बड़ा भाई हो तो राम जैसा  – पुष्पा पाण्डेय

देवरानी और जेठानी दोनों ने मिलकर चावल की तीन बोरियों का कंकड़-पत्थर चुनकर एक दिन में ही रख दिया। संयुक्त परिवार था, एक साथ ही खरीद कर आ जाता था। सस्ता भी पड़ता था। राम और श्याम दोनों भाई का परिवार मिलकर एक साथ ही रहता था। दोनों भाईयों का प्रेम मोहल्ले में उदाहरण था। एक किराना-

दुकान था उसी से परिवार का भरण-पोषण होता था। ठीक-ठाक सब चल जाता था। व्यापार में उतार-चढाव तो आता ही रहता है। बड़ा भाई  राम अधिक मेहनती और जुझारू था, श्याम अपने भाई के पीछे हमेशा खड़ा रहता था। सभी उसे राम का लक्ष्मण ही कहते थे।

दोनों भाई प्रन्द्रह साल पहले गाँव से आकर शहर में बस गए थे।कारण था गाँव में बाढ़ का आक्रमण और गरीबी। थोड़ी बहुत जमीन थी उसमें भी फसल नहीं हो पाती थी। उस गाँव के बहुत से लोग शहर आकर बस गये थे, उसी के साथ राम और श्याम भी आ गए। ———-

जब थोड़े पाँव जम गए तो अपना परिवार भी यहीं  बुला लिए। 

राम को एक बेटा और दो बेटी थी और श्याम को एक बेटा और एक बेटी थी। श्याम के बच्चे छोटे थे, लेकिन राम के बच्चे स्कूल जाते थे। यहाँ शहर में आकर सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने का लक्ष्य रख राम अपने भाई के साथ मिल कर ईमानदारी से काम करते हुए आगे बढ़ रहे थे। राम सभी बच्चों को एक नजर से देखते थे। ये संयोग ही कह सकते हैं कि दोनों की पत्नियाँ भी काफी सुशील और बहनों की तरह मिलकर रहती थीं।  अभय, जो राम का बेटा था सभी भाई बहनों में बड़ा था। देखते-देखते सभी बच्चे अपनी-अपनी कक्षाओं में पढ़ाई करते हुए आगे बढ़ रहे  थे।———-



अभय और अभय की छोटी बहन निशा दोनों पढ़ाई में अच्छे थे। निशा तो काफी प्रतिभाशाली थी। वह कक्षा में प्रथम आती थी। अक्सर निशा अपने पापा से कहा करती थी-

” पापा मैं बड़ी होकर डाॅक्टर बनूँगी। मुझे बीमार लोग अच्छे नहीं लगते हैं। मुझे उनको ठीक रखना है।”

पिता अपनी बेटी की बातें सुनकर आघा जाते थे।

“हाँ बेटा, जो बनना है बनना। मैं किसी की पढ़ाई में कोई कसर नहीं  रखूँगा।”

और बेटी पिता के गले लग जाती थी।

” मेरे प्यारे पापा।”

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राम अभय को इंजिनियर बनाना चाहते थे, लेकिन अभय कॉमर्स लेकर पढ़ना चाहता था।

उसकी इच्छा सुन चाचा ने कहा-

” अच्छा है दुकान पर बैठना। हमलोगों को भी मदद मिल जायेगी।”

” नहीं चाचा जी, मैं दुकान पर बैठना नहीं चाहता। मैं कुछ अलग और बड़ा बिजनेस करूँगा। ग्रेजुएशन के बाद एम.बीए.करूँगा।”

पिता ने बच्चे की इच्छा को ही सर्वोपरी माना और उसे स्वीकृति दे दी।

” ठीक है, पहले ग्रेजुएशन तो अच्छे से कर लो।”

“हाँ पापा , मैं मन लगाकर पढ़ाई करूँगा।”

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अभय और निशा दोनों अपने-अपने लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत करने लगे।

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आदमी मंजिल तय करता है, लेकिन उस मंजिल तक वह पहुँच पायेगा या नहीं ये तो ऊपर वाला ही जानता है। बिधि का लिखा कौन टाल सकता है?

अभय की परीक्षाएँ  लगभग समाप्त होने वाली थी।



एक पेपर ही बाकी था।

निशा भी ग्यारहवीं में पहुँच गयी थी। तभी राम एक दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं और बच्चों के सपनों को अधूरा छोड़कर इस दुनिया से चले जाते हैं। कहते हैं न कि परमात्मा जब दर्द देता है तो उसे सहने की शक्ति भी देता है।

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अभय का परीक्षाफल आया , वह अच्छे नम्बरों से पास हो गया था, लेकिन राम के बिना ये खुशी अधूरी थी। उस साल तो अभय पिता की क्षति को भूला नहीं पाया था।यों ही साल बर्बाद हो गया।दूसरे साल एम.बीए. की तैयारी करने लगा। इधर निशा भी बारहवीं के बाद मेडिकल की तैयारी करने लगी।

“निशा! मेडिकल परीक्षा का फाॅर्म भर दिया?”

“नहीं भैया, कल जाकर भरूँगी?”

तभी चाचा जी उधर से गुजर रहे थे कि निशा की बातें सुनकर बोले-

” निशा! इतने बड़े परिवार का खर्चा चलाना ही मुश्किल है और ऊपर से मेडिकल की पढ़ाई का इतना खर्च मुश्किल होगा। एक तुम ही तो नहीं हो।इतने बच्चों की पढ़ाई है। सीधे-सीधे ग्रेजुएशन कर लो। फिर शादी भी तो करनी है।”

” लेकिन चाचा जी ——— ” 

वह आगे बोल नहीं पाई।

” देखो बेटा, समझा करो।अभय को भी एम.बीए.करना है। उसका भी बहुत खर्चा है। दोनों सब कैसे होगा?” 

निशा की आँखों में आँसू झलकने लगे। वह चुपचाप अपने कमरे में चली गयी।

अभय वहीं बुत बना खडा रहा। वह चाचा की बात सुन हैरान था। मन-ही-मन सोचता था- क्या निशा का सपना अधूरा रह जायगा? पापा हम दोनों को डाॅक्टर-इंजिनियर बनाना चाहते थे। मेरी रुचि नहीं थी इंजिनियर में, लेकिन जब निशा डाॅक्टर बनना चाहती है तो उसे मौका मिलना ही चाहिए। आज पापा रहते तो ——- तो क्या हुआ, मैं तो हूँ। निशा डाॅक्टर जरूर बनेगी। 

वह दिन भर अपने कमरे में ही मंथन करता रहा, न निशा को समझाने गया और न ही किसी तरह का सांत्वना ही दिया।—–

आज शाम को पहली बार अभय दुकान पर गया और रात में चाचा के साथ ही वापस घर आया। भोजन करने के बाद वह कमरे में न जाकर छत पर चला गया। कमरे में दोनों भाई ( चचेरे भाई) एक साथ रहते थे। न जाने रात में कब वह कमरे में आया।

सुबह नाश्ते के समय चाचा ने निशा को बुलाया ।

” निशा! यदि तुम्हें मेडिकल की ही पढ़ाई करनी है तो जाओ,फाॅर्म भर दो।मन लगाकर पढ़ना।”

निशा को तो जैसे खोई हुई निधि मिल गयी। माँ भी बहुत खुश हो गयी।

“मैं कहती थी न कि तेरा चाचा तुम लोगों को बहुत प्यार करता है। तेरी इच्छा वह जरूर पूरी करेगा।”

निशा की खुशी में सभी शामिल थे सिर्फ अभय की मुस्कान कैक्टस के फूल की तरह थे।

सुबह वह भी तैयार होकर दुकान पर जाने लगा। घर के सभी लोग आश्चर्यचकित थे। माँ ने पूछा भी-

” अरे अभय! आज तुम दुकान जा रहे हो? क्या बात है?”

“कुछ नहीं माँ, दुकान पर ही समय मिलने पर पढ़ाई करते रहूँगा।”

दिन भर दूकान पर बैठा अभय समाचार पत्रों का पन्ना ही खंघालते हुए नजर आता था। 

वह कई बैकों का साक्षात्कार दिया अब उसके परिणाम का इंतजार कर रहा था।



” अरे भईया! आप एम.बीए. की तैयारी छोड़ बैंक में नौकरी क्यों करना चाह रहे हो? आप तो शुरू से ही बोलते थे कि एम.बीए. करना है।अब क्या हुआ??”

“अब पढ़ने की इच्छा नहीं हो रही है। कुछ दिन नौकरी करूँगा फिर बाद में देखा जायेगा।”

अभय की बात सुन सभी हैरान थे, पर ये अभय का निर्णय था कोई क्या कर सकता था।

…………..

निशा का नामांकन मेडिकल कॉलेज में  हो गया। अभय भी किसी बैंक में हारे हुए जुआरी की तरह नौकरी करने लगा। निशा और माँ को खुश देखकर उसे बहुत सुकून मिलता था। समय बीतने लगा और निशा की पढ़ाई का अंतिम साल था। वह इसके बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए विदेश जाना चाहती थी। उसे स्कॉलरसीप भी मिल गया था, लेकिन समस्या थी कि घर वाले शादी के बाद ही विदेश भेजने के पक्ष में थे। अतः निशा की ही पसंद के लड़के से शादी तय हो गयी, जो उसी के साथ पढ़ता था।———-

शादी से कुछ दिन पहले से ही मेहमानों का आना-जाना शुरू हो गया। घर को भी ठीक-ठाक करना था। इसी क्रम में निशा अपने भाई का सामान समेटने लगी।

” अरे ये तो भैया कि वही डायरी है, जिसे  पापा ने भैया को पहले दिन काॅलेज जाने पर दिया था।

 कहा भी था-

” इस पर अपने काॅलेज का अनुभव लिखना।”

देखती हूँ भैया ने क्या लिखा है।—

डायरी पढ़ते-पढ़ते एक जगह उसकी आँखें ठीठक गयी। पढ़कर उसके पाँव तले से जमीन खिसक गयी।

” पापा! आज आप रहते तो मुझे ये निर्णय नहीं लेना पड़ता। चाचा के सामने मैंने मिन्नतें की, अपने एम.बीए. की पढ़ाई के बदले निशा को मेडिकल की पढ़ाई  करवाने की शर्त रखी, साथ ही मैं कोई भी नौकरी करूँगा, दुकान के काम में भी मदद करूँगा, तब जाकर आपकी निशा के सपने पूरे होने के आसार दिखे।…….

हाँ ,ये बात सिर्फ हमारे और चाचा जी के बीच ही रही।

यदि निशा जान जाती तो कभी नहीं मेडिकल की पढ़ाई करती।

पापा ! बड़ा भाई भी तो पिता जैसा ही होता है। मैं कैसे निशा के सपने को टूटते देख सकता था। निशा बहुत ही होनहार है।……”

निशा आगे पढ़ न सकी। 

तो क्या भैया को मेरे लिए कुर्बानी देनी पड़ी।? हम सभी तो समझ रहे थे कि उसको अब एम.बीए.में रुचि ही नहीं रही।

वह फूट-फूट कर रोने लगी।

आज तक भैया ने इसे राज रखा, आगे भी यह राज ही रहेगा जब-तक भैया स्वयं नहीं बताते हैं। 

डायरी पढ़ने के बाद खिली हुई निशा मुरझा सी गयी। उसके चेहरे की हँसी जैसे कहीं खो गयी। वह अभय के सामने आने से भी कतराने लगी। स्वयं को अभय का अपराधिन मानने लगी।

…………….

बारात आ गयी। शादी के सारे रस्म चाचा-चाची ही निभा रहे थे। कन्यादान की घड़ी भी आई। चेहरे से घूंघट हटाते हुए निशा ने कहा-

” पंडित जी! मेरा कन्यादान  भैया करेंगे। आखिर बड़ा भाई भी तो पिता के समान होता है।”

सुन कर मंडप के लोग और सारे रिश्तेदार स्तब्ध थे।

“कैसी लड़की है? घर में फूट डाल रही है। चाचा अपनी बेटी की तरह सबकुछ किया और ये लड़की अभी इन्हें पराया कर दिया।”

सबकी बातें निशा के कानों तक पहुँच रही थी, लेकिन निशा दृढ़संकल्प थी।अभय ही निशा का कन्यादान किया। दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे जैसे दोनों की चोरी पकड़ी गयी हो। चाचा भी शायद समझ रहे होंगे।

पुष्पा पाण्डेय 

राँची,झारखंड।

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