जब आंख खुली तो… – डॉ  संगीता अग्रवाल  : Moral stories in hindi

खा ले बेटा खाना!राधा ने गुहार लगाई थी मोनू से जिसका आखिरी पेपर था आज और  वो गुस्से में फूल कर कुप्पा हुआ बैठा था कि कितने दिनों से कह रहा हूं कि दोस्तों के साथ घूमने पिकनिक पर जाना है तो रुपए चाहिए पर आप के कान पर जूं ही नहीं रेंगती।

बेटा!तू समझता क्यों नहीं,कितने दिनों से मै तेरे लिए पैसा इकट्ठा कर रही थी पर अब तेरी बहिन की दवा दारू में खर्च हो गया तो क्या करूं?आखिर बीमारी कोई बता के थोड़े ही आती है?बहन की जिंदगी तेरी मौज मस्ती से तो बड़ी ही है ना?

मोनू को इतनी सी बात समझ नहीं आ रही थी,वो तुनक के बोला,ये सब आप देखें,बच्चों की जरूरत पूरी करना मां बाप का फर्ज होता है, मै तो अभी छोटा हूं…मैं ये सब नहीं जानता।

राधा की आंखों में आंसू आ गए,सोचने लगी थी वो,मोनू के पिता जी आज जिंदा होते तो उसे ये दिन न देखने पड़ते,कोरोना के शिकार हो गए थे वो और असमय मौत की गोद में सो गया थे उसे अकेला छोड़कर,दो दो बच्चों के बोझ तले।

उसकी लड़की बेला तो फिर भी ज्यादा जिद नहीं करती थी,उसकी बात मान ही जाती पर मोनू का बचपना बिलकुल नहीं गया था। कभी किसी बात पर अड़ जाता,कभी किस पर।

बहुत दिनों से उसे पिकनिक पर जाने के लिए चार हजार रुपए चाहिए थे,राधा,अपने खर्चे से बचा कर रख भी रही थी पर अचानक एक दिन बेला के ऐसा पेट दर्द उठा कि उसे रात ही में डॉक्टर के ले जाना पड़ा,उनकी फीस, दवा,रिक्शा का किराया और बाद में उसकी अच्छी पोष्टिक खिलाई पिलाई में सारा जमा पैसा खर्च हो गया और आज मोनू मुंह फुलाए बैठा था।

कहने को वो बड़ा भाई था पर अपनी जिम्मेदारी कभी नहीं समझता था, हर वक्त यारों दोस्तों के साथ वक्त बिताना उसे अच्छा लगता।आज भी गुस्से में ये बोल कर चला गया था,”देख लेना मां!अगर शाम को पैसे न दिए तो मैं ये घर हो छोड़ दूंगा।”

कहां जायेगा घर छोड़कर?गुस्से में चीखी थी राधा और बेबसी में रोने लगी थी।कैसा बेटा है मेरा?धिक्कार है इस पर जो कभी अपने कर्तव्य ही नहीं जानता पर वो जानती थी ये बहुत जिद्दी है,कहीं कुछ ऐसा वैसा कर बैठेगा तो मुसीबत आ जायेगी?

अपनी पड़ोसन से कुछ उधार लिए थे रुपए उसने,अपना आखिरी जेवर मंगलसूत्र गिरवी रखकर।अब जब इसे पहनना ही नहीं तो साथ रखने का क्या मोह करना,सोचकर।

उधर शाम को मोनू घर ही नहीं आया।दोनो मां बेटी का जी घबराने लगा।

मोनू कहां चला गया?क्या उसे लगा कि हम पैसे नहीं दे पाएंगे इसलिए वो घर आया ही नहीं?ये सोचते ही वो कांप गई।

बेला को दौड़ाया उसने,पड़ोस वाले पप्पू के घर…

भैया!मोनू भैया स्कूल से नहीं लौटे,आपको कुछ पता है क्या?

“नहीं तो”,वो तो छुट्टी में ही निकल गया था घर के लिए।

जिस से भी पूछा बेला और राधा ने,सबने मना कर दिया कि उन्हें कुछ नहीं पता।

फिक्र के मारे उन दोनो की जान निकल गई,राधा खुद को कोसने लगी कि वो अपने बेटे पर गुस्सा क्यों हुई सुबह कहीं उसने कुछ कर तो नहीं लिया?

वो उन्हीं आशंका से जूझ रही थी कि बेला खुशी से बोली,भैया आ गए!मोनू भैया आ गए।

राधा ने देखा तो मोनू मुंह लटकाए आ रहा था।राधा ने दौड़कर उसे गले से लगा लिया,प्यार करते हुए बोली,कहां चला गया था तू?ले पैसा ले ले…मैं कब से तेरी राह देख रही थी,तू पहले ही गुस्सा होकर चला गया?

नहीं मां!मुझे ये नहीं चाहिए,वो रोता हुआ बोला, मै बहुत बुरा हूं,आज मुझे एहसास हुआ कि पिताजी के जाने के बाद आप किस तरह घर का खर्च चला रही होंगी और एक मै आपका हाथ बंटाने से तो दूर,आपको परेशान करता रहा।

ऐसा क्या हुआ बेटा तेरे साथ आज जो तू ये सब कह रहा है?राधा ने चकित होकर पूछा था मोनू से।

हमारी क्लास टीचर ने आज सब बच्चों से कुछ प्रश्न पूछे थे मां और जो उन में पास होता,वो ही स्कूल पिकनिक में जाने के पात्र थे,और मै उनमें फेल हो गया।वो मुंह लटका के बोला।

ऐसा भी क्या था उन प्रश्नों में जो तुझे नहीं आते थे?राधा आश्चर्य से बोली।

उसने प्रश्नपत्र मां के हाथ में पकड़ा दिया।

ले बेला!तू पढ़ बेटा! मैं खुद पढ़ पाती तो आज तुम लोगों को ये मुसीबत के दिन कहां देखने पड़ते।राधा बोली।

बेला ने पढ़ा,पहला प्रश्न….”आपमे से कौन कौन अपने घर के कामों में हाथ बंटाते हैं?”

दूसरा प्रश्न था,”आटा,गोभी,आलू,मूंग दाल के आज के रेट बताएं।”

तीसरा प्रश्न था,क्या मां/बाप बीमार पड़ते है तो आप उन्हे डॉक्टर के ले जाते हैं?

चौथा प्रश्न था,कितनी बार आपने अपने जेबखर्च से घर की चीज खरीदी?

अंतिम प्रश्न था,”क्या आपने अपने पेरेंट्स को अपनी जिद से तंग किया कभी?”

राधा ने मोनू को देखा जो आंखें झुकाए खड़ा था,वो बोली,तू दिल छोटा क्यों करता है बेटा,जब तू बड़ा हो जायेगा,ये सब करने लगेगा,कोई बात नहीं।

नहीं मां!मेरी गलतियों पर और पर्दा  मत डालिए,मुझे आज खुद पर गुस्सा है,मैंने कभी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी, मैं किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाया जबकि बहुत सारे बच्चे इस टेस्ट में पास हुए।

ठीक है बेटा, तू अपनी जिम्मेदारी समझ रहा है,सुबह का भूला,शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते,मुझे लगता था कि अभी तुम बच्चे हो,बेफिक्र होकर जी लो,बाद में तो सारी जिंदगी यही सब करना है तुम लोगों को।

आपकी बात उचित हो सकती है पर हमारे दृष्टिकोण से देखा जाए तो सारी गलती मेरी ही है,यदि पिताजी जिंदा होते तो बात कुछ और होती लेकिन अब तो ये सरासर गलत है।आज से मैं सारे कामों में आपका हाथ बटाउगा,मेरी आंखें खुल चुकी हैं,अब बेला और आप मेरी जिम्मेदारी हैं।

राधा की आंखों में खुशी के आंसू बहने लगे।

डॉ  संगीता अग्रवाल

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