जैसा करोगे वैसा भरोगे  : Top 10 moral stories in hindi

Top 10 moral stories in hindi :  दोस्तों आपको इसमे 10 चुनिन्दा दिल को छु जानी वाली कहानियाँ पढ़ने को मिलेगी

इल्जाम

“ये फिर आज नेहा के लिए नई ड्रेस लेकर आ गई तुम”.. कहाॅं से लाती हो तुम, राघव सुरभि के हाथ में छोटी बेटी नेहा के लिए लाई हुई ड्रेस देखकर कहता है।

“कल उसका जन्मदिन है, इसलिए”..

“मैं न कहती ट्यूशन और कंप्यूटर क्लास के अलावा भी ये कहीं कोई काम करती है। जब सारे पैसे तुम्हें दे देती है तो पैसे कहाॅं से आएंगे इसके पास”…सुरभि की बात पूरी होने से पहले ही सास रमा ने उसे खरी खोटी सुनाना शुरू कर दिया।

“सुरभि चंचल को कॉलेज ट्रिप के लिए कुछ पैसे चाहिए थे। अकाउंट में पैसे नहीं हैं। सारे पैसे कहाॅं गए”…सुरभि के घर में घुसते ही राघव ने गुस्से से पूछा।

“मेरे अकाउंट में, मैं आप दोनों के रोज रोज के इल्जाम से थक गई थी। इसलिए अब मैंने खुद के नाम से अकाउंट खुलवा लिया है। मुझे अगर आप से पैसे छुपाने ही होते तो हम दोनों के नाम से ज्वाइंट अकाउंट क्यों खुलवाती। अरे काम वाली हटा दिया कि कुछ पैसे बचे। पैदल आने जाने लगी, जिससे अपनी बेटियों के लिए कभी कभी कुछ ले सकूं। अपनी बहन पर खर्च करना हो तो आपके लिए वो कोई फिजूलखर्ची नहीं होती लेकिन इन छोटी बच्चियों की बात होती है तो पैसे का रोना शुरू हो जाता है। संपन्नता और विपन्नता में अंतर होता है राघव जी। अब बहुत हो गया, जब आपका इल्जाम सहना है और आप लोग की खरी खोटी सुननी ही है तो पैसे अब से मेरे अकाउंट में आएंगे, जिस पर सिर्फ मेरी बच्चियों का अधिकार होगा”…राघव और रमा को कुछ बोलने का अवसर दिए बिना ही सुरभि अपने कमरे की ओर बढ़ गई।

आरती झा आद्या

दिल्ली

गलत शिक्षा का परिणाम

 

आज राशि के देवर की सगाई थी।राशि ने भी इस पल का बहुत बेसब्री से इंतज़ार किया था। घर में सभी का उत्साह देखते नहीं बन रहा था। सगाई की पूरी तैयारी हो चुकी थी। कुछ सामान गाड़ी में ही रह गया था। राशि की सासू मां ने उसको वो सब लाने के लिए कहा। वो सामान लेकर वापिस आ रही थी,तभी कुछ शोर आता हुआ सुनाई दिया।किसी के चिल्लाने की बहुत तेज़ आवाज़ राशि के कानों से टकरा गई।

राशि से रहा नहीं गया वैसे भी वो अपने इकलौते देवर की सगाई में कोई व्यवधान नहीं चाहती थी। उसके कदम खुदबखुद आवाज़ की दिशा में मुड़ गए। वहां पहुंच कर उसने देखा कि उसके चाचा ससुर का लड़का विनय एक पंद्रह-सोलह साल के वेटर को बहुत खरी खोटी सुना रहा था। साथ ही वहां खड़े अन्य लोग भी तमाशबीन बने मज़े ले रहे थे। पहले तो राशि को कुछ समझ नहीं आया फिर उसने चुपके से अपने पति को फोन करके वहां बुला लिया।

विनय वेटर के चांटा मारने ही वाला था कि राशि को देखकर रूक गया। इतने में राशि के पति भी वहां आ गए,तब पता चला कि विनय जानबूझकर बार-बार वेटर से अलग-अलग खाने पीने की फरमाइश कर रहा था वो उन मांगों की पूरी भी कर रहा था पर इस बार वो कुछ अन्य मेहमानों को सर्व करने बीच में रूक गया था। ये बात विनय को नागवार लगी थी। उसने इसी बात का बतंगड़ बनाकर हंगामा करना शुरू कर दिया था। 

राशि और उसके पति को विनय की आदत पता थी। वैसे भी विनय अपने ताऊ के परिवार से जलता था और उस छोटी उम्र के वेटर को मोहरा बनाकर उनको नीचा दिखाना चाहता था। सब समझ में आते ही राशि का पति ने वहां उपस्थित लोगों से कहा कि आप सभी लोगों का सगाई और रिंग सेरेमनी की रस्मों में बेसब्री से इंतज़ार हो रहा है। ये सुनकर सभी वहां से हटकर जिस जगह पर सगाई की सारी रस्में हो रही थी वहां चले गए। अपनी योजना विफल होती देख विनय भी चुपचाप वहां से चला गया। 

उधर राशि ने वेटरl को कहा कि कई लोगों की आदत दूसरों को मोहरा बनाकर रंग में भंग डालने की होती है। तुम्हारा कोई दोष नहीं है। तुमने तो अपनी ड्यूटी अच्छे से की है। ये सुनकर वेटर के चेहरे पर भी निश्चिंतता के भाव आ गए। वो ये सब कहकर वापिस जाने लगी और सोचने लगी कि घर के बड़ों को आपसी मतभेदों को बच्चों से दूर रखना चाहिए।

विनय की इस प्रकार की घटिया सोच बचपन में मिली गलत शिक्षा का परिणाम है जिसकी वजह से वो अकारण ही हंगामा करके अपने ही परिवार का उपहास समाज के सामने बनाना चाहता था।आज तो बात फिर भी संभल गई नहीं तो घर को महाभारत का रण बनने में देर नहीं लगती। वो कभी भी अपने और देवर के बच्चों में इस तरह का दुराव नहीं आने देगी। तभी उसकी सासू मां ने उसको बुलाया और वो चेहरे पर मुस्कान लिए स्टेज की तरफ बढ़ गई।

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

खरी खोटी सुनाना     

    ICU में बेहोश , नलियों में जकड़ी अम्मा और टुक-टुक करते मॉनिटर को देख दीपा का मन भर आया, कंपनी के काम से कल सुबह ही दिलीप एक माह के लिए सिंगापूर गये और रात को ही अम्मा को ब्रेनहैमरेज के कारण अस्पताल लाना पड़ा. सुबह छह बजे देवर राकेश से यह खबर सुनते ही दीपा अपनी पाँच वर्ष की बेटी रिया को सहेली के पास छोड़ती हुई जरूरी सामान के साथ अस्पताल पहुँची . इन तीन महिनों में सबकुछ कितना बदल गया ,उसका परिवार बिखर सा गया है.घर की खुशियों को जैसे नजर लग गयी हो। 

पढ़ी लिखी, शालीन और संस्कारी दीपा हर हुनर में निपुण कलाकार की तरह वह सबके प्रति अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही थी। उसके आने से बाबूजी के मन में जैसे बेटी न होने का मलाल ही न रहा हो, इसी वजह से कुछ भी कुछ भी काम होने पर वह अपनी पत्नी शीलादेवी से ज्यादा दीपा बेटी को  पुकारा करते। कोई भी सास अपनी तुलना में बहू को ज्यादा महत्व कैसे बर्दाश्त कर सकती थी, साँप के फन को छेड़ दो तो फुफकारे बिना नही रहता यही दशा शीलादेवी की इस समय हो रही थी.कल की आई बहू को इतना सम्मान मिलना ही अम्मा के मन में घोर अपमान बन चुका था.तिलमिलाए साँप की भांति बदला लेने के फिराक में थी।

उस दिन  दीपा कितनी खुश थी जब उसने घरबैठे अपनी सूझबूझ से  म्युच्युअल फंड से मुनाफा कमाकर बाबूजी की वाहवाही लूटी थी. इत्तफाक से दिलीप का जन्मदिन भी था इसलिए सुबह सत्यनारायण की पूजा का भी आयोजन किया था…ना आरती ना कथा….अम्मा आज कमरे से बाहर ही न निकली थीं.दीपा ने सुबह से ही सबकी पसंद के व्यंजन बनाए थे.भोग लगाकर सब खाना खाने मेजपर बैठे पर अम्मा न आईं।

दीपा बुलाने कमरे में गयी तो पहले से ही भरी बैठी अम्मा उसपर ही बरस पड़ी “खूब खरी खोटी सुनाई”….दीपा के होठ कँपकँपाने लगे आँखो से सावन बरस पड़ा.बाबूजी गंभीर मुद्रा से सब देखसुन रहे थे….भोजन की थाली को हाथ जोडकर घरसे निकल गये, स्वादिष्ट भोजन का स्वाद अब फीका पड़ गया था। किसी से खाया न गया.

तीन बजे बाबूजी लौटे तो मेटाडोर के साथ ही….अम्मा राकेश और जरूरी सामान लेकर पुश्तैनी मकान में रहने चले गये….सबकुछ इतना अकल्पनीय था कि दिलीप और दीपा समझ ही न पाए.एक झटके में परिवार बिखर गया…. दिलीप अपने काम में व्यस्त रहते  पर दीपा अब बुझी बुझी रहती, हँसना जैसे भूल गयी हो….

अम्मा की हालत भी दीपा से कम नही थी…. घरके कामकाज अब जल्दी न सिमटते, टीव्ही देखना अब रास न आता, बाबूजी से भी नपीतुली बातें ही होती…ना भोजन में रस आता ना रात को नींद आती .अंदर ही अंदर कोई बात खाए जा रही थी.देखते देखते तीन महीनों का समय बीत गया.. अम्मा रात डेढ़ बजे पानी पीने उठी तो चक्कर खाकर धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ी, राकेश और बाबूजी तुरंत बेहोश पड़ी अम्मा को लेकर अस्पताल भागे उनकी नाक से लगातार खून रिस रहा था।

ब्रेनहैमरेज कहकर अगले तीन दिन बेहद मुश्किल हैं कहकर डॉक्टर ने उपचार करना प्रारंभ किया…दीपा बार-बार काँच के दरवाजे से उन्हे देख आती कुर्सी पर बैठते ही उनकी सकुशलता के लिए  उसके हाथ जुड़ जाते…आज तीसरे दिन डॉक्टर ने हालत में सुधार बताते हुए उनके होश में आने की बात बताई तो बरबस दीपा की आँखे छलक उठी।राकेश और बाबूजी ने भी चैन की साँस ली…एक हफ्ते बाद उन्हे IC U से कमरे में शिफ्ट किया गया.अम्मा उम्र में, अनुभव में,पद-प्रतिष्ठा में, मान-सम्मान में बड़ी थीं…

यह हालत देख उनकी देखभाल का जिम्मा दीपा ने ही ले लिया था…दवा, दुआ के साथ दीपा की सेवा रंग लाई…तीन हफ्ते में वो स्वस्थ हो गयीं.आज अस्पताल से उन्हे छुट्टी मिलनी है,दीपा अपना निर्णय बाबूजी और राकेश को सुना चुकी थी ….दिलीप के सिंगापूर से लौटने से पहले वह अपना बिखरा परिवार फिर से समेट लेना चाहती थी….टैक्सी अस्पताल के दरवाजे पर थी…दीपा व्हीलचेअर से अम्मा को टैक्सी में बैठा कर घर ला रही थी….

कहानी का सार-किसी को खरी खोटी सुनाने से मन की भड़ास भले ही निकल जाये, लेकिन रिश्तों में दरार भी इसी से डल जाती हैं।

सुषमा पांडे

नागपुर

जैसा करोगे वैसा भरोगे 

अपने पैंसठवे जन्मदिन पर सुभद्रा जी उस शहर के एक वृद्धाश्रम में जाकर कुछ कपड़े और मिठाई बाँटना चाहती थी… 

उन्होंने जब अपने बेटे से कहा तो वो बोला ,“ माँ नई जगह पर आप ये सब करने को कह रही हो मैं तो खुद यहाँ दो महीने पहले आया हूँपता कर बताता हूँ फिर आप चली जाइएगा।” 

दूसरे दिन सुभद्रा जी को लेकर बेटा एक वृद्धाश्रम पहुँचा वहाँ पर सबके हाथों मे सामान देकर अच्छे से बात करते हुए  अचानक वो एकमहिला को देख कर रूक गई.. बिखरे बाल… कपड़ों का भी कोई होश नहीं.. जाने किन ख़्यालों में वो गुम थी उसकी सूरत थोड़ी जानीपहचानी लगी तो वो वहाँ के एक स्टाफ़ से उस महिला के बारे में पूछने लगी

“ अरे वो गायत्री आंटी बड़े रईस ख़ानदान की है..पर बेटा बहू कोई इन्हें ना पूछता… यहाँ छोड़ गए हैं कभी देखने तक ना आते… बसचुपचाप रहती है कुछ बात करो तो एक ही बात बोलती जैसा करोगे वैसा भरोगे।”

नाम सुनते सुभद्रा जी भाग कर उसके गले लगते बोली,“सखी तू यहाँ कैसे… तेरा बड़ा बंगला.. रुआब सब किधर गया।”

 ये आवाज़ गायत्री जी कभी भूल ही नहीं सकती थी उनके बचपन की सखी की जो थी … गले लग रोते हुए बोली,” जैसा करोगे वैसाभरोगे…. सच है मैं अपनी अमीरी में बड़े लोगों पर ज़ुल्म ढाएँ… किसी को ना समझी जो मन में आता खरी खोटी सुना दिया करती नौकरचाकर चुपचाप सुनते …बच्चे भी सुन कर सहमें रहते ….पति कहते ये आदत अच्छी नहीं पर मैं कब किसी की सुनी थी …अपने बच्चों कोना संस्कार दे पाई ना समय… हमेशा बात बात पर खरी खोटी सुनाती रही…बहू आई तो उसे नीचा दिखाने में लगी रही और पति के देहांतके बाद जब मैं बीमार लाचार हो गई बेटे बहू ने मुझे खरी खोटी सुनाना शुरू कर दिया… जिन्हें मैंने कभी समय नहीं दिया वो मुझे कहाँसमय देते… सेवा तो दूर की बात थी मुझे यहाँ ला छोड़ा… अब पैसे का घमंड वो करते हैं … मैं यहाँ बैठ कर उपर जाने के दिन काट रही हूँ।”लाचार सी गायत्री जी ने कहा 

सुभद्रा जी कुछ कह नहीं पाई सही ही तो कह रही थी… जैसा करोगे वैसा भरोगे ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

सीरत

              नताशा एक पढ़ी लिखी ऊँचे पद पर कार्यरत थी।उसके मां-बाप को उसकी बढ़ती उम्र के साथ उसकी शादी की चिंता हो रही थी । आज के समाज के अनुसार उसमे भारी कमी थी और वह थी उसका रंग जो की सांवला था, जिस कारण कोई लड़का उसे पसंद नहीं करता था।

पर कोई था जो अपना दिल उस पर हार बैठा था। ‘जिसने’ उसकी सूरत ना देख उसकी सीरत से प्यार किया। ‘जो’ उसकी हर हरकत को देख रोज उस पर फ़िदा हो रहा था। उसकी प्यारी हंसी, उसकी  मधुर आवाज,उसकी सादगी ‘उसे’ दीवाना कर रही थी।

एक दिन ऑफिस में एक पार्टी थी, जिसमें परिवार को शामिल करना था। नताशा अपने माँ-बाप के साथ आई थी।’वो’ भी अपने माँ-बाप के साथ था । 

आज अचानक वो स्टेज पर गया और नताशा से बोला-  “क्या, तुम मुझसे शादी करोगी?” 

उसके इतना कहने मात्र से ही  कानाफूसी शुरू हो गयी। 

यह बॉस को क्या हो गया? इन्हे तो नताशा से बेहतर लड़की मिल जाएगी।  

    सब की बातें सुन नताशा की आँखों में आंसू आ गए जिसे देख  ‘वो’ यानि बोस विनोद  से रहा नहीं  गया।  

बॉस ने सबको खूब  खरी-खोटी सुनाई और खुसुर-पुसुर बंद करने को कहा। 

फिर कहा ..  तुम केवल उसकी बाहरी ख़ूबसूरती देखते हो पर मैंने उसके मन की ख़ूबसूरती से प्यार किया है। 

तुमने कभी आते-जाते गेट पे खड़े चपरासी को नमस्ते बोली है, 

चाय वाले को भूखा देख उसे अपना खाना दिया है, कभी किसी अनजान को सड़क पार करवाई है… नहीं ना …..

यह सब नताशा करती है ।

 हां, मैंने उसकी इसी ख़ूबसूरती से प्यार किया है। 

अब सब चुप थे। पर नताशा और विनोद के माँ बाप में खुसुर-पुसुर चल रही थी और नताशा ने आँखो ही आँखो में शादी की सहमति दे दी थी।

रीतु गुप्ता

अप्रकाशित

घूंघट

आज नयी नवेली बहू दीक्षा का गृहप्रवेश हुआ था।वह पढ़ाई लिखाई सर्विस करने वाली आधुनिक विचारों की बेटी रही है अब ससुराल पहुंची।उससे कहा गया कि बहू तुम ऐसा करना कि तुम्हारी मुंह दिखाई की रस्म हो रही है ,तो तुम घूंघट में ही रहना।ये एक प्रकार की रस्म है।तब तो उसे लगा वह कैसे दो तीन घंटे घूंघट में रहेगी।उस समय वह कुछ न बोली ।

शाम हुई तब रिश्तेदार और पड़ोसी सब आने लगे।

दीक्षा को सिर ढंककर बैठा दिया गया।अब एक घंटे से ज्यादा हो रहा था तो सब कहने लगे अरे बहू का घूंघट कम कर दो, गर्मी लगने लगी होगी।

तब दादी सास ने कहा -“अरे ऐसे कैसे हम हमारी नयी बहू का घूंघट कम कर दें।” तब एकदम से दीक्षा को घबराहट होने लगी।तब उसने अपना घूंघट जैसे ही ऊपर उठाया, तब दादी सास टोकती हुई कहने लगी।अरे बहुरिया कछु लाज शर्म है कि नहीं! क्या सीखकर आई हो? तुम्हारे मां बाप ने यही सिखाया है ?ये सब सुनकर कहने लगी -“दादी जी आप ये सब क्या कह रही है। मुझे गर्मी लग रही थी, इसलिए घूंघट उठाया था।”

तब आस पास बैठी औरतें भी कानाफूसी करने लगी अरे नयी बहू तो दादी सास को जवाब भी देने लगी। जिसके आगे इसकी सास की जुबान न खुलती थी आज तो नयी बहू बोली पड़ी।

तब उसकी ननद नेहा ने सुना तो बोली -आप लोग को तो एक मौका चाहिए बात का बतंगड़ बनाने का,आप लोग ने मेरी भाभी को स्टेज में जयमाला के समय नहीं देखा या गृहप्रवेश के समय नहीं देखा।अगर मेरी भाभी को गर्मी लग रही तो क्या करें! और दादी आप भी तो समझो भाभी इतनी गर्मी कैसे सिर ढंककर रहे!

हमारी भाभी पढ़ी-लिखी है वो कब तक घूंघट में रहेगी।आप लोगों को क्या•••• ये केवल एक रस्म है जिसमें नयी बहू का चेहरा देखकर शगुन‌ दिया जाता है। इसलिए मुंह दिखाई की रस्म होती है इस तरह उसने सबको खरी खोटी सुनाकर सबकी बोलती बंद करा दी।

स्वरचित मौलिक रचना

अमिता कुचया 

 

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