्सित इरादो को समझ पाती बहुत देर हो चुकी थी मेरी बेटी…!

 

चल!!अब मेरे साथ तेरा भी इस स्वार्थी, घृणित दुनिया में समाज में रहना ,इज्जत से जीवन यापन करना महा दुष्कर है ,चल! इस दुनिया से दूर हम अपनी स्नेह की ,ममता की, प्यार की दुनिया बसाएंगे मेरी बच्ची!!मैं तेरी अपराधिनी हूं तेरी गलती ना होते हुए भी सजा तुझे मिल रही है…मुझे माफ कर दे!”शालू के रुके कदम फिर बढ़े……

 

…”रुक मां रुक !!”…उसने फिर से जोर से चीख कर तेज रफ्तार से आती हुई ट्रेन के सामने जाते हुए शालू के पैरों को  अपनी जगह पर जमा सा दिया…”अब मेरी सुन मां …ये मरना तो सबसे आसान समाधान है, कभी भी कहीं भी किया जा सकता है! जिसने तेरे साथ जीवन भर बदनीयती की, तेरी मासूमियत की धज्जियां उड़ाई उस व्यक्ति को भी चैन से जीने का कोई हक नही होना चाहिए,सब कुछ सहा तूने पर अब अपनी इज्जत से खिलवाड़ असहनीय है मां….एक बार दुनिया के सामने असली गुनहगार का चेहरा आना ही चाहिए …कोशिश करके देख ले मां दुनिया बदल रही है …. आज भी तू खामोश रही तो कल दूसरी लाखो मासूम शालू यूं ही बदनामी और गुमनामी के अंधेरों की ग्रास बनती रहेंगी !तेरी खामोश चीख को बुलंद करने वाला कोई तो जरूर होगा…चल मां एक बार अपने स्कूल की टीचर या प्रिंसिपल को सब कुछ बताने की हिम्मत कर …….पुलिस में शिकायत तो दर्ज कर मां…अपनी चीख को बुलंद आवाज दे मां  फिर भी कुछ नहीं हुआ तो फिर हंसते हंसते तेरे साथ जहां ले चलेगी चल दूंगी मेरी मासूम मां!मेरी हिम्मती मां!!

 

आर्तनाद कर उठी शालू “कौन साथ देगा इस गूंगी लड़की का बेटी,कौन विश्वास करेगा मेरा,जब मेरे माता पिता अपनी बदनामी के डर से मुझसे किनारा कर रहे हैं तो मेरी सहेलियां मेरा स्कूल भी तो मेरे कारण बदनामी  क्यों मोल लेगा ?नहीं बेटी अब और नहीं…..

” हम विश्वास करेंगे अपनी सहेली का हम साथ देंगे तेरा  कहते हुए अचानक शालू की सहेलियों ने आकर उसे पकड़ लिया “अरे शालू ये क्या करने जा रही है हम तुझे कब से ढूंढ रहे हैं,,हमने सब देखा है और मैडमजी को भी बताया है वो भी तेरे साथ है  तू बिल्कुल निर्दोष है ..चल हम सब तेरी गूंगी चीख को मुखर करेंगे पगली…….”

 

शालू के रुके कदम फिर चल पड़े…. लेकिन इस बार ट्रेन की पटरियों पर नहीं वरन न्यायऔर नए विश्वास की उन पटरियों पर जहां उसकी गूंगी चीख को आवाज मिलेगी।।

सादर

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