इंस्टेंट नूडल्स वाली पीढ़ी – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

दो तीन दिन से मीरा देख रही थी कि उसकी बेटी परिधि काफी अनमनी सी है। उसका खाना पीना भी बहुत कम हो गया था। वो सोच ही रही थी कि उससे बात करेगी पर अपनी नौकरी की व्यस्तता के चलते और कुछ बेटी की भी कॉलेज की गतिविधियों के चलते उसको समय नहीं मिल पा रहा था। अभी वो इन सब उधेड़बुन में लगी हुई थी कि बेटी ने कॉलेज से आने के बाद कहा कि मां मुझे आपसे कुछ बात करनी है,मीरा तो खुद भी इस अवसर के इंतज़ार में थी। मन ही मन वो ये भी सोच रही थी कि सब ठीक हो कोई ज्यादा गंभीर या किसी लड़के का चक्कर ना हो क्योंकि आज के सोशल मीडिया वाले ज़माने में प्यार होना या किसी को पसंद करना इंस्टेंट नूडल्स के समान ही प्रतीत होता है। 

यही सब सोचते हुए भी मीरा ने अपनेआपको शांत रखते हुए बेटी को बोलने का पूरा अवसर दिया। बेटी ने अपनी बात शुरू करते हुए कहा कि मां अब मैं अपनी जो स्कूल के समय की पांच दोस्त हैं उनका साथ छोड़ रही हूं । पहले तो मीरा को लगा कि कुछ सामान्य सा झगड़ा हो गया होगा। वैसे भी स्कूल के बाद सभी बच्चों के कैरियर की राहें अलग हो गई हैं तो कुछ मतभेद हो गया होगा पर जब मीरा ने परिधि को ऐसा कहते ही फूट फूट कर रोते हुए देखा तब उसको लगा की वास्तव में कोई गंभीर बात हुई है। मीरा ने परिधि को बड़े प्यार से दुलारते हुए उसके सिर को अपनी गोदी में रखकर सहलाते हुए सारी बात जानने की कोशिश की l

परिधि ने कहा कि मां मेरी सभी दोस्तों ने जो व्हाट्सएप पर हमारा ग्रुप बना हुआ है उसमें सिद्धि के घर रात गुजारने की बात की थी। मैंने उन्हें लिखा था कि किसी के यहां रात को रुकने के लिए पहले मेरे को अपने माता पिता से पूछना पड़ेगा। इसके बाद में कॉलेज की अपनी गतिविधियों में व्यस्त हो गई क्योंकि हमारा वार्षिक उत्सव आ रहा था। मैं ग्रुप नहीं देख पाई। वैसे भी मुझे लगा था कि अगर वो कुछ भी करेंगे तो वो फोन अवश्य करेंगे। अब चूंकि मैं कॉलेज में छात्रों की सांस्कृतिक कार्यक्रम समिति की अध्यक्ष हूं तो सभी व्यवस्था करने में ही लगी रही। परसों थोड़ी सी खाली हुई तो मेरी नज़र अपने स्कूल के पांच दोस्तों वाले समूह पर गई। उसको खोलकर देखा तो पता चला कि वो स्नेहा के घर पार्टी कर भी चुके हैं और उन्होंने मुझे सूचित भी नहीं किया।

अब तक कभी भी हम लोग कुछ करते थे तो अगर कोई ग्रुप पर जवाब नहीं देता था तब मैं उससे व्यक्तिगत रूप से फोन द्वारा बात करती थी और सब बातों से अवगत कराती थी। इन लोगों ने तो मुझे बिल्कुल अलग कर दिया। मुझे इन सब बातों से बहुत दुख पहुंचा है। वैसे बात इतनी बड़ी नहीं है पर हम सब लोग एक साथ बड़े हुए हैं। पहली कक्षा से बारहवीं तक का साथ रहा है हमारा पर आज उन्होंने मुझे ही अलग कर दिया।अपनी बात को जारी रखते हुए परिधि ने ये भी कहा कि मां बात सिर्फ यही तक नहीं थी।

उन लोगों ने रात को एक साथ रुककर ड्रिंक्स भी किया जो मेरी नजरों में ठीक नहीं है क्योंकि मैंने मनोविज्ञान विषय में भी पढ़ा है और आपने भी बताया है कि ये आदतें इसी तरह देखादेखी शुरू होती हैं और फिर बुरे शौक में बदल जाती हैं। वैसे तो मैं कहीं ना कहीं मन ही मन खुश भी हूं कि मैं इस तरह की पार्टी का हिस्सा बनने से बच गई क्योंकि आपके दिए संस्कार मेरे अंदर कूट कूट कर भरे हैं। 

मीरा बहुत आराम से बेटी की बात सुनते हुए उसका सिर सहलाने लगी। उसे अपनी बेटी पर बहुत प्यार आ रहा था। उसने ज्यादा तो कुछ बेटी से नहीं कहा पर इतना अवश्य बोला बेटा मैं हमेशा आपके साथ हूं और मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है। समय के साथ लोग बदलेंगे पर आपकी मां हमेशा वैसे ही रहेगी। मीरा की गोदी में सिर रखकर लेते हुए परिधि की झपकी लग गई।

मीरा उसका सिर सहलाते हुए कुछ पुरानी यादों में पहुंच गई। जब परिधि पैदा हुई तो ससुराल में कोई जश्न नहीं मना था। कोई परिधि के पैदा होने से दुखी नहीं था तो बहुत खुश भी नहीं था पर मीरा और उसके पति विनय की तो दुनिया ही बदल गए थी। उनकी आंखों में अपनी राजकुमारी के लिए सुंदर सपनें पनपने लगे थे। बहुत भाग्यशाली थी मीरा की परिधि। उसके कदम पड़ते ही पति को काम में उन्नति मिली थी। घर में जो भी अभाव थे दूर होने लगे थे। परिधि के कुछ बड़े होते ही ससुराल वालों ने दूसरे बच्चे के लिए दवाब बनाना शुरू कर दिया था। 

मीरा तो अपनी नन्ही परी में इतना डूब गई थी कि दूसरे बच्चे के विषय में सोचा ही नहीं। संयोग भी कुछ ऐसा बना कि दूसरा बच्चा हुआ भी नहीं। परिवार के और आस पास के लोग दूसरे बच्चे की लिए अक्सर बोल देते। उन लोगों को भी इस बात से इंकार नहीं था कि बच्चे कम से कम दो तो होने ही चाहिए पर इसके लिए उन्होंने न ज्यादा सोचा और न ही कोई डॉक्टरी की सलाह ली।

जिन्दगी तो वैसे भी आगे ही बढ़ती है। अब धीरे धीरे लोगों का दूसरे बच्चे के लिए कहना तो कम हो गया था पर वो मिलते ही ये कहने से ना चूकते कि अकेला बच्चा बिगड़ जाता है। उसको एक साथ की जरूरत है। कल को अगर मां बाप को कुछ हो जाता है तो उसका साथ देने के लिए कोई नहीं होगा परिधि तो वैसे भी लड़की है। एक दो बार मीरा इस तरह की बातों से विचलित अवश्य हुई। फिर उसके पति ने उसको समझाते हुए कहा कि जो नहीं हुआ उसके बारे में क्या सोचना?

वैसे भी हमारा दायित्व है कि हम अपनी बेटी को एक ऐसा वातावरण दें कि वो हमारे से अपनी मन की बात साझा कर सके। रही एक या ज्यादा बच्चों की बात तो कल किसने देखा है,वैसे भी आजकल बच्चे चाहे लड़का हो या लड़की पढ़ाई लिखाई और कैरियर के लिए माता पिता से दूर चले ही जाते हैं। मीरा को बात समझ आ गई थी। वो हर तरह से बेटी को नए ज़माने के अनुसार सारी बात बताती और उसकी बातें भी धैर्यपूर्वक सुनती। अपनी बेटी के साथ ही नहीं बल्कि वो तो अपने जो विद्यार्थी थे उनके साथ भी मित्रवत व्यवहार करती।

आज बेटी का इस प्रकार की पार्टी का, जिसमें पीने पिलाने का दौर भी चला था हिस्सा ना बनना और उसकी इन सब बातों से दूर रहने की सोच पर उसको गर्व हो रहा था। हालांकि उसकी बेटी परिधि दुखी थी कि पुरानी दोस्तों ने उसको अलग कर दिया पर मीरा को यकीन था कि वो जल्दी ही इन सबसे उबर जाएगी। आज उसको ये भी लग रहा था कि बेटी को पालने में अभी तक के दायित्व निर्वहन परीक्षा में वो सफल हुई है। वो अभी ये सब सोच ही रही थी कि बेटी नींद में ही बोली मां कल राजमा चावल बनाना।

कल बहुत दिनों बाद छुट्टी है तो आराम से उठूंगी और खाऊंगी। मीरा बेटी की बात सुनकर मुस्करा दी और उसको ठीक से लेटा कर,लाइट बंद करके उसके मासूम से सुकून भरे चेहरे को निहारते हुए कमरे से बाहर आ गई। आज वो भी बेटी के सुनहरे कल के लिए आश्वस्त थी। उसके मन में कहीं ना कहीं इस बात का भी एहसास हो गया था कि ये पीढ़ी भले ही इंस्टेंट नूडल्स वाली है पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करना अच्छे से जानती है।

दोस्तों ये थी मेरी एक छोटी सी कहानी। मेरा मानना है कि आज के समय में संतान चाहे एक हो या उससे ज्यादा पर माता पिता का सबसे बड़ा दायित्व बनता है कि उनको अच्छे बुरे का ज्ञान करवाना। उनको ऐसा वातावरण प्रदान करना कि वो अपने माता पिता से सारी बातें साझा कर सकें।

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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