हर बीमारी का इलाज सिर्फ दवा नही होती ( भाग 1) – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : श्रुति की शादी हुए अभी चार महीने ही हुए थे पर उसके चेहरे की रौनक जाती जा रही थी।

 शादी से पहले श्रुति गोरी चिट्टी सुंदर, गुलाबी गाल उस पर पड़ते डिंपल उसके रूप में और चार चांद लगा देते पर अब उसका रूप बिखरता जा रहा था। उसकी शादी वैसे तो अच्छे खाते पीते घर में हुई थी पर शादी के 10 दिनो बाद ही उसकी सास ,उसके ससुर के साथ राजसमंद चली गई थी जहां उनकी नौकरी थी और श्रुति को उसकी जेठानी के साथ रहना पड़ रहा था। उसके दुल्हन जैसे कोई लाड चाव नही हुए थे क्योंकि पहले तो घर पर मेहमान रुके हुए थे फिर उसको लाड करने वाली उसकी सास उसको चूल्हा पूजन( शादी के बाद की पहली रसोई पूजन)8 दिनों बाद करके ही चली गई थी तो उसको काम भी करवाना ही पड़ता घर का जेठानी के साथ। जेठानी को तो जैसे फ्री की नौकरानी ही मिल गई श्रुति के रूप में जैसे। श्रुति को सुबह जल्दी उठने की आदत थी तो सुबह की चाय अब वो ही बनाकर देती सबको जेठ जेठानी, उनके दो बच्चों का दूध और अपनी और पतिदेव की चाय। श्रुति की जेठानी मीठा बोलकर उससे सारे काम करवा लेती थी और खाने के टाइम सिर्फ रोटी और सब्जी के अलावा कुछ और नहीं होता था उसकी थाली में, श्रुति को खाने के साथ दही और मिठाई बहुत पसंद थी पर उसकी जेठानी उससे इन सबके लिए कभी पूछती नही थी।

और जब उसकी जेठानी बोलती कि  हमारे तो नियम कायदे ऐसे ही हैं , सादा खाना खाते हैं नही तो फिर आदत पड़ जाती है आलतू फालतू खाने की तो  फिर तो श्रुति कुछ बोल ही न पाती मन मारकर उसे वो ही खाना खाना पड़ता और जब जेठानी जी की बारी आती तो अपनी  थाली में रोटी, सब्जी के साथ सलाद, थोड़ी सी नमकीन, मिठाई यहां तक कि केले की चाट भी साथ लेकर बैठती  तब श्रुति को उनके नियम कायदे समझ न आते। 

श्रुति बाहर से खुश जरूर दिखती थी पर कहीं न कहीं अंदर से कमजोर हो रही थी और दुखी भी क्युकी नई जगह, नए लोगों के साथ अभी तारतम्य नही बैठ पा रहा था उसका ऊपर से उसको अपने मायके की बहुत याद आती थी ,उसका खाना पीना  , सोना जागना सब कुछ जो बदल गया था । उसको मम्मी के हाथों से बने खाने का स्वाद रह रह कर जुबान पर आ जाता था और उसकी आंखों के कोर से गिरते दो आंसू सब कुछ बयां कर जाते।

मन ही मन खुद से कहती क्या मुसीबत पाल ली मैने शादी करके

सोचा था छोटा सा परिवार है, मैं भी सबसे छोटी तो लाड़ में रहूंगी पर यहां तो लाड़ करना तो दूर ढंग से खाना भी नही मिल रहा

पर कर भी क्या सकती थी सिवाय दुखी होने के 

सर्दियों के मौसम में उसको  गुड मूंगफली, गजक , रेवड़ी , तिल चिक्की बहुत पसंद था पर ससुराल में ये सब किसको बताती अभी नई नई जो आई थी वो तो अपने पति तक को बताने में हिचकिचाती थी और रसोई में ढूंढने पर इसको कभी कुछ मिलता नही था पर जब जेठानी जी के कमरे में उनको  अलमारी से ये सब निकालते हुए देखा तो उसको सारा माजरा समझ आ गया। जेठानी जी सफाई देते हुए बोलती अरे बच्चों का कभी भी कुछ खाने का मन कर जाता है ना इसलिए सब कुछ यहीं रख लिया ताकि बार बार आना जाना न पड़े पर तुम शर्माना मत जो चाहिए ले लेना मुझे लगा तुम कभी मीठा खाती नहीं हो न तो तुम्हे पसंद नहीं शायद

 श्रुति मन ही मन बोलती  आप पूछती कब हो जो खाऊं और चाहिए तो बहुत कुछ पर पर ऐसे कैसे ले लूं किसी और के कमरे में से । 

 श्रुति बस मुस्कुरा दी सुनकर। 

 अगला भाग 

हर बीमारी का इलाज सिर्फ दवा नही होती ( भाग 2 ) – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

धन्यवाद

निशा जैन

1 thought on “हर बीमारी का इलाज सिर्फ दवा नही होती ( भाग 1) – निशा जैन : Moral Stories in Hindi”

  1. सही है, जीवन में ऐसी परिस्थिति का सामना कई लोग को करना पड़ता है, उनमें से एक मै भी हूँ, बाद में एहसास होता है क्या खोया क्या पाया
    खुबसूरती से उकेरी गई कहानी

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