नफरत की दीवार – माता प्रसाद दुबे

जीवन के पैंसठ बसंत देख चुकी मालती देवी के पास सब कुछ था सिर्फ जीवन साथी को छोड़कर जो एक दशक पहले उसका साथ छोड़ चुके थे। रहने के लिए आलीशान घर दो बेटे रमेश, दिनेश,दो बहुएं,आरती,निशा, बड़ी बहू आरती के दो बच्चे आयुश,प्रीति,छोटी बहू निशा एक वर्ष पहले ही उसके छोटे बेटे दिनेश की जीवन संगिनी बनकर आई थी, जिसके आते ही उसके पूरे परिवार की खुशियों में ग्रहण लग गया था।

“मम्मी जी! क्या सोच रही है,यहा अकेले बैठकर?”आरती मालती देवी के पास आते हुए बोली।”कुछ नहीं बेटी,बस मन बेचैन सा लग रहा है?”मालती देवी परेशान होते हुए बोली।”मैं जानती हूं आप क्यों परेशान रहती है,आप हमेशा देवर जी और निशा के बारे में सोचती रहती है?”आरती मालती देवी की ओर देखते हुए बोली।

“क्या करूं बेटी! सोचना पड़ता है,मां का दिल तो अपने बच्चों के लिए धड़कता ही रहता है?”कहकर मालती देवी खामोश हो गई।”मम्मी!आप ऐसे ही सोचती रहेंगी तो आपकी तबियत खराब हो जाएगी?”आरती परेशान होते हुए बोली।”ठीक कहती हो बेटी! मैं ही नाहक परेशान होती हूं,वे दोनों मियां बीवी तो मुझे जैसे भुला ही चुके है,बगल में रहकर भी उसे अपनी मां की कोई चिंता नहीं होती,चल बेटी मुझे भूख लग रही है?”कहते मालती देवी आरती के साथ कमरे में चली गई।

एक वर्ष पहले सभी लोग एक साथ रहते थे। आरती अपने पति रमेश,दोनों बच्चों,दिनेश अपनी सास मालती देवी, सभी लोगों का ख्याल रखती थी। पूरे परिवार में हंसी खुशी का माहौल रहता था। निशा ने घर में प्रवेश करने के साथ ही दिनेश को परिवार से अलग करने का प्रयास शुरू कर दिया था, उसे बच्चों का शोर पसंद नहीं था।वह खुलें मिजाज की युवती थी। किसी भी प्रकार का बंधन उसे कुबूल नहीं था।घर के सभी लोगों को आरती को महत्व देना उसे अखरने लगा था।

और उसने अपने पति दिनेश को भड़काकर घर में बंटवारा करवा दिया था। एक ही घर के दो टुकड़े करवाकर बीच में नफरत की दीवार खड़ी करके निशा ने परिवार को छिन्न-भिन्न कर दिया था। दिनेश अपनी मां मालती देवी से आते जाते हुए बोलकर सिर्फ रस्म अदायगी करता था। निशा मैडम सबसे अलग-थलग रहती थी। वह किसी से बात तक नहीं करती थी। वह खुद को किसी महारानी की तरह समझती थी।वह चाहती थी कि सभी लोग उसका सम्मान करें, उसने दिनेश को पूरी तरह उसके परिवार से अलग कर दिया था।




“मम्मी!”मम्मी।कहा हो?”आज मैं बहुत खुश हूं?”दिनेश मालती देवी को पुकारते हुए बोला।”क्यों क्या हुआ बेटा! तुम्हारे सास ससुर आ रहें है क्या?”मालती देवी हैरान होते हुए बोली।”अरे मम्मी! तुम मुझसे मजाक कर रही हो?”दिनेश झुंझलाते हुए बोला।”ठीक ही तो कह रही हूं बेटा!हम लोगों से तुझे कोई मतलब ही नहीं रहता, तूं तो हमें भूल ही चुका है?”मालती देवी गहरी सांस लेते हुए बोली।”नहीं मम्मी! बात ही खुश होने की है, पूछोगी नहीं?

“दिनेश मालती देवी की तरफ देखते हुए बोला।”अच्छा बता क्या बात है?”मालती देवी बोली।”मम्मी! तुम दादी बनने वाली हो?”दिनेश मुस्कुराते हुए बोला।”दादी तो मैं हूं ही आयूश प्रीति की,इसमे कौन सी नई बात है?”मालती देवी शांत लहजे में बोली।”अरे मम्मी! निशा मां बनने वाली है?”दिनेश झूमते हुए बोला।”बहुत खुशी की बात है बेटा!

मैं बहुत खुश हूं,जा अपनी भाभी और भैया को भी यह खुशखबरी दे दे?”मालती देवी दिनेश को निर्देश देते हुए बोली।”अरे मम्मी! तुम ही बता देना अभी मैं काम से जा रहा हूं?”कहकर दिनेश वहां से चला गया। मालती देवी दिनेश की मनोभावना को समझते हुए चुपचाप उसे घर से बाहर जाते हुए देख रही थी।

एक महीने बीत चुके थे। दिनेश अपने आफिस के काम से एक हफ्ते के लिए बाहर जा रहा था। वैसे तो उसके घर पर उसका पूरा परिवार था। मगर सिर्फ कहने के लिए,बीच में एक छोटी सी दीवार ने परिवार को अलग कर दिया था। निशा मैडम का किसी से कोई मतलब ही नहीं रहता था।वह अपनी दुनिया में ही खोई रहती थी।

निशा के मना करने के बावजूद दिनेश अपनी मां मालती देवी से एक हफ्ते बाहर जाने की बात कहकर गया था। मालती देवी अपने मन से समझौता करके दिनेश के वापस आने तक उसके घर की तरफ ध्यान रखने के लिए मजबूर थी। निशा को गर्भ धारण किए हुए पांच महीने का समय बीत चुका था।

शाम के समय बाहर जोरदार बारिश हो रही थी। लगभग एक घंटे बरसने के बाद बारिश थम चुकी थी। अंधेरा होने के साथ ही काली रात का आगमन हो चुका था। मालती देवी चिंतित नजर आ रही थी। निशा घर की पहली मंजिल के छज्जे पर खड़ी होकर काफी देर से मोबाइल से बात कर रही थी। वह अपनी बहन व जीजा से ऐसे ही घंटो बात किया करती थी।

मालती देवी का मन नहीं माना और वे नीचे बरामदे में जाकर निशा से बोली।”अरे बेटी! बारिश का मौसम है,तुम इतनी देर से छज्जे पर खड़ी होकर बात कर रही हों,हंस रही हो,जोर-जोर से यह ठीक नहीं है, जाकर अंदर कमरे में बात करो?”निशा उपर से एकटक मालती देवी को देखते हुए बोली।”अरे मम्मी!आप मेरे लिए मत परेशान होइये,मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं हूं?” मालती देवी निशा के व्यवहार से भली भांति परिचित थी,वह चुपचाप वहां से चली गई।




एक घंटे बीत चुके थे। एकाएक धड़ाम से कुछ गिरने व निशा के चीखने की आवाज गूंज उठी, मालती देवी,आरती,रमेश, निशा के चीखने की आवाज सुनकर बिना देर किए निशा के कमरे की तरफ भागे,वहा का दृश्य देखकर मालती देवी अपने होश खोने लगी,आरती,रमेश के हाथ पांव कंपकंपाने लगे। निशा छज्जे से नीचे गिरकर लहुलुहान होकर तड़प रही थी। आयुश, प्रीति,जोर-जोर से रोने लगे।”आरती मैं गाड़ी निकालता हूं,तुम बच्चों की मदद से निशा को लेकर पीछे बैठो,देर करना ठीक नहीं है?”रमेश घबराते हुए बोला। ठीक है,आप गाड़ी निकालिए जल्दी?”आरती कांपते हुए बोली। मालती देवी की आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था।”मम्मी!आप खुद को संभालिए, हिम्मत से काम लीजिए,बच्चों दादी का ख्याल रखना?”आरती घायल बेहोश हो चुकी निशा को बाईक के बीच में कसकर पकड़कर पीछे बैठते हुए बोली। रमेश तेजी से  आरती के साथ घायल निशा को लेकर अस्पताल की ओर बढ़ रहा था।

कुछ देर में ही वह अस्पताल पहुंच गया, इमरजेंसी में निशा का ट्रीटमेंट शुरू हो चुका था। 

लगभग एक घंटे बाद डाक्टर बाहर आते हुए रमेश और आरती बोले।”घबराने की कोई बात नहीं है,कुछ देर और हो जाती तो,मरीज की जान बचाना मुश्किल हो जाता?” डाक्टर साहब! खतरे की तो कोई बात नहीं है?”आरती डाक्टर के आगे हाथ जोड़कर विनती करते हुए बोली।”आप घबराए नहीं सब ठीक हो जाएगा?”कहकर डाक्टर वहां से चले गए।

सुबह के आठ बज रहे थे। आरती और रमेश रात भर निशा के पास बैठे रहे, उसके पैर में गंभीर चोट लगी थी,सिर पर पट्टी बंधी हुई थी। निशा को होश आ चुका था। अपने सामने आरती और रमेश को देखकर उसकी आंखों से आंसू टपक रहे थे।वह कुछ कहना चाह रही थी। मगर आरती ने उसे चुप करा दिया। एक दिन बाद निशा की सारी जांच रिपोर्ट आ चुकी थी। निशा के गर्भ में पलने वाले बच्चा सकुशल था। एक दिन बाद दिनेश के अस्पताल पहुंचने के बाद आरती और रमेश दो दिन रात अस्पताल में रहने के बाद घर वापस आए।

तीन दिन बीत चुके थे। निशा को अस्पताल से लेकर दिनेश घर पहुंच चुका था। निशा के पैरों में प्लास्टर चढ़ा हुआ था। दिनेश उसे सहारा देकर घर के अंदर ला रहा था।”रुकिए मैं अभी अंदर नहीं जाऊंगी?”निशा दिनेश को रोकती हुई बोली। दिनेश निशा की ओर हैरानी से देख रहा था।”पहले मम्मी! भैया! भाभी! बच्चों,को यहां बुलाइये?”निशा सिसकते हुए दिनेश से बोली।”हम लोग यही है निशा! आरती निशा के पास आती हुई बोली। निशा के सामने उसका स्वागत करने के लिए उसका पूरा परिवार खड़ा था।”भाभी! भैया! मम्मी! बच्चों,आप लोग मुझे माफ कर दो, मैं इसके लायक भी नहीं हूं,कि अपने गुनाहों के लिए माफी मांगू, एक मां की ममता को भी मैं न समझ सकी,जिसका परिणाम मैं फिसलकर नीचे गिर गई?”कहकर निशा मालती देवी आरती बच्चों से लिपटकर फूट-फूट कर रो रही थी।”हम तुझसे नाराज नहीं है,बेटी! तुम्हें इस बात का एहसास बहुत देर में हुआ है,जो पहले ही होना था, एक दूसरे के लिए दर्द अपनापन सिर्फ परिवार में ही होता है, जिससे तूं अब तक अंजान थी?”मालती देवी निशा को दुलारते हुए बोली।”सुनिए आप अभी इस नफरत की दीवार को तोड़ दीजिए,नहीं तो यह बार-बार मुझे अपराध बोध कराएगी?”निशा दिनेश से विनती करते हुए बोली।”दिनेश एकटक निशा की ओर देख रहा था। जैसे उसे इसी का इंतजार था। कुछ ही देर में नफरत की दीवार टूट कर बिखर चुकी थी। एक घर जो दो टुकड़ों में बंट गया था, वह फिर से एक घर में तब्दील हो गया था।

#परिवार

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित

अप्रकाशित कहानी

लखनऊ

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