जब किसी दूसरे का दुख अपना सा लगे – मुकेश कुमार

राधिका का परिवार एक मध्यमवर्गीय परिवार था उसके ससुर बैंक में मैनेजर से रिटायर हुए थे और पति बिजली विभाग में नौकरी करते थे।  शादी से पहले राधिका भी प्राइवेट स्कूल में टीचर थी लेकिन शादी के बाद उसने अपना जॉब छोड़ दिया था। 

राधिका की इकलौती बेटी भैरवी का कल जन्मदिन था उसकी मां ने उसके लिए बिल्कुल सफेद परी जैसा ड्रेस खरीद कर लाई थी। राधिका ने सोचा कि ड्रेस  बेटी को पहना कर देख लेती हूं अगर फिट  नहीं आएगा तो मेरे पास आज का ही समय है उसे बदल कर ला दूंगी।  राधिका ने जैसे ही अपनी बेटी भैरवी को ड्रेस पहनाना चाहा ड्रेस  बहुत ही टाइट आ रहा था।  उसने फैसला किया कि आज शाम को जाकर ड्रेस बदल कर आएगी  और साथ में अपनी बेटी भैरवी को भी ले जाएगी क्योंकि कल ही जन्मदिन है अब उसके पास टाइम नहीं था दोबारा बदलकर लाने के लिए। 

 राकेश जी  यानी कि राधिका के ससुर थोड़े पुराने ख्यालों के थे उन्होंने भैरवी के ड्रेस को देख कर कहा, “बहु ड्रेस ऐसा खरीदो कि उसे बाद में भी पहना जा सके यह कैसी ड्रेस खरीदी हो जो सिर्फ 1 दिन ही पहना जा सकता है।” 



 राधिका ने अपने ससुर से कहा, “बाबूजी आप नहीं समझेंगे यह सब पार्टी वियर ड्रेस तो एक ही दिन पहना जाता है। तभी राधिका की सास बोल पड़ी जो नए खयालो की थी उसने अपने पति से कहा आपको क्या पता जी ड्रेस के बारे में अभी हमारी गुड़िया नहीं पहनेगी तो कब पड़ेगी।  हमारी तरह कोई दादी अम्मा थोड़ी हो गई है जो 20 साल पुरानी साड़ी भी पहनती रहे। 

 राधिका ने अपनी सास से कहा, “माँ जी  आप सही कह रही  हैं”

राधिका के ससुर बोले, “बहु कल मोहन गांव जा रहा है तो मैं सोच रहा हूं कि जो भी हमारे घर में पुराने कपड़े हैं उसको दे दूं वह कुछ कपड़े  अपने पास रख लेगा और कुछ गांव में ले जाकर दान कर देगा।” “जी पापा जी” राधिका ने कहा। 

 राधिका ने अपने घर के जितने पुराने कपड़े हैं सब निकाल कर रख दिए अपने पति  और ससुर जी के कपड़े तथा अपने सासू मां उसका और उसकी बेटी के भी पुराने कपड़े जो अब नहीं पहनते थे निकाल कर रख दिए थे। 

 शाम हुई और वह अपनी बेटी को लेकर मार्केट में उसकी ड्रेस चेंज कराने के लिए चली गई। आज संडे का दिन था तो मार्केट में भी बहुत भीड़ थी लेकिन आखिरकार उसने अपनी बेटी के लिए उसके नाप का ड्रेस खरीद ही लिया, अब बस स्टॉप पर खड़ी होकर कैब बुक कर रही थी।  काफी देर हो गया उसे जहां जाना था कोई भी कैब वाला जाने के लिए तैयार नहीं हो रहा था।  मौसम भी खराब था आसमान में काले बादल छाए हुए थे। 

 राधिका ज्यादा ना सोचते हुए वहीं पर एक हाथ वाला रिक्शा खड़ा था उससे बात की उसने उसके घर तक पहुंचाने के लिए ₹50 किराया मांगा राधिका तैयार हो गई और दोनों मां बेटी उस रिक्शे पर बैठ गई। 

 अभी थोड़ी दूर ही आगे बढ़ा तेज आंधी के साथ बारिश होना शुरू हो चुका था। जब बारिश और तेज होने लगी तो उसने रिक्शेवाले से कहा भाई साहब रिक्शा साइड में खड़ा कर दीजिए नहीं तो आप भिंगेंगे  और हम भी और ऊपर से तबीयत भी खराब हो जाएगी। 



रिक्शेवाले ने कहा, “मैडम जी आप निश्चिंत रहिए आप नहीं भिंगेंगी और हमारी तो आदत है भिंगने  की अगर भिंगने से डरेंगे तो फिर पैसे कैसे कमाएंगे।”  रिक्शे पर बैठे-बैठे राधिका ने ऐसे ही रिक्शे वाले से पूछ लिया, “भैया आप 1 दिन में कितना पैसा कमा लेते हो।”  रिक्शेवाले ने कहा, “मैडम क्या बताएं आपको, बस गुजारा हो जाता है इतना कमा लेते हैं आज तो खर्चा बहुत है लेकिन फिर भी आज जल्दी घर जाना पड़ेगा आज मेरी बेटी का जन्मदिन है। बहुत प्यारी है बिल्कुल आपकी बिटिया की तरह।” बातों बातों में कब घर आ गया राधिका को पता भी नहीं चला राधिका अपने दरवाजे के पास आते हुए रिक्शेवाले को रुकने के लिए बोली। 

रिक्शावाला बारिश में पूरी तरह से भीग चुका था। वह जाने लगा तभी  राधिका रिक्शेवाले से रुकने को कहा और बोली भैया आप  थोड़ी देर यहाँ  कुर्सी पर बैठ जाइए अभी मैं आपके लिए गरमा गरम चाय लेकर आती हूं नहीं तो आपकी तबीयत खराब हो जाएगी हमारे चक्कर में आप  पूरी तरह से भींग गए हैं। 

 इतना सुनते ही रिक्शेवाला भाव विभोर हो गया और आंखों से ऐसा लगा आंसू टपक जाएगा क्योंकि कोई भी रिक्शेवाले को इतनी इज्जत नहीं देता है  लोग रिक्शेवाले से ऐसे पेश आते हैं जैसे लगता है कि रिक्शावाला कोई इंसान नहीं। 

 थोड़ी देर बाद राधिका एक हाथ में चाय का कप पकड़ी हुई और दूसरे हाथ में कुछ पुराने कपड़े लेकर आई जो सुबह ही गांव भेजने के लिए निकाली हुई थी। 



राधिका रिक्शे वाले को पुराने कपड़े देते हुए बोली, “यह कपड़े आपके लिए हैं और यह साड़ी आपकी पत्नी के लिए और यह ड्रेस आपकी बेटी के लिए जिसका आज जन्मदिन है मेरी तरफ से उसे हैप्पी बर्थडे बोलिएगा।” 

 रिक्शावाला  आंखों में आंसू लिए राधिका से बोला, “बहन जी 10 साल हो गए रिक्शा चलाते हुए लेकिन आज तक किसी ने भी इतनी इज्जत नहीं दी जितना आपके घर में मिला, कम से कम आपने हमें भी इंसान तो समझा।  नहीं तो लोग रिक्शे वाले को तो इंसान ही नहीं समझते यहां तक कि कोई रिक्शेवाले से ढंग से बात भी नहीं करता।” 

अपनी बेटी की ड्रेस देखकर रिक्शावाला राधिका से बोला, “बहन जी यह ड्रेस तो बिल्कुल नए जैसा है इसे पहनने के बाद मेरी बिटिया तो परी दिखने लगेगी वह बहुत खुश होगी ,  हमारी औकात कहां है इतना सुंदर ड्रेस खरीदने की।” 

चाय पीकर रिक्शावाला राधिका और उसकी बेटी का को अलविदा कहा उसने जाते हुये भगवान से  प्रार्थना की कि इन दोनों की जिंदगी हमेशा खुशियों से भरा रहे।   सचमुच में इंसान तो वही है जिसके अंदर दूसरे का  दुख पहचानने की क्षमता हो। 

 दोस्तों जो  पुराने कपड़े हमारे लिए बेकार है और फालतू में हमारा कवर्ड  उससे  भरा हुआ है इससे अच्छा है।  किसी गरीब को दे दो वह बहुत खुश होगा और आपको बदले में पैसा तो नहीं देगा लेकिन दुआ जरूर देगा।  लेकिन हम इंसान इतने लालची हैं कि उस पुराने कपड़े के बदले छोटा सा कप प्लेट पुराने कपड़े देकर बदल लेंगे लेकिन किसी गरीब इंसान को दान नहीं देंगे।

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