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कमला जी गांव में रहती थी।उनके दो बेटे थे और जो गर्मी की छुट्टियों में परिवार के साथ आते और मां के साथ वक्त बिताया करते थे। लड़के तो कुछ दिन रहते थे और अपनी नौकरी पर चले जाते पर परिवार गांव में ही रहता था कुछ दिनों के लिए। कमला जी को इस वक्त का पूरे साल इंतजार रहता था कि कब गर्मी की छुट्टी आएगी और वो बच्चों के साथ वक्त बिताएंगी।
कमला जी बड़ी फुर्ती से बच्चों के आने की तैयारी में लग जाती थी।उनके पास दो नौकर एक नौकरानी थे,जो उनका खेत का काम और घर का भी काम किया करते थे। राजकुमारी जो घर के सारे काम करती थी वो पूरा हक भी जताती थी। दादी! ” बच्चों के आने के नाम से तुम्हारी तबियत सही हो जाती है और चेहरे में चमक भी दोगुनी हो जाती है।”
“सही कहा राजकुमारी… मैं बच्चों के जाने के बाद से ही उनके फिर से आने का दिन गिनने लगती हूं” कमला जी बोली। अभी तो एक महीने बाकी हैं दादी…अरे!” तुझे पता भी है दिन कितने जल्दी निकल जाता है। अभी से तैयारी करूंगी ना तो बच्चों के साथ ज्यादा वक्त बिता पाऊंगी और बच्चों को क्या – क्या पसंद है वो भी तो बना कर रखना होगा ” कमला जी पूरे उत्साह से लगी हुई थी।
राजकुमारी खाना बना कर सारे काम समेटने के बाद घर चली जाती थी और अपने घर का काम निपटा कर शाम को आती थी।
शाम को जब आई तो देखा दादी बिस्तर पर लेटी हुई थी। दादी!” क्या हुआ तबियत ठीक नहीं है क्या… मुझे क्यों नहीं पहले बुलवाया आपने… चलो अस्पताल से दवा ले आती हूं “
राजकुमारी एक सांस में बोली जा रही थी।”तबीयत ठीक है मेरी… क्या मैं लेट नहीं सकती थोड़ी देर?
बिल्कुल लेटो आप….. लेकिन आज तक मैंने बेवक्त का आपको बिस्तर पर लेटी नहीं देखा है…. सही बताओ क्या हुआ है? राजकुमारी चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी और कमला जी कुछ भी कहने के मूड में नहीं थी।आज दादी ने ढंग से खाना भी नहीं खाया।
राजकुमारी को समझ में आ रहा था कि कोई तो बात है जो दादी परेशान हैं वरना कल तक जो दादी इतनी जल्दी – जल्दी काम में लगी थी आज इतनी उदास क्यों हैं।वो सोची की दादी को बार-बार पूछ कर परेशान नहीं करूंगी।अपना काम समाप्त करके दादी को खाना खिलाया और अपने घर चली गई।
दूसरे दिन दादी ने कोई काम नहीं फैलाया था और उदास मन से बैठी थी। दादी बताओ क्या – “क्या करना है? कमरों की सफाई कर दूं जिसमें भइया लोग रहेंगे?”
“रहने दे राजकुमारी तेरे भईया भाभी बच्चों के साथ घूमने कहीं बाहर जा रहें हैं…कल ही तेरे भईया का फोन आया था।” मां!” बच्चों का कहना है कि हर बार छुटि्टयों में दादी के घर जाते हैं,इस बार कहीं और घूमने जाना है तो मां इस बार हम सभी मिलकर बाहर घूमने जा रहें हैं।दूसरी कोई छुट्टी पड़ेगी तो आ जाएंगे मिलने आप से।”ओह!” दादी आप इसीलिए कल से परेशान हैं।कितना इंतजार रहता है आपको इन छुट्टियों का थोड़े दिन यहां रहकर फिर चले जाते घूमने।”
राजकुमारी भी उदास हो गई थी दादी को दुखी देखकर।
बच्चों को समझना चाहिए था कि मां से भी मिलना जरूरी है आखिर उसका भी तो हक है अपने परिवार के साथ रहने का राजकुमारी पोंछा लगाते – लगाते बड़बड़ाती जा रही थी। उससे दादी की उदासी बर्दाश्त नहीं हो रही थी और दादी को क्या कह कर समझाए समझ में भी नहीं आ रहा था उसको।
दादी!” भईया ने कहा है ना जल्दी आएंगे तो जरूर आएंगे,आप परेशान नहीं हो।
राजकुमारी एक बात बताओ कि,” उन लोगों को नहीं लगता है कि मां से मिलना भी जरूरी है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि भगवान जी मुझे कुछ ऐसा कर दें की मैं इन रिश्तों को भूल जाऊं…
आखिर मुझे ही क्यों मोह-माया घेरे रहती है,उन सब को क्यों नहीं। मां का दिल है हजार गलती कर ले औलाद फिर भी सब भुला कर माफ कर देती है लेकिन इस बार मेरा दिल अब इनको माफ करने का बिल्कुल नहीं है।पता चलेगा जब मैं नहीं रहूंगी इस दुनिया में”आंखों के किनारे से गिरते आंसू को आंचल से पोंछते हुए गला भर आया था उनका।
मां – बाप बच्चों को जन्म देने और पालने – पोसने में ना जाने कितनी कुर्बानी दे देते हैं बिना किसी शिकायत के। बड़े होकर यही बच्चों को देखने को मां की आंखें तरस जाती हैं।
उनके पास वक्त नहीं रहता है मां के लिए…. कमला जी इसी उधेड़बुन में पड़ी थीं। बच्चे अपने परिवार के साथ अपनी जिंदगी में व्यस्त थे। मां को ले जाने के नाम पर ये बात आती की मां किसके साथ रहेंगी और कब तक। इन्हीं सब बातों की वजह से कमला जी ने गांव में ही रह कर सम्मान के साथ अपना बुढ़ापा काटना चाहतीं थीं ।
संतोष और इंतजार इस बात का रहता था कि छुट्टी में सब आएंगे तो बच्चों के साथ वक्त निकल जाएगा और बच्चे कितने बड़े हुए… पिछले साल से इस साल में कितना परिवर्तन आया उनमें वो देखने के लिए उत्सुक रहतीं थीं वो और सही भी है
सूद से ज्यादा व्याज सबको प्यारा होता है।पूरे साल लगी रहतीं कभी बड़ियां कभी आचार तो आम पापड़ बच्चों को बहुत पसंद है बनवा कर रखाया करतीं और मजाल है की कोई उनको हांथ लगा दे।
राजकुमारी! “बिटिया आचार ले जाना तेरे घर… बच्चों को खिला देना…पता नहीं कोई आएगा भी की नहीं। मैं कहां खाती हूं आचार खटाई।” दादी अभी रहने दो… आचार थोड़े ही खराब होता है। कमला जी को कुछ ना कुछ घर कर गया था और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया था। राजकुमारी ने कहा भी की भईया को बता दूं आपकी तबियत ठीक नहीं है।
नहीं बिटिया बोलेंगे की मां को अच्छा नहीं लगता की हम सब कहीं घूमने जाएं वहां भी हमारा माहौल खराब कर दिया। कितनी बेबसी सी झलक रही थी कमला जी की बातों में। उम्र के साथ शायद मन में बैठ ही जाता है कि अभी देख लें सबको नहीं तो ना जाने भगवान कब बुला लेंगे अपने पास मन में अधूरी इच्छा लिए ही ना चली जाऊं।
इस बार कमला जी को शायद सदमा ही लग गया था और वो बिस्तर से उठ नहीं पाईं थीं और एक रात उन्होंने इस बेदर्द दुनिया से रुखसत ले लिया था।
राजकुमारी जब सुबह आई तो कमला जी का चेहरा एकदम शांत सा था जैसे सारे बोझ को पीछे छोड़ दिया हो उन्होंने इसी धरती पर और अपने लिए दूसरी दुनिया को चुन लिया था। राजकुमारी बहुत रो रही थी और खुश भी थी की दादी तिल – तिल कर रोज मर रहीं थीं अच्छा हुआ की भगवान ने उन्हें अपने पास बुला लिया।ये दुनिया और रिश्ते नाते सब दिखावा ही तो हैं।
तभी उसकी निगाह दादी के सिरहाने एक पेपर पर पड़ी…. जिस पर बड़े भइया का नाम लिखा था। राजकुमारी ने संभाल कर रखा और घरवालों को खबर कर दिया। दूसरे दिन सभी पहुंच गए थे। राजकुमारी ने बड़े भइया को चिट्ठी पकड़ाते हुए कहा “भइया दादी ने बहुत इंतजार किया था आप सब का….
बड़े भइया ने हांथ कांपने लगे थे चिट्ठी को पकड़ने में और पढ़ते ही जमीन पर बैठ गए थे…. कमला जी ने एक ही लाइन लिखी थी कि “बेटा तुम समझ पाओगे मेरी बातें जिस दिन तुम्हें इस परिस्थिति से गुजरना पड़ेगा। भगवान ना करे की तुम्हारे बच्चे भी तुम को ऐसे ही इंतजार करवाएं।”
अब अफसोस करने का कोई मतलब नहीं था क्योंकि मां – बाप को जीते जिंदगी सुख देना चाहिए। मरने के बाद कितना भी कर्म काण्ड कर लो उससे कोई फायदा नहीं होता है। सारे काम खत्म होने के बाद सभी लौट गए थे पर सबके मन में पछतावा था कि उन्होंने क्या ग़लती की थी। कहते हैं ना ‘अब पछताए क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत ‘
आत्मा तो पंचतत्व में विलीन हो ही जाती है। कमला जी भी अब कभी ना लौटने के लिए चली गई थी अब कोई भी आए क्या फर्क पड़ता है।उनका इंतजार उनके साथ ही चला गया था और परिवार को झकझोर भी गया था।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी