इन्हें ना समझे बोझ -रोनिता कुंडु  : Moral Stories in Hindi

विदाई की घड़ी चल रही थी, तनु कभी अपने भाई तो कभी अपने माता-पिता से लिपट कर रो रही थी… तभी अचानक उसे याद आया उसकी दादी नहीं है वहां,

 तनु:   मम्मी दादी कहां है..?

 राधा जी:   होगी कहीं, तू जा बेटा… दामाद जी कब से खड़े हैं…? वैसे भी हम सब तो है ही ना यहां..? तेरी दादी को बता देंगे 

तनु अपनी मम्मी की बातों से थोड़ी उदास हो गई और अपने बोझिल मन से कार की तरफ बढ़ने लगी, तभी उसे लगा नहीं दादी से मिले बिना मैं कैसे जा सकती हूं..? यह सोचते हुए तनु उल्टे पाँव दौड़ी अपनी दादी को पुकारते हुए.. 

दादी.! दादी.! कहां हो..? तनु यूं पुकारते हुए हर एक कमरे में जाकर देखने लगी, तभी उसे उसके कमरे में उसकी दादी उसकी बचपन की तस्वीर सीने से लगाई रोती दिखाई दी,

 तनु:  दादी, यहां बैठी क्या कर रही हो..? मेरी विदाई हो रही है सभी बाहर है पर तुम नहीं.. 

दादी:   गुड़िया में जानती थी तू बिना मुझसे मिले नहीं जाएगी और वहां भीड़ में मैं तुझसे अपने दिल की बात कभी नहीं कर पाऊंगी, इसलिए मैं यहां बैठी थी.. 

तनु:  कौन सी बात दादी..?

 दादी:   गुड़िया इंसान को अपने बच्चों से ज्यादा अपने बच्चों के बच्चों से लगाव होता है, जब दुनिया बुजुर्गो को पुराने सामान की तरह समझने लगते हैं, तभी यही वह नन्हे फरिश्ते होते हैं जिनके लिए वह जी पाते हैं.. तू नहीं जानती तू मेरे लिए क्या है..? और आज मुझे ऐसा लग रहा है मानो मेरे जिस्म से मेरी जान अलग हो रही है.. पर यह तो रित है बेटा, निभानी ही पड़ेगी.. तुझे मैं ज्यादा कुछ तो नहीं दे सकती, मेरे आशीर्वाद के रूप में अपनी यह डायरी दे रही हूं, जिसमें ज्यादातर किस्से तेरे ही लिखे मिलेंगे, जब भी तुझे मेरी याद आए इसे पढ़ लेना और समझ लेना मैं तेरे साथ हूं, जा मेरी बच्ची अपना ख्याल रखना… 

तनु दादी के इस बात से फूट-फूट कर रोने लगती है और अपनी दादी के पैर छूकर चली जाती है..

शादी के बाद नए घर में, नए लोगों के बीच तनु बहुत व्यस्त हो जाती है और उसके दिमाग से दादी की डायरी की बात निकल ही जाती है… लगभग एक महीने बाद उसकी दादी के स्वर्ग सिधारने की उसे खबर मिलती है… वह रोती बदहवास सी अपने मायके पहुंचती है और अपने दादी को आखिरी विदाई देती है..

राधा जी:  बेटा तेरे जाने के बाद से ही बड़ी टूट सी गई थी.. ना सही से खाती पीती थी और ना ही किसी से बोलती थी… बस पूरे दिन अपने कमरे में कुछ लिखती ही रहती थी.. तभी तनु को दादी की दी हुई डायरी याद आई… वह तुरंत ही अपने ससुराल जाकर उस डायरी को निकालकर पढ़ने लग बैठी… 

डायरी में.. 

आज वह दिन है जब मेरे जीवन साथी मुझे जीवन में अकेला छोड़कर चले गए.. पर मुझे जीने की नई वजह मिल गई है मेरी गुड़िया के रूप में… आज गुड़िया 3 साल की है डॉक्टरों ने निमोनिया बता कर यह कह दिया है कि शायद इसका बचना मुश्किल है… पर मैं जानती हूं यह तो भगवान का दिया हुआ तोहफा है… जो मुझसे खुद भगवान भी नहीं छीन सकते, जब डॉक्टरों ने हर आस छोड़कर इसे घर ले जाने को कहा, कहीं ना कहीं इसके माता-पिता ने भी हार मान ली थी… पर मैं जानती थी इसे कुछ नहीं होगा… मैं लाऊंगी इसमें जान दोबारा 

आज पूरे एक हफ्ते बाद फिर से लिख पा रही हूं.. क्योंकि मेरी लाडो की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई थी.. उसकी देखभाल में लिखने का टाइम ही नहीं मिला… आज मेरी लाडो बिल्कुल ठीक हो गई है और मैं पूरी निर्जला रहकर माता रानी के दर्शन के लिए जाने वाली हूं 

सुनिए जी… आप मुझे जल्दी अपने पास मत बुलाना.. मुझे अभी अपनी गुड़िया को बड़ा करना है, जब उसकी शादी हो जाएगी, मैं आ जाउंगी आपके पास और भी बहुत कुछ लिखा था और डायरी में 

तनु डायरी पढ़ती जा रही थी और उसके आंसू बहते जा रहे थे… वह आगे पढ़ती है… बेटे को मेरे लिए वक्त नहीं, बहू भी बड़ी उखड़ी सी रहती है… कभी-कभी तो लगता है इन पर बोझ हूं मैं, पर लाडो के साथ जीवन को जीने की लालच में मैं मरना भी नहीं चाहती… पर जिस दिन मेरी लाडो मुझसे दूर चली जाएगी, मैं भी आपके पास आ जाऊंगी, तब तक थोड़ा धैर्य रखना… 

मेरी लाडो मैं जानती हूं, जब तू यह डायरी पढ़ रही होगी, मैं जा चुकी होंगी.. तू मुझे याद करके रोएगी भी, पर एक बात याद रखना तेरी दादी हमेशा तेरे साथ रहेगी… उसका आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ रहेगा… लाडो तेरी वजह से तो मैंने अपने जीवन का अंतिम हिस्सा अच्छा बिताया है… और अब चैन से जा पा रही हूं, वरना हमारे जैसे उम्र वाले तो हर दिन अपने मौत का इंतजार करते हैं, तूने मुझे जीने की वजह दे दी बेटा, अपने घर परिवार को इतनी खुशी देना कि वह इसी तरह अपने जीवन से प्यार कर सके और हो सके तो मेरी एक बात याद रखना, अपने घर के बुजुर्गों से इतना अपनापन रखना ताकि उन्हें अपना जीवन आशीर्वाद लगे ना कि बोझ.. 

डायरी तो खत्म हो गई, पर तनु के आंसू नहीं.. और वह सोचने लगी कि कहां तो दादी, उसको अपनी पूरी दुनिया मानकर बैठी थी.. और कहां वह ससुराल जाकर इतनी व्यस्त हो गई कि उनकी सुध लेने कि खबर नहीं रही… कुछ देर रोने के बाद, उसने कहा माफ कर दो मुझे दादी, और मेरा आपसे यह वादा है आपकी आखिरी इच्छा मेरे जीवन की सबसे बड़ी सीख होगी… 

दोस्तों.. हम अक्सर अपने घर के बुजुर्गों को देखते हैं कि कैसे वह उम्र के चलते बेबस और लाचार हो जाते हैं.. और तब वह हमें बोझ लगने लगते हैं… उनकी हर बात का जवाब हम चिढ़कर देते हैं, यहां तक के हम उन्हें डांटने फटकारने से भी नहीं चुकते, पर यही समय होता है उन्हें प्यार देने का, क्योंकि बच्चे और बूढ़े एक समान होते हैं उन्हें आपके धन दौलत से कोई मतलब नहीं होता, उन्हें आपका प्यार और समय चाहिए, तो वक्त रहते उन्हें समय दे, वरना उनके जाने का वक्त तो निकट आता ही रहेगा और एक वक्त ऐसा आएगा कि वह चले जाएंगे, फिर आपसे कभी कोई हठ नहीं करेगा…  

धन्यवाद 

#आशीर्वाद

रोनिता कुंडु 

2 thoughts on “इन्हें ना समझे बोझ -रोनिता कुंडु  : Moral Stories in Hindi”

  1. बहुत शानदार कहानी है। हार्ट टचिंग। आंखो में आंसू आ गए

    Reply

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!