आज सुबह की सैर कुछ अधिक होने के कारण मनोहर लाल कुछ थकान सीं महसूस कर रहे थे।पेपर पढ़ने बैठे तो झपकी सी आगई,जिसके कारण मेज़ पर रखा पानी का गिलास गिर गया।कुछ गिरने कीआवाज़ सुन कर माया रसोईघर से दौड़ती सी आई।पानी का गिलास गिरा देख कर समझ गई कि आज फिर,उसके पति लम्बी सैर करके लौटे है।शायद कोई पुराना मित्र या परिचित मिल गया होगा और वही पुरानी बातों का पिटारा खुल गया होगा।बढ़ती उम्र का एहसास साथ ही अकेलापन कभी-कभी मन को बहुत टीस दे जाता है । दोस्तों से बातचीत करते समय ,टाइम का पता ही नहीं चलता।कहानी सब की एक ही है और समस्या भी एक जैसी,बढ़ती उम्र को सम्भाल ने की और अकेलापन,वो तो अपने आप में हीएक बीमारी है।
अच्छा,बताओ आज नाश्ते में क्या बनाया है ,जल्दी से ले आओ, भूख भी बड़ी ज़ोर की लग गई है ।
माया जी पोहा व अदरक इलायची वाली चाय लेकर बालकनी में आजाती है।दोनों पति पत्नी नाश्ता करते समय चाहें अनचाहे अपने बेटे आरव को याद करने लगते हैं,तुम्हें याद है न आरव जब छोटा था तो मेरे हाथ का बना पोहा शौक़ से खाता था।परंतु वहाँ विदेश में तो न जाने क्या खाता होगा उसकी विदेशी पत्नी न जाने उसकी पसंद का खाना बना पाती होगी या नही।
हे भगवान,इतनी उम्र हो गई ,और बेटे से मोह में अभी तक जकड़ा हु आ है तुम्हारा मन।
नहीं वह बात नहीं है फ़िकर तो तुम्हारी भी रहती हैं मुझे,आज इतनी देर कर दी सैर से लौटकर आने में तो कैसे कैसे ख़याल आरहे थे।
अब हम दोनों ही तो हैं एक दूसरे का ख़्याल रखने के लिए।एक बेटा था वह भी विदेश
इस कहानी को भी पढ़ें:
तुमने तो मेरा गला ही पकड़ लिया – अर्चना खंडेलवाल : Moral Stories in Hindi
में जाकर बस गया।यह भी नहीं सोचा कि हम लोग अकेले इस बुढ़ापे में कैसे रहेंगे ।
हां तुम पूछ रही थी न कि आज कौन मिल गया था,जिस से घर लौटने में इतनी देर हो गई,तुम्हें याद है न जब मेरी पोस्टिंग उड़ीसा में हुई थी ,तो हमारे पड़ौस में ही केदार को भी क्वार्टर मिला था।चूँकि हम दोनों ही उत्तर प्रदेश से थे सो दोनों परिवारों में जल्दी ही मित्रता हो गई थी,और फिर धीरे-धीरे ये मित्रता घनिष्ठता में बदल गई थी।क्योंकि हम दोनों की ही नई नई शादी हुई थी,केदार की पत्नी सुधा ने वहीं अपने बेटे विनय को जन्म दिया था,फिर उसके कुछ दिनों बाद ही हमारे बिवेक का जन्म हुआ।जब भी बच्चों को कोई परेशानी होती तुम दोनों मिलकर सुलझा लेती थी।विनय और बिवेक वहीं साथ-साथ खेल कर बड़े हुए ।
फिर केदार ने दूसरी कम्पनी जॉइन कर ली,तो एक दूसरे से सम्पर्क टूट गया। आज इतने सालों बाद उसे पार्क में देखा वह किसी अपने रिश्तेदार के यहाँ आया हुआ था,सो पार्क में घूमने आग या।शायद इसी को संयोग कहते हैं या ईश्वर की कृपा ।मुझे देख कर आकर ऐसे गले मिला मानो कोई बिछड़ा भाई मिल गया हो।
ढेर,सारी बातें हुई,नई ,पुरानीयादें ताज़ा की हम लोगों ने।बह भी रिटायर हो चुका है ,और उसका इकलौताबेटा विनय भी कनाडा में जा बसा है।यहाँ दिल्ली में तो सिर्फ़ वह व सुधा भाभी ही रहते है।वह भी हम लोगों की तरह ही अकेलापन की परेशानी से जूझ रहा है
केदार का कहना है कि जब बच्चों की हम लोगों को सबसे ज़्यादा ज़रूरत है तो ये लोग अधिक पैसा कमाने के चक्कर में विदेश में जा बसते है।भूल जाते हैं कि जब इनको ज़रूरत थी तो हमने इनको कैसे उँगली पकड़ कर चलना सिखाया और अपने दुःख सुख की परवाह न करते हुए सिर्फ़ इनके उज्जवल भविष्य को बनाने में लगे रहे।अब जब हमें लगता है कि कोई हमारी उँगली पकड़ कर हमें सहारा दे तो कोई भी नज़र नहीं आता। इन बच्चों के लिए इतने बड़े बड़े बंगले बनवाये कि कल को बहुएँ आएँगी,फिर नाती पोतों के साथ खेलते हुए बुढ़ापा हँसी ख़ुशी कट जायेगा ।
परंतु अभी भीदेर नहीं हुई है।मेरे दिमाग़ में एक आइडिया आया है,क्यों न हम लोग ये बड़े बंगले बेच कर दो बेडरूम का एक फ़्लैट ख़रीद लें और दोनों परिवार एक साथ रहे।एक दूसरे के दुख दर्द में साथ रहेगा साथ ही माॉरल सपोर्ट भी रहेगा और अकेलेपन का अहसास भी नही होगा।
भई मुझे तो केदार का आइडिया बहुत पसंद आया,दोनों परिवार एक दूसरे से भलीभांति परिचित भी है और सुधा भाभी और तुम भी तो पुरानी सहेलियां हो। तुम्हारा क्या विचार है?इस बावत हां आइडिया तो बहुत अच्छा है लेकिन जब कभी हमारा विबेक वापस आयेगा तो वह कहां रूकेगा ।इतने छोटे घर में कैसे उसको ठहरा पायेंगे।
हे भगवान,तुम अभी तक पुत्र मोह में जकडी हुई हो, कभी तो अपने बारे में भी सोचो।जब विबेक विदेश जारहा था तो यह कहा था कि उसे कम्पनी कीतरफ से किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में सिर्फ एक साल के लिए वहां जाना है फिर ये एक साल तो पलक झपकते ही बीत जायगा,फिर ये एक साल सात साल लम्बा हो गया,जब एकबार बापस आने थे कहा तो कैसे उसने दो-टूक अपना फैसला सुना दिया था कि ये मेरी लाइफ है,इसे में अपनी तरह से जीना चाहता हूं।और अब तो बापस आने का सबाल यों भी नहीं उठता कि बहां की सिटीजनशिप लेने में किसी लॉरा नाम की लड़की ने उसकी मदद की थी,जो लॉरा पहले उसकी सहकर्मी थी वहीं लॉरा अब उसकी सहधर्मिणी बन चुकी है। चूंकि लॉरा के पेरेंट्स तो बही रहते हैं तो अब तुम भी पुत्र मोह त्याग दो।और अपनी शेष जिंदगी हंसी खुशी विताने की तैयारी करो।
इस कहानी को भी पढ़ें:
मैं तो आज ही फोन करके विबेक कोअपना फैसला बता दूंगा।
केदार ने तो अपने बेटे विनय से बात करली है विनय भी उसके फैसले से खुश है,उसका कहना है कि पापाजी जव आप अप नेे पुराने दोस्तों के साथ मिल कर एक ही घर में रहोगे तो कोई भी परेशानी पास नही फटकेगी फिर मनोहर अंकल और आप तो एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते व समझते हो। जब उड़ीसा में हम लोग पड़ोसी थे तो कैसे आप दोनों कैरम व ताश खेलकर अपना मनोरंजन करते थे।अब तो आप दोनो के पास समय ही समय है।मिलजुल कर रहने से मन भी खुश रहेगा व तन भी स्वस्थ
रहेगा।
केदार का मानना है कि क्यों फिजूल में बच्चेंो कीबावत बुरा भला सोच कर अपने मन को बीमार करे टेंशन जैसी बीमारी को न्योता दें।हमें तो यह सोचना है जो जहां रह खुश रहे।
मनोहर वक्त बहुत बदल चुका है,समय व परिस्थितियों के अनुसार हम लोगों को अपने बिचारबदल लेने चाहिए।ये सोच न बच्चे विदेश में हैं तो हमें भी तो विदेश घूमने जाने को मिलेगा। प्रैक्टिकल होकर सोचेगा तो सब सही लगेगा।वस थोड़ी सोच बदलने की जरूरत है।
साथ साथ ओल्ड ऐज को अपनी तरह से बिताने का आनंद ही कुछ और है।
आज इस बात को पूरे दो साल हो रहे है,दोनों परिवार साथ रहरहेहैं लाइफ को पूरी तरह ऐनजॉय कर रहे हैं पिछले साल दोनों परिवार तीर्थ यात्रा भी कर आए हैं।कैरम व ताश की बाज़ी जमती ही रहती है।माया व सुधा अपनी तरह से गपशप करके खुश हैं।दोनों की इतनी पैंशन आती है कि आर्थिक रूप से कोई क ी नही है।काम करने के लिए एक फुल टाइम सहायिका रख ली गई है।कुलटोटल जिन्दगी बहुत मजे से गुजर रही है।औरभला क्या चाहिए इस उम्र में।अपने अपने फैसले से सभी खुश हैं।इसी को कहते हैं कि अंतभला तो सब भला।
स्वरचित व मौलिक
माधुरी गुप्ता
नई दिल्ली
#फैसला शब्द पर आधारित कहानी#